Tuesday, September 25, 2012

नीतीश की सियासत का दूसरा चेहरा

इसे राजनीति का अजूबा खेल ही कहेंगे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक ओर तो राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग कर रहे हैं और दूसरी तरफ उनकी सरकार किसानों के लिए खुशियां लाने में सक्षम एक कदम उठाने से बच रही है। कई बार हो-हल्ले के बाद भी उसकी नींद नहीं खुल रही। विशेष राज्य की मांग पर केंद्र की राजनीति गरमाने को तैयार बैठे नीतीश कुमार को इसी मुद्दे पर अन्य दलों के साथ ही उनकी सहयोगी भाजपा के भी कुछ नेता आड़े हाथों ले रहे हैं। जिलों में यह मुद्दा खूब उठ रहा है। नीतीश सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में घोषणा की कि गन्ने से इथेनॉल बनाने के लिए कंपनियों को बिहार आमंत्रित किया जाएगा। गन्ना बिहार की एक मुख्य फसल है और लाखों लोगों के जीवनयापन का साधन भी। शुरूआत में कई बड़ी कंपनियों ने इसमें रुचि भी दिखाई। तब कहा गया था कि इससे बिहार की किस्मत बदल जाएगी। इस बात में दम भी था, क्योंकि ऐसा होने से बिहार चीनी और इथेनॉल के उत्पादन में अग्रणी राज्य बन जाता, लेकिन सरकार की इस पूरी कवायद में केंद्र सरकार की एक नीति ने पेंच फंसा दिया। उसके मुताबिक गन्ने से इथेनॉल नहीं बनाया जा सकता। नतीजतन, बड़ी कंपनियों ने अपने हाथ खींच लिए। जाहिर है, यह बिहार और वहां के लोगों के लिए एक बड़ा झटका था, लेकिन बिहार के किसी भी राजनीतिक दल ने केंद्र सरकार से यह नियम बदलने की मांग नहीं की और न आंदोलन किया। बिहार के विकास की बात करने वाले नीतीश कुमार या उनकी पार्टी की ओर से भी ज्यादा कुछ नहीं कहा गया। अब नीतीश कुमार और उनकी पार्टी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन की बात कर रहे हैं। हालांकि बिहार बंटवारे को दस साल से ज्यादा हो गए और बंटवारे के व़क्त से ही विशेष पैकेज और विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग राजनीतिक दल करते रहे हैं। गौर करने की बात यह है कि जब राज्य का बंटवारा हुआ था, तब केंद्र में एनडीए और बिहार में राजद का शासन था, लेकिन तब एनडीए ने बिहार को न तो विशेष पैकेज दिया और न ही विशेष राज्य का दर्जा। जब एनडीए की सरकार गई, तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार और बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार सत्ता में आई। अब नीतीश कुमार विशेष पैकेज और विशेष दर्जे की मांग कर रहे हैं और बाकायदा इसके लिए हस्ताक्षर अभियान और आंदोलन तक छेड़ दिया गया है। सवा करोड़ बिहारियों के हस्ताक्षर प्रधानमंत्री तक पहुंचाने की कवायद की गई। जनता दल के नेता बीते 13 जुलाई को दिल्ली के जंतर-मंतर पर पहुंचे। विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर पार्टी का हस्ताक्षर अभियान महीनों से चल रहा था। जंतर-मंतर पर जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने केंद्र सरकार पर बिहार के खिलाफ साजिश करने की बात कही, भेदभाव करने का आरोप लगाया। शरद यादव ने केंद्र सरकार से चेतावनी के लहजे में कहा कि अगर बिहार पिछड़ा रहेगा तो पूरा देश पिछड़ जाएगा। बहरहाल, इस हस्ताक्षर अभियान और विशेष राज्य के दर्जे की मांग के पीछे की कहानी क्या है? आखिर नीतीश कुमार को विशेष पैकेज की याद अपने दूसरे कार्यकाल में इतनी शिद्दत के साथ क्यों आ रही है? दरअसल, नीतीश कुमार अपने पहले कार्यकाल में सड़क और कानून व्यवस्था दुरस्त करने के नाम पर दूसरी बार सत्ता पा गए। विकास के नाम पर बिहार में सिर्फ सड़कें बनीं। जाहिर तौर पर उनमें से ज्यादातर सड़कें केंद्रीय योजनाओं के अंतर्गत बनी थीं। बिजली आज भी पटना को छोड़कर बिहार के बाकी जिलों के लिए दूर की कौड़ी बनी हुई है। जिस निवेश की बात नीतीश कुमार कर रहे हैं, वह असल में सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। जहां कहीं भी छोटे-मोटे उद्योग लगाए जा रहे हैं, वहां भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर जन विरोध का सामना करना पड़ रहा है। मुजफ्फरपुर और फारबिसगंज में यही हुआ। फारबिसगंज में तो एक कारखाने का विरोध कर रहे लोगों पर पुलिस फायरिंग तक की गई। दरअसल बाढ़, बिजली, विकास, अपराध और भ्रष्टाचार से हारी हुई नीतीश सरकार अब अगले चुनावों (लोकसभा और विधानसभा) की तैयारी में जुट गई है और इसके लिए विशेष पैकेज, विशेष राज्य के दर्जे से अच्छा मुद्दा और क्या हो सकता था। असल में यह एक भावनात्मक मुद्दा है, जिसके सहारे जनता को बरगलाया जा सकता है। खुद कुछ न कर पाने की स्थिति में सीधे-सीधे केंद्र सरकार पर आरोप लगाया जा सकता है। यह कहकर कि केंद्र सरकार ने विशेष पैकेज के तहत पैसा नहीं दिया। अब इसे क्या कहा जाएगा, एक ओर तो बिहार सरकार केंद्र से पैसा पाने के लिए विशेष पैकेज मांग रही है, वहीं दूसरी ओर अपने विधायकों का वेतन-भत्ता कई गुना बढ़ा चुकी है। सवाल है कि आखिर नीतीश कुमार बिहार के कृषि आधारित उद्योगों के विकास पर ध्यान देने के बजाय जनता का ध्यान विशेष पैकेज और विशेष राज्य की ओर क्यों खींचना चाहते हैं?

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