Monday, October 15, 2012
खुर्शीद के बहाने खुली एनजीओ की पोल
केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी लुईस खुर्शीद के गैरसरकारी संगठन यानि एनजीओ ‘डॉ. जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट’ पर आरोप सच हों या झूठ, लेकिन इस घटनाक्रम से देश में इन संगठनों की धींगामुश्ती की कलई जरूर खुली है। आश्चर्यजनक रूप से देश का एक मंत्रालय को अपना पूरा काम इन्हीं एनजीओ के जरिए कराता है। सामने दिखता है कि वह क्या चाहता होगा और कमाई के स्रोत बने इन संगठनों के जरिए क्या हो पाता होगा।
खुर्शीद पर आरोपों से देश की सियासत गर्म है। ट्रस्ट पुराना है और दावे किए जाते रहे हैं कि उसके स्तर से ढेरों कार्य किए गए हैं। यही नहीं, तमाम गणमान्य लोगों ने उसके कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है। ऐसे में जैसे ही आरोप लगे तो लोग हैरत में पड़ गए। वैसे भी यह मान पाना बेहद मुश्किल था कि देश के कानून मंत्री भी नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ा सकते हैं। खुर्शीद राजनीतिक तौर पर बेहद प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य हैं, उनके पिता खुर्शीद आलम खां कई बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहे और राज्यपाल जैसे पदों को भी सुशोभित किया। लुईस खुद भी अपना सियासी कद रखती हैं और चुनावी मैदान में हाथ आजमा चुकी हैं। मौजूदा घटनाक्रम से सबसे ज्यादा मुश्किल कांग्रेस को हो रही है। खुर्शीद पार्टी के बड़े नेता हैं और संकट की स्थिति में उसके अभियान की कमान सम्हाला करते हैं। अरविंद केजरीवाल इस मामले में फिलहाल सियासी नफे की स्थिति में नजर आ रहे हैं क्योंकि एक बड़े केंद्रीय मंत्री की घेराबंदी का उनका प्रयास कांग्रेस की चूलें हिलाने में सफल रहा है। तमाम तरह के राजनीतिक तूफानों में घिरी कांग्रेस को खुर्शीद पर भरोसा था पर वो भी अब शक के घेरे में आ गए हैं।
बहरहाल, सच जो भी है, वो सामने आना बाकी है लेकिन इससे देश में गैर सरकारी संगठनों की धींगामुश्ती की पोल खुली है। आर्थिक उदारीकरण की नीतियों ने गैर सरकारी संगठनों को तेजी से खड़ा और मजबूत किया है। कई मामलों में एनजीओ लगभग सरकार या उसकी एजेंसियों के बराबर हस्तक्षेप रखते हैं। सरकार ने भी अपनी नीतियों के जरिये अपरोक्ष रूप से एनजीओ को बढ़ावा दिया है। केंद्र और राज्य में चाहे भी जिस दल की सरकार रही हो, सभी ने एनजीओ को धीरे-धीरे विपक्ष के रूप में खड़ा किया है। पहले जो काम राजनीतिक दलों या उससे जुड़े जन संगठन किया करते थे, उदारीकरण की नीतियों के बाद उनकी जगह ये एनजीओ लेने लगे। यह सब-कुछ बिल्कुल सोची-समझी रणनीति के तहत धीरे-धीरे किया जा रहा है। पिछले वित्त वर्ष में आदिवासी मामलों के मंत्रालय का कुल बजट 2229 करोड़ रुपये का था। इससे पहले वर्ष 2009-2010 में यह बजट 1818 करोड़ और उससे पहले वर्ष 2008-2009 में करीब 2133 करोड़ रुपये का था। आदिवासियों के विकास के नाम पर खर्च होने वाला उन सब बजट से अलग है जो गृह मंत्रालय आदिवासी बहुल जिलों में वामपंथी उग्रवाद को खत्म करने के लिए खर्च करता है, या दूसरी अन्य योजनाओं के जरिये आदिवासियों पर खर्च हो रहे हैं। देश व राज्य के आदिवासी मामलों के मंत्रालय या सामाजिक अधिकारिता विभाग की वार्षिक रिपोर्टों पर नजर डालना रोचक होगा। यह इकलौते ऐसे मंत्रालय या विभाग होंगे जिनका अधिकांश काम गैर सरकारी संगठनों के जिम्मे होता है। मसलन आदिवासी मामलों के मंत्रालय की वर्ष 2010-11 की रिपोर्ट को लेते हैं। इसमें आदिवासियों के विकास से जुड़ी जितनी भी योजनाएं हैं वह बिना एनजीओ की भागीदारी के नहीं चल रहीं। कई सारी योजनाएं तो महज एनजीओ के भरोसे ही चल रही हैं। एनजीओ के प्रति आकर्षण का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मौजूदा समय में हमारे देश में सक्रिय सूचीबद्घ एनजीओ की संख्या एक रिपोर्ट के मुताबिक 33लाख के आसपास है। यानी हर 365 भारतीयों पर एक एनजीओ। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा एनजीओ हैं, करीब 4.8 लाख। इसके बाद दूसरे नंबर पर आंध्रप्रदेश है। यहां 4.6 लाख एनजीओ हैं। उत्तर प्रदेश में 4.3 लाख, केरल में 3.3 लाख, कर्नाटक में 1.9 लाख, गुजरात व पश्चिम बंगाल में 1.7-1.7 लाख, तमिलनाडु में 1.4 लाख, उड़ीसा में 1.3 लाख तथा राजस्थान में एक लाख एनजीओ सक्रिय हैं। इसी तरह अन्य राज्यों में भी बड़ी तादाद में गैर सरकारी संगठन काम कर रहे हैं। दुनिया भर में सबसे ज्यादा सक्रिय एनजीओ हमारे ही देश में हैं। धन की बात करें तो दान, सहयोग और विभिन्न फंडिंग एजेंसियों के जरिये एनजीओ क्षेत्र में अरबों रुपया आता है। अनुमान है कि हमारे देश में हर साल सारे एनजीओ मिल कर 40 हजार से लेकर 80 हजार करोड़ रुपये तक जुटा ही लेते हैं। सबसे ज्यादा पैसा सरकार देती है। ग्यारहवीं योजना में सामाजिक क्षेत्र के लिए 18 हजार करोड़ रुपये का बजट रखा गया था। दूसरा स्थान विदेशी दानदाताओं का है। सिर्फ सन् 2005 से 2008 के दौरान ही विदेशी दानदाताओं से यहां के गैर सरकारी संगठनों को 28876 करोड़ रुपये (करीब 6 अरब डॉलर) मिले। इसके अलावा कॉरपोरेट सेक्टर से भी सामाजिक दायित्व के तहत काफी धन गैर सरकारी संगठनों को प्राप्त होता है।
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