Monday, May 29, 2023

हिंदी पत्रकारिता: चुनौतियों में फंसी उम्मीदें


कलम के सिपाही, लोकतंत्र के रक्षक और, न जाने क्या-क्या... पत्रकार पर शायद इस समय सबसे बड़ी जिम्मेदारी है या मानी जाती है। घर के सामने सरकारी नल से बहता पानी, बेरोजगारी के कारण लुटती जवानी, और सामाजिक समस्याएं हों या राजनीतिक, सब का हल जैसे पत्रकार को ही करना है। और, इतने बोझ तले दबा जा रहा है, कुचला जा रहा है। उम्मीदें चुनौतियों में फंसी हैं।

आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है। इसी दिन साल 1826 में हिंदी भाषा का पहला अखबार 'उदन्त मार्तण्ड' प्रकाशित होना शुरू हुआ था। बहुत समय गुजर गया। पत्रकारिता ने तमाम अग्नि परीक्षा दीं, अपना दायित्व निभाया और कभी-कभी चूक भी गई। दौर आते रहे जाते रहे, पर पत्रकार वहीं अविचल खड़ा रहा। समाज में सम्मान की खातिर मैदान में डटा रहा। आजादी की लड़ाई से लेकर अब तक, ना जाने कितनी कसौटियों पर उसे कसा गया। वेतन के नाम पर मामूली रकम से जीवन निर्वाह का यह संघर्ष वाकई बहुत कठिन था। 

लेकिन आज का दौर सबसे अलग है। शायद सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण। सीधा और संगीन आरोप है कि कलम अब निष्पक्ष नहीं रही। छोटी से लेकर बड़ी रकम में बिकती है।  गंभीरतम आरोप ये भी है कि बड़े मीडिया घराने सौदे करके बैठे हैं, कलम बंधुआ सी है। हालांकि आरोप तो पत्रकार के जीवन का अभिन्न अंग भी हैं, लेकिन जब सब कुछ सामने दिखने भी लगे तो, बात कष्टप्रद हो जाती है। सबसे बड़ी चुनौती जो घुन की तरह मीडिया को लील रही है, वो फर्जी पत्रकारों की वजह से आई है। हालत इतनी खराब है कि अपराधी किसी असली या नकली चैनल का माइक पकड़ लेते हैं या फिर आईकार्ड। और फिर क्या होता है, ये बताने की जरूरत नहीं। मीडिया जगत में आपाधापी सी है। नकली पत्रकारों की वजह से असली बताने से भी बचने लगे हैं कि वो पत्रकार हैं।

सबसे खास बात यह है कि युवा पीढ़ी के मेधावी लोग जो मीडिया में अपना करियर बनाना चाहते थे, उनका मोहभंग हो चुका है। उसका नतीजा है कि दोयम दर्जे का वो युवा, जिसके पास न विचार हैं, न ज्ञान, वो घुसा चला रहा है। पत्रकारिता बौद्धिक पेशा है। बिन बुद्धि पत्रकारिता जैसे बिना स्याही की कलम। अब क्योंकि विज्ञान और तकनीक का चरम है, इसलिए सोशल मीडिया जैसे माध्यमों पर ऐसे बुद्धि भ्रष्ट लोग अर्थ का अनर्थ कर दे रहे हैं। और, खामियाजा पत्रकारिता की विश्वसनीयता भोग रही है। इलेक्ट्रॉनिक चैनल पर इतनी आपाधापी है कि खबरों की सत्यता कभी-कभी शक के दायरे में आ जाती है, अखबार जो लिखते हैं, उन लाइनों में सच का दबा गला साफ नजर आ जाता है। न्यूज़ पर व्यूज हावी हैं।

सोशल मीडिया के तौर पर पैदा हुआ नया मीडिया अपेक्षा पर बिल्कुल खरा नहीं उतर रहा। इतने अगंभीर यूट्यूब चैनल हैं कि अच्छे चैनल भीड़ में गुम से हैं। लोग जो चाहे लिख और दिखा रहे हैं। खबर के चीथड़े उड़ रहे हैं, चीत्कार रही हैं खबरें,  खबरों की आत्मा मर रही है साथ में पत्रकारिता भी बुरे हाल में है, शायद अपनी उम्र के सबसे बुरे दौर में।

तो फिर उम्मीद कहां है। निराशा के इस दौर में उम्मीद की किरण कहीं दिखाई देती भी है या नहीं। बेशक, यह दुनिया उम्मीद पर कायम है। कुछ कोपलें अभी भी उग रही हैं, राख के ढेर में कहीं-कहीं चिंगारी अब भी दिखती है, कुछ बूढ़ी हड्डियां अभी भी जोर मारती दिखती हैं। यानी, सवेरा होने की पूरी उम्मीद है। आइए इसी उम्मीद के साथ पत्रकारिता दिवस मनाते हैं। आप सभी को हिंदी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

Wednesday, February 8, 2023

भूकंप का मंडराता खतरा

 आजकल तुर्किये और सीरिया में महाविनाशकारी भूकंप की खबरें डरा रही हैं। तस्वीरें बता रही हैं कि हालात कितने भयावह हैं। हजारों लोग हताहत हुए हैं। और, दुर्भाग्य और हमारी गलतियों के नतीजतन, हम भी सुरक्षित नहीं। भारत भी भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। देश का लगभग 59 प्रतिशत हिस्सा अलग-अलग तीव्रता के भूकंपों के प्रति संवेदनशील है। आठ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में खतरा सर्वाधिक है।

भूकंप आता क्यों है। धरती के भीतर सात प्लेट्स होती हैं जो लगातार घूमती रहती हैं। जब ये प्लेटें किसी जगह पर आपस में टकराती हैं, तो वहां फॉल्ट लाइन जोन बन जाता है और सतह के कोने मुड़ जाते हैं। इससे वहां दबाव बनता है और प्लेट्स टूटने लगती हैं। इस टूटन से अंदर की एनर्जी बाहर आने का रास्ता खोजती है, जिसकी वजह से धरती हिलती है, यही भूकंप है। रिक्टर स्केल पर 2.0 से कम तीव्रता वाले भूकंप को माइक्रो कैटेगरी में रखा जाता है और यह भूकंप महसूस नहीं किए जाते। रिक्टर स्केल पर माइक्रो कैटेगरी के 8,000 भूकंप दुनियाभर में रोजाना दर्ज किए जाते हैं। इसी तरह 2.0 से 2.9 तीव्रता वाले भूकंप को माइनर कैटेगरी में रखा जाता है। ऐसे 1,000 भूकंप प्रतिदिन आते हैं इसे भी सामान्य तौर पर हम महसूस नहीं करते। वेरी लाइट कैटेगरी के भूकंप 3.0 से 3.9 तीव्रता वाले होते हैं, जो एक साल में 49,000 बार दर्ज किए जाते हैं। इन्हें महसूस तो किया जाता है लेकिन शायद ही इनसे कोई नुकसान पहुंचता है।
लाइट कैटेगरी के भूकंप 4.0 से 4.9 तीव्रता वाले होते हैं जो पूरी दुनिया में एक साल में करीब 6,200 बार रिक्टर स्केल पर दर्ज किए जाते हैं। इन झटकों को महसूस किया जाता है और इनसे घर के सामान हिलते नजर आते हैं। हालांकि इनसे न के बराबर ही नुकसान होता है। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, देश में भूकंपों के रिकॉर्ड किए गए इतिहास को देखते हुए, भारत की कुल भूमि का 59% हिस्सा अलग-अलग भूकंपों के लिए प्रवण है। भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र के अनुसार, कुल क्षेत्र को चार भूकंपीय क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया था। जोन 5 वह क्षेत्र है जहां सबसे तीव्र भूकंप आते हैं, जबकि सबसे कम तीव्र भूकंप जोन 2 में आते हैं। देश का लगभग 11% क्षेत्र जोन 5 में, 18% क्षेत्र जोन 4 में, 30% क्षेत्र जोन 3 में और शेष क्षेत्र जोन 2 में आता है। जोन 5 में शहरों और कस्बों वाले राज्य और केंद्रशासित प्रदेश गुजरात, हिमाचल प्रदेश, बिहार, असम, मणिपुर, नागालैंड, जम्मू और कश्मीर और अंडमान और निकोबार हैं। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी देश में और आसपास भूकंप की निगरानी के लिए नोडल सरकारी एजेंसी है। देश भर में, राष्ट्रीय भूकंपीय नेटवर्क है, जिसमें 115 वेधशालाएं हैं जो भूकंपीय गतिविधियों पर नज़र रखती हैं। मध्य हिमालयी क्षेत्र दुनिया में सबसे भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है। 1905 में, हिमाचल का कांगड़ा एक बड़े भूकंप से प्रभावित हुआ था। 1934 में, बिहार-नेपाल भूकंप आया था, जिसकी तीव्रता 8.2 मापी गई थी और इसमें 10,000 लोग मारे गए थे। 1991 में, उत्तरकाशी में 6.8 तीव्रता के भूकंप में 800 से अधिक लोग मारे गए थे। 2005 में, कश्मीर में 7.6 तीव्रता के भूकंप के बाद इस क्षेत्र में 80,000 लोग मारे गए थे। 700 से अधिक वर्षों से इस क्षेत्र में विवर्तनिक तनाव रहा है जो अभी या 200 वर्षों के बाद जारी हो सकता है, जैसा कि 2016 में अध्ययनों से संकेत मिलता है। इसका मध्य हिमालय पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा। यह भूकंप इंडो-ऑस्ट्रेलियाई और एशियाई टेक्टोनिक प्लेटों के बीच टक्कर है, जिन्होंने पिछले पांच करोड़ वर्षों में हिमालय के पहाड़ों का निर्माण किया है।

Monday, January 9, 2023

कॉमन सिविल कोड: बवंडर की आहट

 

NEWS NEXT INDIA

समान नागरिक संहिता यानी कॉमन सिविल कोड फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट ने संहिता के लिए कमेटी गठन के राज्यों के कदम को संविधान सम्मत माना है। कमेटियों के खिलाफ याचिका खारिज करने के शीर्ष कोर्ट के निर्णय से राजनीतिक बवंडर मचना तय है। भाजपा जहां 2024 के चुनावों में नैया पार करने का सपना देखेगी और विरोधी दलों के लिए यह गैर-भाजपा मतों के ध्रुवीकरण का रास्ता होगा। गैर हिंदू सभी मतों पर फोकस के लिए संहिता का विरोध जरूरी होगा, वही भाजपा इसके सहारे हिंदुओं को एकजुट करने का यत्न करती नजर आएगी। कॉमन सिविल कोड पर उत्तराखंड और गुजरात ने कमेटी गठन किया है। 

उत्तराखंड में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज इंदिरा प्रकाश देसाई अगुवाई कर रही हैं और उत्तराखंड में हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि राज्यों की बनाई कमेटियां संविधान सम्मत हैं। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि कमेटियों के गठन में गलत कुछ नहीं है। कमेटियों को चुनौती नहीं दी जा सकती। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य की मानता है। लेकिन बात इतनी-सी नहीं है, बल्कि इसके बड़े निहितार्थ और राजनीतिक मायने हैं। भाजपा के लिए एजेंडे का एक बिंदु नहीं अपितु पूरा एजेंडा ही है। वह अपने 2019 के चुनाव घोषणापत्र में इसे शामिल कर चुकी है। खबरें तो यहां तक हैं कि विधेयक बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

सरकार मानती है कि समान संहिता लागू करने से देश की अदालतों पर लगातार बढ़ते मुकदमों के बोझ को हल्का करने में मदद मिलेगी। अंतरधार्मिक विवाह और उनसे उत्पन्न संतानों और पारिवारिक विवादों से जुड़े मुकदमे घटेंगे। मुकदमों की संख्या में 20 से 25 फीसदी की कमी आ सकती है क्योंकि दीवानी अदालतों में चल रहे धार्मिक मुकदमे खुद समाप्त हो जाएंगे क्योंकि समान कानून भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) सभी पर समान रूप से लागू होगा। अभी तक हिंदू कानून वेद पुराण, स्मृति आदि के आधार पर तो मुस्लिम पर्सनल लॉ कुरान, सुन्नत, इज्मा, कयास और हदीस के आधार पर हैं। इसी तरह ईसाइयों का कानून बाइबल, पुराने अनुभव, तर्क और रूढ़ियों के आधार पर, जबकि पारसियों का कानून उनके पवित्र धार्मिक ग्रंथ जेंद अवेस्ता पर आधारित है। हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायियों को सनातन धर्म से जुड़ा माना जाता है जिसके कारण इसके लिए एक समान कानून है जिसमे इनका एक से ज्यादा शादी करना गैर कानूनी माना गया है।

समान नागरिक संहिता विरोधियों का कहना है कि ये सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का तर्क है कि अगर सबके लिए समान कानून लागू कर दिया गया तो उनके अधिकारों का हनन होगा। मुसलमानों को एक से अधिक शादियां करने और बीवी को तलाक देने का हक नहीं होगा। वह अपनी शरीयत के हिसाब से जायदाद का बंटवारा नहीं कर सकेंगे। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसे असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी कहता आया है। 

अंत में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर बात। संविधान सभा में प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान निर्माण के वक्त कहा था कि समान नागरिक संहिता अपेक्षित है, लेकिन फिलहाल इसे विभिन्न धर्मावलंबियों की इच्छा पर छोड़ देना चाहिए। इस तरह, संविधान के मसौदे में आर्टिकल 35 को अंगीकृत संविधान के आर्टिकल 44 के रूप में शामिल कर दिया गया और उम्मीद की गई कि जब राष्ट्र एकमत हो जाएगा तो समान नागरिक संहिता अस्तित्व में आ जाएगा। शायद वो समय अभी भी न आया हो, पर बवाल तो आने वाला है, ऐसा प्रतीत हो रहा है।