Saturday, November 16, 2013

झूठी शान के बदले जान !

आगरा के एत्मादपुर में एक बेटी पिता की झूठी आन का शिकार बन गई। पिता ने आवेश में आकर उसे ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर मार डाला। आनर किलिंग के इस मामले से फिर उजागर हुआ है कि हमारा सामाजिक ताना-बाना अभी उतना मजबूत नहीं हुआ है जो जाति और धर्म के नाम पर पड़ने वाली चोट सहन कर सके। विचारों में 21वीं सदी की उन्नति की बात कहने वाले वैश्वीकरण के युग में रहने के इस दावेदार समाज को आखिर हुआ क्या है। झूठी शान के लिए आनर किलिंग के ऐसे तमाम मामले गाहे-बगाहे सामने आ ही जाते हैं। देश की राजधानी हो या फिर कस्बे और गांव, प्यार करने वालों को कड़ी सजा दी जाती है। शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक बदलाव की दुहाई देकर देश के विकास की बात करने वाले हम लोग उस समय क्यों मौन हो जाते हैं, जब हमारे बीच ही आॅनर किलिंग के नाम पर हर साल कई बेगुनाह मौत के घाट उतार दिए जाते हैं? आनर किलिंग पर खूब हो-हल्ला मचा लेकिन हालात अब भी बदले नहीं हैं। हाल ही में हुए एक शोध से यह उजागर हुआ है कि भारत में जितने लोग आतंकवादी घटनाओं में मरते हैं, उससे कहीं ज्यादा मौतें प्यार या शारीरिक सम्बंधों की वजह से होती हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की ओर से जारी वर्ष 2012 के आंकड़े भी चिंताएं पैदा करते हैं, जिनसे साफ है कि निजी दुश्मनी और संपत्ति विवाद के बाद प्यार हत्याओं की तीसरी सबसे बड़ी वजह है। यही नहीं, देश के सात राज्यों में तो प्यार ही हत्याओं की सबसे प्रमुख वजह है। इनमें 445 हत्याओं के साथ आंध्र प्रदेश पहले और 325 के आंकड़े के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर है। आश्चर्यजनक रूप से आॅनर किलिंग के लिए हरियाणा को कोसा जाता है लेकिन वहां प्यार के बदले महज 50 लोगों को मौत हासिल हुई, जबकि उत्तर प्रदेश में इसका साढ़े छह गुना। लेकिन ऐसी स्थितियों की वजह क्या हैं? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के सर्वेक्षण की ही बात करें तो पता चलता है कि आॅनर किलिंग के मामलों में ज्यादा वो लोग मारे गए जिन्होंने कुछ समय पूर्व ही युवावस्था की दहलीज पार की थी। कौन नहीं जानता कि उम्र का एक पड़ाव ऐसा भी आता है, जिसमें युवा मन अपनी भलाई के लिए ज्यादा नहीं सोच पाता। उसका दिमाग कहीं एक जगह जाकर टिक जाता है। प्रेम-प्रसंगों की जहां तक बात है, उसे कोई सलाह भी गलत लगती है, लेकिन आज के खुले समाज में माता-पिता, भाई-बहन आपस में दिल की बात खुलकर करते हैं। आगे बढ़ने-बढ़ाने के लिए संघर्ष करते हैं। अगर समझदार, कानूनी भाषा में बालिग, होने पर सेटल होने के लिए अपने जीवनसाथी का चुनाव खुद करता या करती है, तो उस पर आपत्ति क्यों? फिर आपत्ति का यह तरीका, कि किसी को मौत के घाट उतार दिया जाए। बजाए इसके, बातचीत का रास्ता भी तो अपनाया जा सकता है। असल में हमारे समाज में बेटियों के मामले में ज्यादा आन और शान समझी जाती है। कई मामलों में देखा गया है कि बेटे ने अपने पसंद की लड़की से शादी कर ली तो उसे स्वीकार कर लिया गया लेकिन यही कदम परिवार की बेटी ने उठाया तो उसे मार डाला गया। दरअसल, मध्ययुगीन परंपरा में जीने वाले समाज ही इस अभिशाप को ढो रहे हैं। इसके उलट, जिन समाजों का विकास हो रहा है, वे इन्हें छोड़ते जा रहे हैं। वे महिलाओं का वास्तविक सम्मान और उनको बराबरी का स्थान देने लगे हैं। उनके लिए महिलाएं पुरुष के मनोरंजन का साधन नहीं हैं। अधिकांश घटनाओं के पीछे जातिगत श्रेष्ठता का अभिमान ही मुख्य कारण दिखाई देता है। अंतर्जातीय विवाह इन बर्बरताओं के मूल में दिखते हैं। प्रगतिशील हिंदू या किसी भी दूसरे धर्म के अनुयायियों ने कभी जाति को जन्मना नहीं माना, फिर किन कारणों से यह जन्मना बन गई, इस पर भी विचार करना होगा। अपने प्रिय व्यक्ति के शव को भी जलाने में संकोच नहीं करने वाला हिंदू क्यों अभी तक इस अभिशाप को ढो रहा है? विवाह के समय क्यों वह जाति के खोल में घुस जाता है? जाति के चश्मे से देखने वाले लोग यह क्यों नहीं समझते कि परिवर्तन ही जीवन है और जड़ता मौत का प्रतीक। यह उस देश की बात है, जो मंगल अभियान की बदौलत दुनिया की अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, जो सूचना प्रौद्योगिकी की महाशक्ति है। हम बेटियों को पढ़ाने-लिखाने के बड़े-बड़े दावे किया करते हैं, उन्हें बराबर सिद्ध करने के लिए क्या-कुछ नहीं कहा करते, तो फिर इस तरह की घटनाएं कैसे संकेत देती हैं? क्या छोटे-छोटे घावों के नासूर बन जाने से पहले उसका इलाज नहीं किया जाना चाहिए? क्या हमारे घरों का माहौल ऐसा नहीं बनना चाहिए कि बच्चे अपने भविष्य के बारे में सोचें और अपना करियर बनाएं। ऐसे में यदि उन्हें अपने हिसाब से योग्य जीवनसाथी नजर आए तो हम उसे सहमति प्रदान करें या सही मार्गदर्शन कर दूसरे रास्ते पर ले जाएं। पुलिस और कानून के स्तर पर भी कड़ाई की जरूरत है, क्या यह वक्त नहीं है आॅनर किलिंग के तमाम मामलों को देखते हुए हमारे नीति-नियंताओं को ठोस कदम उठाने चाहिए? कोई तो ऐसा कानून बनना चाहिए कि सम्मान के नाम पर होने वाली ये हत्याएं तत्काल प्रभाव से रुक जाएं। इंसानियत का खून होना बंद होना ही चाहिये।

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