Saturday, January 4, 2014

बदलाव की नई बयार

... तो क्या दिल्ली की हवाएं देश के दूसरे हिस्सों में भी पहुंचने लगी हैं? हरियाणा में पुलिस में आईजी रणबीर शर्मा ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर आम जनता को सियासी पार्टियों की गलत नीतियों के विरुद्ध आगाह करने का बीड़ा उठाया है, भीड़ उनकी बात सुन रही है। अब तक सिर्फ अपने काम से काम रखने और राजनीति की बातों से दूर रहने वाले तमाम नामी-गिरामी लोग इरादे बदल रहे हैं। अरविंद केजरीवाल के उद्भव से उन्हें उम्मीद जगी है, वह मानने लगे हैं कि आम आदमी तकदीर बदलने में सक्षम हो सकता है और राजनीति के शुद्धिकरण का जटिल सपना भी हकीकत बन सकता है। विचारों में बदलाव की बयार लोकपाल के लिए समाजसेवी अन्ना हजारे के आंदोलन से शुरू हुई। दिल्ली में गैंगरेप हुआ तब जनाक्रोश के समंदर ने सिद्ध किया कि जनता अब बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं। केजरीवाल पहले भी सक्रिय थे, सूचना का अधिकार कानून के लिए उनकी प्रसिद्धि थी, मैग्सेसे अवार्ड मिल चुका था उन्हें लेकिन अन्ना के आंदोलन ने उन्हें पहली बार आम जनता से जोड़ दिया। अन्ना के विचारों से हटकर उनके राजनीतिक सफर का निर्णय भी लोगों के आसानी से गले नहीं उतरा। पर आज उसी बेतुके से लगते रहे निर्णय की बदौलत वह दिल्ली के सीएम हैं। केजरीवाल ने उम्मीदें जिंदा की हैं। उनके साथ जनता की सहानुभूति है, समर्थन है तभी तो वह वीआईपी सुविधाएं न लेने का फैसला करते हैं तो जनता साथ होती है और अगर, यह कहते हुए सरकारी आवास में जाने की तैयारी कर लेते हैं कि इससे काम करने के लिए ज्यादा वक्त मिलेगा, जनता उनके इस तर्क का भी समर्थन करने लग जाती है, जैसे उन पर अविश्वास का मन ही न हो। बड़ा मकान ठुकराने पर उनका समर्थन और बढ़ जाता है। असल में, इसके पीछे सरकार और उसका संचालन करने वाले राजनीतिक तंत्र के प्रति बरसों पुरानी निराशा है। यही वजह है कि रणबीर शर्मा के पीछे भीड़Þ जुट रही है। वह कहते हैं कि देश चलाने वालों से लोग निराश हैं, समस्याओं का हल नहीं हो रहा इसलिये यह निराशा आक्रोश में बदल रही है। रणबीर जब तक सेवा में रहे, सरकार में मौजूद नकारात्मक विचारों वाले लोगों का निशाना बने रहे। उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा व रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के बीच संदिग्ध भूमि सौदों पर मुखर आईएएस अफसर अशोक खेमका की तरह बेवजह तबादले झेलने पड़े। यहां तक कि सत्ता संरक्षण में आंदोलनों से भी उनका सामना हुआ। शर्मा कहने से नहीं हिचकते कि जरूरी हुआ तो वह राजनीतिक भूमिका भी निभाएंगे। हरियाणा में ही केजरीवाल के सहयोगी योगेंद्र यादव की सभाएं भीड़ खींच रही हैं। भारतीय किसान यूनियन ने उन्हें बिना शर्त समर्थन दिया है यानी वह साथ तो देगी लेकिन किसी चुनाव में सीटें नहीं मांगेगी। आम आदमी पार्टी की सक्रियता बढ़ी है और वह छोटे-बड़े मुद्दे पर सामने आने लगी है। देश के अन्य हिस्सों में भी कमोवेश यही हाल है। मुंबई में बॉलीवुड के लोग बदलाव का झण्डा उठाने के लिए तैयार हैं और यह कोई छोटे नहीं, गायक कैलाश खेर, रेमो फर्नांडिस जैसे बड़े नाम हैं। कैलाश खेर तो यहां तक कह चुके हैं कि राजनीतिक शुद्धिकरण के हवन में यदि मेरी आहुति जरूरी है तो मुझे इसमें भी हिचक नहीं। मुंबई में लम्बे समय से सामुदायिक विकास कार्यक्रमों और नीतिगत सुधारों से जुड़ी रहीं मीरा सान्याल भी हालात में पूर्ण बदलाव की आकांक्षी बनी हैं। रॉयल बैंक आॅफ स्कॉटलैंड की पूर्व इंडिया हेड मीरा सान्याल ने आम आदमी पार्टी में शामिल होकर दक्षिण मुंबई से लोकसभा का टिकट मांगा है। वह इसी सीट पर मुरली देवड़ा के विरुद्ध चुनाव लड़ भी चुकी हैं। उनकी ही तरह देश की दूसरी बड़ी सॉफ्टवेयर सेवा निर्यातक कंपनी इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी वी. बालकृष्णन दक्षिण में केजरीवाल के सारथी बनने के दावेदार हैं। एचसीएल के एक बड़े पद से त्यागपत्र देकर आर. कृष्णमूर्ति ने भी उनके साथ रहने का इरादा जताया है। तकनीकी दुनिया के ही एक अन्य महारथी आदर्श शास्त्री भी नई भूमिका में आए हैं। वह सालाना एक करोड़ के पैकेज पर बहुराष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक्स कंपनी एप्पल में काम कर रहे थे। उनका इरादा आम आदमी पार्टी के लिए काम करने का है और आजीविका के लिए वह एक छोटी सॉफ्टवेयर कंपनी स्थापित करेंगे। वह उन पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के पौत्र हैं जिन्हें केजरीवाल अपना आदर्श मानते हैं। रेमो गोवा में सक्रिय राजनीति करने के इच्छुक हैं। वह फिलहाल नहीं चाहते कि चुनाव लड़ें लेकिन जरूरत हुई तो हिचकेंगे भी नहीं। बड़े नामों के जुड़ने का क्रम यहीं खत्म नहीं हो रहा, मध्य प्रदेश में रिटायर्ड बिक्रीकर कमिश्नर आरसी गुप्ता और प्रमुख टेलीकॉम कंपनी के चीफ आॅपरेटिंग इंजीनियर रहे एससी त्रिपाठी अभियान संभालने के लिए मैदान में उतर चुके हैं। दूरदराज की बात करें तो आंध्र प्रदेश में समीर नायर और अरुणाचल प्रदेश में हाबुंग प्यांग ऐसे नाम हैं जो केजरीवाल ब्रिगेड के हमराह बने हैं। समीर नायर एक प्रमुख टीवी चैनल के सीईओ रहे हैं और हाबुंग सूचना आयुक्त। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे राकेश सिन्हा उत्तर प्रदेश में संजय सिंह के साथ पार्टी की बागडोर संभाल रहे हैं। उत्तराखण्ड में देशदीपक सचदेवा सक्रिय हैं जो प्रमुख व्यवसायियों में शुमार हैं और विज्ञापन की दुनिया का जाना-पहचाना नाम हैं। अनूप नौटियाल भी उनके साथ हैं जो राज्य आपात फोन सेवा 108 के प्रभारी रहे हैं और अमेरिकन-इंडिया फाउंडेशन में ट्रस्टी भी हैं। ओंकार भाटिया भी उत्तराखण्ड में संगठनात्मक ढांचे का बड़ा नाम हैं, वह आपदा प्रबंधन एवं नवनिर्माण तंत्र की अहम जिम्मेदारी संभालते हैं। सचदेवा की बात में दम दिखता है कि बयार चल रही है इसलिये कुछ स्वार्थी तत्व भी जुड़ सकते हैं, हमें सतर्कता बरतनी होगी। लेकिन यह तय है कि स्थितियां बदल रही हैं, बड़े नामों के सक्रिय होने से संकेत मिल रहे हैं कि दिल्ली से हुई शुरुआत देश में कुछ और गुल तो जरूर खिलाएगी।

No comments: