Saturday, December 7, 2013
नेल्सन मंडेला और मलाला...
नेल्सन मंडेला नहीं रहे और मलाला यूसुफजई को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार पुरस्कार मिला है। एक साथ ये दोनों जिक्र आश्चर्य पैदा करते हैं लेकिन दोनों का सम्बन्ध है और वो भी गहरा। दक्षिण अफ्रीका के गांधी नेल्सन मंडेला और पाकिस्तानी वीरबाला मलाला यूसुफजई एक ही विचारधारा की दो अलग-अलग पीढ़ियों का नेतृत्व करते हैं। मंडेला उन दिनों और देश में रौशनी बनकर उभरे जहां एक बड़ी आबादी का पर्याय अंधेरा था और मलाला उस पाकिस्तान की हैं जहां महिला अधिकार बेमानी हैं। महिलाएं पर्दे के भीतर हैं और उनकी आवाज दबाने के हरचंद कोशिश होती रहती है। बाकी दुनिया की तरह उन्हें तमाम तरह की आजादियां मयस्सर नहीं। समानताएं और भी हैं। नेल्सन ही मलाला के आदर्श पुरुष हैं और दोनों को इस पुरस्कार के काबिल समझा गया है।
नेल्सन युग पुरुष हैं। वह स्वतंत्रता, प्रेम, समानता और ऐसे मूल्यों के प्रतीक हैं जिनकी हमें हमेशा, हर जगह जरूरत होती है। उनका लंबा संघर्ष मानवता का उदाहरण है। वह जब बड़े हुए, तब उनका देश काले-गोरों के बीच खाई में कहीं खोया हुआ था। वहां काले यानि अश्वेत सिर्फ मरने के लिए पैदा हुआ करते थे लेकिन मंडेला सबसे अलग थे। उन्होंने महज 10 साल की उम्र में लड़ने का फैसला किया। अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के झण्डे तले ऐसा अभियान छेड़ा कि श्वेत सरकार मुश्किल में आ गई। वह 27 साल जेल में रहे, उगता हुआ सूरज नहीं देखा। यह उनका आत्मबल ही था कि डटे रहे और अफ्रीका की गोरी सरकार को उनके सामने झुक जाना पड़ा। मलाला की कहानी भी कुछ इसी तरह की है। वह पाकिस्तान में स्वात घाटी के मिंगोरा शहर में पैदा हुर्इं। मिंगोरा पर तालिबान का कब्जा था। महज 11 साल की उम्र में ही मलाला ने डायरी लिखनी शुरू कर दी थी। वर्ष 2009 में छद्म नाम गुल मकई के तहत बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखकर मलाला पहली बार दुनिया की नजर में आ गर्इं। डायरी में उन्होंने स्वात में तालिबान के कुकृत्यों का वर्णन किया और अपने दर्द को बयां किया। लिखा, आज स्कूल का आखिरी दिन था इसलिए हमने मैदान पर कुछ ज्यादा देर खेलने का फैसला किया। मेरा मानना है कि एक दिन स्कूल खुलेगा लेकिन जाते समय मैंने स्कूल की इमारत को इस तरह देखा, जैसे मैं यहां फिर कभी नहीं आऊंगी। मलाला ने ब्लॉग और मीडिया में तालिबान की ज्यादतियों के बारे में लिखना शुरू किया तो धमकियों का अंबार लग गया। महिलाओं पर स्कूल में पढ़ने से लेकर कई पाबंदियां थीं। मलाला भी इसकी शिकार हुई। डायरी लोकप्रिय हो रही थी और उधर, लोगों में जागरूकता बढ़ रही थी। नतीजतन, तालिबान के विरुद्ध एक हवा बन गई। मात्र 14 साल की मलाला पर आतंकवादियों ने हमला किया। वह बुरी तरह घायल हुर्इं और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बन गर्इं। महज 16 वर्षीय मलाला का कद आज बड़े-बड़ों से बड़ा है। उन्हें इस प्रतिष्ठित सम्मान से पहले पाकिस्तान का राष्ट्रीय युवा शांति पुरस्कार, वैचारिक स्वतंत्रता के लिए यूरो संसद का सखारोव अवार्ड, अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार और मैक्सिको के समानता पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। मलाला एक दिन पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं। एक राजनीतिज्ञ के तौर पर मलाला पाकिस्तान के ज्यादा काम आ सकती है।
पाकिस्तानी में कट्टरपंथियों की सोच का केंद्रीय तत्व बदतर किस्म का लैंगिक शोषण है, वह चाहते हैं कि देश जाहीलिया यानि पूर्वाग्रह और अज्ञानता के दिनों की ओर चला जाए। इस्लाम के सही मायने उन्हें शायद नहीं पता या फिर उनकी अनदेखी का मकसद सुर्खियां पाना है। जहां इस्लाम ने शिशु कन्या की हत्या सरीखी तमाम कुरीतियों को प्रतिबंधित करके अरब महिलाओं का दिल जीता था, वहीं पाकिस्तानी तालिबान और उसके समर्थक उस धर्म को शर्मसार करते हैं, जिसके वे अनुयायी हैं। मलाला उन सियासतदां का अच्छा विकल्प हैं जो शरीर ही नहीं, दिमाग से भी बूढ़े हो चुके हैं। सत्तर साल के परवेज मुशर्रफ की कट्टरता परस्त सोच का वह विकासवादी जवाब हैं। दोगली नीतियों से अपने मुल्क का बुरा करने वाले नवाज शरीफ से ज्यादा समझदार हैं मलाला। लेखिका और पूर्व पीएम बेनजीर भुट्टो की भतीजी फातिमा भुट्टो भी उनकी पैरोकार हैं जो निडर और बुलंद आवाज के लिए जगप्रसिद्ध हैं। वह कहने से नहीं हिचकतीं कि निडर और साफ सोच वाली आवाजें पिछड़े इलाकों से उठनी चाहिए न कि उच्चवर्गीय शहरियों के बीच से। शहरों से उठने वाली आवाजें कुछ निश्चित पृष्ठभूमि और अंग्रेजीदां तबके से आती हैं। इसका कारण यह है कि वे अंतर्राष्ट्रीय स्कूलों में गई होती हैं। पाकिस्तानियों को और ज्यादा मुखर स्वर की जरूरत है। ऐसी ही आवाज भारत, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे तमाम उन देशों से भी आनी चाहिये जहां किसी न किसी तरह की अनियमितताएं या शोषण है। भ्रष्टाचार का दानव पैर पसार रहा है। मलाला यूसुफजई उस विशाल युवा वर्ग की नुमाइंदगी करती हैं जो राजनीति में स्वच्छता चाहता है और नेल्सन मंडेला की तरह वह अन्याय बर्दाश्त करने का इच्छुक नहीं। उसे विकास की आस है, वह भ्रष्टाचार जैसे घुन का समूल नाश चाहता है। भारत जैसे युवाओं के देश का युवा भी बाकी दुनिया से अलहदा नहीं।
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