Monday, July 15, 2013

फिर तो जनहित में भी लड़ने से बचेंगे नेता...

गुलामी काल में महात्मा गांधी का अवज्ञा आंदोलन और सरदार भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को अंग्रेजी सरकार जेलों में डालती थी और अब देशी सरकार कई बार किसानों, मजदूरों के हित और कारपोरेट लूट-भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन पर हत्या, लूट और डकैती के फर्जी मुकदमे दर्ज कर जेल भेज दिया करती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उन नेताओं का नुकसान हो सकता है जो सरकारों की साजिश या पुलिस के भ्रष्टाचार का शिकार होते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सख्ती शुरू हुई तो कुछ मुश्किलें भी सामने आएंगी, यह तय है। मुकदमों का डर होगा तो कौन और क्यों लडेगा जनता के हित के लिए? कौन लडेगा किसानों के सवालों को लेकर? कौन लडे़गा मजदूरों के सवालों को लेकर? कौन वंचित आबादी के सवालों पर आंदोलन की पहल करेगा? कौन आदिवासियों के विस्थापन-उत्पीड़न के खिलाफ सामने आएगा? सिंदूर जैसी लड़ाई देश में कैसे और क्यों होगी? सबसे बुरी बात यह हो सकती है कि पुलिस उत्पीड़न, भ्रष्टाचार और कालेधन जैसी बुराइयों के विरुद्ध लड़ाई भी थमने की आशंकाएं बनी हैं। अफसरशाही-बर्बर पुलिस के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाला व्यक्ति जेल की कोठरी में पहुंचते ही चुनाव लड़ने से वंचित हो सकता है तो क्या यह संवैधानिक व्यवस्था के लिए चुनौती की स्थिति नहीं होगी। लोकतंत्र सिर्फ सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मनमोहन सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, अमर सिंह, प्रकाश करात, सीताराम येचुरी जैसे राजनीतिज्ञों के हाथ का खिलौना नहीं है जो न कभी जनता के बीच में सही और ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं और न ही आम-आदमी की लड़ाई लड़ते हैं बल्कि एयरकन्डीशंड रूम में बैठ कर राजनीति करते हैं। भारतीय लोकतंत्र में क्या फिर राममनोहर लोहिया, राजनारायण जैसे हस्ती नहीं बल्कि टाटा, बिरला, अंबानी, एफडीआई जैसी कंपनियों से वित्तपोषित लोग चलेंगे। आशंका यह भी है कि कहीं सैयद शहाबुद्दीन, मुख्तार अंसारी, अफजल अंसारी, डीपी यादव, धनंजय सिंह जैसे दागी और आपराधिक राजनीतिज्ञों की श्रेणी में बाबा रामदेव, मेधा पाटकर जैसे लोग भी न खड़े नजर आने लगें। बाबा रामदेव पर कालेधन के खिलाफ आंदोलन में पुलिस ने कई मुकदमे दर्ज किये हैं, अगर उन्हें सजा हो गयी तो वे कभी चुनाव नहीं लड़ सकते। मेधा पाटकर पर पर्यावरण-भूमि आंदोलन में दर्जनों मुकदमे दर्ज हैं। रामदेव-मेधा पाटेकर जैसे देश में हजारों-लाखों लोग हैं जो क्या अपराधी हैं, क्या लोकतंत्र के लिए बाबा रामदेव-मेधा पाटकर जैसे लोग खतरनाक हैं? कई उदाहरणों और तथ्यों-तर्कों पर अगर आप सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तोलेंगे तो पायेंगे कि जिस फैसले पर मीडिया और आम आदमी खुश हैं, वह मुश्किल का सबब भी बन सकता है। उदाहरण के लिए हम किसान नेता तेवतिया को प्रस्तुत करते हैं। तेवतिया ने मायावती सरकार और रियल एस्टेट माफिया के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। किसानों की कीमती जमीन औने-पौने भाव में जबरदस्ती लेकर रियल एस्टेट माफिया की किस्मत चमकाने की नीति के खिलाफ आंदोलन किया था। उत्तर प्रदेश की पुलिस ने तेवतिया के किसानों के आंदोलन के खिलाफ बर्बर लाठी-गोली चलायी थी, किसानों के घरों में घुस-घुस कर महिलाओं और बच्चों को पीटा था, जेलों में उठा कर डाला था। पुलिस की इस कार्रवाई का मकसद सिर्फ और सिर्फ रियल एस्टेट के माफिया की योजनाओं को सुरक्षा प्रदान करना था। उत्तर प्रदेश पुलिस ने किसान नेता तेवतिया पर गुंडा एक्ट लगाकर जेल में डाल दिया। करीब दो साल तक जेल में रहकर तेवतिया जेल से तो बाहर आ गये हैं पर उन पर सजा की तलवार लटक रही है। स्थानीय कोर्ट से सजा मिलते ही तेवतिया चुनाव के अयोग्य घोषित हो जायेंगे। क्या तेवतिया जैसे किसान नेता के साथ यह फैसला अन्याय नहीं सिद्ध होगा। अगर कोई शख्सियत सही में आम-जनता की हितैषी है और आम जनता की समस्याओं को लेकर आंदोलन करना चाहती है तो उसके सामने समस्याएं यह आयेंगी कि वह आम जनता की समस्याएं देखे या फिर अपना चुनाव लड़ने के अधिकार को देखे। गणित की भाषा में मान लिया जाये कि बिजली-पानी की समस्या को लेकर कोई नेता आंदोलन करता है और सड़क जामकर यातायात बाधित करता है तब पुलिस जो धारा में मुकदमा दर्ज करेगी, उसमें गिरफ्तारी और सजा सुनिश्चित है। पुलिस सिर्फ विजुअल प्रमाण पर बिजली-पानी की समस्या को लेकर सड़क जाम करने वाले नेता और लोगों को सजा दिला सकती है। पश्चिम बंगाल में टाटा के खिलाफ सिंदूर में जबरदस्त आंदोलन हुआ था। किसानों ने पश्चिम बंगाल की तत्कालीन कम्युनिस्टों की सरकार का उत्पीडन सहा,लाठियां-गोलियां खायीं पर उन्होंने टाटा को निकाल बाहर करके ही दम लिया। लेकिन टाटा को बाहर करने के लिए जिन किसानों ने आंदोलन किया है, उन पर दर्जनों मुकदमे, हत्या, लूट और अत्याचार के दर्ज हैं। आज की तारीख में आप अगर कारपोरेट घरानों के भ्रष्टाचार और किसानों की जमीन की लूट के खिलाफ आंदोलन करते हैं तब पुलिस और प्रशासन मिलकर किसी को भी फर्जी हत्या, डकैती और लूट के मामले दर्ज कर और प्रत्यारोपित गवाहों की गवाही के बल पर सजा दिला कर उसकी राजनीतिक और लोकतांत्रिक जीवन को तहस-नहस कर सकती है। अगर आप अपने काम के सिलसिले में किसी सरकारी दफ्तर जाते हैं और अधिकारी आपका काम नहीं करता है, ऊपर से वह अधिकारी आप से रिश्वत मांगता है इस पर आपकी अधिकारी से नोक-झोंक हो गयी तो यह अपराध सरकारी काम में बाधा डालने का है और इसमें आपको सजा हो जायेगी। मकसद फैसले की आलोचना नहीं है लेकिन आदेश लागू करने से पूर्व सावधानियां बरती जानी होंगी ताकि मामला उलटा न पड़ जाए।

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