Friday, August 31, 2012

कोयले ने रचा 'कोलगेट'

देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी संसद का पूरा मानसून सत्र जबर्दस्त हंगामे की भेंट चढ़ गया। कारण बनी, भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का पर्दाफाश करने के करीब 16 महीने बाद कैग ने एक और घोटाले से पर्दा उठाया है। कोलगेट नाम से कुख्यात हो रहे इस घोटाले में कोयला खदानों में हुए बंदरबांट से सरकारी खजाने को 10.67 लाख करोड़ रुपये का चूना लगा है। यह रकम 2जी घोटाले की रकम 1.76 लाख करोड़ से 6 गुना ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2004 से 2009 के दौरान कंपनियों को 155 कोयला ब्लॉकों का आवंटन बिना नीलामी के ही कर दिया गया। इससे कंपनियों को कई लाख करोड़ रुपये का फायदा हुआ है। किसे हुआ फायदा बगैर नीलामी आवंटन से निजी और सरकारी, दोनों क्षेत्र की कंपनियों को फायदा पहुंचा है। निजी कंपनियों के खजाने में करीब 4.79 लाख करोड़ की रकम गई, तो सरकारी कंपनियों ने 5.88 लाख करोड़ रुपये का मुनाफा बटोरा। लाभ पाने वालीं निजी क्षेत्र की कंपनियों की बात करें तो इस लिस्ट में टाटा ग्रुप की कंपनीज, जिंदल स्टील ऐंड पावर लिमिटेड, इलेक्ट्रो स्टील कास्टिंग्स लिमिटेड, अनिल अग्रवाल ग्रुप फर्म्स, दिल्ली की भूषण पावर ऐंड स्टील लिमिटेड, जायसवाल नेको, आदित्य बिड़ला ग्रुप कंपनीज, एस्सार ग्रुप पावर वेंचर्स, अदानी ग्रुप, आर्सेलर मित्तल इंडिया, लैंको ग्रुप जैसे बड़े नाम शामिल हैं। पावर सेक्टर की दिग्गज खिलाड़ी रिलायंस पावर सासन और तिलैया में मेगा पावर प्रॉजेक्ट्स पर काम कर रही है। रिलायंस पावर इस लिस्ट में शामिल नहीं है, क्योंकि इस रिपोर्ट में 12 कोयला ब्लॉक्स को शामिल नहीं किया गया है। इन ब्लॉक्स का आवंटन टैरिफ आधारित बिडिंग रूट के जरिए किया गया था। नुकसान का आकलन कोल ब्लॉक्स के आवंटन में गड़बड़ी बहुत बड़ी है। कोयला खदानों के आवंटन से जिन व्यावसायिक इकाइयों को फायदा पहुंचा उनमें पावर, स्टील और सीमेंट इंडस्ट्री की करीब 100 प्राइवेट कंपनियां हैं और बाकी सरकारी कंपनियां। कैग की रिपोर्ट कहती है कि 31 मार्च 2011 की कीमत को आधार बनाएं तो सरकारी खजाने को 10.7 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ परंतु नुकसान का इस तरह आकलन करते वक्त सबसे घटिया श्रेणी के कोयले की कीमत को आधार बनाया है। मध्यम श्रेणी के कोयले की कीमत के आधार पर यह आकलन किया जाता, तो नुकसान कहीं ज्यादा बैठता। अगर यह अनुमान कोयला खदान आवंटन के समय (2004-2009) को आधार बनाकर लगाया जाए, तब भी नुकसान का आंकड़ा 6.31 लाख करोड़ रुपये से ऊपर होगा। प्रत्येक ब्लॉक के 90 फीसदी रिज़र्व के आधार पर कैलकुलेशन को देखें तो कुल मिलाकर कैग ने 33,169 मिलियन टन कोयला भंडार पर अपनी रिपोर्ट दी है। इतना कोयला 150,000 मेगावॉट बिजली पैदा करने के लिए पर्याप्त है। इतना कोयला वर्तमान उत्पादन क्षमता के अनुसार 50 साल तक देश के लिए बिजली पैदा करने के लिए काफी है। यूपीए सरकार के इस 'नीतिगत निर्णय' के कारण देश को जो क्षति हुई है, उसके अनुसार, हर भारतीय के हिस्से में आया है लगभग नौ हजार रुपये का घाटा। यदि आपके परिवार में छह सदस्य हैं, तो घाटे में आपके परिवार का हिस्सा हुआ लगभग 56 हजार रुपये। सक्रिय है सीबीआई केंद्रीय जांच ब्यूरो कोयला ब्लॉक आवंटन में धांधली पर दो दर्जन से अधिक कंपनियों के खिलाफ फर्जी दस्तावेज के आधार पर आपराधिक साजिश रचने व धोखाधड़ी का मामला दर्ज करने जा रहा है। दो माह पहले इस संबंध में प्रारंभिक जांच दर्ज कर चुकी सीबीआई को कोयला मंत्रालय से 80 बॉक्स दस्तावेज मिले, जिनमें से 45 की जांच पूरी हो चुकी है। जिन पर मामला दर्ज होने की संभावना है, उनमें ऊर्जा, स्टील, खनन और सीमेंट कंपनियां हैं। संबंधित सभी दस्तावेजों की जांच के बाद और कंपनियों के फंसने की संभावना है। सीबीआई दो पूर्व सचिवों सहित 16 अफसरों से पूछताछ कर चुकी है, जो वर्ष 2006 से 2009 के बीच आवंटन का काम देख रहे थे। जांच अधिकारियों को प्रथम दृष्टया कुछ ऐसे दस्तावेज भी मिले हैं, जिनसे साबित होता है कि कुछ कंपनियों पर संदेह जताए जाने के बाद भी उन्हें ब्लॉक का आवंटन किया गया। सीबीआई छत्तीसगढ़, राजस्थान, ओडिशा और झारखंड के अधिकारियों से भी पूछताछ कर सकती है। 64 कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए 146 निजी कंपनियों से 1422 आवेदन मिले थे और इन सभी दस्तावेजों की जांच चल रही है। कोयला मंत्रालय का तर्क कोयला मंत्रालय का कहना है कि ऊर्जा क्षेत्र में कोयले को वास्तविक मूल्यों पर बेचा जाता है इसलिये इसे घोटाला कहा जाना उचित नहीं है। इस पर कैग का तर्क है कि कोयला प्राकृतिक संसाधन है और उसका विक्रय (नीलामी) के प्रतिस्पर्धी मूल्यों पर होना चाहिए। कैग ने सर्वोच्च न्यायालय के 2जी घोटाले के सन्दर्भ में दिए गए निर्णय का भी नाम लिया है जो कहता है कि सरकार को राष्ट्रीय सम्पदा का संरक्षक एवं न्यासधारी बन कर निर्णय करने चाहिए। कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल का कहना है कि मंत्रालय कैग रिपोर्ट से सहमत नहीं है। इतनी राशि से तो देश की तस्वीर बदल जाती... कोयला घोटाले से देश को जितनी राशि की चपत लगी, वह रकम यदि टीवी स्क्रीन पर एक साथ आ जाए तो गिनना मुश्किल हो जाता है। ये वो रकम है जो इस देश की तस्वीर बदल सकती थी। खाद्य सुरक्षा बिल के तहत एक लाख 10 हजार करोड़ खर्च होने थे यानी जितना नुकसान हुआ है उससे खाद्य सुरक्षा जैसी दो योजनाएं चलाई जा सकती थी। मतलब ये कि देश के हर भूखे को दो जून की रोटी की गारंटी दी जा सकती थी। वित्त मंत्रालय और कृषि मंत्रालय को इस बात का जवाब दिया जा सकता था कि इतनी बड़ी योजना के लिए पैसा कहां से आएगा। यही नहीं, मनरेगा जैसी दो योजनाएं चलाई जा सकती थी। मनरेगा का भी तो बजट सिर्फ 90 हजार करोड़ रुपए है। सोचिए कि जब सिर्फ एक योजना गांव-देहात में रहने वाले लोगों का इतना भला कर रही है तो दो योजनाओं का क्या असर होता। दो लाख 18 हजार करोड़ की रकम से देश के हर जिले में एम्स जैसे तीन बड़े अस्पताल बनाए जा सकते थे। मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया के मुताबिक एम्स जैसे अस्पताल को बनाने में सिर्फ 100 करोड़ खर्च होंगे। उस हालात का अंदाजा लगाइए जब देश के 626 जिलों में एम्स जैसे ती-तीन अस्पताल होते। सीएजी रिपोर्ट में जिस रकम के नुकसान की बात कही गई है अगर वो सरकार के पास होती तो वो पेट्रोल-डीजल पर लिए जा रहे टैक्स को माफ कर सकती थी यानी आप इस वक्त 45 रुपए प्रति लीटर पर पेट्रोल खरीद रहे होते। जिस यमुना एक्सप्रेसवे पर आज हम सभी को नाज है। वैसा एक्सप्रेस वे अगर श्रीनगर से कन्याकुमारी तक होता तो आप क्या करते। जी हां, घोटाले की राशि से 2800 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेसवे बन सकता था। दिल्ली एयरपोर्ट पर टर्मिनल-थ्री बना है 12 हजार करोड़ रुपए में। इस राशि से देश के 18 हवाई अड्डों को टर्मिनल-थ्री जैसा बदला जा सकता था। दिल्ली मेट्रो के फेज-2 में सरकार ने खर्च किए 19 हजार करोड़ रुपए। ये रूट 120 किलोमीटर लंबा है। इस हिसाब से देश के 11 शहरों में मेट्रो सेवा शुरू की जा सकती थी। यही नहीं हर शहर में 120 किलोमीटर रूट तय किया जा सकता था।

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