Friday, August 31, 2012

कोयले ने रचा 'कोलगेट'

देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी संसद का पूरा मानसून सत्र जबर्दस्त हंगामे की भेंट चढ़ गया। कारण बनी, भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का पर्दाफाश करने के करीब 16 महीने बाद कैग ने एक और घोटाले से पर्दा उठाया है। कोलगेट नाम से कुख्यात हो रहे इस घोटाले में कोयला खदानों में हुए बंदरबांट से सरकारी खजाने को 10.67 लाख करोड़ रुपये का चूना लगा है। यह रकम 2जी घोटाले की रकम 1.76 लाख करोड़ से 6 गुना ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2004 से 2009 के दौरान कंपनियों को 155 कोयला ब्लॉकों का आवंटन बिना नीलामी के ही कर दिया गया। इससे कंपनियों को कई लाख करोड़ रुपये का फायदा हुआ है। किसे हुआ फायदा बगैर नीलामी आवंटन से निजी और सरकारी, दोनों क्षेत्र की कंपनियों को फायदा पहुंचा है। निजी कंपनियों के खजाने में करीब 4.79 लाख करोड़ की रकम गई, तो सरकारी कंपनियों ने 5.88 लाख करोड़ रुपये का मुनाफा बटोरा। लाभ पाने वालीं निजी क्षेत्र की कंपनियों की बात करें तो इस लिस्ट में टाटा ग्रुप की कंपनीज, जिंदल स्टील ऐंड पावर लिमिटेड, इलेक्ट्रो स्टील कास्टिंग्स लिमिटेड, अनिल अग्रवाल ग्रुप फर्म्स, दिल्ली की भूषण पावर ऐंड स्टील लिमिटेड, जायसवाल नेको, आदित्य बिड़ला ग्रुप कंपनीज, एस्सार ग्रुप पावर वेंचर्स, अदानी ग्रुप, आर्सेलर मित्तल इंडिया, लैंको ग्रुप जैसे बड़े नाम शामिल हैं। पावर सेक्टर की दिग्गज खिलाड़ी रिलायंस पावर सासन और तिलैया में मेगा पावर प्रॉजेक्ट्स पर काम कर रही है। रिलायंस पावर इस लिस्ट में शामिल नहीं है, क्योंकि इस रिपोर्ट में 12 कोयला ब्लॉक्स को शामिल नहीं किया गया है। इन ब्लॉक्स का आवंटन टैरिफ आधारित बिडिंग रूट के जरिए किया गया था। नुकसान का आकलन कोल ब्लॉक्स के आवंटन में गड़बड़ी बहुत बड़ी है। कोयला खदानों के आवंटन से जिन व्यावसायिक इकाइयों को फायदा पहुंचा उनमें पावर, स्टील और सीमेंट इंडस्ट्री की करीब 100 प्राइवेट कंपनियां हैं और बाकी सरकारी कंपनियां। कैग की रिपोर्ट कहती है कि 31 मार्च 2011 की कीमत को आधार बनाएं तो सरकारी खजाने को 10.7 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ परंतु नुकसान का इस तरह आकलन करते वक्त सबसे घटिया श्रेणी के कोयले की कीमत को आधार बनाया है। मध्यम श्रेणी के कोयले की कीमत के आधार पर यह आकलन किया जाता, तो नुकसान कहीं ज्यादा बैठता। अगर यह अनुमान कोयला खदान आवंटन के समय (2004-2009) को आधार बनाकर लगाया जाए, तब भी नुकसान का आंकड़ा 6.31 लाख करोड़ रुपये से ऊपर होगा। प्रत्येक ब्लॉक के 90 फीसदी रिज़र्व के आधार पर कैलकुलेशन को देखें तो कुल मिलाकर कैग ने 33,169 मिलियन टन कोयला भंडार पर अपनी रिपोर्ट दी है। इतना कोयला 150,000 मेगावॉट बिजली पैदा करने के लिए पर्याप्त है। इतना कोयला वर्तमान उत्पादन क्षमता के अनुसार 50 साल तक देश के लिए बिजली पैदा करने के लिए काफी है। यूपीए सरकार के इस 'नीतिगत निर्णय' के कारण देश को जो क्षति हुई है, उसके अनुसार, हर भारतीय के हिस्से में आया है लगभग नौ हजार रुपये का घाटा। यदि आपके परिवार में छह सदस्य हैं, तो घाटे में आपके परिवार का हिस्सा हुआ लगभग 56 हजार रुपये। सक्रिय है सीबीआई केंद्रीय जांच ब्यूरो कोयला ब्लॉक आवंटन में धांधली पर दो दर्जन से अधिक कंपनियों के खिलाफ फर्जी दस्तावेज के आधार पर आपराधिक साजिश रचने व धोखाधड़ी का मामला दर्ज करने जा रहा है। दो माह पहले इस संबंध में प्रारंभिक जांच दर्ज कर चुकी सीबीआई को कोयला मंत्रालय से 80 बॉक्स दस्तावेज मिले, जिनमें से 45 की जांच पूरी हो चुकी है। जिन पर मामला दर्ज होने की संभावना है, उनमें ऊर्जा, स्टील, खनन और सीमेंट कंपनियां हैं। संबंधित सभी दस्तावेजों की जांच के बाद और कंपनियों के फंसने की संभावना है। सीबीआई दो पूर्व सचिवों सहित 16 अफसरों से पूछताछ कर चुकी है, जो वर्ष 2006 से 2009 के बीच आवंटन का काम देख रहे थे। जांच अधिकारियों को प्रथम दृष्टया कुछ ऐसे दस्तावेज भी मिले हैं, जिनसे साबित होता है कि कुछ कंपनियों पर संदेह जताए जाने के बाद भी उन्हें ब्लॉक का आवंटन किया गया। सीबीआई छत्तीसगढ़, राजस्थान, ओडिशा और झारखंड के अधिकारियों से भी पूछताछ कर सकती है। 64 कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए 146 निजी कंपनियों से 1422 आवेदन मिले थे और इन सभी दस्तावेजों की जांच चल रही है। कोयला मंत्रालय का तर्क कोयला मंत्रालय का कहना है कि ऊर्जा क्षेत्र में कोयले को वास्तविक मूल्यों पर बेचा जाता है इसलिये इसे घोटाला कहा जाना उचित नहीं है। इस पर कैग का तर्क है कि कोयला प्राकृतिक संसाधन है और उसका विक्रय (नीलामी) के प्रतिस्पर्धी मूल्यों पर होना चाहिए। कैग ने सर्वोच्च न्यायालय के 2जी घोटाले के सन्दर्भ में दिए गए निर्णय का भी नाम लिया है जो कहता है कि सरकार को राष्ट्रीय सम्पदा का संरक्षक एवं न्यासधारी बन कर निर्णय करने चाहिए। कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल का कहना है कि मंत्रालय कैग रिपोर्ट से सहमत नहीं है। इतनी राशि से तो देश की तस्वीर बदल जाती... कोयला घोटाले से देश को जितनी राशि की चपत लगी, वह रकम यदि टीवी स्क्रीन पर एक साथ आ जाए तो गिनना मुश्किल हो जाता है। ये वो रकम है जो इस देश की तस्वीर बदल सकती थी। खाद्य सुरक्षा बिल के तहत एक लाख 10 हजार करोड़ खर्च होने थे यानी जितना नुकसान हुआ है उससे खाद्य सुरक्षा जैसी दो योजनाएं चलाई जा सकती थी। मतलब ये कि देश के हर भूखे को दो जून की रोटी की गारंटी दी जा सकती थी। वित्त मंत्रालय और कृषि मंत्रालय को इस बात का जवाब दिया जा सकता था कि इतनी बड़ी योजना के लिए पैसा कहां से आएगा। यही नहीं, मनरेगा जैसी दो योजनाएं चलाई जा सकती थी। मनरेगा का भी तो बजट सिर्फ 90 हजार करोड़ रुपए है। सोचिए कि जब सिर्फ एक योजना गांव-देहात में रहने वाले लोगों का इतना भला कर रही है तो दो योजनाओं का क्या असर होता। दो लाख 18 हजार करोड़ की रकम से देश के हर जिले में एम्स जैसे तीन बड़े अस्पताल बनाए जा सकते थे। मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया के मुताबिक एम्स जैसे अस्पताल को बनाने में सिर्फ 100 करोड़ खर्च होंगे। उस हालात का अंदाजा लगाइए जब देश के 626 जिलों में एम्स जैसे ती-तीन अस्पताल होते। सीएजी रिपोर्ट में जिस रकम के नुकसान की बात कही गई है अगर वो सरकार के पास होती तो वो पेट्रोल-डीजल पर लिए जा रहे टैक्स को माफ कर सकती थी यानी आप इस वक्त 45 रुपए प्रति लीटर पर पेट्रोल खरीद रहे होते। जिस यमुना एक्सप्रेसवे पर आज हम सभी को नाज है। वैसा एक्सप्रेस वे अगर श्रीनगर से कन्याकुमारी तक होता तो आप क्या करते। जी हां, घोटाले की राशि से 2800 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेसवे बन सकता था। दिल्ली एयरपोर्ट पर टर्मिनल-थ्री बना है 12 हजार करोड़ रुपए में। इस राशि से देश के 18 हवाई अड्डों को टर्मिनल-थ्री जैसा बदला जा सकता था। दिल्ली मेट्रो के फेज-2 में सरकार ने खर्च किए 19 हजार करोड़ रुपए। ये रूट 120 किलोमीटर लंबा है। इस हिसाब से देश के 11 शहरों में मेट्रो सेवा शुरू की जा सकती थी। यही नहीं हर शहर में 120 किलोमीटर रूट तय किया जा सकता था।

Tuesday, August 28, 2012

शासनहीनता और कैग पर प्रहार

घोटाले, महंगाई और ढेरों अन्य समस्याओं से जूझते देश में इस समय जैसे शासनविहीनता की स्थिति नजर आ रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की चुप्पी, लाचारी और फैसले न लेने के जो हालात नजर आ रहे हैं, वो यह शक पैदा कर रहे हैं कि देश में शासन है भी या नहीं। इतनी लचर सरकार तो याद भी नहीं पड़ती। गठबंधन सरकार में जिस स्तर से फैसले हो भी रहे हैं, उनमें पारदर्शिता का अभाव है। ऐसे में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी दिशाहीनता की इस स्थिति का लाभ उठाने की सोच रही है। उसे लग रहा है कि सरकार के खिलाफ भावनाएं उफान पर हैं। आम जन पीड़ित है और चुनाव में बदला लेने का मन बना रहा है। लेकिन यदि वह 2014 तक का इंतजार करने का मन बनाती है तो संभव है कि सरकार विरोधी हालात न रहें। कहाभी जाता है कि वोटर की याद्दाश्त बहुत छोटी होती है और वह मतदान के कुछ दिन पहले तक की बात भी कभी-कभी भूल जाया करता है। लेकिन सवाल यह भी उठता है कि राजनीतिक नैतिकता भाजपा को इसकी इजाजत देती है या नहीं? चुनावों पर देश भारी-भरकम राशि खर्च करता है, मध्यावधि चुनाव के रूप में उसे खर्च की आग में झोंक देना क्या सही कदम साबित होगा? सवाल यह भी है कि अगर भाजपा चुनाव की तरफ न बढ़े तो दूसरा रास्ता क्या है? कोयला घोटाले में संसद में बवंडर मचाने वाली भाजपा शॉर्ट कट की राजनीति कर रही है। कभी वो समाजसेवी अन्ना हजारे के पीछे खड़ी दिखती है तो कभी योगगुरू स्वामी रामदेव के। मंशा होती है कांग्रेस के विरुद्ध जनभावनाएं भड़काना और उसका लाभ उठाने की कोशिश। इस समय वह संसद में गतिरोध पैदा किए हुए है। इसके बजाए वह खुद सामने आकर आंदोलन क्यों नहीं अपनाती जबकि देश में सरकार विरोधी माहौल पैदा हो रहा है। समय की मांग है कि भाजपा अपना आंदोलनकारी रूप दिखाए और देश को बताए कि देश संचालन के लिए वह नया क्या करेगी, कि उसे सत्ता सौंप दी जाए। उसे अपने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को एकजुट भी करना चाहिये। राजनीति गर्माने वाली भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट की ही धमक है कि मानसून सत्र में विधेयक लंबित हैं, पर संसद नहीं चल पा रही। इसी के साथ कैग को कठघरे में खड़े करने का उपक्रम भी जमकर जारी है। लेकिन सवाल यह है कि कैग पर प्रहार हो क्यों रहे हैं, जबकि सरकार बार-बार अपने रुख से पीछे हटती रही है। भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के हमलों के जवाब में कांग्रेस के तर्कों का आधार कैग पर आरोप ही हैं। हालांकि मामूली सी इस बात पर ही कांग्रेसी नीयत पर शक पैदा हो जाता है कि कैग की आलोचना उसे तब ही क्यों करनी होती है, उसे कमियां तब ही नजर क्यों आती हैं जबकि रिपोर्ट में सरकार के नीयत पर शक किया जा रहा हो। करीब डेढ़ साल पुरानी बात है, तब दूरसंचार के टू-जी लाइसेंसों के आवंटन पर हो-हल्ला मचा हुआ था। कांग्रेस ने यह कहकर पीछा छुड़ाने की कोशिश की, कि लाइसेंस आवंटन में कोई क्षति नहीं हुई है यानी जीरो लॉस की स्थिति में घोटाला कैसे कहा जा सकता है? मामला न्यायालय पहुंचा तो उसने चुप्पी साध ली। वहां कहा कि क्षति तो हुई लेकिन उतनी नहीं, जितनी कही जा रही है। कोयला घोटाले की ताजा रिपोर्ट पर दो दिन पहले केंद्रीय सत्ता के प्रवक्ताओं की तरह आए गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने कहा था कि कोल ब्लॉकों के आवंटन में किसी तरह की धांधली तो तब मानी जा सकती है जबकि देश को किसी तरह की आर्थिक हानि हुई हो। अब प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि नुकसान को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जा रहा है। टू-जी लाइसेंस आवंटन की तरह यहां भी दो तरह की बातें की जा रही हैं। वहां भी बाद में सरकार ने कहा था कि घाटा हुआ है लेकिन ज्यादा नहीं और अब भी यही बात दोहरायी जा रही है। सरकार यह कहकर अपनी गर्दन बचाने की कोशिश कर रही है कि प्रक्रिया में खामियां थीं और ब्लॉक आवंटन में देरी न हो, इसलिये आवंटन का यह तरीका अपनाया गया। यह खामियां दूर करने में छह-सात साल लग गए। यहां भी उसके पक्ष में झोल नजर आ रहा है। कमियां थीं यानी राजकोष को चपत का आरोप सही है। उसने कोई ऐसा रास्ता क्यों नहीं चुना जिससे सरकार को क्षति नहीं लगती। बाद में प्रक्रिया में सुधार कर लिया जाता। तस्वीर का दूसरा पहलू, उस विपक्ष पर अंगुली उठा रहा है जो इस समय हो-हल्ला मचाकर आसमान सिर पर उठाए हुए है। छत्तीसगढ़ में भाजपा के साफ छवि के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री और प्रमुख वामपंथी स्तंभ बुद्धदेव भट्टाचार्य, ओडिशा के नवीन पटनायक पर गड़बड़ी में भूमिका का आरोप है। उन्होंने बगैर प्रक्रिया कोल ब्लॉक आवंटन की हिमायत की? कांग्रेस के साथ जवाब विपक्ष को भी देना चाहिये।

Sunday, August 19, 2012

पाकिस्तान से आए संदेशों का असर

पूर्वोत्तर के बाद देश के तमाम हिस्सों में सांप्रदायिक सद्भाव को क्षति के प्रयासों में पाकिस्तान की भूमिका सिद्ध होने के बाद यह सोचने की जरूरत महसूस हो रही है कि चीन की तरह इंटरनेट और दूरसंचार के माध्यमों की भूमिका सीमित करने का तर्क कहीं सही तो नहीं है। इस विचार का विरोध करने वालों की संख्या अच्छी-खासी है और सरकारी पहल का प्रयास औंधे मुंह गिर चुका है लेकिन जब हम खुद अपनी सीमाएं तय नहीं कर लेते तब तक यह बात बार-बार उठना तय है। आश्चर्यजनक है कि कैसे हम अपने विवेक से यह तय नहीं कर पाते कि आया हुआ ईमेल या एसएमएस सही है या गलत? क्यों हम रौ में बहकर प्रतिक्रिया करने लगते हैं और क्यों हमें अपने लिए क्या सही है और क्या गलत, यह पता नहीं चलता। केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह के यह कहने के बाद कि पूर्वोत्तर के लोगों के खिलाफ भारत में जो दहशत फैली है उसके पीछे पाकिस्तान का हाथ है, अचानक इंटरनेट को लेकर चचार्ओं का दौर शुरू हो गया है। बहस का मुद्दा मोबाइल फोन पर एसएमएस की सुविधा भी है, जिन पर सरकार ने पंद्हर दिन के लिए बंदिशें लगा दी हैं। कितना संगठित रूप से इस अपराध को जन्म दिया गया, एक ईमेल और कुछ एसएमएस भेजे गए कि असम में मुसलमान समुदाय पर हुई हिंसा की प्रतिक्रिया में भारत के अन्य राज्यों में रह रहे पूर्वोत्तर के लोगों पर जवाबी हमले किए जाएंगे और उसके बाद भगदड़ मच गई। लोगों में फैलाई जा रही तस्वीरों और वीडियो में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भूकंप और चक्रवात से मारे गए लोगों को म्यांमार की हिंसा के पीड़ितों के तौर पर दिखाकर गलत जानकारी दी गई। एक संप्रदाय को इतना भ्रमित किया गया कि प्रतिक्रिया शुरू हो गई। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने भी कहा कि राज्य में हाल ही में हुई हिंसा के पीछे विदेशी हाथ होने की उनकी आशंका की पुष्टि हो गई है। सिंह के अनुसार, ऐसी 76 वेबसाइट्स की पहचान कर ली गई है जिनका इस्तेमाल अफवाहें फैलाने के लिए किया गया है और इन्हें अब ब्लॉक कर दिया गया है। इनके अलावा 34 अन्य वेबसाइटों की पहचान कर ली गई है और सरकार उन्हें ब्लॉक करने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। दरअसल, इंटरनेट और मोबाइल फोन इतना आम हो गया है कि इसका नकारात्मक प्रयोग बड़ी बात नहीं रही। कुछ सालों पहले तक किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि इंटरनेट के माध्यम से पनप रही सोशल नेटवर्किंग साइट्स या ब्लॉग्स की देश-दुनिया में इतनी बड़ी भूमिका हो जाएगी। पाकिस्तान का बुरा हाल भी अब किसी से छिपा नहीं है। वहां आतंकी और कट्टरपंथियों का इतना खौफ बन गया है कि वो चाहें कुछ भी करते रहें, सरकार भी कुछ नहीं कर पाती। हाल ही में उजागर हुआ था कि पाकिस्तानी आतंकी संगठन जमात उद दावा ने धन एकत्र करने और दुष्प्रचार फैलाने के लिए इंटरनेट एवं सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट का इस्तेमाल बढ़ा दिया है। वर्ष 2008 में मुंबई हमले के बाद जमात की वेबसाइट और उसकी गतिविधियों पर अंकुश लगाया गया था। अब यह संगठन ट्विटर और फेसबुक पर सक्रिय हो गया है। जमात को लश्कर-ए-ताइबा का मुखौटा संगठन कहा जाता है। इसका सरगना कुख्यात आतंकी हाफिज सईद है। इसी साल 26 जुलाई को अपने ट्विटर एकाउंट और फेसबुक पेज पर पोस्ट किए गए संदेश में जमात ने अपने लिए अनुदान की अपील की थी। संदेश में संगठन ने कहा, आप दान के लिए हमें संपर्क कर सकते है। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि हमारे प्रतिनिधि आप तक जकात और फितरा लेने के लिए पहुंचें। जमात उद दावा चंदा में एकत्र धन का इस्तेमाल खास करके भारत में हमलों के लिए करता रहा है। इस्लामाबाद, लाहौर और पाकिस्तान के दूसरे शहरों से खबरें हैं कि रमजान का पवित्र महीना शुरू होने के साथ ही जमात उद दावा ने धन एकत्र करने का काम तेज कर दिया था और बड़ी राशि एकत्र भी की। इसके साथ ही अंदरूनी हालात निरंतर बिगड़ते जा रहे हैं। अमेरिकी कांग्रेस की एक समिति की रिपोर्ट से उजागर हुआ है कि पाकिस्तान के आतंकवाद निरोधी कदमों का कोई परिणाम नहीं निकल पा रहा। आतंकी उन इलाकों में पुन: काबिज हो गए हैं, जहां से सेना ने उन्हें खदेड़ दिया था। संघीय प्रशासित कबायली क्षेत्रों में सेना की कार्रवाई चल जरूर रही है लेकिन उसका असर माहौल पर नहीं पड़ पा रहा। यहां तक कि सेना पर आतंकी छिटपुट हमले करने से भी नहीं हिचक रहे। रिपोर्ट में पाकिस्तान की अशांति का जिक्र करते हुए उसके अफगानिस्तान पर पड़ रहे प्रभावों पर चिंता जताई गई है। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कांग्रेस के समक्ष इस रिपोर्ट को जब प्रस्तुत किया तो सांसदों ने दलगत सीमाओं से ऊपर उठकर पाकिस्तान को चेतावनी देने और मदद रोकने तक की हिमायत की। पाकिस्तान इस समय अल्पसंख्यक हिंदुओं के पलायन की खबरें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैलने से बौखलाया हुआभी है। बौखलाहट का दूसरा बड़ा कारण सांबा सेक्टर के चचवाल इलाके में भारतीय क्षेत्र में खोदी गई सुरंग का समय रहते पता रहते लग जाना भी है। पाकिस्तान इस सुरंग के रास्ते आतंकवादियों को भारतीय क्षेत्र में धकेलने की कोशिश में था, लेकिन उसकी योजना जगजाहिर हो गई है। ऐसे हालात में भारत को अपने सुरक्षा हितों पर लापरवाही का रवैया त्यागना होगा। आम भारतीय भी यदि संयम से हर मुद्दे पर अपना मत निर्धारित करने की आदत नहीं डालता तो इंटरनेट और मोबाइल फोन पर निगरानी के दिन आ सकते हैं।

'गैंग्स आफ वासेपुर' की 'दुर्गा'

फ़िल्म 'गैंग्स आफ वासेपुर' में 'बंगालन' का किरदार अनायास नहीं आया है। धनबाद कोलकाता जैसे बड़े महानगर के एक्सटेंशन के रूप में काम करता रहा है। आसनसोल उसको सहोदर खदान है। धनबाद और आसनसोल एक सहज विस्तार का हिस्सा है। इसीलिए सरदार ख़ान के जीवन में बंगालन आती है। नाम है दुर्गा। इस फिल्म में बंगालन के किरदार को कोई और ठीक से व्याख्या करे तो अच्छा रहेगा मैं अपनी स्मृतियों के सहारे एक व्याख्या करने की कोशिश करता हूं। हिन्दी भाषियों के मन में बंगाल और बंगालन का वजूद अभी तक एक्सप्लोर नहीं किया गया है। हमारे सामाजिक मन में बंगालन हमेशा से एक आज़ाद ख़्याल वाली औरतें रही हैं। आज़ाद ख्याल पर विशेष ज़ोर देना चाहता हूं। जड़ हिन्दी भाषी मर्दसोच में बंगालन उस आज़ादी का प्रतिनिधि करती है जिसकी तलाश में वो भटकता रहता है। बंगालन की यह वो ख़ूबियां हैं जो वो अपनी पत्नी या सामाजिक लड़कियों में नहीं देखना चाहता। इस आज़ादी का अंग्रेज़ी का एक समकक्ष शब्द लूज़ बैठता है। आप इस बात को तब तक नहीं समझेंगे जब तक आप बिहार यूपी के हिन्दी भाषी नहीं होंगे। अनुराग ने अपनी फिल्म में दुर्गा का किरदार उसी मानसिक इलाके की तलाश में रचा होगा। कहानीकार ने बारीक निगाह से इस किरदार के बारे में सोचा होगा। वर्ना ऐसा नहीं था कि दुर्गा के बिना वासेपुर की कहानी पूरी नहीं होती। सरदार को अगर चरित्रहीन मर्द के रूप में ही दिखाना था तो दुर्गा का प्रसंग एक रात के लिए होता। मगर वो हम हिन्दी भाषियों के मानसिक मोहल्ले में पूरी फिल्म के दौरान आखिर तक मौजूद रहती है। वो एक स्वतंत्र महिला है। कम बोलती है। बिना किसी सामाजिक दबाव के सरदार से संबंध कायम करने का फैसला करती है। एक दृश्य है जब सरदार नहा रहा होता है। दुर्गा टाट के पीछे बैठकर सरदार को देखती है। वो उसके करीब आ जाती है। बंगाल की लड़कियां काला जादू कर देती हैं। फंसा लेती हैं। ऐसी बातें हम सबने कही होंगी और सुनी भी होंगी। दुर्गा की साड़ी और ब्लाउज़ को हिन्दी आंखों की हवस और सोच के हिसाब से बनाया गया है। बंगाल की औरतों के कपड़ों को सर से पांव तक ढंकी हिन्दी भाषी प्रदेशों की औरतों और उनके मर्दों ने ऐसे ही देखा है। जलन से और चाहत से। सरदार का दिल तो आता है लेकिन अंतत दुर्गा फंसा लेती है। वो उसे अपने पास रख लेती है। धनबाद के रंगदारों को रखैल रखने और किसी की रखैल हो जाने का सुख बंगाल से ही मिलता होगा। सोनागाछी उनका पसंदीदा और नज़दीक का ठिकाना रहा होगा। बिहार और यूपी के लोगों के संपर्क में पहले बंगाल ही आया। बंबई दूर था। बंगाली औरतों ने बिहारी यूपी मर्दों को अपना भी बनाया। कम किस्से हैं कि यूपी बिहार का भइय्या बंबंई गया और मराठी लड़की के प्रेम में पागल हो गया। हो सकता है कि मेरी जानकारी में ऐसे प्रसंग न हो लेकिन आप भोजपुरी गानों को सुने तो बंगालन का ज़िक्र एक खास अंदाज़ में हो ही जाता है। उसी का विस्तार है बंगालन का किरदार। बिहारियों ने उनकी सेक्सुअल स्वतंत्रता को विचित्र रूप से तोड़मरोड़ कर देखा है और मुहावरों से लेकर अपनी कल्पनाओं में सजाया है। तभी सरदार ख़ान उसे बंगालन जानते ही उपलब्ध समझने लगता है। वहां उसके बोलने का लहज़ा भी क्लासिक है। फुसला रहा है। गोरे गाल को दबोच लेता है। गाल का दबोचना भी हिन्दी प्रदेशों के सामंती मन में मौजूद कई दृश्यों को खोलता है। बंगालन घर बर्बाद कर देने वाली औरतों के रूप में देखी जाती रही हैं। उनके संपर्क में आईं हिन्दी भाषी औरतों ने जब थोड़ी सी स्वतंत्रा का इस्तमाल किया तो उन्हें बंगाली कहा जाने लगा। यह मैं अपने बाप दादाओं के वक्त के सामाजिक अनुभव से लिख रहा हूं। तभी जब सरदार ख़ान का बेटा दुर्गा के दरवाज़े पर पत्थर मारता है तो उसका दोस्त भी मारने लगता है। ऐसे दोस्त मिल जाते थे जो बिना मतलब के दोस्त के काम आ जाते थे। मगर पत्थर मारने के उस दृश्य को यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता। नारीवादी विमर्श में इसकी प्रशिक्षित व्याख्या होनी चाहिए जो शायद मैं नहीं कर पा रहा हूं।

Sunday, August 5, 2012

धार्मिक रंग-मंच का नया किरदार राधे मां

निर्मल बाबा के बाद भारत में धार्मिक रंग-मंच का नया अवतार हैं राधे मां। वे ईश्वरीय शक्ति का ताजा तथाकथित अवतार हैं। पंजाब के होशियारपुर की रहने वाली जसविंदर उर्फ गुड़िया उर्फ राधे मां के आयोजनों में लाखों लोग शरीक होते हैं। शहरभर में बड़े-बड़े बैनर पोस्टर लगाकर इनका प्रचार किया जाता है। इनके भक्तों की सूची बड़े-बड़े सेलीब्रिटी हैं, जैसे पॉप किंग दलेर मेंहदी, भोजपुरी फिल्मों के शहंशाह मनोज तिवारी, टीवी कलाकार डॉली बिन्द्रा, गायक हंसराज हंस, एड गुरू प्रहलाद कक्कड़ और आॅल इंडिया एंटी टेररिस्ट फ्रंट के अध्यक्ष एमएस बिट्टा आदि। जागरण में बड़े-बड़े गायक इनकी श्रद्धा में भक्ति संगीत प्रस्तुत करते हैं। इनमें भजन सम्राट अनूप जलोटा, विनोद अग्रवाल, अरविंदर सिंह, शार्दुल सिंकदर, मास्टर सलीम, पन्ना गिल, लखबीर सिंह लख्खा, अनुराधा पौडवाल, रूप कुमार राठौड़, नरेंद्र चंचल आदि का नाम प्रमुख हैं। अपने साथ मेकअप आर्टिस्ट लेकर चलने वालीं राधे मां ने खुद को मां दुर्गा का अवतार घोषित कर रखा है, यह बोलती बिल्कुल नहीं। हालांकि एक चैनल का दावा है कि उसके पास उनकी बोलती हुई वीडियो क्लिप है। कुछ दिन पहले उनकी पदवी बदलकर हरिद्वार के प्रसिद्ध जूना अखाड़ा की महामंडलेश्वर घोषित कर दिया गया था। हंगामा मचा तो अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर और संत अवधेशानंद गिरि ने कदम वापस खींच लिया। हाथों में त्रिशूल और गुलाब का फूल लिये राधे मां उड़नखटोले से भक्तों के बीच आती हैं, झमाझम मेकअप, डिजायनर लिबास और गहनों से लदी हुईं मां भक्तों के साथ नाचती हैं। जिस भक्तों की गोद में चढ़ जाएं या जिसे अपना जूठा खिला दें वो तर जाता है। दुआओं के कारोबार में करोड़ों का टर्नओवर है। भक्त मां की छत्रछाया में हैं और मां खुद मुंबई के एक धनी व्यवसाई गुप्ता की छत्रछाया में। एक न्यूज चैनल बता रहा था कि सालों पहले मां अपने ढोंग पर फगवाड़ा के गुस्साए लोगों से माफी मांगकर भाग खड़ी हुई थी। अब फिर अवतरित हुई हैं। अभी तो पता नहीं राधे मां के बारे में और क्या-क्या तथ्य प्रकाश में आएंगे। लोगों की धर्मिक भावनाओं को अपने मन मुताबिक दिशा-निर्देशित करने के मामले में राधे मां, निर्मल बाबा या दक्षिण के पॉल दिनाकरण कोई अपवाद नहीं हैं। राधे मां और निर्मल बाबा तो बस बाबागीरी के इस कॉरपोरेट हब की ताजा कड़ी हैं। आशीर्वाद और किरपा के इस बिजनेस में ईश्वरीय शक्ति के ये ताजा तथाकथित अवतार महज एक प्रोडक्ट हैं और भक्त मूर्ख उपभोक्ता। इस तरह ठगी का धंधा खूब चल रहा है।