Sunday, October 28, 2012

चीनी सत्ता में बदलाव के दिन

चीन करवट लेने की तैयारी में है। अगले माह की आठ तारीख को राष्ट्रपति और कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव हू जिन ताओ उप राष्ट्रपति शी जिन पिंग के नेतृत्व की नई पीढ़ी को सत्ता सौंपेंगे। रहस्यों के तमाम पर्दों में घिरे एशिया के इस प्रभावशाली देश में असमंजस का दौर है, साथ ही विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के भावी शासकों की नीतियों को लेकर रहस्य भी कायम है। सत्तारूढ़ सीपीसी की सबसे ताकतवर संस्था पोलित ब्यूरो ने जो बयान जारी किया है, उसने अटकलें और बढ़ा दी हैं। बयान में पार्टी संविधान में संशोधन करने की बात कही गयी थी लेकिन मार्क्सवाद, लेनिनवाद और माओवादी विचारधारा का जिक्र तक नहीं किया गया। ये तीनों शब्द अब तक कम्युनिस्ट पार्टी के हर सैद्धांतिक दस्तावेज के शुरू में लिखे जाते थे। इनसे पता चलता था कि पार्टी अब भी उन आदर्शों पर कायम है जिन्हें लेकर इसकी स्थापना की गई थी। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि चीन क्या रास्ता बदलने की योजना बना चुका है? करीब 10 साल पहले विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की थी कि हू जिन ताओ की अगुआई में चीन के नए कमांडर आर्थिक उदारीकरण से तालमेल बैठाने वाले राजनीतिक सुधार लागू करेंगे। उस वक्त हू सत्ता संभाल रहे थे। लेकिन, वे उम्मीदें धराशायी हो गर्इं। राजनीतिक प्रेक्षक झांग यिहे कहती हैं, किसी ने कल्पना नहीं की थी, हू का प्रशासन इतना पिछड़ा होगा। 2002 की तुलना में चीन आज अधिक अमीर है पर वहां खुलापन नहीं है। आय बढ़ने के साथ अमीर-गरीब के बीच गैर बराबरी बढ़ी है। भ्रष्टाचार फैला है। इसके साथ इंटरनेट ने नागरिकों को सूचना के वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध कराए हैं। विरोध प्रदर्शन इतने बढ़ गए हैं कि अधिकारियों ने सात साल पहले इनके आंकड़े देने बंद कर दिए। अगले दस साल के लिए चीन को चलाने के लिए अगली पीढ़ी के नेताओं का यह चुनाव बेशक चीन का घरेलू राजनीतिक फैसला है, लेकिन कुछ ऐसी बातें हैं, जिसके कारण वहां की सत्ता के गलियारों में होने वाले फैसले पर बाकी दुनिया की भी निगाह रहेगी, 'धनी होना है आनंददायक होना।' 35 साल पहले पूर्व नेता डेंग जिओंपिंग ने यह नारा दिया था। आज चीन में दस लाख ऐसे नागरिक हैं जो कि डॉलरों में लखपति हैं। इस साल अगली पीढ़ी के नेताओं के हाथ में सत्ता आने के बाद शायद चीन विश्व अर्थव्यवस्था के शीर्ष पर बैठे अमेरिका को चुनौती देगा। नए नेताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती पहले की तरह आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने की होगी। चीन में सस्ते मजदूरों के कारण यूरोप लगभग हर चीज के लिए इस देश पर निर्भर है। चीन अब अफ्रीका में सबसे बड़ा निवेशक है। चीन के संपन्न होने की स्थिति में दुनिया का सबसे धनी मध्य वर्ग तैयार होगा। चीन ने अपनी तरक्की के लिए 'शांतिपूर्वक उत्थान' शब्द का इस्तेमाल किया। उसने हमेशा ही अपने डरे हुए पड़ोसियों को बताने की कोशिक की है कि वह अपनी आर्थिक ताकत का इस्तेमाल उन्हें डराने में नहीं करेगा. लेकिन इसके बावजूद जापान, फिलीपिंस और वियतनाम जैसे पड़ोसियों और अमेरिका के साथ विवाद के कारण चीन के शांतिपूर्वक उत्थान के नारे को खोखला साबित करता है। इसके अलावा विश्व की सबसे बड़ी सेना वाला देश चीन अपनी रक्षा और सैन्य आधुनिकीकरण पर अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है। यकीनन अमेरिका की तरह बाकी देशों पर उसका प्रभाव और बढ़ा है। लेकिन नेतृत्व हस्तांतरण से पहले चीन की सत्ताधारी चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी का मतभेद एक बार फिर सार्वजनिक हो गया है। पार्टी के लगभग 300 से अधिक वामपंथी बुद्धिजीवियों ने संसद से बो शिलाई के निष्कासन का विरोध किया है। बुद्धिजीवियों और कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व अधिकारियों ने इस संबंध में खुला पत्र लिखकर बो शिलाई के इस्तीफे की वजह बताने की मांग की है। इस पत्र को ह्यरेड चाइनाह्ण वेबसाइट पर जारी किया गया है। पत्र में कहा गया है, ‘बो शिलाई को निष्कासित करने के लिए क्या वजह बताई गई है? कृपया तथ्यों और सबूत की जांच कीजिए। कृपया इस बात की घोषणा कीजिए कि बो शिलाई कानून के मुताबिक अपना बचाव करने में सक्षम होंगे।’ पत्र लिखने वाले चीनी वामपंथियों को पार्टी में एक छोटा, लेकिन मुखर दबाव समूह माना जाता है। समूह ने शिलाई के निष्कासन पर कानूनी तौर पर सवाल खड़ा करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित बताया है। पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के पूर्व निदेशक ली चेंगरूरी, पीकिंग विश्वविद्यालय के विधि के एक प्राध्यापक, स्थानीय जन प्रतिनिधि, झेंजीयांग के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं। चीन में प्रतिबंधित वेबसाइट ह्यरेड चाइनाह्ण पर प्रकाशित इस पत्र में कहा गया है कि नेशनल पीपुल्स कांग्रेस से बो के निष्कासन का मतलब होगा कि उन्हें प्राप्त विशेषाधिकार छिन गए हैं और उनपर उस घटना के लिए मुकदमा चलाया जा सकेगा, जिस मामले में उनकी पत्नी को सजा मिली है। गौरतलब है कि बो को अवैध संबंध, अनैतिक व्यवहार और भ्रष्टाचार सहित कई आरोपों के चलते मुकदमे का सामना करने के लिए पार्टी से निष्कासित किया गया है। इसके अलावा उन पर अपनी पत्नी को जांच से बचाने का भी आरोप है। उनकी पत्नी गु काईलाई को एक ब्रिटिश व्यवसायी की हत्या के मामले में दोषी पाया गया था। सत्ता परिवर्तन के इस मौके पर चीन पर दुनियाभर की निगाहें टिकी हैं। यह वह देश है जो अपनी विस्तारवादी और महत्वकांक्षी सोच की वजह से समय-समय पर किसी न किसी विवाद में उलझा ही रहा है। अभी हाल ही में मध्य-पूर्व सागर में जापान के विवादित द्वीप खरीदने के बाद दोनों देशों में फिर से विवादों को हवा मिली। सोवियत यूनियन और चीन में राजनीतिक और वैचारिक मतभेद उभरने के बाद दोनों देश सात महीने तक सैन्य संघर्ष में उलझे रहे हैं। मार्च 1969 में जेनबाओ द्वीप के आस-पास की सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच झगड़ा बढ़ गया था। बाद में नए सिरे से सीमाकंन के बाद झगड़ा सुलझ पाया। चीन के साथ अमेरिका का ऐसा कोई गंभीर विवाद नहीं हैं, लेकिन लोकतंत्र के पैरोकार अमेरिका के साम्यवादी देश चीन की जुबानी जंग हमेशा चलती रहती है। उत्तर कोरिया की सीमा के नजदीक, दक्षिण कोरिया-अमेरिका के संयुक्त सैन्य अभ्यास के समय भी उत्तर कोरिया का पक्ष लेते हुए चीन ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था। अभी हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के चीन दौरे से पहले चीनी नेताओं ने अमेरिका को उनके आंतरिक मामलों में दखल न देने की सीख दे डाली। वहीं भारत-चीन संबंधों पर भी अमेरिका का ज्यादा झुकाव भारत की तरफ रहा है। अमेरिका भारत को चीन के मुकाबले में एशिया में बड़ी ताकत के रूप में देखना चाहता है, जिससे एशिया में शक्ति का संतुलन बना रहे। कहते हैं दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। यह बात इसलिए भी कही जा रही है, क्योंकि दक्षिण एशिया में चीन, पाकिस्तान का बड़ा सहयोगी है। 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद दोनों देश और ज्यादा नजदीक आ गए। चीन ने पाकिस्तान को पीआरसी देश के दर्जा दिया है, जिसके तहत आर्थिक, सैन्य और तकनीक सहायता देगा। दोस्ती की खातिर कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन, पाकिस्तान का बचाव कर चुका है। साम्यवादी देश होने के नाते उत्तर कोरिया-चीन के संबंध बहुत ज्यादा प्रगाढ़ हैं। अमेरिका की निंदा करने की बात हो तो दोनों देश एक सुर में बोलने लगते हैं। वीटो पावर देश होने के नाते चीन कई बार उत्तर कोरिया के समर्थन में आवाज उठा चुका है, जबकि यह देश दुनिया में अलग-थलग पड़ा रहता है।

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