Sunday, June 15, 2014

भारत की डीप ब्ल्यू नेवी

वाकई यह देश के लिए गौरवपूर्ण क्षण था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य को राष्ट्र को समर्पित किया। भारतीय नौसेना अब अत्याधुनिक साधनों से संपन्न हो रही है। पाकिस्तान को छोड़िए, अब वह चीन को चुनौती देने में सक्षम है। वह अब डीप ब्ल्यू नेवी यानी गहरे पानी की ताकत बनने जा रही है। तय है कि इससे चीन और पाकिस्तान के हलक सूख रहे हैं। लगभग 7516 किमी लंबी समुद्र तटीय सरहद की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रही भारतीय नौसेना के पास आईएनएस विक्रमादित्य का होना बड़ी बात है। करीब पांच हजार टन के जंगी विमान वाहक यानि क्राफ्ट कैरियर में तमाम विशेषताएं हैं। विक्रमादित्य की सतह फुटबाल के तीन ग्राउंड के बराबर है और यह 21 मंजिला पोत एक छोटे शहर के रूप में समुद्र की सतह पर दिखता है। 284 मीटर लम्बे युद्ध पोतक पर नौसेना के मिग-29 युद्ध पोत के साथ ही कोमोव 31 और कोमोव 28 पनडुब्बी रोधी युद्धक एवं समुद्री निगरानी हेलीकाप्टर तैनात हैं। मिग-29 की रेंज सात सौ नॉटिकल मील है और बीच में र्इंधन भरकर इसे 19 सौ नॉटिकल मील तक बढ़ाया जा सकता है। इस पर पोत रोधी मिसाइल के अलावा हवा से हवा में मार करने वाले मिसाइल एवं निर्देशित बम एवं रॉकेट तैनात हैं। ऐसे में पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन का सतर्क होना लाजिमी है। बेचैनी इसलिये भी है कि भारत इस समय छोटे-बड़े 47 युद्धपोत तैयार कर रहा है। उसे लग रहा है कि भारत की यह तैयारियां समुद्री किनारों की रक्षा करने वाली ताकत के बजाए अपनी नौसेना को डीप ब्ल्यू नेवी में बदलने के लिए हैं यानी ऐसी नौसेना जो समुद्र की ताकत हो और अपने किनारों से बहुत दूर जाकर बड़े आॅपरेशन को अंजाम दे सके। करीब दो साल पहले भारत के आॅयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) ने वियतनाम के साथ मिलकर उसके दक्षिणी हिस्से के समुद्र में तेल खोज अभियान शुरू किया था। चीन ने उस हिस्से को अपना बताकर तेल खोज रोकने की चेतावनी दे दी, लेकिन भारतीय नौसेना के ताकतवर बनने के बाद चीन को ऐसी हरकतों से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा। चीन अपनी बेचैनी छिपा भी नहीं रहा, उसके प्रमुख संगठन चाइना नेवल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने तो कहा भी है कि भारत का पहला स्वदेशी विमान वाहक पोत और भारतीय नौसेना की बढ़ती ताकत दक्षिण एशिया के सैन्य संतुलन को बिगाड़ देगी। भारतीय नौसेना के प्रति चीन की घबराहट इसलिये भी है कि इससे हिंद महासागर पर दबदबा कायम करने की उसकी रणनीति नाकाम हो सकती है। इस रणनीति के तहत वह भारत को समुद्र के रास्ते घेरने के लिए पड़ोसी देशों में बंदरगाह बनाने की योजना को मूर्तरूप देने में जुटा है। म्यांमार में सिट्वे पोर्ट, बांग्लादेश में चटगांव, श्रीलंका में हंबनटोटा, मालदीव में मराओ एटॉल बंदरगाह उसने विकसित किए हैं जबकि पिछले ही साल पाकिस्तान ने अपने ग्वादर पोर्ट का प्रबंधन चीन के हवाले किया है। भारत को घेरकर चीन ओमान और फारस की खाड़ी के बीच की जगह स्ट्रेट आॅफ हॉर्मज से होने वाले तेल व्यापार के मार्ग पर दबदबा कायम करना चाहता है। यही वह मार्ग है जहां से दुनिया का करीब 20 प्रतिशत तेल कारोबार होता है। ताकतवर नौसेना के जरिए चीन अगर इस रूट पर दबदबा कायम कर लेता है तो भारत के लिए ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना आसान नहीं होगा। भारतीय चुनौती के मद्देनजर चीन तेजी से दो विमान वाहक पोत बना रहा है। उसके पास स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी भी है। चीन की नौसेना 515 जंगी जहाज से लैस है। दूसरी तरफ भारतीय नौसेना भी कमर कस चुकी है। भारत ने भारत रूस से अकुला-2 श्रेणी की परमाणु पनडुब्बी प्राप्त कर ली है। रूस ने इसे दस साल की लीज पर भारत को सौंपा है। नौसेना अपने बेड़े में डीजल और बिजली से चलने वाली नयी पीढ़ी की पनडुब्बियां चाहती है। रक्षा मंत्रालय ने जुलाई, 2010 में 50 हजार करोड़ रुपये की इस परियोजना को सैद्धान्तिक सहमति दी थी लेकिन इसकी दिशा में प्रयासों पिछले साल दिसम्बर में तेज हुए हैं। नौसेना अपनी युद्धक क्षमता बढ़ाने के लिए पनडुब्बी निरोधक बम खरीदने की तैयारी कर रही है। इन्हें विमान से गहरे पानी में छिपी शत्रु की पनडुब्बियों पर गिराया जा सकता है। नौसेना ऐसे बम चाहती है जो भारतीय सागर क्षेत्र में एक हजार मीटर की गहराई तक पनडुब्बी डुबोने में समर्थ हों। रक्षा मंत्रालय ने ऐसे बमों के मूल निमार्ताओं के पास अनुरोध भेजा है। खुफिया सूचनाएं इकट्ठा करने के क्षेत्र में कमियों को दूर करने के लिए तारापुर में तटीय निगरानी नेटवर्क स्थापित किया जा रहा है, सभी समुद्री तटों पर राडार सेंसर लगाए जाने का काम भी अगले दो वर्ष में पूरा कर लिया जाएगा। इसके लिए केंद्र सरकार ने 50 करोड़ रुपये की योजना तैयार की है, जिसके तहत इन्हें 46 स्थानों पर लाइट हाउस में लगाया जाएगा। 36 मुख्य भूमि में, 6 लक्षद्वीप और चार अंडमान निकोबार द्वीप समूह में लगाए जाने का प्रस्ताव है। तटीय सुरक्षा योजना का पहला चरण पूरा पूर्ण हो चुका है। इसी साल मार्च में तटीय इलाकों की चौकसी के लिए 73 तटीय थाने, 97 चेक पोस्ट, 58 आउटपोस्ट और 30 आॅपरेशनल बैरक तैयार हो गई हैं। तटीय सुरक्षा के लिए नया निगरानी तंत्र विकसित किया गया है, जिससे समुद्री सीमा में घुसने वाले परिंदे पर भी नजर रख पाना संभव हो चुका है। नौसेना पुराने हो चुके चेतक हेलीकाप्टरों की जगह नये लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। मोदी ने जिस तरह चीनी सीमा पर निगरानी और सड़क तंत्र में गतिशीलता लाने के लिए त्वरित कदम उठाए हैं, उससे उम्मीद बंधी है कि सैन्य क्षेत्र के लिए भी नयी सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकारों से ज्यादा सक्रिय नजर आएगी।

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