Sunday, February 8, 2015

चरमपंथ से जूझता अमेरिका

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने देश के मुस्लिम चरमपंथियों से चर्चा की है। यह अप्रत्याशित है और साथ ही, बयार के विरुद्ध भी। चरमपंथ की बार-बार मुखालफत करने वाले इस देश के राष्ट्रपति यदि ऐसे लोगों से चर्चा करने लगें जिनकी वजह से उनके देश में ज्यादातर विवादों का जन्म होता है तो अचरज स्वाभाविक ही है। असल में, अमेरिका उस चरमपंथ से विचलित है जो संगठित है और नियमों के दायरे में ही विस्तार पा रहा है। स्थितियां दिन-प्रतिदिन सुपर पावर के नियंत्रण से निकल रही हैं।
अमेरिका में सर्वाधिक चर्चित सेंटर फॉर स्टडी के अधिकांश मुस्लिम सदस्य अतिवादी हैं। सेंटर के अभिन्न अंग कामरान बुखारी बरसों तक पश्चिम के कट्टर इस्लामवादी संगठन अल मुहाजिरोन में उत्तरी अमेरिका का प्रवक्ता रहा है। अमेरिका की नजर में यह सर्वाधिक सक्रिय चरमपंथी है, वह खुलकर बोलता है पर कभी वहां के कानून का उल्लंघन नहीं करता। इस संगठन ने 11 सितम्बर की पहली वर्षगांठ को इतिहास का शीर्ष दिवस बताकर उल्लास मनाया था और दूसरी वर्षगांठ को शानदार 19 की संज्ञा दी थी। इसकी वेबसाइट पर भी अमेरिका की कैपिटोल इमारत को ध्वस्त होते चित्रित किया गया है। अल मुहाजिरोन का इंग्लैण्ड प्रमुख उमर बिन बकरी ने कश्मीर, अफगानिस्तान और चेचन्या जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में लड़ने के लिए जिहादियों की भर्ती करना भी स्वीकार कर चुका है। अल मुहाजिरोन का एक सदस्य आत्मघाती हमले के लिए इजरायल गया था। अल मुहाजिरोन का ही एक कार्यकर्ता हानी हंजोर 11 सितम्बर की घटना में अप्रत्यक्ष रूप से लिप्त था। अमेरिकी शान्ति संस्थान का इस सेंटर से गठजोड़ है। इस प्रतिष्ठित संस्थान से जुड़े होने की वजह से अमेरिकी सरकार खुलकर कुछ कर भी नहीं पाती। नकारात्मक पक्ष यह भी है कि इस गठजोड़ से पूर्व किसी ने आवश्यक छानबीन नहीं की और संगठन अपने से पूर्व की सूचनाओं पर निर्भर रहा। इस प्रकार कभी बंद कमरे में रहा अप्रतिष्ठित संगठन सेंटर फॉर स्टडी मुख्यधारा में अपना स्थान बनाने में सफल रहा। अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान भी इसके प्रति आंख मूंदकर चलता रहा। अमेरिकी सेना ने जब इस संगठन की जिहाद से जुड़ी आपराधिक गतिविधियों का खुलाला किया, तक उसकी आंख खुल पाई। तब सात इस्लामवादियों को गिरफ्तार किया गया। कट्टरपंथ की काली कहानियां यहीं खत्म नहीं हो रहीं, न्यूयॉर्क जेल में कुछ धार्मिक शाखाओं का गठन किया गया। इस शाखा से वो लोग जुड़े जो आतंकवादी घटनाओं में लिप्तता की पुष्टि के बाद गिरफ्तार हुए थे। यहां यह घोषणा तक हुई कि 11 सितम्बर की घटना बुरे लोगों के लिए ईश्वर का दण्ड थी। बोस्टन के मेयर ने वहां की इस्लामिक सोसायटी को बाजार से 10 प्रतिशत कम कीमत में भूमि उपलब्ध करायी। बाद में पता चला कि सोसायटी का सम्बंध उस जिहादी संगठन से है जिसका अमेरिका में प्रवेश प्रतिबंधित है। उसका कार्यकर्ता संघीय जेल में है और एक इजरायल पर आत्मघाती आक्रमणों की प्रशंसा का आरोपी है।
काउंसिल आॅन अमेरिकन इस्लामिक रिलेशंस भी कम विवादित नहीं। उसने बेखौफ होकर एक सर्वेक्षण के निष्कर्ष सार्वजनिक किए हैं, जिसमें कहा गया है कि 67:33 के अनुपात से अमेरिकी मुसलमान सोचते हैं कि अमेरिका अनैतिक है। हालांकि बात में यह उजागर हो गया कि प्रायोजकों ने वास्तविक परिणामों को छिपाने के लिए शोध को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया। परंतु इस बौद्धिक छल और राजनीतिक धोखे के लिए सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। संगठन ने इतने संगठित रूप से घृणा का प्रचार किया ताकि धार्मिकस्थलों में आने वाले लोगों तक में अमेरिका की छवि प्रभावित हो जाए। इसके अतिरिक्त बड़ी मात्रा में ऐसे साक्ष्य सामने आए हैं जो संकेत देते हैं कि अमेरिका में रहने वाले मुसलमानों के विचार अमेरिका की सामान्य जनसंख्या से भिन्न हैं। इसका उदाहरण इस सर्वेक्षण के जरिए संगठन ने खुद दिया है। दुनिया में मुस्लिम आबादी के भविष्य के बारे में अपनी तरह का पहला आकलन करने वाले एनजीओ प्यू रिसर्च सेंटर और जॉन टेंपलटन फाउंडेशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर माइकल ड्यू ने ये कहकर चर्चाओं का नया क्रम शुरू किया है कि अमेरिका में बढ़ता कट्टरपंथ और संघ सरकार की सक्रियता का आपसी सम्बंध है जिसके तहत राष्ट्रपति बराक ओबामा ने देश के चरमपंथियों से बातचीत की। ड्यू के नेतृत्व में जन्म-मृत्यु और विस्थापन दरों के आधार हुई स्टडी 'द फ्यूचर आॅफ ग्लोबल मुस्लिम पॉपुलेशन' यानी वैश्विक मुसलमान आबादी का भविष्य में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक अमेरिका में मुसलमानों की जनसंख्या दोगुनी से अधिक होगी, 2010 में अमेरिका में 26 लाख मुसलमान थे जो 2030 में बढ़कर 62 लाख हो जाएंगे। अमेरिका को यह चिंता भी परेशान कर रही है। बहरहाल, ओबामा ने वार्ता का जो दौर शुरू किया है, उसकी सराहना की जानी चाहिये लेकिन उन्हें यह भी ध्यान रखना होगा कि दुनिया में आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिकी लड़ाई का कोई नकारात्मक संकेत न जाए। अमेरिका ने जिस तरह से उग्रवाद के वित्तीय स्रोतों की घेराबंदी की है, उससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुख्यात संगठनों की रीढ़ टूटी है। ओबामा के वार्तालाप से यह संकेत जा सकता है कि वह चरमपंथ के सामने झुक रहे हैं। ऐसी स्थितियां अमेरिका की लड़ाई को कमजोर कर सकती हैं।

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