Saturday, March 30, 2024

सत्ता यदि मौत मुकर्रर करती, तो मुख्तार चुनाव से पहले नहीं मरता

जन्म और मौत का समय अल्लाह ने मुकर्रर किया है, लेकिन अगर यह सत्ता के हाथ में होता तो यूपी का टॉप माफ़िया सरगना मुख्तार अंसारी चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद मरता। इस एक मौत ने सियासी समीकरण गड़बड़ा दिए हैं... सभी पार्टियां मैदान में हैं, और भाजपा के कदम सधे हुए हैं, तोल मोल के बोल की नीति है।

आगरा से जुड़े एक केंद्रीय मंत्री का बयान आया। बोले, मौत किसी की भी हो, दुखद होती है और राजनीति का विषय नहीं होती। इसी तरह, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय भी संतों जैसी भाषा पर आ गए। जबकि बनारस से जुड़े अजय राय खुद भी माफिया से अपने समीकरणों को लेकर चर्चित रहे हैं।  चुनाव के बजाय सामान्य समय होता तो अजय राय खुद भी बल्लियों उछल रहे होते। उनके भाई अवधेश तो इसी आपराधिक गणित की बलि चढ़कर जान गंवा चुके हैं।

फिर भी इतना संयम! असल में, ये संयम मजबूरी और समय की मांग है। प्रदेश के एक शीर्ष नेता का इतिहास बीजेपी को अपनी राह में बाधक लग रहा है। यह भाजपा की रक्षात्मक रणनीति है, मुख्तार अंसारी की मौत की वजह से पूर्वाचल का गणित उलट रहा है। हालांकि मुस्लिम वोट को भाजपा कभी अपना हक नहीं मानती, लेकिन उनका ध्रुवीकरण समस्या की वजह बन सकता है। इलाहाबाद से जुड़े अतीक अहमद की मौत लोग भूल चुके थे लेकिन मुख्तार अंसारी के मरने के बाद उसका जिन्न बोतल से निकल आया है।

यही वजह है कि प्रशासनिक और न्यायिक, सारी जांच की घोषणा हो गई हैं। वरना सत्ता चाहती तो अदालत में न्यायिक जांच की मांग पर सरकारी वकील से अपना पक्ष रखवाती। मुख्तार के जनाजे में जाने वाले लोगों को धारा 144 की आड़ में रोकने या कानून व्यवस्था को लेकर किसी सख्ती के कोई खुले निर्देश भी इसीलिए जारी नहीं हुए होंगे। अभी पुलिसकर्मी निलंबित भी होंगे। भाजपा चाहती है कि लोग यह न समझें कि मुख्तार की मौत में सत्ता की भूमिका है। बेशक मौत की वजह हार्ट अटैक हो सकती है। यह भी हो सकता है कि मृत्यु में जेल से जुड़े किसी व्यक्ति की कोई भूमिका न हो। लेकिन, भावनाओं में अंधी भीड़ पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं देखती।

सारे दलों में होड़ लगी है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का त्वरित बयान इसीलिए आया। बिल में घुसी रहने वालीं बसपा कमांडर मायावती भी बोलीं। योगी के मंत्री संयम से बोल रहे हैं। मौत से पूर्व तक शायद गाजीपुर सीट भाजपा को निराश करती, पर अब असर व्यापक हो रहा है। इलाहाबाद का नाम लेने पर आपको आश्चर्य हो सकता है, लेकिन पिछली बार रीता बहुगुणा जोशी हार जातीं, यदि अतीक अहमद ने छिपकर हथेली न लगाते हुए अपना प्रत्याशी न उतारा होता। सत्ता के एक महारथी से मुख्तार की पुरानी अदावत थी, पर वो भी नहीं चाहते होंगे कि मुख्तार चुनाव के समय मरे।

सब जानते हैं कि अपराधी समाज का कोढ़ होते हैं, पर यह समझदारी जिस तरफ ज्यादा है, वह घर से निकलते ही नहीं। चुनाव के दिन छुट्टी मनाते हैं। बेशक, मेरा इशारा हिंदुओं की तरफ है। मतदान में अभी काफी समय है, भाजपा ठंडा करके खाने की नीति पर चल रही है। 

जनाजे में ये भीड़! 

कोई तीन लाख से ज्यादा लोग हैं ये। धारा 144 के बावजूद इतनी भीड़! लोगों में ये लोकप्रियता किसी गुंडे की तो होगी नहीं। क्षण भर के लिए यदि मान भी लें कि यह धर्मविशेष की, किसी विचारधारा की समर्थक या विरोधी भीड़ है तो भी! ये लोकप्रियता ही है शायद। जो कभी किसी अपराधी को रॉबिन हुड मान लेती है। मुख्तार हो, या ऐसा ही कोई और उदाहरण, जनता को पसन्द इसलिए भी हो जाता है कि वो उनके लिए जरूरत पर मददगार और रक्षक बना होता है। ये माफिया सरकारी ठेकों और उनके आसपास पैसे के मायाजाल की पैदाइश हैं जो एक एक करके अपने ऊपर मुकदमे लदवा लिया करते हैं।

ये भीड़ तो नेता भी तब जुटा पाते हैं जब उनका कैडर मेहनत करता है, बसें जुटाता है और भीड़ की जुगाड़ करता है। लेकिन, आज ये जुटी भीड़ खुद जुटी है। मैं यह भी नहीं कहता कि सभी उसके शुभचिंतक हैं। पर, ऐसे ही हैं ज्यादातर जो उसे पसंद करते थे। माफिया तो मुकदमों की संख्या है। बेशक, मुस्लिमों ही होंगे ज्यादातर, पर वो भी यूं ही नहीं चले आए। और वो भी ज्यादातर, रोज़े में, भूखे प्यासे... यानी रमज़ान के दिनों में!

असल में, ये नकारात्मकता की भीड़ है जो मन में कहीं निराश है, सिस्टम से, माहौल से, अपनी समस्याओं से, या.. खुद से। मुख्तार जैसा कोई अपराधी हीरो तब बनता है जब उम्मीद जग जाती है... कि वो शायद उसकी समस्याओं का समाधान करेगा। निराशा ही है ये... जो हम सबके अन्दर है, और उम्रभर मसीहा ढूंढने में भटकती रहती है। 

Monday, February 12, 2024

भारत रत्न से राजनीतिक बिसात


लंबे समय का इंतजार पूरा हुआ है। अभी तक उपेक्षा की शिकार रहीं राजनीतिक शख्सियतों को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया है। लेकिन यह, इतनी ही बात नहीं। कुछ हफ्तों की दूरी पर खड़े चुनाव की बिसात पर चाल भी है ये। और, आश्चर्यजनक ढंग से गठबंधन की सरकार ने विपक्ष की सारी रणनीतियां ढेर कर दी हैं। असर उत्तर प्रदेश या बिहार तक नहीं, दक्षिण तक है। विपक्ष जैसे हतप्रभ है।

भाजपा नेता नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार जैसे अन्याय के पुराने दौर के साथ ही जैसे विपक्ष को चारों खाने चित्त करने का मोर्चा खोले हुए है। कुछ दिन पहले बिहार से शुरुआत हुई। जन जन के नेता, स्वच्छ छवि के प्रतीक कर्पूरी ठाकुर को शीर्ष सम्मान देने की घोषणा हुई। ठाकुर बिहार से थे। लेकिन वार लगा वहां की सरकार पर। जिस नेता के लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे शिष्य हों, उसे अचानक सम्मानित किए जाने की खबर से जैसे तूफान ला दिया। लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के तो काटो खून नहीं। नीतीश कुमार तो पाला बदलने के मौके के इंतजार में  थे ही, उन्होंने तत्काल स्वागत किया। नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड के साथ ही राष्ट्रीय जनता दल की सरकार औंधे मुंह आ गिरी। भाजपा विजेता, उसकी सरकार बन गई।  यह बड़ा झटका था क्योंकि नीतीश विपक्षी इंडी गठबंधन की धुरी थे। धुरी ही घूम कर भाजपा के पाले में आ गिरी। बिहार में समीकरण बदल चुके हैं। एक तरफ विवादों, ईडी जैसी समस्याओं से घिरी राष्ट्रीय जनता दल अकेला मैदान में उतरने से डर रहा है, दूसरी ओर भाजपा के साथ राज्य के ज्यादातर दल खड़े हैं। 

इंडी गठबंधन अभी सदमे से उबरा भी नहीं था, कि कल एक और वज्रपात हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद किसानों के मसीहा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न प्रदान करने की सूचना सार्वजनिक की। चौधरी साहब का अलग ही रंग है। उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में वो जाटों के साथ ही किसानों के नायक हैं। उन जैसा नेता किसानों को कोई मिला ही नहीं। और किसानों-जाटों के इस वोट बैंक की बदौलत कोई भी सियासी दल उत्तर प्रदेश के साथ ही हरियाणा में भी अच्छा कमाल दिखा सकता है। और यही हुआ। कमाल ही हुआ, घोषणा के कुछ ही देर बाद चौधरी साहब के प्रपौत्र   और राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष जयंत चौधरी की प्रतिक्रिया आ गई। जयंत भी अब इंडी गठबंधन से बाहर होने की तैयारी में हैं, सबकुछ तय है, बस घोषणा बाकी है। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से में रालोद का असर काफी है। कई सीटें जाटों की अधिक संख्या होने की वजह से प्रभावित होती रही रही हैं। जयंत चौधरी एनडीए के साथ आ रहे हैं और इससे भाजपा न सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को साधेगी, बल्कि हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान सहित उत्तर-मध्य भारत के अलग-अलग हिस्सों में बड़े किसान समुदायों और जाटों के दम और मजबूत होती नजर आएगी। जाटों की संख्या की वजह से उत्तर प्रदेश की 80 में से 27 सीटों पर असर संभावित है।

किसानों के ही एक और प्रिय एसएम स्वामीनाथन को भारत रत्न की घोषणा से भी भाजपा किसानों में पैंठ बढ़ाती दिखती है। हालांकि स्वामीनाथन का लाभ राजनीतिक कम, इस बात से ज्यादा है कि भाजपा को यह श्रेय मिल रहा है कि वह उपेक्षित शख्सियतों की सुधि लेती है।  निशाना एक और भी साधा गया है। कांग्रेस के होने के बावजूद कांग्रेस से ही उपेक्षित दक्षिण भारतीय नेता पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने से भाजपा को यह आरोप असत्य साबित करने में मदद मिलेगी कि वह दक्षिण के साथ सौतेला व्यवहार करती है। इसी दांव से पिछले दिनों कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने दिल्ली में धरना देकर भाजपा का घेराव किया है। को दक्षिण भारत में कितना सियासी फायदा होगा, यह तो चुनाव परिणाम बताएंगे। लेकिन यह तय है कि जिस तरह से आर्थिक सुधारों के लिए नरसिम्हा राव ने देश के विकास में बड़ा योगदान दिया, आर्थिक सशक्तिकरण में उनका योगदान सर्वविदित है, कांग्रेस का दुर्भाग्य कि वह इसका श्रेय नहीं ले पाती। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भाजपा अपना विस्तार कर रही है, उसमें पीवी नरसिम्हा राव को दिए जाने वाले भारत रत्न की घोषणा से लाभ मिल सकता है। दोनों राज्यों में भाजपा राजनीतिक गठबंधन के लिए मशक्कत कर रही है।