स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत के बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार डिजिटल इंडिया मिशन पर जोर लगाने की तैयारियों में जुटी है। यह सामयिक है और भारत के लिए जरूरी भी। दरअसल, हम तकनीक की नई दुनिया में बहुत आगे पहुंच चुके हैं। तकनीक की दुनिया के नए उभरे इस देश में जहां 18 साल में मोबाइल कनेक्शन शून्य से साढ़े 87 करोड़ तक पहुंच गए हैं, जो अमेरिका और चीन के बाद इंटरनेट की तीसरी सबसे बड़ी आबादी है, जिसमें लगभग 90 करोड़ फोन कनेक्शनों में 97 फीसद मोबाइल हैं, गूगल की 13 सदस्यीय मैनेजमेंट टीम में से जिस देश के चार नागरिक शुमार हैं, जिसके 100 अरब डॉलर के आईटी-बीपीओ उद्योग का 70 फीसदी व्यापार निर्यात आधारित है।अब तस्वीर का दूसरा रुख देखिए, जो सिद्ध कर रहा है कि भारतीय भी अपने देश को तकनीक महाशक्ति बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे।
इस रुख को स्पष्ट करने के लिए मैं पांच ऐसे व्यक्तियों का उदाहरण दे रहा हूं, जो अपने क्षेत्रों के महारथी हैं लेकिन अब देशहित में जुटे हैं। पहला व्यक्ति नंदन नीलेकणि ने नामी कंपनी इंफोसिस के ऐशो-आराम छोड़कर लगभग सवा अरब लोगों को डिजिटल पहचान पत्र जारी करने के प्रोजेक्ट में लगा था। दूसरा, हर महीने डिजिटल दुनिया में सर्च कर रहे 100 अरब लोगों को उसके बेहतर नतीजे दिलाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। नाम है-बेन गोम्स। तीसरी एक युवती है जिसने दुनिया की सबसे लोकप्रिय मानी जाने वाली सोशल नेटर्वकिंग कम्पनी के लिए प्रमुख फीचर बनाए। रुचि सांघवी आज नेटर्वकिंग साइट्स के लिए बड़ा नाम है। चौथा, रिकिन गांधी नामक भारतीय तकनीकी और सामाजिक संस्थाओं को साथ लाकर किसानों के फायदे के लिए काम दिन-रात एक कर रहा है और पांचवें संजीव बिखचंदानी लगभग 30 लाख लोगों को नौकरी खोजने में मददगार हैं। नीलेकणि ने बंगलोर में एक सॉफ्टवेयर कम्पनी से करियर शुरू किया और 28 साल जब वह पीक पर थे तो देश के लिए काम करने में उतर आए। नंदन की शुरू की हुई उस कम्पनी और उसकी जैसी कई अन्य कम्पनियों ने भारत के आईटी-बीपीओ उद्योग को 2014 में 150 अरब डॉलर से ज्यादा का कर दिया। सिलिकन वैली में बंगलोर के मूल निवासी बेन गोम्स भी खासे चर्चित हैं। कभी ब्रिटिश कम्पनी जेडएक्स स्पेक्ट्रम कम्यूटर के साथ घर में जोड़-तोड़ करने वाले बेन आज दुनिया की सबसे बड़ी वेब सर्च कंपनी में हैं। आप गूगल में कुछ खोजने के लिए टाइप करते हैं तो उसमें अपने-आप दिखने वाले सुझाव गोम्स की ही वजह से हैं। इसी तरह की उपलब्धियां भरी कहानी है पुणे की 23 वर्षीय रुचि सांघवी की। उन्होंने नई कम्पनी से काम शुरू किया, यह कम्पनी कॉलेज जाने वालों के लिए डेटिंग सर्विस जैसी लगती थी।
बतौर ट्रेनी इंजीनियर करियर शुरू करने वालीं रुचि फेसबुक में प्रिंसिपल प्रॉडक्ट मैनेजर और उसकी न्यूज फीड सेक्शन हेड रहीं। महज 29 साल की उम्र में नौकरी छोड़ने के बाद रुचि ने नई कंपनी शुरू की और सिलिकन वैली में सहयोगियों को अपने साथ ले लिया। बाद में इस कम्पनी का ड्रॉपबॉक्स ने अधिग्रहण कर लिया। ड्रॉपबॉक्स इंटरनेट से जुड़ी वो जगह है जहां आप अहम दस्तावेज और तस्वीरें रख सकते हैं। इतनी ही धमक रिकिन गांधी की जिन्होंने अंतरिक्ष यात्री बनने का सपना महज चंद कदम की दूरी पर ही छोड़ दिया। उन्होंने अमेरिका छोड़ा, भारत आए और किसानों के साथ काम करने के लिए डिजिटल वीडियो का इस्तेमाल किया ताकि उन किसानों की जिÞंदगी बेहतर की जा सके जो तकनीक से दूर हैं और पिछड़े हैं। स्थानीय तौर पर पर बना ये वीडियो ग्रामीण भारत के लिए साधारण अविष्कार है क्योंकि वहां इंटरनेट की पहुंच नहीं है लेकिन मोबाइल जरूर पैठ कर रहा है। संजीव बिखचंदानी की कहानी कुछ अलग और प्रेरणादायी है। दिल्ली के संजीव ने बहुराष्ट्रीय कम्पनी की नौकरी छोड़ी और करीब एक दशक तक बिना वेतन संघर्ष किया। वर्ष 1997 में उन्होंने नौकरी खोजने के लिए वेबसाइट बनाई तो उसे लोगों के बीच ऐसी लोकप्रियता मिली कि आज वह भारत के प्रमुख वेब बिजनेस के मालिक हैं। करियर पत्रिकाओं से उन्हें इस वेबसाइट को शुरू करने की प्रेरणा मिली जिनमें उनके मित्र नौकरियां खोजा करते थे। यह वो दौरथा जब समूचे देश में इंटरनेट प्रयोग करने वालों की संख्या महज 15 हजार थी जो आज लगभग साढ़े सात करोड़ है और हर साल 30 फीसदी की गति से बढ़ रही है। चेन्नई के राम श्रीराम ने नेटस्केप में तब काम किया जब वह कम उत्पादों वाली कम्पनी थी। श्रीराम ने उसे छोड़कर जंगली डॉट कॉम शुरू की, फिर उसे जेफ बेजोस को लगभग साढ़े 18 करोड़ डॉलर में बेच दिया। वह आज भी गूगल के बोर्ड में हैं जिसकी लीडरशिप टीम के 13 में पांच सदस्य भारतीय मूल के हैं। ऐसे उदाहरणों वाले देश में मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया प्रोग्राम की कामयाबी ज्यादा मुश्किल नजर नहीं आ रही। इस प्रोग्राम की बड़े पैमाने पर लॉन्चिंग मोदी सरकार का अगला एजेंडा है। अगले महीने सरकार इस कार्यक्रम औपचारिक शुरुआत करने का मन बना रही है। मोदी ने अपनी टीम से इनोवेटिव और नए आइडियाज के साथ शुरुआत करने के लिए कहा है। फिलहाल, जिस आइडिया को संभावित लॉन्चिंग कार्यक्रम के लिए चुना गया है, वह है मोदी का देश के एक हजार पंचायतों के मुखियाओं से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बात करना और उन्हें इंटरनेट का महत्व समझाना। विश्व की शीर्ष आईटी कम्पनी आईबीएम ने इसमें काफी रुचि दिखाई है और इस मिशन में सरकार के साथ जुड़ने को लेकर आगे और बातचीत हो सकती है। मोदी फेसबुक को सक्रिय सहयोगी बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
इस रुख को स्पष्ट करने के लिए मैं पांच ऐसे व्यक्तियों का उदाहरण दे रहा हूं, जो अपने क्षेत्रों के महारथी हैं लेकिन अब देशहित में जुटे हैं। पहला व्यक्ति नंदन नीलेकणि ने नामी कंपनी इंफोसिस के ऐशो-आराम छोड़कर लगभग सवा अरब लोगों को डिजिटल पहचान पत्र जारी करने के प्रोजेक्ट में लगा था। दूसरा, हर महीने डिजिटल दुनिया में सर्च कर रहे 100 अरब लोगों को उसके बेहतर नतीजे दिलाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। नाम है-बेन गोम्स। तीसरी एक युवती है जिसने दुनिया की सबसे लोकप्रिय मानी जाने वाली सोशल नेटर्वकिंग कम्पनी के लिए प्रमुख फीचर बनाए। रुचि सांघवी आज नेटर्वकिंग साइट्स के लिए बड़ा नाम है। चौथा, रिकिन गांधी नामक भारतीय तकनीकी और सामाजिक संस्थाओं को साथ लाकर किसानों के फायदे के लिए काम दिन-रात एक कर रहा है और पांचवें संजीव बिखचंदानी लगभग 30 लाख लोगों को नौकरी खोजने में मददगार हैं। नीलेकणि ने बंगलोर में एक सॉफ्टवेयर कम्पनी से करियर शुरू किया और 28 साल जब वह पीक पर थे तो देश के लिए काम करने में उतर आए। नंदन की शुरू की हुई उस कम्पनी और उसकी जैसी कई अन्य कम्पनियों ने भारत के आईटी-बीपीओ उद्योग को 2014 में 150 अरब डॉलर से ज्यादा का कर दिया। सिलिकन वैली में बंगलोर के मूल निवासी बेन गोम्स भी खासे चर्चित हैं। कभी ब्रिटिश कम्पनी जेडएक्स स्पेक्ट्रम कम्यूटर के साथ घर में जोड़-तोड़ करने वाले बेन आज दुनिया की सबसे बड़ी वेब सर्च कंपनी में हैं। आप गूगल में कुछ खोजने के लिए टाइप करते हैं तो उसमें अपने-आप दिखने वाले सुझाव गोम्स की ही वजह से हैं। इसी तरह की उपलब्धियां भरी कहानी है पुणे की 23 वर्षीय रुचि सांघवी की। उन्होंने नई कम्पनी से काम शुरू किया, यह कम्पनी कॉलेज जाने वालों के लिए डेटिंग सर्विस जैसी लगती थी।
बतौर ट्रेनी इंजीनियर करियर शुरू करने वालीं रुचि फेसबुक में प्रिंसिपल प्रॉडक्ट मैनेजर और उसकी न्यूज फीड सेक्शन हेड रहीं। महज 29 साल की उम्र में नौकरी छोड़ने के बाद रुचि ने नई कंपनी शुरू की और सिलिकन वैली में सहयोगियों को अपने साथ ले लिया। बाद में इस कम्पनी का ड्रॉपबॉक्स ने अधिग्रहण कर लिया। ड्रॉपबॉक्स इंटरनेट से जुड़ी वो जगह है जहां आप अहम दस्तावेज और तस्वीरें रख सकते हैं। इतनी ही धमक रिकिन गांधी की जिन्होंने अंतरिक्ष यात्री बनने का सपना महज चंद कदम की दूरी पर ही छोड़ दिया। उन्होंने अमेरिका छोड़ा, भारत आए और किसानों के साथ काम करने के लिए डिजिटल वीडियो का इस्तेमाल किया ताकि उन किसानों की जिÞंदगी बेहतर की जा सके जो तकनीक से दूर हैं और पिछड़े हैं। स्थानीय तौर पर पर बना ये वीडियो ग्रामीण भारत के लिए साधारण अविष्कार है क्योंकि वहां इंटरनेट की पहुंच नहीं है लेकिन मोबाइल जरूर पैठ कर रहा है। संजीव बिखचंदानी की कहानी कुछ अलग और प्रेरणादायी है। दिल्ली के संजीव ने बहुराष्ट्रीय कम्पनी की नौकरी छोड़ी और करीब एक दशक तक बिना वेतन संघर्ष किया। वर्ष 1997 में उन्होंने नौकरी खोजने के लिए वेबसाइट बनाई तो उसे लोगों के बीच ऐसी लोकप्रियता मिली कि आज वह भारत के प्रमुख वेब बिजनेस के मालिक हैं। करियर पत्रिकाओं से उन्हें इस वेबसाइट को शुरू करने की प्रेरणा मिली जिनमें उनके मित्र नौकरियां खोजा करते थे। यह वो दौरथा जब समूचे देश में इंटरनेट प्रयोग करने वालों की संख्या महज 15 हजार थी जो आज लगभग साढ़े सात करोड़ है और हर साल 30 फीसदी की गति से बढ़ रही है। चेन्नई के राम श्रीराम ने नेटस्केप में तब काम किया जब वह कम उत्पादों वाली कम्पनी थी। श्रीराम ने उसे छोड़कर जंगली डॉट कॉम शुरू की, फिर उसे जेफ बेजोस को लगभग साढ़े 18 करोड़ डॉलर में बेच दिया। वह आज भी गूगल के बोर्ड में हैं जिसकी लीडरशिप टीम के 13 में पांच सदस्य भारतीय मूल के हैं। ऐसे उदाहरणों वाले देश में मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया प्रोग्राम की कामयाबी ज्यादा मुश्किल नजर नहीं आ रही। इस प्रोग्राम की बड़े पैमाने पर लॉन्चिंग मोदी सरकार का अगला एजेंडा है। अगले महीने सरकार इस कार्यक्रम औपचारिक शुरुआत करने का मन बना रही है। मोदी ने अपनी टीम से इनोवेटिव और नए आइडियाज के साथ शुरुआत करने के लिए कहा है। फिलहाल, जिस आइडिया को संभावित लॉन्चिंग कार्यक्रम के लिए चुना गया है, वह है मोदी का देश के एक हजार पंचायतों के मुखियाओं से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बात करना और उन्हें इंटरनेट का महत्व समझाना। विश्व की शीर्ष आईटी कम्पनी आईबीएम ने इसमें काफी रुचि दिखाई है और इस मिशन में सरकार के साथ जुड़ने को लेकर आगे और बातचीत हो सकती है। मोदी फेसबुक को सक्रिय सहयोगी बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
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