Saturday, December 14, 2013
सियासत और सोशल मीडिया
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में इस बार एक और मंच भी था, जहां भाषण देते नेता नहीं थे और न ही किसी पार्टी के स्तर से घोषणापत्र जारी किए जा रहे थे, वहां आम लोग ही थे और हर मुद्दे पर उनकी बेबाक राय थी। प्रत्याशियों के गुणों का मूल्यांकन था और कमियां भी खूब इंगित की जा रही थीं। सोशल मीडिया के इस मंच का असर जमकर दिखाई दिया। चारों राज्यों में जबर्दस्त मतदान के लिए भी इस मंच की प्रेरणा का अहम रोल है। सियासी पार्टी सकते में हैं, प्रचार के परंपरागत तरीकों से हटकर उन्हें, मीडिया के इस नए रूप के लिए भी रणनीति बनानी पड़ी है। असर कितना व्यापक है कि, चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव में प्रत्येक प्रत्याशी के लिए सोशल मीडिया पर उसकी सक्रियता की हर जानकारी मांगने जा रहा है।
राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में हुए विधानसभा चुनावों की एक अहम उपलब्धि है आम आदमी पार्टी का उदय। प्रचार अभियान के परंपरागत तरीकों से हटकर इंटरनेट की दुनिया के जबर्दस्त प्रयोग की बदौलत उसे यह उपलब्धि हासिल हुई है। आज की तारीख में शहरी मध्य वर्ग और उसमें भी युवाओं तक पहुंचने का इंटरनेट सबसे मजबूत माध्यम है। केजरीवाल की पार्टी ने सबसे पहले यह भांप लिया और पहली बार इंटरनेट के संगठित उपयोग की शुरुआत की। यही वो पहली पार्टी है जिसने अपनी एंड्रायड एप्लीकेशन बनवाई। फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के दो प्रमुख मंचों और वीडियो शेयरिंग साइट यूट्यूब का जमकर प्रयोग किया। भाजपा भी पीछे नहीं थी। सब-कुछ इतने बेहतर तरीके से संचालित किया गया कि प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की हर सभा आनलाइन थी। फेसबुक और ट्विटर पर लिंक शेयर हो रहे थे। दोनों दलों के चुनाव प्रबंधक समझ गए थे कि चुनावी सभाओं में भाग लेने वाले ही लोग वोटर नहीं हैं, बल्कि वो भी हैं जो विभिन्न कारणों से इंटरनेट के जरिए देश के सियासी घटनाक्रमों से जुड़े रहते हैं। सूचनाएं लगातार अपडेट हो रही थीं, यह तत्परता ही है कि मतदान होने से पहले ही चुनाव नतीजों का आंकलन भी कर लिया गया, जैसे दिल्ली में मतदान से एक दिन पूर्व फेसबुक और ट्विटर पर जो ट्रेंड था, उसमें आम आदमी पार्टी को बढ़त हासिल थी। मतदान से एक दिन पहले ट्विटर पर केजरीवाल को सात लाख लोग फॉलो कर रहे थे। फेसबुक पर केजरीवाल प्रशंसकों की संख्या 10 लाख से ज्यादा थी जबकि भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार डॉ. हर्षवर्धन को ट्विटर पर महज 17 हजार लोगों ने फॉलो किया था। भाजपा देर से सक्रिय हुई, मतदान से तीन दिन पहले प्रारंभ हर्षवर्धन के फेसबुक पेज को 65 हजार लोगों ने तीन दिन में लाइक किया। लेकिन शीला दीक्षित को लेकर आकलन गलत रहा, वह लाइक के मामले में हर्षवर्धन से आगे थीं, उनके अधिकृत पेज को सवा लाख लाइक मिले थे। चुनावी मामलों में हर कदम फूंक-फूंककर रखने वालीं राजनीतिक पार्टियां यदि गंभीर हैं तो आंकड़ों के मामले में भी इंटरनेट की ताकत एक वजह है। इन्हीं आंकड़ों की बात करें तो टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी आॅफ इंडिया (ट्राई) के मुताबिक, पिछले वित्तीय वर्ष 2012-13 के अंतिम दिन देश में इंटरनेट प्रयोग करने वालों की संख्या 17 करोड़ 40 लाख थी, चुनाव आयोग जैसी प्रमुख इकाई ने जिसमें नौ करोड़ लोगों को वोटर माना है। इंटरनेट उपयोग करने वाले तीन-चौथाई लोग 35 साल से कम उम्र के हैं।
चुनाव आयोग भी मान रहा है कि मतदान प्रतिशत बढ़ने के पीछे इंटरनेट की मुख्य भूमिका रही है। आयोग की साइट पर मतदाता पंजीकरण के लिए पहुंचने वालों में करीब 70 फीसदी लोग युवा हैं और 35 वर्ष से कम आयु के हैं। यह पहला मौका है, जब देश की उस पढ़ी-लिखी विशाल युवा आबादी ने वोटर के रूप में अपना नाम दर्ज कराया है, जो सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हो सकती है। चुनाव सर्वेक्षण संचालित करने वाली कंपनी सी-वोटर का अनुमान बताता है कि इंटरनेट प्रयोग करने वाले नौ करोड़ से ज्यादा लोगों का तीन से चार फीसदी भाग आगामी आम चुनावों को प्रभावित करने की हैसियत में है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई के साथ ही बंगलुरू, चण्डीगढ़, अहमदाबाद जैसे नए उभरे महानगरों में यह प्रतिशत इससे अधिक भी होने की संभावना जताई गई है क्योंकि यहां की युवा आबादी सोशल मीडिया पर दूसरे शहरों की अपेक्षा ज्यादा सक्रिय है। सी-वोटर ने अपने मतदान-पश्चात सर्वेक्षण में इंगित किया है कि इन विधानसभा चुनावों में युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। चुनाव आयोग के पास सूचनाएं हैं कि पार्टियां और प्रत्याशी अपने चुनावी व्यय का एक अच्छा-खासा हिस्सा सोशल मीडिया पर व्यय करने लगी हैं इसीलिये उसके स्तर से विधानसभा चुनाव से पूर्व निर्देश जारी किए गए कि राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के जरिए सोशल मीडिया पर पोस्ट सामग्री चुनाव आचार संहिता के दायरे में आएगी। उम्मीदवारों को नामांकन करते वक्त अन्य सूचनाओं के साथ अपने सोशल मीडिया एकांउट के बारे में भी सूचना देनी होगी। सोशल मीडिया की निगरानी के लिए वही तरीका अपनाया जाएगा, जो टीवी और अखबारों के लिए अपनाया जाता है। आयोग लोकसभा चुनावों में व्यवस्थाएं और कड़ी करने जा रहा है। दूसरी तरफ, सियासी दल भी मुस्तैद हैं। राष्ट्रीय दलों के साथ ही क्षेत्रीय दल भी इंटरनेट पर अपनी सक्रियता बढ़ाने के लिए कमर कस रहे हैं। फेसबुक पर पेज प्रमोट करने की सुविधा का जमकर प्रयोग हो रहा है। यानि आने वाले दिनों में मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव जैसे पुरानी पीढ़ी के नेताओं की भी इंटरनेट सक्रियता बढ़ती नजर आने वाली है।
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