Sunday, November 4, 2012

अमर सिंह पर सपा की कृपा के मतलब...

... तो क्या अमर सिंह की समाजवादी पार्टी में वापसी की तैयारियां शुरू हो गई हैं। अपने पूर्व नेता अमर सिंह के विरुद्ध 600 फर्जी कम्पनियों के माध्यम से करोड़ों रुपए की मनीलॉड्रिंग का केस वापस लेने के समाजवादी पार्टी सरकार के कदम से अटकलें तेज हो गई हैं। माना यह भी जा रहा है कि इन मामलों के जरिए अपनी सांसद जया बच्चन के मेगास्टार पति अमिताभ बच्चन को राहत देने की मंशा है जिनकी देर-सवेर गर्दन फंसने का अंदेशा पैदा होने लगा था। सियासती गलियारों में चर्चाएं तो यहां तक हैं कि सरकार के कदम के पीछे अपने कुछ नेताओं को बचाने की भी योजना है। इतने बड़े और चर्चित मामले की फाइल यूं बंद कराने से अटकलें लगना तो लाजिमी है ही। अमर सिंह पिछले आठ साल से, खासकर 1996 से हिन्दुस्तान की राजनीति की कई धुरियों में से एक रहे हैं, जिनका इस्तेमाल ज्यादातर समाजवादियों ने तो कभी वामपंथियों ने और कभी कांग्रेसियों ने किया। यूं तो उन्हें राजनीति में लाने का श्रेय जाता है प्रदेश के स्वर्गीय मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह को लेकिन वास्तव में यह चर्चा में तब आए जब कर्ज के बोझ में दबे बॉलीवुड मेगास्टार अमिताभ बच्चन की मदद की और प्रत्येक जगह उनके साथ दिखने लगे। सपा में आने के बाद तो वह आएदिन चर्चा बटोरने लगे। यहां तक कि उन्हें और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को दो जिस्म और एक जान तक कहा जाने लगा। अपनी पुत्रवधु डिंपल यादव के रूप में सपा की अपनी ही जीती सीट को फीरोजाबाद में हार जाने से आहत मुलायम सिंह ने अमर सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद अमर सिंह ने अपनी अलग पार्टी लोकमंच बनायी और हर गली-मुहल्ले में उन्होंने मुलायम सिंह के खिलाफ आग उगली। विधानसभा चुनाव में इस पार्टी के 360 प्रत्याशी मैदान में उतरे लेकिन जीता एक भी नहीं। दरअसल, अमर सिंह राजनेताओं की उस जमात का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सिर्फ परिणाम की चिंता करता है। साधन की पवित्रता और अपवित्रता से जिसका दूर-दूर तक कुछ भी लेना-देना नहीं होता। सपा सरकार ने जो मामले वापस लिये हैं, वह गंभीरतम श्रेणी के हैं। कानपुर निवासी शिवाकांत त्रिपाठी की शिकायतों पर यह मामले दर्ज हुए थे और गंभीरता देखते हुए तत्कालीन बसपा सरकार ने इनकी जांच पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को सौंपी थी। एक क्षेत्राधिकारी जांच का दायित्व संभाल रहे थे। मामले के अनुसार, घोटाले में तमाम छोटी-छोटी 600 कम्पनियों के सस्ते शेयरों को ऊंचे दामों पर खरीदा गया, फिर फर्जी तरीके से उन्हें बेच दिया गया। चूंकि मामला 25 हजार रुपए से बहुत ज्यादा राशि का था इसलिये स्थानीय पुलिस इस संबंध में जांच नहीं कर सकती थी, इसलिए तत्कालीन मायावती सरकार ने मामले की जांच आार्थिक अपराध शाखा को सौंप दी। इसके बाद शिवाकांत त्रिपाठी ने एक याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट से आग्रह किया कि पूरी जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से कराई जाए, साथ ही जांच की निगरानी अदालत करे। इस दौरान हाईकोर्ट ने अमर सिंह की गिरफ्तारी पर स्टे दे दिया। साथ ही 20 मई 2011 को ईडी को निर्देश दिया कि मामले की जांच अपने स्तर से करे। ईडी ने अक्टूबर में ही इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी जांच रिपोर्ट फाइल की है। इसी बीच प्रदेश की सपा सरकार ने आर्थिक अपराध शाखा से मामला दोबारा कानपुर की बाबूपुरवा थाने की पुलिस को ट्रांसफर करने का आदेश जारी कर दिया। अखिलेश सरकार के निर्देश पर कानपुर पुलिस ने अदालत में अपनी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी है। सपा कह रही है कि सरकार किसी भी मामले में निष्पक्ष जांच की पक्षधर है। पिछली सरकार के दौरान मामले में जांच ठीक से नहीं हो सकी थी, इसी कारण मामला बाबूपुरवा थाने की पुलिस को ट्रांसफर किया गया था। याचिकाकर्ता शिवाकांत त्रिपाठी मामले में अपनील करने की तैयारी में हैं। शिवाकांत का आरोप है कि मुलायम सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में उत्तर प्रदेश विकास परिषद के अध्यक्ष के तौर पर अमर सिंह ने कई वित्तीय अनियमितताएं कीं। शिवाकांत त्रिपाठी ने मामले में कई किलो कागजात भी सबूत की तरह पेश किए, जिनमें बताया गया कि अमर सिंह ने कोलकाता, दिल्ली और कई अन्य जगहों के फर्जी पतों वाली कंपनियों से मनी लांड्रिंग की। मामले की वापसी के पीछे दिल्ली के चर्चित शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी की भूमिका को भी माना जा रहा है। बुखारी सपा सरकार के अब तक के कार्यकाल में प्रभावी भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। वह कैबिनेट मंत्री आजम खां के धुर विरोधी हैं और आजम खुद अमर सिंह को पसंद नहीं करते। दोनों के बीच कटुता जगजाहिर है। बुखारी के माध्यम से अमर सिंह ने मुलायम सिंह के पास अपनी अर्जी भिजवाई है कि उनके खिलाफ मायावती सरकार के दौरान दर्ज किया गया मनी लॉंड्रिंग का मुकदमा वापस ले लिया जाए। बुखारी आजम से बदला ले रहे हैं।

1 comment:

Ashish Gupta said...

सर, जहां तक इस लेख पर मेरा मानना है कि संभवत: दो-चार दिनों में अमर सिंह की घर में वापसी हो जाए. लेकिन यदि राजनीति की बात करें तो अमर सिंह को अभी राजनीति के गुढ़ दांवपेंच अपने गुरु मुलायम सिंह यादव से सीखें. एक बात और यहां बताना चाहूंगा बिल्ली अपने शिष्य को सब कुछ सिखाती है, लेकिन पेड़ पर चढ़ना नहीं सिखाती. अमर सिंह इतने दिनों तक मुलायम सिंह के साथ रहने का लाभ नहीं उठा सके. या यूं कहें की मौके का फायदा नहीं उठा सके. मेरा यह कहना है कि अमर सिंह जी राजनीति जोश से नहीं होश चलायी जाती है.