Wednesday, February 20, 2013
कुम्हलाता बचपन
आगरा में थाना एत्माद्दौला क्षेत्र में सातवीं कक्षा की छात्रा सुरभि (बदला हुआ नाम) के प्राइवेट ट्यूयर ने घर पर ही यौन उत्पीड़न किया। सिलसिला दो साल तक चलता रहा। वह नौवीं कक्षा में आई, ट्यूटर बदल गया। जो दूसरा ट्यूटर लगाया गया उसने भी वही बदतमीजी दोहराई। दूसरे ट्यूटर का शब्दजाल इतना मोहित कर देने वाला था कि निधि को न चाहते हुए भी उससे प्यार हो गया। यह क्रम भी करीब दो साल चला। दूसरा ट्यूटर शादीशुदा और तीन बच्चों का बाप था। वो नाबालिग ममता को घर से भगा ले गया। ममता अपने इस 15 साल बड़े पति के साथ रह रही है जबकि उसने पहली पत्नी और तीन बच्चों को मामूली गुजारा भत्ता देकर उनके हाल पर छोड़ दिया है। बाल यौन उत्पीड़न की शिकायत समय से न होने से एक परिवार और एक बच्ची का जीवन अंधकारमय हो गया है।
बचपन कुम्हला रहा है, उसके अपने भी उसे कुचलने में पीछे नहीं। मशहूर सितार वादक स्वर्गीय पंडित रविशंकर की बेटी अनुष्का शंकर ने खुलासा किया कि जब वो छोटी थीं तो उनका यौन शोषण हुआ था। बात अकेली अनुष्का की नहीं है, हालात बहुत खराब हैं और पूरी दुनिया में ऐसे मामले सामने आए हैं। हॉलीवुड स्टार सोफिया हयात ने भी कहा है कि 10 साल की उम्र में उनका यौन शोषण किया गया था। बच्चों का यौन शोषण एक डरावना सच है और अधिकांश लोग इसके विस्तार से अनजान हैं। शोध बताते हैं कि 53 प्रतिशत या प्रत्येक दो में से एक बच्चा बाल यौन शोषण का शिकार है। सामान्य धारणा के विपरीत, घर बच्चों के लिए सबसे सुरक्षित जगह नहीं हैं, क्योंकि अधिकांश दुर्व्यवहारी परिवार के विश्वासी होते हैं। तो फिर हल क्या है, दुर्व्यवहार को मना कर सकने के साहस के लिए बच्चों को प्रशिक्षित तथा प्रोत्साहित करने के साथ साथ अभिभावकों को भी उनके संकेतों के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है। इसके अतिरिक्त बच्चों की सुरक्षा तथा अपराधियों को सख्ती के साथ दण्डित करने के लिए बाल यौन शोषण के खिलाफ विशेष एवं ठोस कानून की आवश्यकता है।
सर्वाधिक बाल यौन शोषण का देश
मौजूदा हालात ने भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा यौन शोषित बच्चों का देश बना दिया है। बाल यौन शोषण के आंकड़ों का चित्र बेहद वीभत्स कर देने वाला है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 53 फीसदी से ज्यादा बच्चों को अपने वयस्क होने तक बाल यौन शोषण के हालातों का सामना करना पड़ता है। केंद्रीय महिला एंव बाल विकास मंत्रालय’ के लिए हुए एक सर्वेक्षण से सामने आए हैं। पता चला कि विभिन्न प्रकार के शोषण में पांच से 12 वर्ष तक की उम्र के छोटे बच्चे शोषण और दुर्व्यवहार के सबसे अधिक शिकार होते हैं तथा इन पर खतरा भी सबसे अधिक होता है। इन शोषणों में शारीरिक, यौन और भावनात्मक शोषण शामिल होता है।
--- हरेक तीन में से दो बच्चे शारीरिक शोषण के शिकार बने।
--- शारीरिक रूप से शोषित 69 प्रतिशत बच्चों में 54.68 प्रतिशत लड़के थे।
--- 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे किसी न किसी प्रकार के शारीरिक शोषण के शिकार थे।
--- पारिवारिक स्थिति में शारीरिक रूप से शोषित बच्चों में 88.6 प्रतिशत का शारीरिक शोषण माता-पिता ने किया।
--- आंध्र प्रदेश, असम, बिहार और दिल्ली से अन्य राज्यों की तुलना में सभी प्रकार के शोषणों के अधिक मामले सामने आये।
--- 50.2 प्रतिशत बच्चे सप्ताह के सात दिन काम करते हैं।
ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट
अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार परामर्श समूह न्यूयॉर्क के ह्यूमन राइट्स वॉच ने ताजा रिपोर्ट में कहा, बेशक 16 दिसम्बर को दिल्ली में गैंगरेप की घटना और तत्पश्चात जनता के आक्रोश के चलते भारत में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा को लेकर काफी जागरूकता आई, लेकिन, ‘बाल-उत्पीड़न की समस्या के बारे में जानकारी काफी कम है।’ रिपोर्ट में कुछ चौंकाने वाले आंकड़े उजागर किए गए हैं। रिपोर्ट में भारत के 13 राज्यों के 12,500 बच्चों पर किए सरकारी सर्वेक्षण का हवाला दिया गया। इस सर्वेक्षण में पाया गया कि जवाब देने वाले आधे बच्चों ने कहा कि उन्होंने किसी ना किसी प्रकार का यौन उत्पीड़न अनुभव किया है। समस्या के विस्तार के बारे में जानकारी नहीं है, लेकिन अगर ये आंकड़े कोई गाइड हैं, तो कदाचित इस समस्या का स्तर काफी व्यापक है। भारत में करीब चार अरब तीस करोड़ बच्चे हैं, जो उसकी कुल आबादी का एक-तिहाई हैं। विश्व की बाल आबादी का ये करीब पांचवा हिस्सा हैं। रिपोर्ट में इंगित किया गया है, भारत में हर जगह बच्चे यौन-उत्पीड़न के विभिन्न प्रकारों को सहते हैं-अपने घरों के भीतर, सड़कों पर, स्कूलों में, अनाथालयों में और संरक्षण गृहों में। रिपोर्ट बाल उत्पीड़न के शिकार बच्चों, उनके नातेदारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सरकारी अधिकारियों और अन्य हितधारकों के 100 से ज्यादा साक्षात्कारों पर आधारित है।
क्या है बाल उत्पीड़न
संयुक्त राष्ट्र बाल उत्पीड़न की जो परिभाषा दी है, उसके अनुसार, एक बच्चे और उम्रदराज़ अथवा ज्यादा समझदार बच्चे अथवा वयस्क के बीच संपर्क अथवा बातचीत (अजनबी, सहोदर अथवा अधिकार प्राप्त शख्स, जैसे अभिभावक अथवा देखभाल करने वाला), के दौरान जब बच्चे का इस्तेमाल एक उम्रदराज़ बच्चे अथवा वयस्क द्वारा यौन संतुष्टि के लिए वस्तु के तौर पर किया जाए। बच्चे से ये संपर्क अथवा बातचीत ज़ोर-जबर्दस्ती, छल-कपट, लोभ, धमकी अथवा दबाव में की जाए। वास्तव में, बाल-उत्पीड़न में बाल-यौन अंगों का दुरुपयोग, वयस्कों द्वारा बाल-यौन शोषण, अश्लील बाल चित्र या लेखन और बलात्कार शामिल होंगे।
बाल यौन व्यापार के बने अड्डे
दिलचस्प तथ्य ये है कि शोषण धार्मिक-पर्यटक स्थलों पर अधिक है। शोषण करने वाले विदेशी और घरेलू पर्यटकों के साथ-साथ स्थानीय निवासी होते हैं। ये शोषण लगभग छह साल की उम्र से शुरू हो जाता है और जब बालक नौ साल की उम्र के होते हैं तो उन्होंने पूरी तरह से इस काम में लगा दिया जाता है। ऐसे तत्थ तब और उजागर हो गए जब एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक को पुरी में बालकों के यौन शोषण के मामले में गिरफ्तार किया गया। आंकडे बताते हैं कि ऐसी घटनाएं कम संख्या में नहीं हैं। कई विदेशी पर्यटक किसी एक स्थान पर लंबे समय तक रहते हैं और वे बच्चों और उनके परिवारों से दोस्ती गांठ लेते हैं और उसके बाद उनका शोषण करते हैं। कभी-कभी परिजनों ने ही बालकों का शोषण किया होता है और बाद में वो उन्हें इसके लिए मजबूर कर देते हैं। कई शहरों में बाल सेक्स पर्यटन जोरों से चल रहा है। मामलों से स्पष्ट है कि विदेशी पर्यटकों ने नगद राशि या उपहारों का प्रस्ताव देकर बच्चों का यौन शोषण किया। जिस तेजी से विदेशों में गे-समुदाय की वृद्धि हुई है उससे भारत में आने वाले विदेशियों में 10 से 16 साल तक के लड़कों की मांग में बढ़ोतरी हुई है। गैरसरकारी संगठन आई आन क्राइम के मुताबिक, देश के विभिन्न थानों में हर महीने लगभग सात हजार के लगभग बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है। इनमें से हर साल करीब 23 हजार बच्चों का कोई अता-पता नहीं चल पाता जिन्हें अमूमन मृत ही समझा जाता है। भारत में सही तौर पर बाल यौन व्यापार में धकेले जा रहे बच्चों की कोई सही संख्या उपलब्ध नहीं है, जबकि भारत सबसे बड़ा केंद्र है बाल यौन व्यापार का।
शोषण रोकने के उपाय
बाल संरक्षण के लिए तमाम व्यवस्थाएं हैं, जैसा कि एक दशक पहले पारित हुआ एक जुविनाइल जस्टिस कानून। यह कानून 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करता है। कानून के तहत बाल-कल्याण कमेटियों और जुविनाइल-न्यायिक बोर्ड का गठन किया गया, जो दुर्व्यवहार के जोखिम में रह रहे अथवा प्राधिकार के साथ समस्याग्रस्त बच्चों की देखभाल करता है। संसद ने मई 2012 को यौन-अपराध बाल संरक्षण अधिनियम पारित किया, जिसके तहत बाल-उत्पीड़न के सभी प्रकारों को पहली बार देश में विशिष्ट अपराध बनाया गया।
ऊंचे परिवारों में मामले ज्यादा
आम धारणा के विपरीत भारत में उच्च और मध्यम आय वर्ग के परिवारों में बच्चों का यौन शोषण निम्न वर्ग के मुकाबले कहीं अधिक है। बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने वाली एक स्वंयसेवी संस्था ‘आलोचना’ की संयोजक भारती कोतवाल कहती हैं, उच्च और मध्यम आय वर्ग के परिवारों में बच्चों का यौन शोषण कहीं ज्यादा है, लेकिन लिंग भेद और सामाजिक दबाव के चलते यह मामले सामने नहीं आते।
दक्षिण कोरिया सबसे सख्त
बाल यौन शोषण रोकने की दिशा में सर्वाधिक सख्ती दक्षिण कोरिया ने दिखाई है। वह अब सीरियल बाल यौन शोषण के दोषी को सजा देने के लिए रसायनों का उपयोग करेगा। इस रसायन के इंजेक्शन से व्यक्ति का बंध्याकरण किया जाएगा। पहली सजा 45 वर्षीय दोषी व्यक्ति को मिली, उसे जुलाई में जेल से रिहा कर दिया जाएगा लेकिन प्रत्येक तीन साल तक उसे तीन माह पर इंजेक्शन दिया जाएगा। व्यक्ति 13 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों का यौन शोषण करने और उनका बलात्कार करने का दोषी पाया गया है। वर्ष 2010 में दक्षिण कोरिया ने रसायनों का उपयोग कर बंध्याकरण को कानूनी दर्जा दे दिया।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment