Saturday, December 28, 2013

यमुना तट पर केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल ने आखिरकार दिल्ली की कमान संभाल ही ली। कठिन चुनौतियां हैं और वह बार-बार कह रहे हैं कि इनसे निपटने में खरा सिद्ध होंगे। अहम मोर्चा है राजधानी के हर घर में प्रतिदिन सात सौ लीटर पानी की आपूर्ति का। बिजली की कीमतें घटाने के मामले में वह चाहें कुछ कर दिखाएं भी, लेकिन पानी का मामला बेहद मुश्किल है। जिस यमुना से उनकी दिल्ली की पानी मिलता है, पहली बात तो साल के ज्यादातर महीनों में उसमें पानी की कमी रहती है और दूसरा, हरियाणा सामने खड़ा है। कांग्रेस शासित हरियाणा आसानी से मान जाएगा, यह कतई संभव नहीं। केजरीवाल ने बड़े वादे किए थे। शक है कि उन्हें दिल्ली फतह का यकीन था। लेकिन मतदाताओं ने उन पर भरोसा जता दिया। पानी दिल्ली ही नहीं, उत्तर प्रदेश का भी बड़ा दर्द है। वर्ष 1995 में पांच राज्यों हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश औऱ हरियाणा के बीच यमुना जल पर समझौता हुआ था, पर यह अक्सर विवादों का विषय बनता है।हरियाणा से गुजरने के बाद यमुना दिल्ली पहुंचती है तो वह उसे काफी प्रदूषित कर देती है। उत्तर प्रदेश, खासकर ब्रज, में यमुना जल बड़ा मुद्दा है। यमुना आस्था से भी जुड़ी नदी है, भगवान कृष्ण की वजह से उसे आस्था का यह दर्जा हासिल हुआ है। हर साल ब्रज में करीब आठ करोड़ श्रद्धालु आते हैं, लेकिन जब ये लोग यमुना में गिरते नालों को देखते हैं तो उनकी भावनाएं आहत होती हैं। यही कारण है कि यमुना के किनारे भूमिगत जल भी प्रदूषित हो चुका है। आसपास के क्षेत्र में गंभीर बीमारियां फैल रही हैं। आगरा-मथुरा समेत पूरा ब्रज यमुना शुद्धिकरण के लिए आंदोलनरत रहा है। संतों ने तो यमुना मुक्ति यात्रा तक आयोजित की है। ऐसे में आम आदमी पार्टी के नायक का रास्ता खासा कठिन हो जाता है कि वह दिल्ली को अपने वादे के मुताबिक पानी दे पाएंगे। केजरीवाल एक तरफ तो दिल्ली के निकटवर्ती हरियाणा में पैर पसारने की योजना बना रहे हैं, दूसरी तरफ, इसी हरियाणा के विरुद्ध उनका मोर्चा खुलने जा रहा है। वह कैसे मानकर चल रहे हैं कि कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा उन्हें पानी देने के लिए तैयार हो जाएंगे जबकि कृषि प्रधान हरियाणा के तमाम इलाकों के खेतों में सिंचाई और जलापूर्ति यमुना पर ही आश्रित है। आंकड़ों पर जाएं तो दिल्ली की जलापूर्ति हरियाणा और उत्तर प्रदेश पर निर्भर है। दिल्ली जल बोर्ड वहां प्रतिदिन करीब 835 एमजीडी पानी की सप्लाई करता है जिसका करीब 50 प्रतिशत भाग हरियाणा से मिलता है और करीब 25 फीसदी हिस्सा गंग नहर से। उत्तर प्रदेश जहां पानी को प्रदूषित करने के लिए दिल्ली से दो-दो हाथ करने के लिए मजबूर है, वहीं हरियाणा से उसकी लड़ाई पानी की समुचित आपूर्ति को लेकर है। हरियाणा और दिल्ली के बीच भी यही विवाद है और गर्मियों में अक्सर केंद्र सरकार को दखल देने के लिए मजबूर होना पड़ता है। बदली स्थितियों में सवाल यह है कि केंद्र सरकार क्यों कांग्रेस शासित हरियाणा से पानी छोड़ने के लिए कहेगी जबकि पानी न मिलने पर आम आदमी पार्टी से जनता के मोहभंग का लाभ उसे मिल सकता है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार भी अपनी जनता का हक काटकर दिल्ली का गला तर करने को तैयार नहीं होगी, क्योंकि वह भी राजनीतिक रूप से आम आदमी पार्टी के बिल्कुल करीब नहीं है। उत्तर प्रदेश तो खुलकर यमुना मुक्ति आंदोलन के साथ है। यमुना रक्षक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष संत जयकृष्ण दास के नेतृत्व में संचालित आंदोलन के कार्यकर्ताओं के समक्ष प्रदेश के सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव खुलकर कह चुके हैं कि यमुना की गंदगी के लिए दिल्ली जिम्मेदार है और हरियाणा ने उसे हथिनीकुंड में रोक दिया है। सरकार की ओर से मंत्री ने हरियाणा सरकार से बात की है, आंदोलनकारी भी हुड्डा के संपर्क में हैं। अखिलेश सरकार की योजना यमुना के समानांतर नाले के निर्माण की है, साथ ही यमुना के समानांतर पाइप लाइन डालकर गंदे पानी का शोधन कर इसे कृषि और अन्य उपयोग में लाने का उसका मन है। इन परिस्थितियों में अरविंद का मोर्चा और कठिन हो जाता है। दुःख की बात यह है कि सारी मारामारी यमुना के उस जल के लिए है, जिसके जहरीला होने की हद तक प्रदूषित होने के कारण दिल्ली जल बोर्ड साल में कई बार शोधन कार्य रोक देता है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय भी स्वीकार करता है कि हालात बहुत खराब हैं। राष्ट्रीय गंगा घाटी प्राधिकरण ने 764 ऐसी औद्योगिक इकाइयों को चिह्नित किया, जिनसे नदियों में सबसे अधिक प्रदूषण फैलता है। कुछ के विरुद्ध कार्रवाई भी हुई लेकिन पूरा तंत्र भूल गया कि प्रदूषण बढ़ाने में ऐसे बहुत सारे छोटे कल-कारखाने जिम्मेदार हैं, जो अपंजीकृत हैं और ऐसी इकाइयां दिल्ली में सर्वाधिक हैं। इसके अलावा मौजूदा जलमल शोधन संयंत्रों की क्षमता पर भी शुरू से सवाल उठते रहे हैं। आश्चर्य की बात यह भी है कि आदर्शों की राजनीति का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल ने इतना बड़ा वादा करने से पहले जमीनी हकीकत का आंकलन क्यों नहीं किया। इसके बजाए, वह यमुना शुद्धिकरण और उसके बाद बढ़ी जल की मात्रा से दिल्ली को ज्यादा पानी देने का वादा करते तो ज्यादा अच्छा रहता। तब बदलाव की उम्मीद करने वाली उत्तर प्रदेश और हरियाणा की जनता भी उनके साथ आ पाती।

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