Sunday, June 29, 2014
नदियां जोड़ने में लाभ-हानि
आने वाले हैं बरसात के वो दिन, जब नदियां पानी से लबालब होंगी, सीमा संकुचित होने की वजह से तबाही मचाएंगी। और हम कुछ नहीं कर पाएंगे, मन मसोसकर रह जाएंगे। केंद्र सरकार चाहती है कि यह हालात पैदा न हों और इसके लिए वह नदी जोड़ो परियोजना पर जोर लगाने का मन बना रही है। बड़ी परियोजना है पर यह कामयाब रहेगी, इसमें संदेह है। इससे सालभर भरी रहने वाली नदियां खाली रह सकती हैं, राज्यों के बीच जल को लेकर विवाद बढ़ सकते हैं। परियोजना पूरी होने पर बिहार जैसे कुछ राज्यों को खूब फायदा होगा, यह लगभग तय है।
नदी जोड़ो परियोजना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का ड्रीम प्रोजेक्ट कही जाती है। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के सीएम थे तब उन्होंने इसे वहां लागू किया। गुजरात में नर्मदा और साबरमती नदियों को जोड़ने से न केवल सूखे खेतों को पानी मिला बल्कि गर्मी के दिनों में सूख जाने वाली साबरमती में सालभर पानी रहने लगा। पहले मानसून के दिनों में भी जब तक धरोई बांध नहीं भर जाता था साबरमती को पानी नहीं मिलता था। अब राजस्थान सीमा तक की सभी नदियों में पानी पहुंच रहा है। अहमदाबाद शहर को पीने का पानी मयस्सर है और जलाशय भी रीचार्ज हो रहे हैं। परियोजना समर्थक कहते हैं कि नदी का पानी बाढ़ के दिनों में बहकर सागर में चला जाए, इससे अच्छा तो उसे सही दिशा देकर लाभ उठाना है। गुजरात में जो नदियां जल के लिए तरसती थीं, आज लबालब रहती हैं। नर्मदा में बढ़ जाने पर अतिरिक्त पानी नहर के माध्यम से आगे ले जाकर अन्य नदियों में डालने का विकल्प है। बिहार में कोसी नदी तांडव मचाती है। हजारों लोग हर साल अपना आशियाना छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। बिहार में भी नदियां जुड़ी होतीं तो शायद कोसी की तबाही से बचा जा सकता था। गुजरात में खेती और किसानों को नदियों के जोड़ने का बहुत लाभ मिल रहा है। कुएं और ट्यूबवेल रीचार्ज होते हैं। उत्तर गुजरात का जिला बनासकांठा सूखा पीड़ित था मगर अब वहां भी खुशहाली का आलम है। नर्मदा परियोजना से मध्य और उत्तर गुजरात की 23 नदियों को लाभ हुआ है। दक्षिण गुजरात में प्रदेश के कुल पानी का 70 प्रतिशत हिस्सा है जबकि उत्तर गुजरात और सौराष्ट्र विस्तार, पंचमहल आदि क्षेत्र में 30 प्रतिशत। दक्षिण गुजरात की नदियां बारहमासी नदियां हैं जबकि दूसरे भागों की नदियां गर्मी में सूख जाती थीं। अब बारहमासी नदियों का पानी नहरों के जरिए सूखी नदियों में डाला जाता है। इससे क्षेत्र के तालाब भी भर जाते हैं। समर्थकों का मत है कि नदी जोड़ो अभियान पूरे देश के लिए अच्छा है और इसका जितना लाभ हम ले सकते हैं, उतना लेना चाहिए। इससे बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचा जा सकेगा और सूखी खेती को पानी दिया जा सकेगा। यह योजना खुशहाली लाने वाली योजना है।
हालांकि इसका विरोध भी कम नहीं। वह यह कहकर विरोध करते हैं कि नदियों को जोड़ना खेती, बिजली आपूर्ति तथा सूखे से बचने में मददगार नहीं हो सकता। नदियों की जैविक विविधता का अपना महत्व है। नदियां जीवित हैं, उनका एक जीवन होता है। नदी केवल पानी नहीं होती, उसका अपना एक जींस होता है, चरित्र होता है, प्रवाह होता है। उस प्रवाह में हर नदी के भू-सांस्कृतिक क्षेत्र की मिट्टी, तापक्रम, पंचतत्व शामिल रहते हैं जिससे उसका जीवन बढ़ता है। उसमें कोई दखल दिया जाता है तो नदी का चरित्र और जीवन बदल जाता है। ऐसे में नदियां खत्म होने लगती हैं, दूषित होने लगती हैं। जल पुरुष कहे जाने वाले पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह कहते हैं कि गंगा जब गोमुख से निकलती है तो वह उसका बाल्यकाल होता है, भैरों घाटी से नीचे आती है तो किशोरावस्था प्राप्त करती है, उत्तरकाशी पहुंचते हुए युवावस्था में उछल-कूद करती है। जो लोग नदियों के इस चरित्र के साथ आत्मसात नहीं होते, उसमें नहीं रमते, वे नदियों के जीवन को बिना समझे कह देते हैं कि नदी जोड़ से बाढ़ और सूखा मिट जाएगा। विरोधियों का कहना है कि नदियों को जोड़ने से किसी भी नदी का पानी दूसरी जगह नहीं पहुंच सकता। नदियों की ऊंचाई और नीचाई होती है। यह माना जाना गलत है कि कोसी नदी में बाढ़ का आना नदी जोड़ने से रुक सकता था। कोसी बांध का रखरखाव होता और समय पर निगरानी की जाती तो इस विपदा से बचा जा सकता था। इस बांध ने टूटकर लाखों लोगों को बेघर कर दिया। नदी जोड़ने का सीधा मतलब है भ्रष्टाचार और प्रदूषण को जोड़ना। वर्ष 1934 के बाद तटबंध टूटने से कोसी नदी जिस मार्ग से बही, वह मानवीय दखल का ही नतीजा था। नदी के प्रवाह को बदला गया है और जब नदी को अपने पुराने दिन याद आए तो नदी ने फिर वही अपना रास्ता ले लिया। इसकी वजह से बहाव क्षेत्र में बस गए लाखों लोग उजड़ गए। बहरहाल, समर्थकों की संख्या ज्यादा है और केंद्र सरकार के स्तर से हुए प्राथमिक अध्ययन के नतीजे भी सकारात्मक हैं। फिर भी तमाम प्रश्न हैं जिनका जवाब ढूंढा जाना चाहिये। सवाल यह हैं कि इस परियोजना से अशुद्ध नदियां प्रदूषण का नया समंदर तो नहीं पैदा कर देंगी? कितना प्रदूषण बढ़ेगा? नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में क्या बाधा आएंगी? प्रकृति से छेड़छाड़ के तर्कों का जवाब भी तलाशना होगा। जरा सी गलती हमें भयंकर विनाश की ओर ले जा सकती है।
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