Sunday, March 30, 2014
लचर तंत्र के देश का कालाधन
विदेशों में जमा भारतीयों का कालाधन फिर चर्चा में है। दस साल तक केंद्रीय सत्ता पर आसीन रही कांग्रेस भी कुछ यूं उपक्रम दिखा रही है जैसे वह इस मामले में काफी गंभीर है। वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने स्विट्जरलैंड के वित्तमंत्री को पत्र लिखकर भारतीय नागरिकों के वहां के बैंकों में रखे कथित कालेधन के बारे में सूचना न देने पर चिंता जताई है। घोषणापत्र में विशेष दूत नियुक्त करने का वादा भी किया है। हालांकि सरकार और कांग्रेस की यह सक्रियता चुनावी वजहों से है, क्योंकि भाजपा के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी लगातार कालेधन का मामला उठा रहे हैं। आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल तो दो उद्योगपतियों के नाम और स्विस बैंक में उनके एकाउंट नंबर सार्वजनिक भी कर रहे हैं। योग गुरू रामदेव ने भी देशभर में घूम-घूमकर कालाधन जमा करने वाले वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का नाम खोलने की बात कही है।
केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार का यह दूसरा कार्यकाल है। इन दोनों कार्यकालों में हल्ला तो खूब मचा लेकिन कालेधन पर पहल कोई नहीं हुई। यह स्थितियां तब हैं जबकि भारत और स्विट्जरलैंड के बीच नया कर समझौता भी हो चुका है। इसमें एक- दूसरे से सूचनाओं को साझा करने का प्रावधान है। लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हुई, भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा बनाने का ऐलान किया तो वित्तमंत्री ने पिछले अक्टूबर में स्विट्जरलैंड के वित्तमंत्री इवेलिन विदमर स्कूम्फ से मुलाकात की। मार्च में उन्होंने इलेविन को पत्र तब भेजा जब मोदी ने इसे प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि यह एक राष्ट्र-विरोधी गतिविधि है। कालेधन को वापस लाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए। दिल्ली में सरकार बनने पर हम एक कार्यबल बनाएंगे और कानूनों में संशोधन करेंगे। चिदम्बरम ने लिखा, बैंकों में गोपनीयता का दौर खत्म हो चुका है। अगर स्विट्जरलैंड इसके आधार पर सूचना नहीं देना चाहता है तो इसका मतलब है कि वह आधुनिक समय के साथ नहीं चल रहा और इस दौर में भी बैंकिंग सूचनाएं छिपाने में विश्वास करता है। उन्होंने स्विस सरकार से 562 बैंक खातों से जुड़ी सूचनाएं मांगी थीं। सीबीआई के अनुसार भारत का 24.5 लाख करोड़ रुपया विदेशी बैंकों में जमा है। यह भारतीय कालाधन अन्य देशों के मुकाबले काफी ज्यादा है। जांच एजेंसी का आंकलन है कि टैक्स बचाने या कालेधन को सफेद धन में बदलने के लिए धनी लोग मॉरीशस, स्विट्जरलैंड, ब्रिटिश वर्जिन द्वीप आदि के बैंकों में अपना धन जमा कर देते हैं। इन देशों के बैंकिंग नियमों की वजह से कालेधन को रोकने और उस पर कानूनी शिकंजा कसने में काफी समय निकल जाता है और तब तक जमाकर्ता उस देश के कानून से संरक्षण हासिल कर लेते हैं। कालेधन के खिलाफ सक्रिय संगठन टैक्स जस्टिस नेटवर्क का कहना है कि दुनियाभर के धनी लोगों के इस समय लगभग 15 लाख करोड़ डॉलर इन टैक्स हेवंस में जमा हैं। सन 1980 में प्रारंभ हुए आर्थिक उदारीकरण के दौर में इन देशों की बैंकों में जमा धन तीन गुना से अधिक बढ़ गया है। इस तंत्र का लाभ उठाकर यह धनी व्यक्ति और संस्थान हर वर्ष करीब 250 अरब डॉलर टैक्स बचाते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के स्तर से घोषित विश्व सहस्राब्दी लक्ष्य प्राप्त करने के लिए जरूरी धनराशि से कहीं अधिक है। इसका नकारात्मक प्रभाव और भी है।
विश्व स्तर पर वित्तीय संकट खड़ा करने में इन 'टैक्स हेवनों' की बड़ी भूमिका रही है। यह विश्व अर्थव्यवस्था में अपराध, मुनाफाखोरी और जालसाजी को बढ़ावा देने वाली एक समानांतर व्यवस्था है। निश्चित रूप से यह पैसा भ्रष्टाचार से कमाया हुआ है और ऐसे धन के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र ने संकल्प पारित किया है जिसका उद्देश्य गैरकानूनी तरीके से विदेशों में जमा धन वापस लाना है। इस संकल्प पर भारत सहित 140 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं और 126 देशों ने इसे लागू कर काले धन की वापसी की कार्रवाई भी शुरू कर दी है। और... हमारे यहां विदेशी बैंकों में जमा कालेधन को वापस लाने के लिए कोई ठोस कानून तक नहीं है इसलिए इस दिशा में ठोस कानून बनाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही कालेधन के मुद्दे पर राष्ट्रीय आम सहमति बनाने की जरूरत भी है। कालेधन की वापसी से भारतीय अर्थव्यवस्था का कायापलट हो सकता है। अगर ये काला धन देश की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ दिया जाए तो स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी, बिजली आदि बुनियादी आवश्यकताओं को सहज ही पूरा किया जा सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत जैसे देश के आर्थिक हालात ऐसे कतई नहीं कि वह इस प्रकार के नकारात्मक आर्थिक वातावरण का सामना कर सके। निश्चित रूप से देश की भावी सरकार को पूरी गंभीरता से काम करना चाहिए ताकि विदेशों में जमा काला धन यथाशीघ्र देश में वापस आ सके। साथ ही, ऐसे गैरकानूनी कामों में लिप्त लोगों को सजा भी दी जानी चाहिए। इनके नाम भी यथाशीघ्र उजागर किए जाने चाहिए ताकि देश की जनता यह समझ सके कि नेता, अभिनेता, अधिकारी, धर्मगुरु, व्यापारी या समाजसेवी के रूप में दिखने वाला यह व्यक्ति वास्तव में वह नहीं है जो दिखाई दे रहा है बल्कि साधु के भेष में शैतान और देश का सबसे बड़ा दुश्मन है।
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