Thursday, July 18, 2013
आकलनः दबंग मंत्रियों से डर गई 'दबंग पार्टी'
तकरीबन डेढ़ साल के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार में तीसरा विस्तार हुआ है। देखने से यह आम विस्तार नजर आता है, कि कोई मुख्यमंत्री अपने कामकाज में हाथ बटाने के लिए मंत्रियों की संख्या में वृद्धि करे परंतु इसके निहितार्थ और भी हैं। एक बात तो बिल्कुल साफ हो चुकी है कि प्रदेश में सत्तासीन समाजवादी पार्टी भीतर असंतोष की आशंका से डरी-सहमी है वरना छह वरिष्ठ मंत्रियों को गंभीर शिकायतों के कारण हटाने का फैसला अंतिम समय में वापस न लिया गया होता।
कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव, ब्रह्मशंकर त्रिपाठी, बलराम यादव, अंबिका चौधरी, ओमप्रकाश सिंह और मनोज पारस के विरुद्ध गंभीर प्रकृति की शिकायतें हैं। दबंगई स्तर तक की शिकायतें न केवल आम जनता ने की है, बल्कि मंत्रियों के जिलों के सपा कार्यकर्ता भी मुखर हुए हैं। इन्हें हटाकर नए मंत्री बनाने की योजना थी लेकिन यह हुआ नहीं। नेतृत्व विरोध की संभावना से डर गया। यही वजह रही कि लखनऊ में ही रहने के निर्देश के बावजूद दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी के दामाद उमर खां, शाकिर अली, राजा भैया और शिवाकांत ओझा मंत्री नहीं बन पाए। कहने का आशय यह है कि दबंग छवि की पार्टी अपने ही पाले-पोसे नेताओं से डर गई। राजनीतिक तौर पर आकलन करें तो मंत्रिपरिषद में विस्तार से पूर्वी उत्तर प्रदेश में अच्छी-खासी संख्या में मौजूद भूमिहारों को संतुष्ट करने का प्रयास किया गया है। पहले इस जाति के चार लोगों को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया, फिर राजीव राय को घोसी से लोकसभा का टिकट मिला और अब नारद राय को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। भूमिहार पूर्व की 10 लोकसभा सीटों को प्रभावित करते है और विधानसभा की 40 से ज्यादा सीटों को। फेरबदल में एक नाम अमेठी के गौरीगंज क्षेत्र से विधायक गायत्री प्रजापति का भी है। गायत्री का अपना कोई बड़ा राजनीतिक वजूद नहीं सिवाए इसके, कि वो उस अमेठी की गौरीगंज विधानसभा सीट से अखिलेश की समाजवादी पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं जहां से कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी सांसद हैं। राहुल और उनकी कांग्रेस अध्यक्ष मां सोनिया गांधी के विरुद्ध समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी न खड़े करने के संकेत दिए थे। लेकिन मामला बाद में तब फंस गया जब कांग्रेस के उत्तर प्रदेश प्रभारी मधुसूदन मिस्री प्रदेश दौरे में कह गए कि सपा के प्रभाव वाली मैनपुरी सीट हो या कन्नौज या इटावा, कांग्रेस अपने प्रत्याशी जरूर उतारेगी। यह बात सपा के गले नहीं उतर पा रही। राजनीतिक तौर पर भाजपा के विरुद्ध वोटों को एकजुट करने और निजी तौर पर भलमनसाहत की उसकी पहल का कांग्रेस ने जिस तरह से जवाब दिया, वह मुलायम सिंह यादव जैसे कद्दावर नेता को रास नहीं आ रहा है। विधानसभा चुनाव में सपा का जैसा जबर्दस्त प्रदर्शन रहा है और महंगाई समेत कई संगीन समस्याओं में कांग्रेस फंसी है, उससे कोई वजह थी ही नहीं कि सपा कांग्रेस के आला नेताओं को वॉकओवर देने के लिए मजबूर होती। गायत्री को मंत्री पद देकर सपा ने अमेठी में अपनी सक्रियता बढ़ाने का संकेत दिया है। मंत्री के रूप में लखनऊ में प्रतिनिधित्व होने पर जिले के पार्टी संगठनों में ऊर्जा का संचार होता है और अफसरों में भी सक्रियता नजर आती है। नतीजतन, पार्टी के पक्ष में हवा बनती है। विवादित नेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को मंत्रिपरिषद में दोबारा न लेने का फैसला निश्चित रूप से स्वागतयोग्य है हालांकि जिस डीएसपी हत्याकांड की वजह से उन्हें पहले हटाया गया था, उसमें सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसी भी उनकी भूमिका ढूंढ नहीं पाई है। विस्तार में आगरा जैसे प्रदेश के महत्वपूर्ण जिले को निराशा हाथ लगी है। उम्मीद की जा रही थी कि विस्तार में मंत्रिपरिषद में आगरा का प्रतिनिधित्व बढ़ सकता है। ताजा विस्तार के बाद प्रदेश की जनता अब हालात में बदलाव की ज्यादा उम्मीदें करेगी। अखिलेश यादव की सरकार बनने के बाद प्रदेश का हाल कुछ सुधरा था लेकिन धीरे-धीरे व्यवस्थाएं बिगड़ने लगीं। कानून व्यवस्था पर अंगुलियां तो उठी हीं, अन्य सरकारी विभागों की सक्रियता भी कहीं-कहीं कम हो गई। विकास का पहिया थम सा गया है। औद्योगिकीकरण में वृद्धि की संभावनाएं भी धूमिल होने लगी हैं। मंत्रियों की पूरी फौज तैयार होने के बाद उम्मीद की जानी चाहिये कि तस्वीर बदलने जा रही है। उत्तर प्रदेश को अपने युवा मुख्यमंत्री से काफी आशाएं हैं।
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