Saturday, November 2, 2013
दुनियाभर में दीपावली
दीपावली देशों की सीमाएं पार कर चुकी है। अप्रवासी और भारतीय मूल के नागरिकों के जरिए इस प्रमुख त्योहार ने पहले अन्य देशों में दस्तक दी और अब वहां की संस्कृति में घुलने-मिलने लगा है। आप इस पर आश्चर्य करेंगे, अमेरिका में प्रतिवर्ष दीपावली के पटाखों पर खर्च में दो सौ गुना तक वृद्धि हुई है। वहां की संसद दीपावली पर प्रस्ताव पारित करती है। इसी तरह ब्रिटेन जैसे देशों में भारतीय अब वहां के स्थानीय माहौल के मुताबिक ध्वनि प्रदूषण की चिंता नहीं किया करते बल्कि जमकर आतिशबाजी करते हैं। दिवाली के दिन त्रिनिडाड और टुबैगो में सार्वजनिक अवकाश होता है। बेशक, यह भारतीयों की बढ़ती आर्थिक और सियासी हैसियत का असर है लेकिन विशाल भारतीय बाजारों की भूमिका भी इसमें कम नहीं है, तभी तो पटाखे अमेरिका-आस्ट्रेलिया के नामी सुपरस्टोर्स में मिला करते हैं।
वो ज्यादा पुराने दिन नहीं जब विदेशों में रहने वाले हमारे भाई-बंधु संक्षिप्त-सी दीपावली मनाया करते थे। ध्वनि-वायु प्रदूषण जैसे डर उन्हें डराते थे। पटाखों के बारे में वो सोचने तक से घबराते थे। दक्षिण-पूर्व इंग्लैण्ड के हैम्पशायर की एक घटना ने तब खूब तूल पकड़ा था जब वहां के अप्रवासी भारतीय परिवार के विरुद्ध पुलिस ने महज इस आधार पर कार्रवाई कर दी थी कि उनके चलाए पटाखों से पड़ोसी का कुत्ता डर गया था। तब रक्षाबंधन पर कलाइयों पर बंधी राखियों को वह शर्ट की फुलस्लीव से छिपाते थे। अब इंग्लैण्ड के आसमान पर भी दनादन रॉकेट दागे जाते हैं। यह मामूली बात नहीं है। सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी के संदर्भ में भारत विश्व की नौवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अपने भौगोलिक आकार के मामले में सातवां सबसे बड़ा देश है। जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश है। हाल के वर्षों में गरीबी और बेरोजगारी से सम्बन्धित मुद्दों के बावजूद हमारा देश विश्व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा है। यही हमारे दम की वजह है और विदेशों में हमारे अप्रवासी और भारतीय मूल के लोगों का दबदबा बढ़ा है। आतंकवादी वारदातों में छवि खराब होने से त्रस्त पाकिस्तानी या बांग्लादेशी ऐसे खुले माहौल में नहीं जी पाते। यह भारतीय समुदाय की 'सॉफ्ट पावर' है, उनके पास नकदी है। उन्होंने विकास की कहानियां रची हैं। व्यवसाय जगत में उनका बड़ा नाम है। उनमें से तमाम लोग तो राजनीतिक हस्तियां हैं। उनका संख्याबल है जो सत्ता के पास ला सकता है और दूर भगा सकता है। उनसे सम्बन्धित देश को उम्मीदें हैं। संस्कृति का सत्ता से सीधा रिश्ता होता है। लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नहीं। पूंजी के वर्तमान दौर में सत्ता बाजार के पास है और एक बहुत बड़ा बाजार भारत में है। इसी तरह की व्यावसायिक महत्वाकांक्षाओं ने अंग्रेजों को भारत का दरवाजा दिखाया था। कपास, चाय और मसालों की बेशुमार मौजूदगी ने उन्हें आकृष्ट किया था। वर्तमान बिहार के चंपारण में चंपा के जंगलों में उन्हें नील की फसल उगानी थी। भूण्डलीकरण के मौजूदा दौर में आज वह घुस तो नहीं सकते लेकिन भारत के विशाल बाजार में अपनी वस्तुओं से घुसपैठ की उनकी मंशा है और यह उनके लिए हजारों-करोड़ डॉलर की कमाई की वजह बन सकती है। भारत की सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की इजाजत देकर उनकी उम्मीदें बढ़ा ही दी हैं।
अरबों डॉलर की आस्ट्रेलियाई ट्रांसपोर्ट और लाजिस्टक कंपनी लिनफॉक्स के संस्थापक लिंडसे फॉक्स की बातें उस सपने को उजागर करती हैं कि भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने से आय तो बढ़ती है, रोजगार के मौके भी कई गुना बढ़ जाते हैं। अकेले आस्ट्रेलिया यदि इस व्यापार को दोगुना कर 40 अरब डॉलर तक पहुंचा लेता है तो सात प्रतिशत नए उद्योग स्थापित करने होंगे और इससे तमाम लोगों को रोजगार हासिल होगा। भारत अकेली अर्थव्यवस्था है जहां हर साल 10 करोड़ नए लोग चीजें खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं। यह संख्या आॅस्ट्रेलिया की आबादी का पांच गुना है। इसके साथ ही देश के मध्यवर्ग की खान-पान की बदलती आदतों के कारण रेस्तरां कारोबार काफी फल-फूल रहा है, यही वजह है कि विदेशी रेस्टोरेंट चेन भारत में आएदिन अपने नए-नए प्रतिष्ठान खोल रही हैं। भारत का भोजन-सेवा बाजार 50 अरब डॉलर का है जो कुछ छोटे देशों के सालाना बजट के बराबर है। इसी वजह से चिली सरीखे देशों की कम्पनियां भी ललचा रही हैं। भारतीय बाजार में चिली की शराब और समुद्री भोजन ने अपनी जगह स्थापित कर ली है। आॅटोमोबाइल बाजार भी तमाम देशों की कम्पनियों को अपने यहां मौका दे चुका है इसीलिये तमाम विदेशी नामचीन ब्रांड भारत में आसानी से सुलभ हैं। अमेरिका और यूरोप ही नहीं, अन्य देश भी हमारे दम को सलाम कर रहे हैं। त्रिनिडाड और टुबैगो में भारतीयों की अच्छी-खासी संख्या है। वहां दीपावली पर सार्वजनिक अवकाश घोषित होता है। समूचा देश एक मनचाही उत्सवधर्मिता में डूब जाता है। यहां भी पिछले दो-तीन बरस में बहुत परिवर्तन आया है। हजारों मील दूर एक भारत-सा होता है वहां। हजारों अनिवासी भारतीय अपनी मिट्टी की गंध महसूस करने के लिए ढेरों आयोजन करते हैं। सामूहिक आतिशबाजी हुआ करती है। फिजी और मॉरीशस में भी भारतीयों की संख्या काफी है। दीपावली यहां भी खूब उत्साहित करती है। दुकानों पर महीने पहले दीपावली की सेल आरंभ हो जाती है। समाचार पत्रों में दीपावली के समाचार भरने लगते हैं। एफएम रेडियो और टेलीविजन स्टेशन दीपावली के गीत, भजन और चर्चाएं प्रसारित करते हैं। खास बात यह है कि दीपावली के लिए विदेशों में उत्साह प्रतिवर्ष बढ़ रहा है। विदेशों में बसे भारतीय जहां पहले भारत आकर त्योहार मनाने को प्राथमिकता दिया करते थे, आज अपने देश में ही उल्लास और उमंग का आनंद ले रहे हैं। दीपों का यह त्योहार समूचे विश्व में फैल रहा है तो यह भी तय है कि इसके उद्देश्य और मनाने की वजह का प्रचार भी हो रहा होगा, बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश तो पूरी दुनिया में आखिरकार फैलना ही चाहिये।
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