Tuesday, September 18, 2012

विदेशी निवेश पर खिंचे पाले

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ताबड़तोड़ फैसलों से आर्थिक सुधारों की गाड़ी ने तो रफ्तार पकड़ ली है लेकिन आम आदमी जहां का तहां खड़ा रह गया है। राजनीतिक मोर्चे पर यूपीए सरकार की मुश्किलें और बढ़ती नजर आ रही हैं। कोयला घोटाले पर हंगामे से त्रस्त कांग्रेस का विदेशी निवेश का यह कार्ड डीजल मूल्य वृद्धि और रसोई गैस राशनिंग जैसे जनविरोधी फैसलों के विरोध पर भारी पड़ रहा है। सवाल यह है कि जब पूरा देश इनके खिलाफ खड़ा है, वहीं अन्य दलों के साथ ही कांग्रेस की कुछ अपनी राज्य सरकारें भी विरोध में सुर बुलंद कर रही हैं। कोयला घोटाले का भूत यूपीए सरकार को जमकर डरा रहा था। मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी की अग्रणीभूमिका में पूरा विपक्ष सरकार को आड़े हाथों ले रहा था। घोटाले दर घोटालों से घिरी इस सरकार ने ऐसे में डीजल मूल्यवृद्धि और गैस राशनिंग का निर्णय लिया। डीजल का मूल्य बढ़ना सीधे महंगाई बढ़ाने का सबब बनता है और गैस राशनिंग से आम जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। उधर विपक्षी दलों के लिए यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनने जा रहा है। लगने लगा था कि सरकार बड़े संकट में फंसने की ओर है, तभी विदेशी निवेश का निर्णय ले लिया गया। सरकार की मंशा विरोधों की भीड़ में विदेशी निवेश को शांतिपूर्ण ढंग से लागू कराने की थी। लेकिन अब सियासी बवंडर शुरू हो चुका है। विपक्षी दलों के साथ ही यूपीए की घटक तृणमूल कांग्रेस और सहयोगी समाजवादी पार्टी ताल ठोंक रही है। तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो समर्थन वापसी की धमकी देते हुए सरकार को फैसले वापस लेने के लिए 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया है। समाजवादी पार्टी भी नाराज है। क्या महंगाई और एफडीआई के चक्कर में मनमोहन सरकार ही चली जाएगी? क्या दो दिन में दो तूफानी फैसलों के भंवर में खुद यूपीए सरकार फंसने वाली है? क्या इन्हीं फैसलों के कारण पड़ेगी यूपीए में आखिरी दरार? ममता और मुलायम के तेवर सख्त हैं लेकिन मनमोहन आश्वस्त! महंगाई और एफडीआई को लेकर एक बार फिर केंद्र सरकार से ममता बनर्जी हैं बेहद खफा। मुलायम ने हर बार सत्ता का साथ दिया है तो बंगाल की अग्निकन्या राजनैतिक सौदेबाजी तक सीमाबद्ध रही है। इसलिए ममता या मुलायम सरकार गिरा देंगे. ऐसे आसार नहीं है। तृणमूल कांग्रेस ने केंद्र सरकार को 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया है वहीं उसे समर्थन दे रही बहुजन समाज पार्टी समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल ने भी कड़ा विरोध किया है। भारतीय जनता पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) ने फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतरने का ऐलान करते हुए विरोध कर रहे संप्रग के सहयोगी दलों को सरकार से बाहर आने की चुनौती दे डाली है। यह सरकार के लिए संकट की बात है। मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश की अनुमति के नफे भी हैं और नुकसान भी। नफा यह है कि इससे देश में भारी मात्रा में विदेशी निवेश आएगा। अगले तीन साल में लगभग एक करोड़ रोजगार के अवसर निकलेंगे, किसानों को बिचौलियों और आढ़तियों के चंगुल से मुक्ति मिलेगी और वह अपनी फसल को सीधे मल्टी ब्रांड रिटेल कंपनियों को अच्छे दामों पर बेच सकेंगे, इस फसल को उन्हें कहीं बेचने नहीं जाना पड़ेगा बल्कि कंपनियां सीधे खेत से उनके उत्पाद को उठा लेंगी. भंडारण की समस्या नहीं रहेगी क्योंकि यह कंपनियां अपने वेयरहाउस बनाएंगी। इससे फसल को सड़ने से बचाया जा सकेगा। अगर नुकसान की बात की जाए तो इसके कई नुकसान भी हैं। मल्टी ब्रांड रिटेल से 30 करोड़ लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। इनमें पांच करोड़ जनरल स्टोर या छोटी-मोटी परचून की दुकान चलाने वाले खुदरा कारोबारियों के अलावा आढ़तिये, पल्लेदार, ठेला मजदूर व अन्य लोग शामिल हैं। देश में बहुराष्ट्रीय स्टोर खुलने के बाद इन स्टोरों पर ग्राहकों को रिझाने के लिए अनेक योजनाएं चलाई जाएंगी जिससे छोटी-मोटी दुकान चलाने वालों का धंधा तो चौपट होगा ही साथ ही इससे जुड़े करोड़ लोग बेरोजगार हो जाएंगे। चूंकि मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी निवेश की अनुमति दी गई है इसलिए इन स्टोरों पर नियंत्रण भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ही होगा। अत: इनकी सहयोगी भारतीय कंपनियां चाहकर भी अपने देश के नागरिकों के हितों की रक्षा नहीं कर पाएंगी। उधर विमानन क्षेत्र में 49 फीसद एफडीआई की अनुमति मिलने का भी देश के विमानन उद्योग पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रकार से असर होगा। विमानन क्षेत्र में एफडीआई में भारतीय एयरलाइंस की बहुलांश हिस्सेदारी होने से अधिकतर नियंत्रण भारतीय कंपनियों का ही होगा लेकिन विदेशी कंपनी भी कई मामलों में अपना नियंत्रण रखेगी। इससे कर्मचारियों के हित प्रभावित हो सकते हैं। विदेशी कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए एक निश्चित् प्रतिशत तय कर सकती हैं। इससे पायलट, केबिन क्रू स्टाफ और ग्राउंड हैंडलिंग स्टाफ में भारतीय कर्मचारियों की संख्या कम होगी। इसके अलावा विमानन क्षेत्र में एफडीआई का फायदा भी होगा। देश के छोटे शहरों में उड़ान शुरू करने के रास्ते खुलेंगे। सभी राज्यों की राजधानियों का आपस में विमान संपर्क हो जाएगा और यात्रियों का कम समय में गंतव्य पर पहुंचने में आसानी होगी। कुल मिलाकर सरकार के लिए संकट की घड़ी है। वैसे मनमोहन सिंह जिस तरह अडिग हैं, उससे लगता है कि कांग्रेस भी चुनाव के लिए कमर कस रही है। इन फैसलों को जरूरी बताकर वह मैदान में होगी। रणनीति भी है ये रिटेल कारोबार के क्षेत्र में विदेशी निवेश को मंजूरी पर कांग्रेस की एक रणनीति राज्यों के गले फंसने लगी है। वह उन राज्यों में इसे कारगर ढंग से लागू करने को तैयार है जहां उसकी सरकारें हैं। मकसद साफ है, फैसले से राज्यों में विदेशी निवेश बढ़ा और रोजगार के अवसरों में कमी की अटकलें निराधार सिद्ध हुईं तो वह हमलावर हो जाएगी। इसके बाद उसे चुनावों में अपने फैसले को न्यायसंगत ठहराने के तर्क मिल जाएंगे। देश के गैर-कांग्रेस शासित राज्यों के ज्यादातर मुख्यमंत्रियों ने इस पर अपना रुख साफ करते हुए, इसे अपने-अपने राज्यों में लागू न करने का फैसला सुना दिया है। त्रिपुरा और मिजोरम भी फैसले के खिलाफ हैं। दक्षिण भारत के बड़े राज्य भी विदेशी किराना के फैसले के विरोध में खड़े हैं। केरल ने भी लागू करने से साफ इंकार किया है। इसका मतलब हुआ कि भाजपा-एनडीए शासित बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गोवा, गुजरात और झारखंड के साथ साथ उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, ओड़िशा जैसे राज्य रिटेल में विदेशी निवेश के फैसले से फिलहाल दूर रहेंगे। ऐसे में कांग्रेस की उम्मीदें अपने राज्यों में टिकी हैं। हरियाणा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, असम, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, महाराष्ट्र, सिक्किम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड जैसे राज्य रिटेल में एफडीआई के पक्ष में हैं। इन राज्यों के साथ ही दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में सबसे ज्यादा विदेशी किराना स्टोर खुलने की उम्मीद है। यदि इन राज्यों में विदेशी निवेश आने लगा और सरकार का फैसला सही साबित हुआ तो अन्य राज्य कटघरे में आ जाएंगे और कांग्रेस को इसका विशेष फायदा होगा, तब अन्य राज्यों पर इसे अपनाने का दबाव आएगा। किसी नीतिगत फैसले पर गेंद को विपक्षी पाले में फेंकने और तमाशा देखने की लम्बी परम्परा रही है। जब केंद्र की नीतियों पर राज्यों का विरोध हो, तो इससे बचने का अच्छा तरीका होता है कि फैसले को मानने न मानने का अधिकार राज्यों पर छोड़ दें। इससे आप कुछ देर के लिए सुरक्षित जगह पा लेते हैं। मौजूदा फैसलों पर भी केंद्र सरकार ने राज्यों से यही कहा है कि यदि राज्य सरकारें यह सोचती हैं कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश आने और देश में बड़े-बड़े विदेशी किराना स्टोर खुलने से देश के करोड़ों छोटे व्यापारी प्रभावित होंगे, तो वे इसे अपने राज्यों में अनुमति न दें और फिर एक बड़ी विदेशी पूंजी से वंचित रहें। अन्य दलों की तरह कांग्रेस को भी आम चुनाव दिखाई देने लगे हैं। इसीलिये उसने पहले डीजल मूल्य वृद्धि और रसोई गैस सिलेण्डर की राशनिंग का निर्णय किया, ताकि कोयला घोटाले से ध्यान हटे और फिर विदेशी निवेश को स्वीकृति देकर मूल्यवृद्धि से भी ध्यान हटाने का कारगर प्रयास किया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सख्त तेवर भी इन्हीं तैयारियों का एक रूप हैं।

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