Monday, June 11, 2012

मंदी के दलदल में फंसती अर्थव्यवस्था

केंद्रीय वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने देश को एक बड़े खतरे के प्रति आगाह किया है। बकौल बसु, पूरी दुनिया आर्थिक संकट के जिस दौर से जूझ रही है साल 2014 तक उसका व्यापक असर भारत में भी दिखने लगेगा। संकट की शुरूआत हो चुकी है, महंगाई का चरम चल रहा है। मुद्रास्फीति केंद्र को परेशान कर रही है। भारतीय करेंसी रुपये बदहाल है और उसमें कई दिन की लगातार गिरावट बमुश्किल थमी है। भारतीय रिजर्व बैंक के हथियार डालने के बाद पता चलता है कि हम किस तरह कमजोर अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। माना जा रहा है कि तात्कालिक उपायों के बाद अब कड़े उपायों की जरूरत है। अगर 18-24 महीनों में रुपये की हालत नहीं सुधरती तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। देश की खस्ता आर्थिक हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश की विकास दर नौ से घटकर 5.3 फीसदी पर पहुंच गई है। सरकार के खर्च का एक बड़ा हिस्सा कर्ज का ब्याज देने (2.8 खरब रुपये), रक्षा पर खर्च (1.8 खरब) और सब्सिडी (2.2 खरब रुपये) के तौर पर होता है। ऐेसी हालत में बढ़ते सरकारी घाटे के मद्देनजर देश की विकास की रफ्तार सुस्त पड़नी तय है। देश महंगाई की बुरी मार झेल रहा है। पेट्रोल के दामों में बड़ी बढ़ोत्तरी ने कोढ़ में खाज का काम किया है। मुश्किलें गहराईं रुपये की बदहाली से हालांकि करेंसी में उतार-चढ़ाव होता रहता है। सभी पूर्वी देशों में यह गिरावट देखी जा रही है लेकिन वहां यह सिर्फ पांच प्रतिशत है जबकि रुपया 18 प्रतिशत तक नीचे आ गया है। पिछले साल रुपया 18 प्रतिशत तक नीचे आ गया और दिसंबर 2011 में यह अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गया। इस बार तो और बुरी गत हुई। रुपये की बुरी स्थिति से आयात महंगा हुआ और महंगाई की नई वजह बन गया। महंगे आयात से कंपनियों की लागत बढ़ी और वो इसका बोझ आम आदमी पर डालने को तैयार हैं। कमजोर होता रुपया भारत का तेल आयात बिल बढ़ा रहा है। इसके अलावा भारत का वर्तमान खाता घाटा भी बढ़ता जा रहा है। यूरो क्षेत्र में वित्तीय संकट बरकरार रहने से डॉलर में वैश्विक स्तर पर तेजी दर्ज की गई है। इसी के नतीजतन डॉलर को सुरक्षित माना जाने लगा है और परिणाम भुगत रही हैं अन्य देशों की मुद्राएं। अमेरिकी कृषि विभाग का कहना है कि भारत में डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होने के कारण मुख्य रूप से छोटे व्यापारी प्रभावित हो रहे हैं क्योंकि वे आमतौर पर डॉलर की हेजिंग नहीं करते और एक्सचेंज रेट का नुकसान खुद उठाते हैं। भारत में ज्यादातर कमोडिटीज का आयात छोटे कारोबारी ही ज्यादा करते हैं। विभाग का अनुमान है कि अगर रुपया और कमजोर होता है तो इन वस्तुओं का आयात और प्रभावित होगा। विशेषज्ञों के अनुसार, रुपये के अवमूल्यन की वजह से मझोले और छोटे कारोबारी सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। बड़े आयातक विनिमय दर के उथल-पुथल के विरुद्ध हेजिंग करते हैं लेकिन छोटे कारोबारी जोखिम का बोझ खुद ही उठाते हैं। देश की खराब आर्थिक हालत मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के गले की फांस बन गई है। यही वजह है कि यूपीए सरकार चिंतित है और मौजूदा खस्ता हालत से बाहर निकलने का रास्ता तलाशने की कोशिश कर रही है। सरकार के नीति-नियंता भी मानते हैं कि देश मुश्किल आर्थिक दौर से गुजर रहा है और इससे निबटन के लिए तात्कालिक उपायों पर मनन चल रहा है। राजनीतिक प्रेक्षक मानने लगे हैं कि आर्थिक बदहाली का असर देश की सियासत पर पड़ने के आसार बन रहे हैं। अपने पक्ष के समर्थन में उनका तर्क है कि सन 1975 में शुरू हुए आपातकाल के दौरान जब महंगाई और भ्रष्टाचार चरम पर था, सत्ता में परिवर्तन में हुआ था। 1987-89 में भी ऐसी ही स्थिति थी और तब भी सत्ता में परिवर्तन हुआ। विपक्ष कह रहा है कि अर्थशास्त्री होने के बावजूद मनमोहन सिंह अर्थव्यवस्था को विकास की पटरी पर नहीं ला सके। अनिर्णय और नीतियां बनाने और उनका पालन न होने के चलते भारत के विकास की कहानी खत्म हो गई। कारोबारियों की अगुवाई के चलते भारत ने जबर्दस्त आर्थिक तरक्की की थी। देश के विकास की दर नौ फीसदी तक पहुंचाने में भारतीय उद्योगपतियों की कामयाबी का अहम योगदान था। मौजूदा हालात से निबटने के लिए उद्योग जगत से जो सुझाव आए हैं, उनमें कहा गया है कि डीजल और अन्य उत्पादों के दाम से सरकारी नियंत्रण खत्म होना चाहिये। विदेशी निवेश नीति में बदलाव तत्काल प्रभाव से लागू किए जाने चाहिए। मल्टी ब्रांड रिटेलिंग और नागरिक उड्डयन जैसे क्षेत्रों में यह बदलाव लागू किए जाने की महती आवश्यकता बन गई है ताकि विदेश से मजबूत अर्थव्यवस्था का समर्थन किया जाना आरंभ हो जाए। इसके साथ ही भूमि अधिग्रहण बिल को मौजूदा स्वरूप में ही पास किया जाना चाहिये। उद्योग जगत ब्याज और सीआरआर दर में कटौती एवं जीएसटी लागू करने का भी हिमायती है। काले धन की स्वदेश वापसी भी वक्त की जरूरत लग रही है। लगातार खराब होती देश की माली हालत सिर्फ यही संकेत देती है कि आने वाला समय देश के लिए कैसा होगा। यूपीए ने देश की आर्थिक तरक्की का गला घोंट दिया है। बसु के आंकलन से विपक्ष समेत सरकार के सभी आलोचकों की बात को बल मिल रहा है।

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