Saturday, July 14, 2012

अंसारी के रास्ते कांग्रेस के कई निशाने

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके वर्तमान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी एक बार फिर उपराष्ट्रपति पद के चुनाव मैदान में होंगे। जिस तरह के संकेत हैं, उससे उनकी राह मुश्किल नहीं लगती। भारतीय जनता पार्टी के भीतर प्रत्याशी उतारने पर सहमति नहीं बन पा रही और राष्ट्रपति पद के चुनाव में जिस तरह से समाजवादी पार्टी, जनता दल यूनाईटेड, बहुजन समाज पार्टी जैसे दल संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के साथ खड़े हैं, जीत में मुश्किल आने की कोई आशंका नहीं दिखाई देती। सपा और बसपा ने उनके अब तक के कार्यकाल पर संतोष जताते हुए समर्थन का ऐलान भी कर दिया है। वैसे, कांग्रेस ने इस एक तीर से कई निशाने साधे हैं। उसकी रणनीति के केंद्र में 2012 के आम चुनाव और अल्पसंख्यक मत हैं। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मिला सबक उसे मुस्लिम प्रत्याशी के रास्ते पर ले आया है। हामिद अंसारी को पहले राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाने पर विचार किया गया था लेकिन घटक दलों से आई विरोध की आवाज के बाद इरादा टाल दिया गया। संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी नहीं चाहती थीं कि राष्ट्रपति पद पर किसी तरह की बाधा आए, इसलिये प्रणब मुखर्जी को मैदान में उतारा गया। हालांकि तृणमूल कांग्रेस ने विरोध किया था और उप राष्ट्रपति के चुनाव में वह अंसारी का भी विरोध करने की घोषणा कर चुकी है लेकिन सोनिया का मकसद यह संकेत देना था कि वह मजबूरी में किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति पद तक नहीं पहुंचाना चाहतीं। तृणमूल सुप्रीमो ममता की पहली पसंद गोपाल कृष्ण गांधी हैं और अगर वह नहीं मानते तो कृष्णा बोस को मैदान में उतारने का मन बना रही हैं। अभी तक ममता और कांग्रेस के बीच उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर कोई बात नहीं हुई है। ममता इस बात से नाराज हैं कि प्रधानमंत्री ने इस मसले पर पहले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता प्रकाश करात से बात जबकि पश्चिम बंगाल में वह इस पार्टी की राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। तृणमूल राज्य में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी है। माकपा को इस तरह की अहमियत देना ममता को राजनीतिक रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। अगले लोकसभा चुनावों में माकपा इस अहमियत को तृणमूल के विरुद्ध प्रयोग भी कर सकती है। ममता बनर्जी हामिद अंसारी से भी नाराज हैं। पिछले साल दिसंबर महीने में राज्यसभा में लोकपाल बिल पर जब चर्चा हो रही थी तब उपराष्ट्रपति अंसारी ने अचानक ही राज्यसभा स्थगित कर दी थी और ममता की तरफ से पेश संशोधन गिर गया था। ममता को यह अपनी राजनीतिक हार महसूस हुई थी और उनके सांसदों ने इसका जमकर विरोध किया था। ममता का सवाल है कि एक ही शख्स दो बार उपराष्ट्रपति क्यों बनेगा? कांग्रेस ने हामिद अंसारी को मैदान में उतारकर अपने कई हित साधे हैं। अंसारी के रूप में वह अपना अल्पसंख्यकों का हितैषी वाला चेहरा सामने रखना चाहती है। अंसारी को बतौर भारतीय राजदूत लंबा अनुभव है और वे स्कॉलर हैं। ऐसे सुशिक्षित व्यक्ति को आगे कर वह अल्पसंख्यकों में अपनी पैठ बढ़ाना चाहती है। ममता की असहमति के बाद प्रणब मुखर्जी के पक्ष में माहौल बनाने में कांग्रेस ने काफी मेहनत की है और अगर उपराष्ट्रपति के लिए कांग्रेस ऐसा कोई नाम देती, जिस पर उसके सहयोगी दलों को ऐतराज होता तो इसका असर राष्ट्रपति चुनाव पर भी पड़ सकता था इसलिए इसे 'सेफ कार्ड' के रूप में भी देखा जा रहा है। इस बात की पूरी संभावना है कि हामिद अंसारी के नाम पर गैर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन भी सहमत हो सकते हैं, क्योंकि ?अंसारी का विरोध करके ये दल अपनी धर्मनिरपेक्ष की छवि पर आंच आने देना नहीं चाहेंगे। एक मकसद अपने घटक दलों में किसी तरह का टकराव टालना भी है। इसके साथ ही वामपंथी दल भी साथ आ सकते हैं क्योंकि पिछली बार अंसारी का नाम सामने आने पर इन्हीं दलों ने समर्थन किया था। वाम दल और अन्य गैर राजग दलों का समर्थन होने से अंसारी की राह बहुत आसान हो जाएगी। अगर बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और वामपंथी दलों की बात की जाए तो मुस्लिम का नाम आने पर उनकी मजबूरी साफ नजर आ जाती है। मुस्लिम मतों के लिए कांग्रेस के साथ ही इन्हीं दलों में सबसे ज्यादा जोर-आजमाइश चलती रहती है। उत्तर प्रदेश के चुनाव में बहुमत हासिल करने में सफल रही सपा किसी भी सूरत में अंसारी के विरोध का कदम उठा ही नहीं सकती थी। राष्ट्रपति के चुनाव में उसने कांग्रेस से दोस्ती जिन स्वार्थों से की है, उनके पूरा होने में बाधा का जोखिम सपा नहीं उठा सकती। उसे चुनावी वादे पूरे करने हैं ताकि अगले लोकसभा चुनावों में वह फिर जनता के सामने जा सके और इन वादों को पूरा करने के लिए धन की जरूरत केंद्र सरकार पूरा करने की हामी भर चुकी है। वहीं भाजपा इस मुद्दे पर लचीला रुख अपनाए हुए है। राजग का नेतृत्व करने वाली भाजपा की तरफ से इस तरह का कोई संकेत नहीं मिला है कि पार्टी सात अगस्त को होने वाले चुनाव में उतरेगी या विपक्ष की किसी पार्टी के उम्मीदवार का समर्थन करेगी, जैसा इसने राष्ट्रपति चुनाव में किया हैै। अंसारी के पीछे बहुमत को देखते हुए वह किसी तरह की कवायद से बचने का मन बना रही है। इसके साथ ही संगमा के प्रचार में उसकी मेहनत पर नकारात्मक असर पड़ने का भी डर है। हालांकि पार्टी का एक धड़ा प्रत्याशी उतारने के पक्ष में है ताकि जनता तक संकेत न जाए कि कांग्रेस के प्रत्याशी को वॉकओवर दिया गया है।

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