Sunday, September 16, 2012
आधे बरस का कामकाज
उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 15 मार्च, 2012 को जब सत्ता संभाली थी, तब प्रदेश की जनता और खासतौर से युवाओं को उम्मीदें चरम पर थीं। तब अखिलेश ने कहा था कि चुनाव में जनता से किए गए सभी वादे पूरे किए जाएंगे और छह महीने बाद भी इस मामले में खासे गंभीर हैं। उसी वक्त उनके पिता और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने भी कहा था कि अखिलेश को छह माह का समय दिया जाना चाहिए। बेशक, पिछली सरकार की तरह तंत्र ठप नहीं है और सरकार काम करती नजर आ रही है। मुख्यमंत्री सक्रिय हैं, बार-बार ढर्रे से उतर चुकी चीजों पर मेहनत करते नजर आते हैं। कन्या विद्याधन, बेरोजगारी भत्ता, किसानों की कर्ज माफी, किसानों से मुकदमे वापस लेने और छात्रों को लैपटॉप एवं टैबलेट देने की योजनाएं अंजाम तक पहुंचीं या पहुंच रही हैं। सरकार बनने के साथ ही अखिलेश के सामने चुनौती थी कि सूबे में कानून-व्यवस्था का राज स्थापित किया जाए लेकिन उनके कार्यकर्ताओं पर ही उत्पात फैलाने के आरोप लग रहे हैं। सपाइयों के इसी रवैये को देखते हुए मुलायम को खुद आगे आकर उन्हें अनुशासन में रहने की नसीहत देनी पड़ी।
घोषणाएं पूरी करने में आगे
यह सच है कि सरकार को मतदाताओं ने पांच साल के लिए पांच साल के लिए चुना है और अभी महज छह माह हुए हैं। इतना कार्यकाल किसी भी सरकार के कामकाज के आकलन के लिए उपयुक्त समय नहीं होता और उत्तर प्रदेश सरीखे बड़ी आबादी वाले राज्य की सरकार के लिए तो और भी नहीं। वैसे भी राज्य सरकार यह कहती रही है कि उसे विरासत में कुछ भी ठीक नहीं मिला। हर मोर्चे पर खामियों और समस्याओं से उसका सामना हुआ है। फिर भी उम्मीद की जाती है कि इन छह महीनों में राज्य सरकार खुद को और साथ ही अपने प्रशासन को ढर्रे पर लाने में सक्षम हो गई होगी। समीक्षा होनी चाहिये क्योंकि अखिलेश सरकार ने स्थितियों को ठीक करने के लिए छह माह का समय मांगा था। बेशक, इन छह महीनों में सपा सरकार ने तमाम चुनावी वादे पूरे किए हैं जो उसने अपने घोषणापत्र में किए थे। बेरोजगारी भत्ते का वितरण शुरू हो गया है और लैपटॉप बांटे जाने वाले हैं। इसके लिए जिलों से आंकड़े मुख्यालय को प्राप्त हो गए हैं। सरकार इस अवधि में यह सिद्ध करने में कामयाब रही है कि वह अपनी चुनावी घोषणाएं पूरी करने के प्रति गंभीर है। अन्य दलों के नेताओं से उलट मुख्यमंत्री खुद बार-बार घोषणाओं को भूलते नहीं, बल्कि उन पर हुए कार्य की समीक्षा करते हैं। विकास की योजनाओं को भी मुख्यमंत्री कार्यालय से तुरंत एप्रूवल दे दिया जाता है।
किसानों के हित में निर्णय
उत्तर प्रदेश सरकार ने खुद को किसान हितैषी सिद्ध करने की कोशिशें की हैं। इसी क्रम में उनके कर्ज माफ करने, भूमि अधिग्रहण के मामलों में दर्ज मुकदमों की वापसी, गन्ना बकाये के भुगतान के साथ ही पर्याप्त पानी-बिजली की घोषणाएं हुई हैं। किसानों की बिजली के लिए फीडर से अलग लाइन बिछाने की भी योजना है। मुख्यमंत्री ने खुद कर्जदार किसानों की वसूली प्रमाण जारी (आरसी) नहीं करने का भरोसा दिया है। यमुना एक्सप्रेस वे पर किसानों की सुविधा के लिए सर्विस लेन बनाने के लिए जेपी ग्रुप को निर्देशित किया गया है हालांकि सम्बन्धित किसानों ने हाल ही में आंदोलन शुरू किया है। ग्रामीण क्षेत्रों और किसानों के विकास के लिए राज्य सरकार ने कुछ योजनाएं भी घोषित की हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र में पहल
हाल ही में सरकारी चिकित्सालयों को 200 एम्बुलेंस मिली हैं जबकि नवम्बर तक 1000 और एम्बुलेंस दी जाएंगी। नयी एंबुलेंस सेवा विशेषकर गर्भवती महिलाओं के लिए होगी। गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को यह सुविधा मुफ्त दी जाएगी। सरकारी अस्पतालों में भर्ती होने पर 35 रुपये की फीस माफ कर दी गई है। छह साल से सोलह साल तक सरकारी स्कूल और कालेज जाने वाली लड़कियों के मुफ्त इलाज की भी घोषणा की गई। सीएम के अनुसार, सरकार ने जनता की सुविधा के लिए टोल प्री नंबर शुरू किये जिस पर 5721 शिकायतें मिली हैं और इनमें 4622 का निस्तारण भी हो गया। सभी विकास खंडों में स्वास्थ्य सेवा में सुधार किया जा रहा है। पचास महिला अस्पतालों की क्षमता बढ़ेगी जिसके तहत चिकित्सालयों में सौ अतिरिक्त बेड की व्यवस्था की जाएगी।
कार्रवाई से कड़े संकेत
उत्तर प्रदेश सरकार ने लोक निर्माण विभाग, सिंचाई तथा सहकारिता विभागों के करीब 60 अभियंताओं और अधिकारियों को राज्य की पूर्ववर्ती मायावती सरकार के कार्यकाल में विभिन्न विकास परियोजनाओं में अनियमितता बरतने के आरोप में निलम्बित किया है।,पूर्ववर्ती मायावती सरकार के कार्यकाल में लखनऊ में बनवाए गए कांशीराम स्मारक, इको पार्क, भीमराव अम्बेडकर स्मारक पार्क, बौद्ध विहार शांति उपवन के निर्माण में अनियमितता के आरोप में राजकीय निर्माण निगम के अफसरों पर भी गाज गिरी है। इसके पीछे सरकार की मंशा भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़े कदमों का संकेत देना था हालांकि निलंबन पश्चात की कार्रवाई फिलहाल बेहद मंद गति से चल रही है।
पूरे देश के लिए उदाहरण
अखिलेश सरकार ने एक ऐसा फैसला किया, जिसे पूरे देश में लागू करने की मांग उठी। इसके तहत ऐसे बुजुर्ग माता-पिता का उनके बच्चों को जीवनभर भरण-पोषण करना होगा जिन्होंने अपनी संपत्ति अपने बच्चों के नाम कर दी है। यदि बच्चे एसा नहीं करते हैं या अपने मां- बाप को बेघर करते हैं तो माता- पिता के पास अपनी संपत्ति वापस लेने का पूरा अधिकार है।
आगरा के लिए घोषणाएं
मुख्यमंत्री 10 सितम्बर को जब पहली बार आगरा आए तो लोगों की तमाम उम्मीदें पूरी की। अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की पैरवी के साथ ही आधारभूत सुविधाएं- सड़क, सफाई और पेयजल के लिए कार्य योजनाओं को शीघ्र पूरी करने की घोषणाएं की। आगरा के जूता-चमड़ा, मोटर-जनरेटर और पर्यटन उद्योग के हित में फैसले करने का भी भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि आगरा में विद्युत आपूर्ति की स्थिति की समीक्षा कर उसमें और सुधार किया जाएगा। निजी कंपनी टोरंट से करार की समीक्षा होगी। ड्रेनेज-सीवरेज और यमुना में प्रदूषण रोकने की योजनाओं को भी वह प्राथमिकता के आधार पर देखेंगे। नालों का पानी ट्रीटमेंट के बाद ही यमुना में डाला जाए, इसके लिए उन्होंने मंडलायुक्त को निर्देशित किया। आगरा में विश्व स्तरीय पर्यटन सुविधाओं के लिए 140 करोड़ की योजनाएं तैयार हुई हैं।
अधूरे पड़े बड़े वायदे
मुख्यमंत्री ने बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के ड्रीम प्रोजेक्ट, स्मारकों, पार्कों को नहीं तोड़ने की बात की थी लेकिन कहा था कि उनमें खाली पड़े स्थानों पर अस्पताल और स्कूल बनवाएंगे। छह माह के कार्यकाल में उनके स्तर से इसका अभी तक कोई ‘ब्ल्यू प्रिंट’ तक तैयार नहीं कराया गया है। सपा ने वायदा किया था कि सरकार बनते ही भ्रष्टाचारियों को जेल भेजा जाएगा। भ्रष्टाचार की जांच के लिए आयोग का गठन किया जाएगा लेकिन सरकार ने अभी तक यह वायदा पूरा नहीं किया है। सीएम मानते हैं कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) में हुए घोटाले से राज्य की छवि खराब हुई है पर दोषियों के विरुद्ध राज्य सरकार का रवैया कड़ा नहीं माना जा रहा। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कर्मचारियों की कमी है।
मंत्री बने सिरदर्द
अखिलेश सरकार के लिए सिरदर्द उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी ही बन रहे हैं। नजदीकी मंत्रियों ने अखिलेश से ऐसे फैसलों की घोषणा कराई, जो फजीहत के बाद बदलने पड़े। मुख्यमंत्री के चाचा और प्रदेश के लोकनिर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने पिछली सरकार के समय निठारी जैसे कांड के लिए कहा था, 'बड़े-बड़े शहरों में छोटी-छोटी घटनाएं घटती रहती हैं।' शिवपाल ने हाल ही में छोटे-छोटे भ्रष्टाचार की हिमायत कर डाली थी। वरिष्ठ मंत्री आजम खां न जाने कब, सरकार के विरुद्ध ही बोलने लगें, कोई नहीं जानता। शिवपाल ने मायावती के बंगले में सरकारी धन के इस्तेमाल का आरोप लगाया लेकिन सरकार अगले दिन इसकी जांच कराने से पलट गई। इसके बाद शिवपाल ने पूर्व सहकारिता मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य पर घोटाले का आरोप लगाया गया लेकिन जब मौर्य ने पलटवार किया तो शिवपाल कन्नी काटते नजर आए। आजम भी शिवपाल से पीछे नहीं रहे। नगर आयुक्त की नियुक्ति के मामले को लेकर उन्होंने विभाग का कामकाज ही छोड़ दिया। रूठे आजम को मनाने के लिए सरकार को कार्रवाई करनी पड़ी। उसी तरह कई बार आजम ने अपनी हठ के आगे सरकार को झुकाया। हाल ही में कोलकाता में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने इस पर नाराजगी जाहिर की थी और इशारों ही इशारों में समझा दिया था कि वह यह बर्दाश्त नहीं करने वाले।
कानून व्यवस्था पर अंगुलियां
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सामने फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती चरमराई कानून व्यवस्था को दुरुस्त कर साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर नियंत्रण करना है। छह महीने के कार्यकाल के अंदर साम्प्रदायिक हिंसा की पांच घटनाएं हो चुकी हैं। इसके अलावा असम हिंसा के विरोध में उपद्रवियों ने पुलिस प्रशासन से बेखौफ होकर राजधानी लखनऊ के साथ कानपुर और इलाहाबाद में पार्कों और सैकड़ों वाहनों में तोड़फोड़ और आगजनी की। आलोचक कहते हैं कि साम्प्रदायिक हिंसा की हर घटना के बाद मुख्यमंत्री ने कार्रवाई के नाम पर केवल संबंधित जिलों के जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का स्थानांतरण कर दिया। किसी हिंसाग्रस्त जगह का उन्होंने दौरा भी नहीं किया।
बाहुबलियों को संरक्षण का आरोप
राष्ट्रपति बनने से पहले प्रणब मुखर्जी की लखनऊ यात्रा से पहले एक भोज काफी चर्चित हुआ था जिसमें बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी और विजय मिश्रा भी शामिल हुए थे जबकि कारावास की सजा काट रहे दोनों ही अपराधियों को जेल से बाहर सिर्फ विधानसभा में भाग लेने तक की ही इजाजत है। यही नहीं, कई वर्षों तक जेल में रहे रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया प्रदेश के जेलमंत्री हैं। कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे अमरमणि त्रिपाठी को जेल में सुविधाएं मुहैया कराने के भी आरोप इस समय जोरदारी से लग रहे हैं। बताते हैं कि काफी दिनों से वह हर दोपहर जेल से बाहर विचरण करने जा रहे हैं। पुलिस महकमा उन्हें इलाज के बहाने बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर ले जाता है। मेडिकल कॉलेज में त्रिपाठी को एक प्राइवेट लक्जरी रूम मिला हुआ है। यहां वह लोगों की समस्याएं हल करते हैं।
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