उत्तर प्रदेश की सियासत के सबसे विवादित नेताओं में एक मोहम्मद आजम खां अगर अचानक ताजमहल की कमाई पर वक्फ बोर्ड के दावे को दम देते हैं तो इसके मायने क्या हैं? ताज को वक्फ सम्पत्ति बताकर उन्होंने तूफान से पहले शांत पड़ी मुस्लिम सियासत में कंकड़ फेंका है। यह कुछ दिन बाद की तैयारियां हैं, जब देश का सबसे विवादित दल मजलिस इत्तेहादुल मुसलिमीन (एमआईएम) राज्य विधानसभा के चुनावों के लिए कमर कस रहा होगा।असदुद्दीन उवैसी की यह पार्टी कई जिलों में अपनी इकाइयां गठित करने के लिए प्रयासरत है। असल में, मोहम्मद आजम खां इस समय ओवैसी के आगमन की खबरों से भयाक्रांत हैं।
संभव है कि असदुद्दीन उवैसी को ज्यादा लोग न जानते हों, लेकिन अपने राज्य आंध्र प्रदेश और आसपास की मुस्लिम सियासत में वह भूकम्प की मानिंद हैं। उन्हीं की शैली के उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन हिंदुस्तान को खुलेआम चुनौती देते हैं। मुंबई हमले को जायज ठहराते हैं। मुंबई हमले के दोषी पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब को बच्चा बताते हैं और भी बहुत-कुछ बोलते हैं जिसका उल्लेख करना नीति और नैतिकता के हिसाब से उचित नहीं। करीब दो साल पहले 24 दिसम्बर, 2012 को आदिलाबाद के कौमी जलसे में अकबरुद्दीन ओवैसी ने जो-कुछ भी बोला, उससे हंगामा बरप गया। अकबरुद्दीन विधायक हैं और असदुद्दीन ओवैसी एमआईएम अध्यक्ष और हैदराबाद से लोकसभा सांसद हैं। एमआईएम की शुरुआत अकबरुद्दीन के पिता सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी ने की थी और अब उनकी राजनीतिक विरासत को उनके दोनों बेटे संभाल रहे हैं। लोगों को भड़काना या फिर समूचे हिंदुस्तान को चुनौती देने जैसा बयान अकबरुद्दीन की राजनीति का हिस्सा रहा, लेकिन चौंकाने वाली बात यह थी कि न तो तत्कालीन केंद्र सरकार और न ही आंध्र प्रदेश सरकार ने कोई कार्रवाई की। दरअसल, उन्हें बखेड़े का डर था इसीलिये जब खूब बखिया उधड़ी तो कार्रवाई की औपचारिकता निभा ली गई। सुल्तान से इतर, उनके दोनों बेटों की योजना पार्टी के देश के अन्य हिस्सों में विस्तार की है। वह चाहते हैं कि एमआईएम सियासी ताकत बने और मुसलमानों का पूरा वोट उनके हिस्से में आ जाए। विस्तारवादी योजना की शुरुआत भी अच्छी हुई, जब महाराष्ट्र में उनकी पार्टी को दो विधानसभा सीटें प्राप्त हुर्इं। कई सीटों पर एमआईएम पहले तीन स्थानों पर रही। वह भी जब, जबकि उसकी तैयारियां भी आधी-अधूरी थीं। भाजपा और शिवसेना के तमाम प्रत्याशी जीत के लिए तरस गए होते, यदि एमआईएम मैदान में नहीं होती क्योंकि उसने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के थोक में मुस्लिम वोट काटे। इससे उवैसी बंधुओं में उत्साह का संचार हुआ और उन्होंने उत्तर प्रदेश की तरफ रुख करने का फैसला कर लिया। मुस्लिमों की अच्छी-खासी आबादी वाले आजमगढ़ जैसे जिलों में उन्होंने कार्यकर्ताओं की भर्ती कर ली है। असदुद्दीन ने आजमगढ़ के गांव को गोद लेने का ऐलान किया है जहां से सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव सांसद हैं। आगरा में भी सुगबुगाहट है। धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले दलों से नाराज कार्यकर्ता एमआईएम के स्थानीय कर्ता-धर्ताओं से संपर्क साधने लगे हैं। इसी तरह मुसलिमीन देश की राजधानी दिल्ली में भी अपने पंख फैलाने की तैयारी कर रही है, जहां उसका सांगठनिक ढांचा तैयार है। वह उन सीटों की पहचान करने में लगी है, जहां से उसकी जीत सुनिश्चित हो सकती है।
ताज महल पर शिगूफेबाजी की वजह भी यही है। वरना करीब नौ साल पहले भी यह मुद्दा उठा है, तब उसकी कमाई पर उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दावा किया था। ताज महल को अपनी मिल्कियत बताया था, तब से मामला सुप्रीम कोर्ट में है। थोड़ी हैरानी होती है, कोई सालभर पहले ही खां ने कहा था कि बाबरी मस्जिद के बजाय कोई भीड़ अगर ताज महल को ध्वस्त करने के लिए निकलती तो वह खुद उसका नेतृत्व करते क्योंकि ताज महल जनता के पैसे के दुरुपयोग का नमूना है और शाहजहां को कोई हक नहीं था कि वह अपनी प्रेमिका की याद के लिए जनता के करोड़ों रुपये लुटा देते। फिर भी आजम खां बेशक, यह मुद्दा उठाकर सक्रिय नहीं हुए। लेकिन कट्टरपंथी समूह इस मुद्दे को लपकने का मन बना चुके हैं। यह वो कट्टरपंथी हैं जो विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े हुए हैं और एमआईएम की दस्तक से बेचैन हैं। वह चाहते हैं कि उवैसी रुक जाएं। अटकलें यह हैं कि लव जिहाद के बाद ताजमहल को चुनावी आग में झोंकने की व्यूह रचना की जा रही है। भारतीय राजनीति में ऐसी शोशेबाजी कोई नयी नहीं है बल्कि तमाम बार इनके इस्तेमाल से कामयाबी हासिल की गई है। अभी उत्तर प्रदेश चुनावों में काफी समय बाकी है। एमआईएम अगर अभी से तैयारी में जुटेगी तो तमाम सूरमाओं की सियासी जमीन खिसक सकती है। सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (समान विचारधारा के महागठबंधन के बाद संभावित नाम समाजवादी जनता दल), बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस का मुस्लिम वोट उनसे बिदक सकता है। दूसरी तरफ, यानी भगवा खेमे की बात करें तो वहां भी पूरे जोरों पर तैयारियां हैं। लव जिहाद के मुद्दे को जिस तरह से तूल दिया गया, उससे यही संकेत मिल रहा है। धार्मिक आधार ताज महल को कसने पर उधर से भी प्रतिक्रिया हो सकती है क्योंकि एक प्रभावशाली समूह अरसे से ताज महल को तेजो महालय बताकर विवादित करने की कोशिश में है। यह मसला फिर जोर पकड़ेगा, इसकी संभावनाएं पुख्ता हो रही हैं। इसके बावजूद, अच्छी बात यह है कि मुसलमानों का बड़ा तबका ताज महल को विवादित करने के मसले पर कुपित-क्रोधित है। आगरा में आजम के बयान की प्रतिक्रिया में एकजुटता से कहा गया है कि ताज महल देश और दुनिया की एक बेमिसाल और अनमोल धरोहर है। कमाई पर हक से भी असहमति जताई गई है क्योंकि वक्फ के नियंत्रण में जो इमारतें हैं, उनका बुरा हाल किसी से छिपा नहीं है। फिर ताज से हुई कमाई आगरा के विकास में भी लगाई जा रही है।
संभव है कि असदुद्दीन उवैसी को ज्यादा लोग न जानते हों, लेकिन अपने राज्य आंध्र प्रदेश और आसपास की मुस्लिम सियासत में वह भूकम्प की मानिंद हैं। उन्हीं की शैली के उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन हिंदुस्तान को खुलेआम चुनौती देते हैं। मुंबई हमले को जायज ठहराते हैं। मुंबई हमले के दोषी पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब को बच्चा बताते हैं और भी बहुत-कुछ बोलते हैं जिसका उल्लेख करना नीति और नैतिकता के हिसाब से उचित नहीं। करीब दो साल पहले 24 दिसम्बर, 2012 को आदिलाबाद के कौमी जलसे में अकबरुद्दीन ओवैसी ने जो-कुछ भी बोला, उससे हंगामा बरप गया। अकबरुद्दीन विधायक हैं और असदुद्दीन ओवैसी एमआईएम अध्यक्ष और हैदराबाद से लोकसभा सांसद हैं। एमआईएम की शुरुआत अकबरुद्दीन के पिता सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी ने की थी और अब उनकी राजनीतिक विरासत को उनके दोनों बेटे संभाल रहे हैं। लोगों को भड़काना या फिर समूचे हिंदुस्तान को चुनौती देने जैसा बयान अकबरुद्दीन की राजनीति का हिस्सा रहा, लेकिन चौंकाने वाली बात यह थी कि न तो तत्कालीन केंद्र सरकार और न ही आंध्र प्रदेश सरकार ने कोई कार्रवाई की। दरअसल, उन्हें बखेड़े का डर था इसीलिये जब खूब बखिया उधड़ी तो कार्रवाई की औपचारिकता निभा ली गई। सुल्तान से इतर, उनके दोनों बेटों की योजना पार्टी के देश के अन्य हिस्सों में विस्तार की है। वह चाहते हैं कि एमआईएम सियासी ताकत बने और मुसलमानों का पूरा वोट उनके हिस्से में आ जाए। विस्तारवादी योजना की शुरुआत भी अच्छी हुई, जब महाराष्ट्र में उनकी पार्टी को दो विधानसभा सीटें प्राप्त हुर्इं। कई सीटों पर एमआईएम पहले तीन स्थानों पर रही। वह भी जब, जबकि उसकी तैयारियां भी आधी-अधूरी थीं। भाजपा और शिवसेना के तमाम प्रत्याशी जीत के लिए तरस गए होते, यदि एमआईएम मैदान में नहीं होती क्योंकि उसने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के थोक में मुस्लिम वोट काटे। इससे उवैसी बंधुओं में उत्साह का संचार हुआ और उन्होंने उत्तर प्रदेश की तरफ रुख करने का फैसला कर लिया। मुस्लिमों की अच्छी-खासी आबादी वाले आजमगढ़ जैसे जिलों में उन्होंने कार्यकर्ताओं की भर्ती कर ली है। असदुद्दीन ने आजमगढ़ के गांव को गोद लेने का ऐलान किया है जहां से सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव सांसद हैं। आगरा में भी सुगबुगाहट है। धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले दलों से नाराज कार्यकर्ता एमआईएम के स्थानीय कर्ता-धर्ताओं से संपर्क साधने लगे हैं। इसी तरह मुसलिमीन देश की राजधानी दिल्ली में भी अपने पंख फैलाने की तैयारी कर रही है, जहां उसका सांगठनिक ढांचा तैयार है। वह उन सीटों की पहचान करने में लगी है, जहां से उसकी जीत सुनिश्चित हो सकती है।
ताज महल पर शिगूफेबाजी की वजह भी यही है। वरना करीब नौ साल पहले भी यह मुद्दा उठा है, तब उसकी कमाई पर उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दावा किया था। ताज महल को अपनी मिल्कियत बताया था, तब से मामला सुप्रीम कोर्ट में है। थोड़ी हैरानी होती है, कोई सालभर पहले ही खां ने कहा था कि बाबरी मस्जिद के बजाय कोई भीड़ अगर ताज महल को ध्वस्त करने के लिए निकलती तो वह खुद उसका नेतृत्व करते क्योंकि ताज महल जनता के पैसे के दुरुपयोग का नमूना है और शाहजहां को कोई हक नहीं था कि वह अपनी प्रेमिका की याद के लिए जनता के करोड़ों रुपये लुटा देते। फिर भी आजम खां बेशक, यह मुद्दा उठाकर सक्रिय नहीं हुए। लेकिन कट्टरपंथी समूह इस मुद्दे को लपकने का मन बना चुके हैं। यह वो कट्टरपंथी हैं जो विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े हुए हैं और एमआईएम की दस्तक से बेचैन हैं। वह चाहते हैं कि उवैसी रुक जाएं। अटकलें यह हैं कि लव जिहाद के बाद ताजमहल को चुनावी आग में झोंकने की व्यूह रचना की जा रही है। भारतीय राजनीति में ऐसी शोशेबाजी कोई नयी नहीं है बल्कि तमाम बार इनके इस्तेमाल से कामयाबी हासिल की गई है। अभी उत्तर प्रदेश चुनावों में काफी समय बाकी है। एमआईएम अगर अभी से तैयारी में जुटेगी तो तमाम सूरमाओं की सियासी जमीन खिसक सकती है। सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (समान विचारधारा के महागठबंधन के बाद संभावित नाम समाजवादी जनता दल), बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस का मुस्लिम वोट उनसे बिदक सकता है। दूसरी तरफ, यानी भगवा खेमे की बात करें तो वहां भी पूरे जोरों पर तैयारियां हैं। लव जिहाद के मुद्दे को जिस तरह से तूल दिया गया, उससे यही संकेत मिल रहा है। धार्मिक आधार ताज महल को कसने पर उधर से भी प्रतिक्रिया हो सकती है क्योंकि एक प्रभावशाली समूह अरसे से ताज महल को तेजो महालय बताकर विवादित करने की कोशिश में है। यह मसला फिर जोर पकड़ेगा, इसकी संभावनाएं पुख्ता हो रही हैं। इसके बावजूद, अच्छी बात यह है कि मुसलमानों का बड़ा तबका ताज महल को विवादित करने के मसले पर कुपित-क्रोधित है। आगरा में आजम के बयान की प्रतिक्रिया में एकजुटता से कहा गया है कि ताज महल देश और दुनिया की एक बेमिसाल और अनमोल धरोहर है। कमाई पर हक से भी असहमति जताई गई है क्योंकि वक्फ के नियंत्रण में जो इमारतें हैं, उनका बुरा हाल किसी से छिपा नहीं है। फिर ताज से हुई कमाई आगरा के विकास में भी लगाई जा रही है।
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