Wednesday, March 12, 2014
पचनदा: जल संकट का निदान, बोनस में टूरिज्म स्पॉट
गर्मियां दस्तक दे रही हैं, इसी के साथ जबर्दस्त जल संकट शुरू होने वाला है। यमुना के पानी की मारामारी मचेगी, गंगा जल मंगाने के लिए हल्ला होगा लेकिन समस्या के स्थाई समाधान की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा। आसान उपाय है, अगर इटावा जिले के दक्षिणी भाग में स्थित पांच नदियों के संगमस्थल पचनदा पर बांध निर्माण करा दिया जाए तो आगरा समेत कई जिलों की पीने के पानी की कमी को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। इसी के साथ एक शानदार पर्यटन स्थल के विकसित होने का बोनस भी मिलेगा।
यमुना पचनदा की प्रमुख सदाबहार नदी है। चम्बल, पार्वती, किबाड़, क्वारी, पहुज आदि कुछ अन्य नदियां पचनदा पर यमुना में विलय होती हैं। अत: पचनदा पर यमुना नदी में पूरे साल भरपूर पानी रहता है बल्कि यह पानी अन्य नदियों की तुलना में स्वच्छ और शुद्ध भी है। पचनदा इटावा के चकरनगर क्षेत्र में है। यहां प्राचीन ऐतिहासिक महाकालेश्वर बाबा का मंदिर बना हुआ है। यहां 317 ई. से कार्तिक पूर्णिमा पर मेला लगता है। लगभग 50 वर्ष पूर्व सिंचाई विभाग ने सर्वेक्षण कराकर पचनदा पर बांध निर्माण कराने की परियोजना रिपोर्ट उत्तर प्रदेश शासन को प्रस्तुत की थी लेकिन यह फाइलों में गुम हो गई। पचनदा के महत्व की अज्ञानता के कारण भी सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के लिए इटावा का खास महत्व है, खुद सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव इसी जिले के निवासी हैं। ऐसे में यह उपेक्षा ज्यादा सालती है। आश्चर्य होता है कि उनका ध्यान पचनदा की निरर्थक बहती अथाह जलराशि की ओर क्यों नहीं गया। नदियों का पानी भी धनराशि होता है। अत: पचनदा पर बांध निर्माण की संभावनाओं का नये सिरे से सर्वेक्षण कराकर पता लगाना चाहिए। पचनदा का महत्व इलाहाबाद के संगम से किसी प्रकार कम नहीं है। पचनदा में यमुना नदी पर बांध बनने से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा पूर्वी राजस्थान के कई जिले लाभान्वित होंगे। इसलिये यहां तीनों राज्य सरकारों द्वारा विश्व बैंक की सहायता से संयुक्त रूप से बैराज का निर्माण कराने पर विचार किया जा सकता है। यमुना का संगम स्थल पचनदा पर्यटन की दृष्टि से रमणीक स्थल है। इसका अनुमान और भव्यता की कल्पना इसी तथ्य से की जा सकती है कि दस्यु उन्मूलन समस्या पर बहुचर्चित फिल्म मुझे जीने दो का एक पूरा गीत नदी नारे न जाओ श्याम पैंय्या पड़Þूं को पचनदा में ही फिल्माया गया था। पचनदा पर ही यमुना-चम्बल विलय क्षेत्रों में डाल्फिन मछली के अलावा तमाम किस्म के जलजीव बहुतायत में पाये जाते हैं। मध्य प्रदेश का मगरमच्छ अभ्यारण भी अटेर से पचनदा तक विद्यमान है।
यमुना-चंबल नदियों का जल संग्रहण क्षेत्र आगरा यानि उत्तर प्रदेश के दक्षिणी-पूर्वी प्रवेश द्वार पर स्थित है। पश्चिम में राजस्थान और दक्षिण में मध्य प्रदेश की सीमाओं से जुड़ा है। आगरा जिले के पश्चिम में मथुरा, उत्तर में हाथरस, अलीगढ़ और पूरब में फीरोजाबाद, मैनपुरी-इटावा जनपद स्थित है। यह सभी जिले यमुना नदी के जल संग्रहण क्षेत्र में फैले हुए हैं। इसके अतिरिक्त उतरी मध्य प्रदेश का चंबल संभाग था पूर्वी राजस्थान की जल निकासी चंबल तथा उसकी सहायक नदियों के जरिए यमुना में होती है। उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भाग, विशेष रूप से आगरा जिले, में चंबल और यमुना नदियां बाह तहसील क्षेत्र में एक-दूसरे के समानान्तर बहते हुए उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान की सीमा निर्धारित करती हैं और इटावा के पचनदा में एक-दूसरे में विलय हो जाती हैं। यमुना नदी आगरा जिले की प्रमुख सदाबहार नदी है। यमुनोत्री ग्लेशियर से निसृत होकर पहाड़ों तथा मैदानों से गुजरती हुई यह कीठम के पास आगरा जनपद में प्रवेश करती है। चम्बल आगरा जिले की दूसरी और सदाबहार प्रमुख नदी है। चंबल मध्य प्रदेश के उज्जैन-मऊ नगरों के बीच विंध्य-पर्वतमाला के उत्तरी ढलानों से निसृत होकर मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में लंबे और विस्तृत जलग्रहण क्षेत्र में बहती हुई तासौड़ गांव के समीप आगरा जनपद में प्रवेश करती है। चम्बल नदी यमुना नदी के समानान्तर बहती हुई मध्य प्रदेश के मुरैना और भिंड जिलों को अलग करते हुए राज्यों की सीमा निर्धारित करती है और बाह तहसील के अंतिम छोर पर अटेर से आगे पचनदा पर यमुना में विलीन हो जाती है।
राजस्थान में कोटा के समीप चम्बल नदी पर गांधी सागर बांध के निर्माण से नदी के निचले भाग में पानी की मात्रा बहुत कम हो गई है। शक्तिशाली पम्पों से चम्बल का पानी पाइप लाइन से धौलपुर नगर तक पहुंचाया जाता है। इस कारण उत्तर प्रदेश में पिनाहट की चंबल डाल सिंचाई परियोजना के लिए समुचित पानी नहीं मिलता। राजस्थान निर्धारित मात्रा से अधिक पानी खींच लेता है। नदी में यहां पानी की मात्रा कम होने के कारण बड़ी जल विद्युत अथवा सिंचाई योजना स्थापित नहीं की जा सकी है परन्तु पचनदा पर वर्ष भर काफी पानी उपलब्ध रहने की वजह से बांध बनाने की परिस्थितियां अनुकूल हैं। आगरा की तीसरी प्रमुख नदी उटंगन, जिसे बांण गांगा भी कहते हैं, का दगम स्थल राजस्थान के जिले सवाई माधौपुर के कसौली गांव के समीप है। उटंगन किरावली तहसील के जारौली गांव से उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश करती है और चम्बल की भांति यमुना की प्रमुख सहायक दी है। उत्तर में खारी और दक्षिण में क्वारी नदी उटंगन की प्रमुख शाखाएं हैं। ये सभी नदियां प्राय: बरसाती हैं। मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में पूर्वी राजस्थान से निकलकर बहने वाली पहुज तथा आसन भी चम्बल में विलीन हो जाती हैं। इन सभी नदियों का जल ग्रहण क्षेत्र काफी विस्तृत है परन्तु इनका जल निरर्थक बह रहा है। गोकुल बैराज के बाद डाउन स्ट्रीम में यमुना नदी पर कोई बांध नहीं है। पंचनदा के नदियों के संगम स्थल पर यदि बांध का निर्माण कराया जाता है तो डूब में आने वाली भूमि के अधिग्रहण की भी कोई समस्या नहीं होगी क्योंकि यमुना चम्बल और उटंगन नदियों का जल ग्रहण क्षेत्र अनुपजाऊ दुर्गम बीहड़ क्षेत्र है। नदियों का जल स्तर ऊंचा उठने से बीहड़ उन्मूलन की क्रिया स्वत: शुरू हो जाएगी। विशाल क्षेत्र में भूगर्भ जलस्तर खुद-ब-खुद ऊंचा उठने लगेगा। भूमिगत जलस्तर बढ़ने से उजाड़-बियाबान बीहड़ों में हरियाली भी बढ़ जायेगी। पंचनदा पर संभावित बांध से थोड़ी बहुत जल विद्युत उत्पादन की संभवना है। यह परियोजना बहुउद्देश्यीय था महत्वाकांक्षी सिद्ध होगी। मध्य प्रदेश सरकार ने चम्बल संभाग की सभी छोटी-बड़ी नदियों को जोड़ने का काम पूरा कर लिया है। राजस्थान के पूरबी भाग की नदियों पर बांध निमार्णों और उन्हें नहरों से परस्पर जोड़ने का कार्य दो सौ वर्ष पूर्व ही पूरा कर लिया गया था। पूरबी राजस्थान की जल और बाढ़ नियंत्रण प्रणाली को भरतपुर इरीगेशन सिस्टम के नाम से जाना जाता है जिसे चीन ने भी अपनाया है। पंचनदा की अपस्ट्रीम में मगरमच्छ पालन की योजना क्रियान्वित हो चुकी है। उत्तर प्रदेश सरकार को भी इस दिशा में गंभीरता से सोचना चाहिये।
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