Thursday, September 20, 2012

ममता बनर्जी के ये तेवर...

टेलीफोन टैपिंग का आरोप लगाकर तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने सिद्ध कर दिया है कि वह केंद्रीय सत्ता पर काबिज संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अगुवा कांग्रेस पर प्रहार का कोई मौका नहीं छोड़ रहीं। सरकार के अब तक के कार्यकाल में कई बार समस्या का सबब बनीं पश्चिम बंगाल की यह तेजतर्रार मुख्यमंत्री जैसे पूरी शिद्दत से यह बताने में जुटी हैं कि केंद्र सरकार से उनका सम्बन्ध विच्छेद हो चुका है और हर बार की तरह वह सौदेबाजी के मूड में नहीं हैं। वह पूरे दम से जुटी रहीं जब तक उम्मीद थी कि केंद्र से अपने राज्य के लिए भारी-भरकम पैकेज ले पाएंगी। तमाम उम्मीदें पूरी न होने पर उन्होंने नाराजगी की राह अपना ली थी। सरकार में रहते हुए भी उसे नीचा दिखाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देने की रणनीति के तहत कुछ माह पूर्व जब प्रधानमंत्री कोलकाता गए तो विमानतल पहुंच कर उनका स्वागत करने का सामान्य शिष्टाचार भी उन्होंने नहीं निभाया। मकसद जुझारू नेता की अपनी छवि को और मजबूत करने का था। हालांकि तस्वीर का दूसरा रुख भी है जिसमें ममता के सामने धर्मसंकट नजर आ रहा है। कांग्रेस ने काफी-कुछ सोच-समझकर दांव खेला है लेकिन तृणमूल हो या अन्य प्रादेशिक दल, उनके विकल्प सीमित हैं। ममता ने पहले भी भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया था और उनका यह प्रयोग असफल हो गया था। आज वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हैं तो क्या फिर भाजपा के साथ गठबंधन का खतरा उठा सकती हैं? यह भी ध्यान रखना होगा कि अपनी पार्टी के भीतर उनकी जो मनमानी चल रही है, वह लम्बे समय तक कायम नहीं रह सकती। दिनेश त्रिवेदी को उन्होंने जिस तरह से अपमानित किया, क्या वे उसे भूल गए होंगे? उनके वित्त मंत्री अमित मित्रा एफडीआई के विरोध में नहीं हैं। पश्चिम बंगाल की जो आर्थिक दुरावस्था है, क्या उद्योग जगत से पूरी तरह नाता तोड़कर तृणमूल सरकार सचमुच स्थिति को सुधार सकती है? कुल मिलाकर ममता बनर्जी पांच साल मुख्यमंत्री तो बनी रह सकती हैं, वे पार्टी के भीतर असंतुष्टों को दबा सकती हैं, लेकिन क्या वे एक सफल और परिवर्तनशील नेतृत्व दे पाएंगी? यह सवाल उन्हें भी परेशान कर रहे हैं। समर्थन वापसी की घोषणा के बाद कांग्रेस ने जिस तरह से तृणमूल कांग्रेस के मंत्रियों से प्रधानमंत्री की मुलाकात की घोषणा की, उससे यह संदेह पुख्ता हुआ कि ममता के केंद्रीय मंत्री उनसे अलग भी जा सकते हैं। मध्यावधि चुनाव के लिए मन मजबूत कर रही कांग्रेस की योजना ममता से नाखुश इन्हीं केंद्रीय मंत्रियों का चुनाव में प्रयोग करने की भी है, लेकिन तभी जबकि यह फिलहाल ममता के विरुद्ध बगावत का मन न बना पाएं। इस समय ये समर्थन के लिए राजी होते हैं, तो सरकार के लिए सोने में सुहागा।

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