Tuesday, June 12, 2012

तेल आयात को अमेरिकी संजीवनी

ईरान से भारत के तेल आयात पर अमेरिकी आपत्ति हट गई है। यह भारत की विदेश नीति की कामयाबी कम, महाशक्ति अमेरिका की मजबूरियों का परिणाम ज्यादा है। पाकिस्तान से मिल रही लगातार निराशा ने उसे ईरान नीति में थोड़ा लचीलापन लाने को मजबूर किया है। भारत के इस पड़ोसी देश पर उसके लगातार समझाने का असर भी नहीं पड़ रहा और आतंकवाद के मुद्दे पर सुपर पॉवर को मात खानी पड़ रही है। उधर, तेल की बढ़ती कीमतों से जूझ रही अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह कदम संजीवनी की तरह है और ऐसे देशों में भारत भी शुमार है। अमेरिका ने घोषणा की है, कि वह ईरान से तेल आयात कम करने के कारण भारत पर अब आर्थिक प्रतिबंध नहीं लगाएगा। अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के अनुसार भारत, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, ताइवान और तुर्की को यह छूट देने का फैसला किया गया है। भारत ने उसके दबाव में इस वित्त वर्ष में ईरान से आयात होने वाले तेल में 11 फीसदी की कटौती करने की घोषणा की थी। ईरान से भारत के तेल आयात में व्यापक कमी का पता लगाने के लिए अमेरिका ने कई स्रोतों से आंकड़े इकट्ठे किए। इनमें भारत सरकार एवं सार्वजनिक क्षेत्र से प्राप्त आंकड़े भी शामिल हैं। मार्च में अमेरिका ने ईरान से तेल आयात घटाने के कारण 10 यूरोपीय देशों के अलावा जापान को भी ऐसी छूट दी थी। इस कदम की वजह हैं। नवंबर में अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर ड्रोन हमले में अपने 22 सैनिकों के मारे जाने के बाद से पाकिस्तान ने नाटो सेना के लिए यह रूट बंद कर रखा है। अमेरिका इससे व्यथित है और उसने नाटो सेना के लिए आपूर्ति रूट पर पाकिस्तान के साथ कोई सहमति बनाने की कोशिशों पर फिलहाल रोक लगा दी है। इसके साथ ही बातचीत कर रही टीम को कुछ समय के लिए वापस बुलाने का फैसला किया गया है। परिणामस्वरूप, नाटो ने सैन्य साजो सामान को अफगानिस्तान से वापस ले जाने के लिए पाकिस्तान के साथ समझौता न हो पाने के बाद तीन मध्य एशियाई देशों के साथ समझौता किया। दूसरी वजह, पाक का आतंकवाद पर प्रभावी कार्रवाई न करना भी है। इसी क्रम में अमेरिकी सीनेट की एक अहम समिति ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता राशि में तीन करोड़ तीस लाख डॉलर की कटौती कर दी है। इसके अलावा लंबे समय से अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के बीच कोई औपचारिक बातचीत भी नहीं हुई है, हालांकि दोनों नेताओं के बीच नाटो सम्मेलन से पूर्व संक्षिप्त मुलाकात जरूर हुई थी लेकिन ओबामा ने इसे महत्व नहीं दिया था। पाकिस्तान के मोर्चे पर शिकस्त पाने से पहले तक अमेरिका चाहता था कि भारत ईरान से दूर ही रहे। इसके लिए दबाव बनाने की मंशा से अमेरिकी विदेश मंत्री तीन दिवसीय भारत दौरे पर आई थीं। अमेरिका चाहता था कि भारत ईरान से कच्चे तेल का आयात और कम करे, यह आश्वासन पाना उनकी यात्रा का मुख्य मकसद था। अमेरिकी विरोध के बावजूद भारत ने ईरान से तेल खरीदना जारी रखा। भारतीय रुख से ईरान ने राहत महसूस की। उसने कहा कि कुछ बड़ी शक्तियों ने भारत पर दबाव बनाने के प्रयास किए कि वह ईरान से तेल आयात करना बंद कर दे किन्तु इस विषय में उन्हें मूंह की खानी पड़ी और वह असफल हो गए हैं। भारत में ईरानी राजदूत नबी ज़ादे के अनुसार, पिछले चार वर्षों में ईरान और भारत के बीच व्यापार में अत्यधित वृद्धि हुई है और यह नौ अरब डॉलर से बढ़कर 16 अरब डॉलर तक पहुंच गया है तथा हर स्तर पर दोनों देशों के संबंधों में विस्तार हो रहा है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसद कच्चा तेल आयात करता है। इसका बारह फीसद वह अकेले ईरान से खरीदता है। ईरान भारत के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ोसी और अहम व्यापारिक साझेदार है। वह हमारी ऊर्जा आपूर्तियों का बड़ा स्रोत भी है। भारत ने सार्वजनिक तौर पर तो कोई घोषणा नहीं की है लेकिन अमेरिकी आग्रह पर भारत ने ईरान से तेल आयात में 15-20 फीसद की कटौती की। हमने वर्ष 2009-10 में ईरान से 2.12 करोड़ टन कच्चा तेल खरीदा था। वर्ष 2010-11 में यह 1.85 करोड़ टन रह गया। पिछले वित्तीय वर्ष में कुल आयात घटकर 1.6 करोड़ टन रहा। ईरान से कच्चे तेल के आयात में और कटौती के बाद यह करीब 1.4 करोड़ टन रह गया है। भारत ने ईरान से आयात कम करके सऊदी अरब से तेल आयात बढ़ा दिया है।

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