हरियाणा और महाराष्ट्र में फतेह के बाद भारतीय राजनीति के नए चाणक्य नरेंद्र मोदी के एजेंडे में अब जम्मू-कश्मीर सबसे ऊपर है। मकसद मात्र सत्ता प्राप्त करना ही नहीं है बल्कि एक तीर से कई निशाने साधे जाने हैं। पाकिस्तान को सबक तब सीमा के साथ ही घाटी से भी मिलेगा। भाजपा जिस रास्ते पर चल रही है, उसमें जम्मू ही नहीं, पूरे कश्मीर में भी गंभीरता से चुनाव लड़ना शामिल है। जिस राज्य में कोई प्रधानमंत्री साल में एक भी न जाता रहा हो, वहां मोदी पीएम बनने के बाद चार बार हो आए हैं। उनका हर दौरा चर्चा में आया है, कामयाब रहा है।
कश्मीर मुद्दा हर राजनीतिक पार्टी के गले की फांस रहा है। भाजपा इस मामले में खुद को अलग बताती है और वादा करती रही है कि सत्ता मिलते ही वह इसका समाधान करेगी। इस समय हालांकि वह अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर चुप है लेकिन पहले इसकी समाप्ति के लिए खासे अभियान चला चुकी है। यह अनुच्छेद राज्य को अन्य राज्यों से अलग करते हुए विशेष अधिकार प्रदान करता है। भाजपा मानती है कि घाटी से अगर यह अनुच्छेद हटा दिया जाए तो कुछ दिन के असंतोष के बाद समस्या हल हो जाएगी। बाहर के लोग आकर बसने लगेंगे तो वो इलाके भी रोशन हो जाएंगे जहां से अलगाव के झण्डे उठते हैं। अन्य राज्यों की तरह जम्मू एवं कश्मीर भी निवेश आकर्षित कर पाएगा जिससे समूल विकास सुनिश्चित हो सकेगा। इसी क्रम में पार्टी की योजना पर्यटन के विकास की है। जम्मू कश्मीर देश का एक ऐसा राज्य है जहां पर्यटन की काफी संभावनाएं हैं। इससे न सिर्फ रोजगार पैदा होगा बल्कि देश के अन्य नागरिकों के लिए भी कश्मीर के दरवाजे खुलेंगे। वह भली-भांति जानती है कि कश्मीर के लोग अपने लिए बनाई गई नीतियों से संतुष्ट नहीं हो पाते क्योंकि वह पर्याप्त प्रचार-प्रसार के अभाव में उन्हें समझ ही नहीं पाते। केंद्र की नीतियों को राज्यों की सरकारें अपने व्यक्तिगत हितों की वजह से पूरी तरह क्रियान्वित ही नहीं होने देतीं। इसी वजह से उसने ठानी है कि केंद्र कश्मीरियों के उत्थान के लिए जो भी नीति बनाएगा, उसके बारे में वह कश्मीरियों को भली-भांति समझाएगी। उन्हें महसूस कराएगी कि यह योजना उत्थान और कल्याण के लिए बनी है। आतंकवाद की मार झेल रहे कश्मीर के अवाम में सेना को लेकर भी असंतोष है। समय-समय पर वहां के मुख्यमंत्री भी सेना को प्राप्त विशेष अधिकारों की समाप्ति की मांग करते रहे हैं। मोदी समझ रहे हैं कि चुनौती लोगों में सेना और नई दिल्ली के प्रति सम्मान और भरोसा पैदा करने की भी है इसीलिये वह बार-बार दौरा कर रहे हैं। उन्होंने भरोसा कायम भी किया है। वह समझा रहे हैं कि देश में जिस तरह बदलाव की बयार बह रही है, उससे कश्मीर को वंचित नहीं रहना है। कश्मीर में एक समस्या आतंकवाद में कुछ प्रतिशत युवाओं की संलिप्तता भी है। कश्मीर में बेरोजगारी मुख्य समस्या है। रोजगार के अभाव में आतंकवादी समूह बड़ी संख्या में युवकों को गुमराह करके पूरे राज्य को आतंकवाद की आग में झोंके हुए हैं। इसके लिए भाजपा रोजगार के ढेरों मौके मुहैया कराने की योजना बना रही है। मोदी के एजेंडे में कश्मीरी पंडितों की वापसी भी है। उन्हें लग रहा है कि मूल निवासियों के घर लौटने से राजनीतिक रूप से उसे फायदा है। इससे न केवल उसका वोट प्रतिशत बढ़ेगा बल्कि समर्थकों का एक बड़ा समूह भी हासिल हो जाएगा। दरअसल, उग्रवाद का प्रभाव जिन लोगों पर सबसे ज्यादा पड़ा है, वो कश्मीरी पंडित ही हैं। घाटी में बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित अपने घरों से विस्थापित हुए हैं। कश्मीरी पंडितों ने मोदी के समर्थन का यह कहते हुए ऐलान किया है कि उन्हें घर वापसी के लिए मार्ग सुगम करना होगा। ऐसा होता है आतंकवादियों के हौसले भी कमजोर होंगे।
अब सवाल यह है कि मोदी और उनकी पार्टी इन वादों-इरादों को अंजाम तक पहुंचाने में कितनी सफल रहने वाली है? घाटी में सब-कुछ वहां के लोगों पर निर्भर नहीं है बल्कि पाकिस्तान जैसी बाहरी शक्तियां भी प्रभावी हैं। मोदी की योजना पहले एक मोर्चे पर फतेह हासिल करने की है। राजनीतिक रूप से सशक्त होने के बाद वह यह कहने में सफल हो जाएंगे कि उन्हें घाटी के लोगों का समर्थन प्राप्त है। पाकिस्तान को सीमा पर कमजोर सिद्ध करना भी उनकी रणनीति का एक प्रमुख हिस्सा है। इसीलिये सीमा पर फायरिंग शुरू होने के बाद उन्होंने तत्काल टिप्पणी नहीं की ताकि यह संकेत जाए कि वह पाकिस्तानी हरकतों को टिप्पणी के काबिल भी नहीं समझ रहे। सेना सशक्त है और जवान खुद इसका जवाब देने में सक्षम हैं। इसी का असर है कि पाकिस्तान को तेवर कड़े करने पड़े, संसद में भारत के विरुद्ध निंंदा प्रस्ताव भी उसने इसीलिये पारित किया ताकि भारत पर दबाव बढ़े और मोदी सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह सीमा पर हमलावर न रहकर, रक्षात्मक हो जाए। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी संकेत चले जाएं कि मोदी सरकार का रुख पाकिस्तान के प्रति खासा आक्रामक है। पाकिस्तान को कमजोर दोस्त साबित करने से घाटी के लोगों पर मनोवैज्ञानिक असर होगा, वह मानने लगेंगे कि पाकिस्तान से बेहतर भारत के साथ रहना है। राजनीतिक रणनीति की बात करें तो भाजपा की तैयारी इस बार पूरे राज्य में अपने प्रत्याशी खड़े करने की है। आतंकवाद का सर्वाधिक शिकार श्रीनगर में भी वह मैदान में होगी, यह दीगर है कि यहां पार्टी का चेहरा कोई मुस्लिम होगा। पार्टी की योजना अन्य कई सीटों पर भी मुस्लिम प्रत्याशी खड़े करने की है। कोशिश तो सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस और मुफ्ती मोहम्मद सईद की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं से पाला बदलवाने की भी है। मोदी कश्मीर मिशन खुद देख रहे हैं, सारी योजनाएं उनकी अपनी है। इसलिये पार्टी को उम्मीद कामयाबी की है।
कश्मीर मुद्दा हर राजनीतिक पार्टी के गले की फांस रहा है। भाजपा इस मामले में खुद को अलग बताती है और वादा करती रही है कि सत्ता मिलते ही वह इसका समाधान करेगी। इस समय हालांकि वह अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर चुप है लेकिन पहले इसकी समाप्ति के लिए खासे अभियान चला चुकी है। यह अनुच्छेद राज्य को अन्य राज्यों से अलग करते हुए विशेष अधिकार प्रदान करता है। भाजपा मानती है कि घाटी से अगर यह अनुच्छेद हटा दिया जाए तो कुछ दिन के असंतोष के बाद समस्या हल हो जाएगी। बाहर के लोग आकर बसने लगेंगे तो वो इलाके भी रोशन हो जाएंगे जहां से अलगाव के झण्डे उठते हैं। अन्य राज्यों की तरह जम्मू एवं कश्मीर भी निवेश आकर्षित कर पाएगा जिससे समूल विकास सुनिश्चित हो सकेगा। इसी क्रम में पार्टी की योजना पर्यटन के विकास की है। जम्मू कश्मीर देश का एक ऐसा राज्य है जहां पर्यटन की काफी संभावनाएं हैं। इससे न सिर्फ रोजगार पैदा होगा बल्कि देश के अन्य नागरिकों के लिए भी कश्मीर के दरवाजे खुलेंगे। वह भली-भांति जानती है कि कश्मीर के लोग अपने लिए बनाई गई नीतियों से संतुष्ट नहीं हो पाते क्योंकि वह पर्याप्त प्रचार-प्रसार के अभाव में उन्हें समझ ही नहीं पाते। केंद्र की नीतियों को राज्यों की सरकारें अपने व्यक्तिगत हितों की वजह से पूरी तरह क्रियान्वित ही नहीं होने देतीं। इसी वजह से उसने ठानी है कि केंद्र कश्मीरियों के उत्थान के लिए जो भी नीति बनाएगा, उसके बारे में वह कश्मीरियों को भली-भांति समझाएगी। उन्हें महसूस कराएगी कि यह योजना उत्थान और कल्याण के लिए बनी है। आतंकवाद की मार झेल रहे कश्मीर के अवाम में सेना को लेकर भी असंतोष है। समय-समय पर वहां के मुख्यमंत्री भी सेना को प्राप्त विशेष अधिकारों की समाप्ति की मांग करते रहे हैं। मोदी समझ रहे हैं कि चुनौती लोगों में सेना और नई दिल्ली के प्रति सम्मान और भरोसा पैदा करने की भी है इसीलिये वह बार-बार दौरा कर रहे हैं। उन्होंने भरोसा कायम भी किया है। वह समझा रहे हैं कि देश में जिस तरह बदलाव की बयार बह रही है, उससे कश्मीर को वंचित नहीं रहना है। कश्मीर में एक समस्या आतंकवाद में कुछ प्रतिशत युवाओं की संलिप्तता भी है। कश्मीर में बेरोजगारी मुख्य समस्या है। रोजगार के अभाव में आतंकवादी समूह बड़ी संख्या में युवकों को गुमराह करके पूरे राज्य को आतंकवाद की आग में झोंके हुए हैं। इसके लिए भाजपा रोजगार के ढेरों मौके मुहैया कराने की योजना बना रही है। मोदी के एजेंडे में कश्मीरी पंडितों की वापसी भी है। उन्हें लग रहा है कि मूल निवासियों के घर लौटने से राजनीतिक रूप से उसे फायदा है। इससे न केवल उसका वोट प्रतिशत बढ़ेगा बल्कि समर्थकों का एक बड़ा समूह भी हासिल हो जाएगा। दरअसल, उग्रवाद का प्रभाव जिन लोगों पर सबसे ज्यादा पड़ा है, वो कश्मीरी पंडित ही हैं। घाटी में बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित अपने घरों से विस्थापित हुए हैं। कश्मीरी पंडितों ने मोदी के समर्थन का यह कहते हुए ऐलान किया है कि उन्हें घर वापसी के लिए मार्ग सुगम करना होगा। ऐसा होता है आतंकवादियों के हौसले भी कमजोर होंगे।
अब सवाल यह है कि मोदी और उनकी पार्टी इन वादों-इरादों को अंजाम तक पहुंचाने में कितनी सफल रहने वाली है? घाटी में सब-कुछ वहां के लोगों पर निर्भर नहीं है बल्कि पाकिस्तान जैसी बाहरी शक्तियां भी प्रभावी हैं। मोदी की योजना पहले एक मोर्चे पर फतेह हासिल करने की है। राजनीतिक रूप से सशक्त होने के बाद वह यह कहने में सफल हो जाएंगे कि उन्हें घाटी के लोगों का समर्थन प्राप्त है। पाकिस्तान को सीमा पर कमजोर सिद्ध करना भी उनकी रणनीति का एक प्रमुख हिस्सा है। इसीलिये सीमा पर फायरिंग शुरू होने के बाद उन्होंने तत्काल टिप्पणी नहीं की ताकि यह संकेत जाए कि वह पाकिस्तानी हरकतों को टिप्पणी के काबिल भी नहीं समझ रहे। सेना सशक्त है और जवान खुद इसका जवाब देने में सक्षम हैं। इसी का असर है कि पाकिस्तान को तेवर कड़े करने पड़े, संसद में भारत के विरुद्ध निंंदा प्रस्ताव भी उसने इसीलिये पारित किया ताकि भारत पर दबाव बढ़े और मोदी सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह सीमा पर हमलावर न रहकर, रक्षात्मक हो जाए। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी संकेत चले जाएं कि मोदी सरकार का रुख पाकिस्तान के प्रति खासा आक्रामक है। पाकिस्तान को कमजोर दोस्त साबित करने से घाटी के लोगों पर मनोवैज्ञानिक असर होगा, वह मानने लगेंगे कि पाकिस्तान से बेहतर भारत के साथ रहना है। राजनीतिक रणनीति की बात करें तो भाजपा की तैयारी इस बार पूरे राज्य में अपने प्रत्याशी खड़े करने की है। आतंकवाद का सर्वाधिक शिकार श्रीनगर में भी वह मैदान में होगी, यह दीगर है कि यहां पार्टी का चेहरा कोई मुस्लिम होगा। पार्टी की योजना अन्य कई सीटों पर भी मुस्लिम प्रत्याशी खड़े करने की है। कोशिश तो सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस और मुफ्ती मोहम्मद सईद की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं से पाला बदलवाने की भी है। मोदी कश्मीर मिशन खुद देख रहे हैं, सारी योजनाएं उनकी अपनी है। इसलिये पार्टी को उम्मीद कामयाबी की है।
No comments:
Post a Comment