सपोले सांप बन जाएं और सपेरे को ही डंसने लगें तो चिंता की बात है। पाकिस्तान ने जो बोया, वो काटा। ऊपर से, समूची दुनिया का दुर्भाग्य यह है कि वो अब भी दोगलापन नहीं छोड़ रहा। आतंकवाद की नकेल कसने के लिए जो उपक्रम करता प्रतीत हो रहा है, वह कभी सार्थक नतीजे नहीं दे सकता। अमेरिकी रक्षा प्रतिष्ठानों से जुड़ी एक अहम एजेंसी के संकेत हैं कि आतंकवादियों पर लगाम कसने की पाकिस्तानी कोशिश भारत जैसे मुल्कों के लिए मुश्किल का सबब बनेगी। यह आतंकी भारत जैसे देशों में गड़बड़ी फैलाने में झोंक दिए जाएंगे, तब तक उन्हें नेपाल आदि अस्थाई ठिकानों पर रोका जाएगा। हालांकि माना यह भी जा रहा है कि पाकिस्तान उग्रवादी संगठनों की जड़ें हिलाने की कोई भी कोशिश करेगा भी नहीं, नवाज शरीफ ने जो भी कुछ कहा है, वह अंतर्राष्ट्रीय जगत को दिखाने के लिए कहा है।
पाकिस्तान का हाल किसी से छिपा नहीं है। यहां सियासी सत्ता है, नवाज शरीफ निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं, राष्ट्रपति की नियुक्ति है। सदन हैं, लब्बोलुआब यह है कि यहां ऊपरी तौर पर एक मुकम्मल लोकतंत्र है पर वास्तविक तस्वीर इसके बिल्कुल उलट है। सेना का यहां बरसों से वर्चस्व है, सेनाध्यक्ष की ताकत और प्रभाव राजनीतिक नेतृत्व से ज्यादा होता है। सेना के बारे में कहा जाता है कि वह जो चाहे करे, किसी की बिसात नहीं कि उसे टोक भी पाए। हाल ही में नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के दौरान नवाज शरीफ ने कोशिश की थी कि सेना पर राजनीतिक नियंत्रण कायम कर लें। अपने विश्वस्त जनरल को जिम्मेदारी भी दी लेकिन कुछ ही दिन बाद स्थितियां सामने आने लगी हैं। नए सेनाध्यक्ष भी सैन्य तंत्र की बैठकों में नवाज के विरुद्ध खुलकर बोलने लगे हैं। संवेदनशील क्षेत्रों के निरीक्षण में वह राजनेताओं की हिस्सेदारी को वह हतोत्साहित करने लगे हैं। पेशावर हमले के बाद प्रधानमंत्री नवाज शरीफ उन्हें साथ ले जाने के लिए बमुश्किल तैयार कर पाए। दूसरी मुश्किल है पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटरसर्विसेज इंटेलीजेंस (आईएसआई)। एजेंसी आतंकवादियों को न केवल पालती-पोसती है बल्कि उन्हें जन्म भी देती है। आतंक के क्षेत्र में युवकों की भर्ती को उसका प्रोत्साहन रहता है। मंशा होती है दुश्मन देशों में अपने नापाक मंसूबों को अंजाम तक पहुंचाना। एजेंसी ने तमाम आतंकवादी संगठनों को भी पुष्पित-पल्लवित होने में मदद की है। सवाल यह है कि वह खुद के खड़े किए आतंकियों को क्यों मारेगी या मारने देगी? पेशावर की घटना के बाद जिस तरह के संकेत आए हैं, उनसे पता चलता है कि आतंकियों की योजना आईएसआई की शह पर सेना को सबक सिखाने की थी। यह बताना था कि सेना बेवजह आतंकवादियों को निशाना बंद करे।
सवाल यह है कि नवाज शरीफ इन परिस्थितियों में अपने ऐलान को धरातल तक कैसे पहुंचाएंगे क्योंकि आईएसआई का मजबूत तंत्र उन्हें ऐसा करने से रोकने की हरसंभव कोशिश करेगा। फिर, अगर वह सफल रहे भी तो इस्लामाबाद की गलियों तक पहुंच गए इन आतंकवादियों को कैसे काबू किया जाएगा? वह इन्हें मारने के बजाए समझाने का नाटक कराएंगे, बाद में धीरे से उन्हें भारत जैसे दुश्मन देशों में गड़बड़ी फैलाने के लिए भेज दिया जाएगा। नवाज शरीफ के लिए तीसरी समस्या न्याय पालिका है जो पूर्ववर्तियों की तरह उन्हें भी खासा परेशान कर रही है। अब बिल्कुल ताजा मामला मुंबई हमले के मास्टरमाइंड जकीउर रहमान लखवी का है। एक तरफ नवाज ताल ठोंक रहे थे, दूसरी तरह इस्लामाबाद की एक अदालत लखवी को छोड़ने की रूपरेखा बनाने में जुटी थी। विशेष बात यह है कि वकीलों की हड़ताल के बावजूद न्यायालय ने मामले की सुनवाई की। नवाज को भी खबरों से इस जमानत की जानकारी हुई। इस घटना से विश्वभर में यह संकेत गया कि नवाज के दावे नाटकमात्र थे और पाकिस्तान आतंकवाद को लेकर कतई गंभीर नहीं है। वहां भी अभियोजन अफसरों पर सरकारी नियंत्रण है और उनकी नियुक्ति सरकार ही करती है, फिर भी इन अधिकारियों ने मामला नवाज के संज्ञान में लाने की जरूरत भी नहीं समझी। हालांकि बाद में लोकलिहाज से लखवी को जेल में ही रोकने का निर्णय किया गया लेकिन यह पूरा घटनाक्रम सबसे ज्यादा भारत के लिए मुश्किलों का संकेत दे रहा है। रिपोर्ट बता रही हैं कि नेपाल में राजनीतिक मजबूती न आने की वजह से भारत पर उग्रवाद का खतरा गहरा रहा है। पाकिस्तान की योजना नेपाल के रास्ते उत्तर प्रदेश में सिख उग्रवादियों को भेजने की है। पाकिस्तान उत्तर प्रदेश को ट्रांजिट रूट के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है जिसके लिए भारत-नेपाल की 550 किमी लम्बी खुली सीमा मददगार साबित हो रही है। इन आतंकियों को तराई के इलाकों में शरण दिलाई जाती है और फिर, इन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में भेजे जाने की योजना है। पाकिस्तान की साजिश इस लिहाज से भी खतरनाक है कि सिख और मुस्लिम आतंकवादी संगठन एक साथ काम कर रहे हैं। नेपाल स्थित पाक दूतावास इन आतंकियों को हरसंभव मदद दे रहा है। सिद्धार्थनगर के बढनी बॉर्डर से सिख आतंकवादी माखन सिंह उर्फ दयाल की गिरफ्तारी से पाकिस्तान के मंसूबों का खुलासा हो चुका है। पाकिस्तान बब्बर खालसा पर दांव लगा रहा है। माखन दर्जनों सिख युवकों को आतंकी गतिविधियों की ट्रेनिंग दिलाकर नेपाल के रास्ते भारत भेज चुका है। उसके काठमांडू में सक्रिय आईएसआई एजेंटों से अच्छे सम्बन्ध हैं। नेपाल में वह अपनी गतिविधियों को पाकिस्तानी दूतावास के संरक्षण में अंजाम दे रहा था। सिद्धार्थनगर और महराजगंज जिले से अब तक एक दर्जन से दुर्दांत सिख आतंकी पकड़े जा चुके हैं। इन गिरफ्तार लोगों में अधिकतर की पहचान जैश-ए-मोहम्मद और अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठनों के सदस्य के रूप में की जा चुकी है।
पाकिस्तान का हाल किसी से छिपा नहीं है। यहां सियासी सत्ता है, नवाज शरीफ निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं, राष्ट्रपति की नियुक्ति है। सदन हैं, लब्बोलुआब यह है कि यहां ऊपरी तौर पर एक मुकम्मल लोकतंत्र है पर वास्तविक तस्वीर इसके बिल्कुल उलट है। सेना का यहां बरसों से वर्चस्व है, सेनाध्यक्ष की ताकत और प्रभाव राजनीतिक नेतृत्व से ज्यादा होता है। सेना के बारे में कहा जाता है कि वह जो चाहे करे, किसी की बिसात नहीं कि उसे टोक भी पाए। हाल ही में नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के दौरान नवाज शरीफ ने कोशिश की थी कि सेना पर राजनीतिक नियंत्रण कायम कर लें। अपने विश्वस्त जनरल को जिम्मेदारी भी दी लेकिन कुछ ही दिन बाद स्थितियां सामने आने लगी हैं। नए सेनाध्यक्ष भी सैन्य तंत्र की बैठकों में नवाज के विरुद्ध खुलकर बोलने लगे हैं। संवेदनशील क्षेत्रों के निरीक्षण में वह राजनेताओं की हिस्सेदारी को वह हतोत्साहित करने लगे हैं। पेशावर हमले के बाद प्रधानमंत्री नवाज शरीफ उन्हें साथ ले जाने के लिए बमुश्किल तैयार कर पाए। दूसरी मुश्किल है पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटरसर्विसेज इंटेलीजेंस (आईएसआई)। एजेंसी आतंकवादियों को न केवल पालती-पोसती है बल्कि उन्हें जन्म भी देती है। आतंक के क्षेत्र में युवकों की भर्ती को उसका प्रोत्साहन रहता है। मंशा होती है दुश्मन देशों में अपने नापाक मंसूबों को अंजाम तक पहुंचाना। एजेंसी ने तमाम आतंकवादी संगठनों को भी पुष्पित-पल्लवित होने में मदद की है। सवाल यह है कि वह खुद के खड़े किए आतंकियों को क्यों मारेगी या मारने देगी? पेशावर की घटना के बाद जिस तरह के संकेत आए हैं, उनसे पता चलता है कि आतंकियों की योजना आईएसआई की शह पर सेना को सबक सिखाने की थी। यह बताना था कि सेना बेवजह आतंकवादियों को निशाना बंद करे।
सवाल यह है कि नवाज शरीफ इन परिस्थितियों में अपने ऐलान को धरातल तक कैसे पहुंचाएंगे क्योंकि आईएसआई का मजबूत तंत्र उन्हें ऐसा करने से रोकने की हरसंभव कोशिश करेगा। फिर, अगर वह सफल रहे भी तो इस्लामाबाद की गलियों तक पहुंच गए इन आतंकवादियों को कैसे काबू किया जाएगा? वह इन्हें मारने के बजाए समझाने का नाटक कराएंगे, बाद में धीरे से उन्हें भारत जैसे दुश्मन देशों में गड़बड़ी फैलाने के लिए भेज दिया जाएगा। नवाज शरीफ के लिए तीसरी समस्या न्याय पालिका है जो पूर्ववर्तियों की तरह उन्हें भी खासा परेशान कर रही है। अब बिल्कुल ताजा मामला मुंबई हमले के मास्टरमाइंड जकीउर रहमान लखवी का है। एक तरफ नवाज ताल ठोंक रहे थे, दूसरी तरह इस्लामाबाद की एक अदालत लखवी को छोड़ने की रूपरेखा बनाने में जुटी थी। विशेष बात यह है कि वकीलों की हड़ताल के बावजूद न्यायालय ने मामले की सुनवाई की। नवाज को भी खबरों से इस जमानत की जानकारी हुई। इस घटना से विश्वभर में यह संकेत गया कि नवाज के दावे नाटकमात्र थे और पाकिस्तान आतंकवाद को लेकर कतई गंभीर नहीं है। वहां भी अभियोजन अफसरों पर सरकारी नियंत्रण है और उनकी नियुक्ति सरकार ही करती है, फिर भी इन अधिकारियों ने मामला नवाज के संज्ञान में लाने की जरूरत भी नहीं समझी। हालांकि बाद में लोकलिहाज से लखवी को जेल में ही रोकने का निर्णय किया गया लेकिन यह पूरा घटनाक्रम सबसे ज्यादा भारत के लिए मुश्किलों का संकेत दे रहा है। रिपोर्ट बता रही हैं कि नेपाल में राजनीतिक मजबूती न आने की वजह से भारत पर उग्रवाद का खतरा गहरा रहा है। पाकिस्तान की योजना नेपाल के रास्ते उत्तर प्रदेश में सिख उग्रवादियों को भेजने की है। पाकिस्तान उत्तर प्रदेश को ट्रांजिट रूट के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है जिसके लिए भारत-नेपाल की 550 किमी लम्बी खुली सीमा मददगार साबित हो रही है। इन आतंकियों को तराई के इलाकों में शरण दिलाई जाती है और फिर, इन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में भेजे जाने की योजना है। पाकिस्तान की साजिश इस लिहाज से भी खतरनाक है कि सिख और मुस्लिम आतंकवादी संगठन एक साथ काम कर रहे हैं। नेपाल स्थित पाक दूतावास इन आतंकियों को हरसंभव मदद दे रहा है। सिद्धार्थनगर के बढनी बॉर्डर से सिख आतंकवादी माखन सिंह उर्फ दयाल की गिरफ्तारी से पाकिस्तान के मंसूबों का खुलासा हो चुका है। पाकिस्तान बब्बर खालसा पर दांव लगा रहा है। माखन दर्जनों सिख युवकों को आतंकी गतिविधियों की ट्रेनिंग दिलाकर नेपाल के रास्ते भारत भेज चुका है। उसके काठमांडू में सक्रिय आईएसआई एजेंटों से अच्छे सम्बन्ध हैं। नेपाल में वह अपनी गतिविधियों को पाकिस्तानी दूतावास के संरक्षण में अंजाम दे रहा था। सिद्धार्थनगर और महराजगंज जिले से अब तक एक दर्जन से दुर्दांत सिख आतंकी पकड़े जा चुके हैं। इन गिरफ्तार लोगों में अधिकतर की पहचान जैश-ए-मोहम्मद और अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठनों के सदस्य के रूप में की जा चुकी है।
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