Monday, October 13, 2014

अलगाववादियों में हताशा के दिन...

पहले बाढ़ और फिर पाकिस्तानी सेना की फायरिंग के बाद जम्मू-कश्मीर एक बार फिर सुर्खियों में है। लेकिन इस दफा मामला बेहद गंभीर और संगीन है। इंटेलीजेंस ब्यूरो तक पहुंची एक रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीनगर में बीते दिनों ईद की नमाज के बाद भड़की हिंसा के दौरान प्रदर्शनकारियों ने इराक के खतरनाक आतंकी संगठन आईएसआईएस का झंडा लहराया था। 
शुरुआती रिपोर्टों में बताया गया है कि यह पाकिस्तानी शह पर हो रहा है। सीमा पर पाकिस्तान ने जब सिरदर्द बनना शुरू किया तो यह तत्व घाटी में अंदर सिर उठाने लगे। कोशिशें हुर्इं कि भारत की सेना सीमा और अंदर, दोनों मोर्चों पर मुश्किल में फंस जाए। कुछ जगह भारत विरोधी नारे लगाकर भी माहौल बिगाड़ने की कोशिशें की गर्इं। हालांकि इन तत्वों को भारतीय सेना की ताकत का अंदाजा था इसलिये सारे कुकृत्य चोरी-छिपे और अंदरूनी इलाकों में हुए। कश्मीर घाटी में सुरक्षाबलों के सामने अक्सर पथराव की भी घटनाएं होती हैं बल्कि यह घटनाएं ही एक समस्या नहीं है बल्कि उन्हें प्रदर्शनों के दौरान गालियों, भड़काऊ नारेबाजी और दीवारों पर लिखे देश विरोधी नारों से भी जूझना पड़ता है। कई बार सुरक्षाबल भारत विरोधी नारे लिखने वालों को मुंहतोड़ जवाब देते हैं और नारों को संपादित कर अपने राष्ट्र प्रेम का प्रतीक बना देते हैं। पिछले दिन एक उदाहरण सामने आया था, जिसमें कुछ राष्ट्र विरोधी तत्वों ने नौहट्टा के मुख्य चौक पर यह नारा लिखा- गो इंडिया गो लेकिन सुरक्षाबलों ने इस नारे को संपादित कर वहां- गुड इंडिया गुड लिख दिया। नौहट्टा और बारामूला के ओल्ड ब्रिज क्षेत्र में अक्सर घंटों तक चलते रहने वाले पथराव के दौरान पत्थर फेंकने वालों और सुरक्षाबलों के बीच तीखा वाकयुद्ध भी होता है।यह तत्व यह भूल जाते हैं कि  भारतीय सेना के आत्मविश्वास और राष्ट्रप्रेम की दुनियाभर में मिसालें दी जाती हैं। कुछ मुट्ठीभर युवक इन नारों से न तो सुरक्षाबलों को डरा सकते हैं और न स्थानीय लोगों को। असल में, कश्मीर बाढ़ के दिनों में आतंकवादी गिरोहों के व्यवहार से कश्मीर घाटी की आम जनता को बहुत निराशा हुई है। जब सेना के जवान कश्मीरियों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे, उस समय पाकिस्तान का गुणगान करने वाले आतंकी संगठन घरों या आश्रय स्थलों में छिपे बैठे थे। उन्हें अपनी जान ही प्यारी थी, घाटी की आवाम के जान और माल की इन्हें कोई चिंता न थी। उन आतंकी गिरोहों का मनोबल बनाए रखने के लिए भी पाकिस्तान के लिए सीमा पर हलचल करना लाजिमी हो गया था। यदि पाकिस्तान की इस कार्रवाई से सचमुच घाटी के आतंकियों में आशा जगती है, तो समझ लीजिए कि उसी अनुपात में देश की बाकी जनता के मन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर उपजे हुए विश्वास और आशा में कमी आ जाएगी। यह साधारण मनोवैज्ञानिक स्थिति पाकिस्तान की सरकार समझती ही होगी। इस पृष्ठभूमि में पाकिस्तान द्वारा भारतीय सीमा पर की जा रही हरकतों को समझना ज्यादा आसान हो जाएगा। लेकिन केवल समझ मात्र लेने से काम नहीं चलेगा, क्योंकि उसका उत्तर भी तलाशना होगा। ऐसा उत्तर जो सीमा पर शत्रु देश को दिया जाए और देश के भीतर उन लोगों को, जो शत्रु द्वारा किए जा रहे आक्रमण को भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं।

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