जिन गुजरात दंगों पर अक्सर राजनीतिक हो हल्ले हुआ करते थे, उसमें समीकरण बदले हुए हैं। जिन नरेंद्र मोदी पर प्रहार होते थे, वो आज देश के पीएम हैं। फर्जी ढंग से मुठभेड़ों के कथित संरक्षणदाता अमित शाह सत्ता पर आसीन भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पीड़ितों के सबसे बड़ी हिमायतियों में एक तीस्ता सीतलवाड़ कठघरे में हैं, कानून के शिकंजे में बुरी तरह घिरी हुई हैं। आरोप इतने संगीन हैं, उन्होंने विश्वासघात किया और पीड़ितों के लिए लगे धन के ढेर से अपना ही घर भर लिया।
देशभर में चर्चित गुजरात की ढेरों घटनाओं में तीस्ता नायिका बनकर सामने आर्इं। पीड़ितों को भरोसा था कि तीस्ता उन्हें इंसाफ दिलाएंगी। कमजोर और परेशान लोगों की उम्मीदें उनसे जुड़ीं थीं। तीस्ता ने मोदी के खिलाफ जबर्दस्त अभियान छेड़ा था, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे। वे मोदी के खिलाफ छोटी से लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत तक गर्इं। अगर आज भी मोदी पर छोटे-बड़े आरोप लगते हैं तो उसके पीछे कहीं न कहीं तीस्ता की भूमिका जरूर होती है। लेकिन यह नायिका अब खलनायिका बन चुकी है। विशेष जांच दल (एसआईटी) की रपट आई तो जैसे हंगामा बरप गया। उजागर हुआ कि गुजरात दंगों में तीस्ता ने जिन लोगों के शपथपत्र प्रस्तुत किए हैं, उन्होंने खुद कहा है कि सीतलवाड़ के कहने पर शपथपत्र दिया गया है, उन्हें शपथपत्र में दी गई सूचना की जानकारी भी नहीं है। तीस्ता का दावा था कि गुलबर्ग सोसाइटी में तत्कालीन पुलिस आयुक्त पीसी पाण्डे दंगाइयों का नेतृत्व कर रहे थे, जबकि ऐसे साक्ष्य मिले कि पाण्डे घायलों को अस्पताल पहुंचाने और दंगाइयों को खदेड़ने में लगे थे। झूठी कहानियां यहीं खत्म नहीं होतीं। सुप्रीम कोर्ट में उनके स्तर से दाखिल शपथपत्र में कहा गया था कि गर्भवती कौसर बानो का सामूहिक बलात्कार हुआ और उसका बच्चा पेट फाड़ कर निकाला गया पर एसआईटी ने दोनों ही बातें झूठी पार्इं। जरीना मंसूरी नामक महिला को नरोडा पाटिया में जिंदा जलाकर मारने सम्बन्धी शपथपत्र के बारे में जांच में पाया गया कि जरीना की मौत टीबी से हुई थी। सीतलवाड़ के मुख्य गवाह रईस खान ने कहा कि गवाही देने के लिए उसे डराया-धमकाया गया। तीस्ता के दाखिल किए सारे शपथपत्र एक ही कम्प्यूटर से निकाले गए और उनमें केवल नाम बदला गया। अब मामला और गहरा रहा है। गुजरात पुलिस की क्राइम ब्रांच उनके दरवाजे तक पहुंच चुकी है। फिलहाल जो आरोप उन पर हैं, उनके बारे में यह कह देना कि यह बदले की भावना से है, कतई सच बात नहीं। क्राइम ब्रांच की रिपोर्ट में कही गर्इं बातें चौंकाने वाली हैं।
रिपोर्ट कहती है कि तीस्ता ने दंगा पीड़ितों के पुनर्वास-सहायता और म्यूजियम आॅफ रेजिस्टेंस बनाने के नाम पर करोड़ों रुपये का चंदा लिया लेकिन चंदे का बड़ा हिस्सा खुद डकार गर्इं। तीस्ता की संस्थाओं सबरंग ट्रस्ट और सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस को देश- विदेश से करीब पौने दस करोड़ रुपये चंदा मिला था जिसे दो भारतीय बैंकों के पांच खातों में जमा किया गया। रिपोर्ट कहती है कि तीस्ता और उनके पति जावेद आनंद ने इन रुपयों में से 3.85 करोड़ अपने नाम कर लिये। सबरंग ट्रस्ट के दो खातों में करीब सवा तीन करोड़ रुपये थे जिनके बारे में तीस्ता-जावेद आनंद ने किसी कोर्ट तक को नहीं बताया। इसी धन से वो इस्लामाबाद, लंदन और अबूधाबी के होटलों में रुकीं, वहां शॉपिंग की। दंपति ने इटली, कुवैत, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, सऊदी अरब, पाकिस्तान में इसी पैसे से खूब खरीददारी की। क्रेडिट कार्ड से खर्च हुआ था इसलिये आसानी से पकड़ में आ गया। जावेद ने जिनेवा से जूते खरीदे तो भी चंदे के पैसे ही खर्च हुए। हैरतअंगेज यह भी है कि इसी पैसे से दंपति ने वेतन लिया और बच्चों के नाम फिक्स डिपाजिट भी कराया। तीस्ता कहती हैं कि उन्होंने पैसे लौटा दिए हैं लेकिन कानून की नजर में इससे अपराध की संगीनता कम नहीं होती। तीस्ता को लेकर विवादों का क्रम यहीं खत्म नहीं होता। समस्या उनके सर्वाधिक खास लोगों में शुमार लोगों में से एक रईस खान पठान ने भी पैदा की है। उन्होंने स्वीकार किया है कि तीस्ता दंगों के फोटोग्राफ को मनमाफिक परिवर्तन करती थीं। बकौल पठान, 2002 में मैं अपने पत्रकार मित्रों से दंगों की तस्वीर लाकर उन्हें देता था। जिन दंगों में कांग्रेस के लोग शामिल थे, उन तस्वीरों में फोटो मार्क करके नाम के साथ कांग्रेसियों की तस्वीरें मैंने उन्हें दी थीं। लेकिन उन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया। उनका प्रयास रहता था कि मात्र भाजपा और उसके लोगों पर ही निशाना सधे, कांग्रेस के प्रति उनके दिल में सॉफ्टकॉर्नर था। यह फोटोग्राफ उन्होंने गायब कर दिए, मैंने सवाल उठाने शुरू किए तो मुझे एनजीओ से निकाल दिया। मेरे पीछे गुंडे लगा दिए, धमकी दी गई कि गुजरात छोड़ जाओ। परिवार के साथ जान से मारने की धमकी आई। मैं गुजरात छोड़कर नहीं जा सकता था, क्योंकि मैंने यहां पीड़ितों की सेवा की है। मैं उनके सुख-दुख का साथी रहा हूं। आप किसी भी पी़ड़ित के पास जाकर पूछिए, उन्हें पहले कौन मिला? तीस्ता या रईस खान, जवाब मिल जाएगा। बहरहाल, तीस्ता के बेनकाब होने के पीछे अगर मोदी या उनके किसी विश्वस्त की भूमिका का शक जताया जा रहा हो, तो उसकी संभावनाएं हो सकती हैं लेकिन सबूत कह रहे हैं कि तीस्ता ने गुजरात दंगों में जो कुछ भी किया-कहा, सब सही और सच नहीं था। जरूरी यह भी है कि जांच और कार्रवाई की प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता रहे क्योंकि नरेंद्र मोदी अब एक राज्य के मुख्यमंत्री नहीं, प्रधानमंत्री हैं और अमित शाह भाजपा जैसी फिलहाल सर्वाधिक शक्तिशाली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष।
देशभर में चर्चित गुजरात की ढेरों घटनाओं में तीस्ता नायिका बनकर सामने आर्इं। पीड़ितों को भरोसा था कि तीस्ता उन्हें इंसाफ दिलाएंगी। कमजोर और परेशान लोगों की उम्मीदें उनसे जुड़ीं थीं। तीस्ता ने मोदी के खिलाफ जबर्दस्त अभियान छेड़ा था, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे। वे मोदी के खिलाफ छोटी से लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत तक गर्इं। अगर आज भी मोदी पर छोटे-बड़े आरोप लगते हैं तो उसके पीछे कहीं न कहीं तीस्ता की भूमिका जरूर होती है। लेकिन यह नायिका अब खलनायिका बन चुकी है। विशेष जांच दल (एसआईटी) की रपट आई तो जैसे हंगामा बरप गया। उजागर हुआ कि गुजरात दंगों में तीस्ता ने जिन लोगों के शपथपत्र प्रस्तुत किए हैं, उन्होंने खुद कहा है कि सीतलवाड़ के कहने पर शपथपत्र दिया गया है, उन्हें शपथपत्र में दी गई सूचना की जानकारी भी नहीं है। तीस्ता का दावा था कि गुलबर्ग सोसाइटी में तत्कालीन पुलिस आयुक्त पीसी पाण्डे दंगाइयों का नेतृत्व कर रहे थे, जबकि ऐसे साक्ष्य मिले कि पाण्डे घायलों को अस्पताल पहुंचाने और दंगाइयों को खदेड़ने में लगे थे। झूठी कहानियां यहीं खत्म नहीं होतीं। सुप्रीम कोर्ट में उनके स्तर से दाखिल शपथपत्र में कहा गया था कि गर्भवती कौसर बानो का सामूहिक बलात्कार हुआ और उसका बच्चा पेट फाड़ कर निकाला गया पर एसआईटी ने दोनों ही बातें झूठी पार्इं। जरीना मंसूरी नामक महिला को नरोडा पाटिया में जिंदा जलाकर मारने सम्बन्धी शपथपत्र के बारे में जांच में पाया गया कि जरीना की मौत टीबी से हुई थी। सीतलवाड़ के मुख्य गवाह रईस खान ने कहा कि गवाही देने के लिए उसे डराया-धमकाया गया। तीस्ता के दाखिल किए सारे शपथपत्र एक ही कम्प्यूटर से निकाले गए और उनमें केवल नाम बदला गया। अब मामला और गहरा रहा है। गुजरात पुलिस की क्राइम ब्रांच उनके दरवाजे तक पहुंच चुकी है। फिलहाल जो आरोप उन पर हैं, उनके बारे में यह कह देना कि यह बदले की भावना से है, कतई सच बात नहीं। क्राइम ब्रांच की रिपोर्ट में कही गर्इं बातें चौंकाने वाली हैं।
रिपोर्ट कहती है कि तीस्ता ने दंगा पीड़ितों के पुनर्वास-सहायता और म्यूजियम आॅफ रेजिस्टेंस बनाने के नाम पर करोड़ों रुपये का चंदा लिया लेकिन चंदे का बड़ा हिस्सा खुद डकार गर्इं। तीस्ता की संस्थाओं सबरंग ट्रस्ट और सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस को देश- विदेश से करीब पौने दस करोड़ रुपये चंदा मिला था जिसे दो भारतीय बैंकों के पांच खातों में जमा किया गया। रिपोर्ट कहती है कि तीस्ता और उनके पति जावेद आनंद ने इन रुपयों में से 3.85 करोड़ अपने नाम कर लिये। सबरंग ट्रस्ट के दो खातों में करीब सवा तीन करोड़ रुपये थे जिनके बारे में तीस्ता-जावेद आनंद ने किसी कोर्ट तक को नहीं बताया। इसी धन से वो इस्लामाबाद, लंदन और अबूधाबी के होटलों में रुकीं, वहां शॉपिंग की। दंपति ने इटली, कुवैत, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, सऊदी अरब, पाकिस्तान में इसी पैसे से खूब खरीददारी की। क्रेडिट कार्ड से खर्च हुआ था इसलिये आसानी से पकड़ में आ गया। जावेद ने जिनेवा से जूते खरीदे तो भी चंदे के पैसे ही खर्च हुए। हैरतअंगेज यह भी है कि इसी पैसे से दंपति ने वेतन लिया और बच्चों के नाम फिक्स डिपाजिट भी कराया। तीस्ता कहती हैं कि उन्होंने पैसे लौटा दिए हैं लेकिन कानून की नजर में इससे अपराध की संगीनता कम नहीं होती। तीस्ता को लेकर विवादों का क्रम यहीं खत्म नहीं होता। समस्या उनके सर्वाधिक खास लोगों में शुमार लोगों में से एक रईस खान पठान ने भी पैदा की है। उन्होंने स्वीकार किया है कि तीस्ता दंगों के फोटोग्राफ को मनमाफिक परिवर्तन करती थीं। बकौल पठान, 2002 में मैं अपने पत्रकार मित्रों से दंगों की तस्वीर लाकर उन्हें देता था। जिन दंगों में कांग्रेस के लोग शामिल थे, उन तस्वीरों में फोटो मार्क करके नाम के साथ कांग्रेसियों की तस्वीरें मैंने उन्हें दी थीं। लेकिन उन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया। उनका प्रयास रहता था कि मात्र भाजपा और उसके लोगों पर ही निशाना सधे, कांग्रेस के प्रति उनके दिल में सॉफ्टकॉर्नर था। यह फोटोग्राफ उन्होंने गायब कर दिए, मैंने सवाल उठाने शुरू किए तो मुझे एनजीओ से निकाल दिया। मेरे पीछे गुंडे लगा दिए, धमकी दी गई कि गुजरात छोड़ जाओ। परिवार के साथ जान से मारने की धमकी आई। मैं गुजरात छोड़कर नहीं जा सकता था, क्योंकि मैंने यहां पीड़ितों की सेवा की है। मैं उनके सुख-दुख का साथी रहा हूं। आप किसी भी पी़ड़ित के पास जाकर पूछिए, उन्हें पहले कौन मिला? तीस्ता या रईस खान, जवाब मिल जाएगा। बहरहाल, तीस्ता के बेनकाब होने के पीछे अगर मोदी या उनके किसी विश्वस्त की भूमिका का शक जताया जा रहा हो, तो उसकी संभावनाएं हो सकती हैं लेकिन सबूत कह रहे हैं कि तीस्ता ने गुजरात दंगों में जो कुछ भी किया-कहा, सब सही और सच नहीं था। जरूरी यह भी है कि जांच और कार्रवाई की प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता रहे क्योंकि नरेंद्र मोदी अब एक राज्य के मुख्यमंत्री नहीं, प्रधानमंत्री हैं और अमित शाह भाजपा जैसी फिलहाल सर्वाधिक शक्तिशाली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष।
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