Wednesday, July 11, 2012

सड़कों पर वाहनों का बढ़ता बोझ

देश का कोई भी शहर आज जाम की समस्या से अछूता नहीं। सड़कों पर वाहनों का बोझ बढ़ रहा है। एक आंकड़े के मुताबिक पृथ्वी इस समय 75 करोड़ वाहनों का भार सह रही है। इसमें हर साल पांच करोड़ नए वाहन जुड़ रहे हैं। भारत की बात करे तो यहां नौ करोड़ से ज्यादा वाहन सड़कों पर हैं। अकेले दिल्ली की सड़कों पर हर दिन एक हजार नये वाहन शामिल हो रहे हैं। आगरा जैसे शहर भी इस मामले में पीछे नहीं जहां प्रतिमाह चार हजार से ज्यादा वाहनों का पंजीकरण होता है। भारत में औसत रूप से प्रत्येक 1,000 व्यक्ति पर 12 कारें हैं। देश के हर हिस्से में निजी वाहनों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। इस संख्या के बढ़ने के लिए काफी हद तक सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की नाकामी भी जिम्मेदार है। इसके अलावा निजी वाहनों की बढ़ती संख्या के लिए एक तबके की बढ़ी आमदनी और आसानी से कारों के लिए मिलने वाले कर्ज भी कम जिम्मेवार नहीं। ऐसा लगता है कि कारों की सवारी करने वाले इस बात से बेखबर हैं कि निजी वाहनों की बढ़ती संख्या किस तरह की मुसीबतों को लेकर आ रही है। वाहनों की संख्या जिस गति से बढ़ रही है उस गति से सड़कों का निर्माण नहीं हो रहा है। इस वजह से यातायात के क्षेत्र में एक खास तरह का असंतुलन स्पष्ट तौर पर दिख रहा है। सबसे पहले तो यह जानना होगा कि देश में किस रफ्तार से निजी वाहनों की संख्या बढ़ी है। शहरी विकास मंत्रालय के वार्षिक प्रतिवेदन में ऐसी जानकारियां हैं, जो चिंता बढ़ाने के लिए पर्याप्त हैं। इसके मुताबिक, वर्ष 2021 तक एक हजार की आबादी पर दोपहिया वाहनों का औसत बढ़कर 393 और कारों की संख्या 48 हो जाएगी। इसका तात्पर्य यह हुआ कि महानगरों में अगले पंद्रह सालों में तकरीबन साढ़े पांच करोड़ दोपहिया और तकरीबन साठ लाख कारें होंगी यानि नब्बे के दशक में जितनी गाडिां सड़कों पर दौड़ रही थीं, उससे तकरीबन साढ़े तीन गुना गाड़ियां सड़कों पर दौड़ेंगी। ऐसी स्थिति में सड़कों का क्या हाल होगा, इस बात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि दिल्ली की सड़कों पर हर साल आ जाने वालीं कारें वह हैं जिनका दिल्ली में पंजीकरण है। आसपास के शहरों में पंजीकृत पर दिल्ली में चलने वाली कारों की संख्या इसमें शामिल नहीं है। जिस गति से सड़कों पर वाहनों का दबाव बढ़ रहा है, उस गति से सड़कों का निर्माण या उनका चौड़ीकरण नहीं हो रहा। जाहिर है कि जब सड़कों का क्षेत्रफल नहीं बढ़ेगा और वाहनों की संख्या लगातार बढ़ती जाएगी तो जाम जैसी समस्या तो पैदा होगी ही और इसी समस्या से देश के लगभग सभी शहरों के लोग दो-चार हो रहे हैं। बारिश के बाद तो इन सड़कों का दम ही निकल जाता है। अहम मुद्दा ये भी है कि निजी वाहनों की संख्या बढेगी तो उसी गति से प्रदूषण भी बढ़ेगा जो पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक सिद्ध होगा। निजी वाहनों की संख्या बढ़ने से कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी हो रही है और प्रदूषण काफी तेजी से बढ़ रहा है। एक तरफ तो वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में कमी करने का राग अलापा जाता है और दूसरी तरफ कार्बन उत्सर्जन बढ़ाने वाली वजहों पर लगाम नहीं लगाया जाता है। अभी ही प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। ऐसे में वाहनों की तेजी से बढ़ती संख्या का परिणाम क्या होगा, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। प्रदूषण पर काबू पाने के लिए दिल्ली, आगरा समेत कई शहरों में सीएनजी से गाड़ियों को चलाने का फैसला किया गया। इस फैसले को लागू भी किया गया। इस वजह से शुरुआती दौर में प्रदूषण में कमी तो आई लेकिन निजी वाहनों की संख्या काफी तेजी से बढ़ने की वजह से प्रदूषण का स्तर फिर बढ़ने लगा है। इस बात को दिल्ली के उदाहरण के जरिए ही समझा जा सकता है। दिल्ली में 2000 में वायु प्रदूषण का स्तर 140 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर था। सीएनजी लागू होने के बाद 2005 में यह घटकर सौ माइक्रो ग्राम हो गया पर निजी वाहनों की बढ़ती संख्या की वजह से वायु प्रदूषण का स्तर फिर बढ़कर 155 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर हो गया। यही हाल कमोबेश देश के दूसरे शहरों का भी है। कहना न होगा कि प्रदूषण बढ़ने से कई तरह की बीमारियां भी फैल रही हैं। इसमें भी खास तौर पर श्वांस संबंधी कई बीमारियों की वजह वायु प्रदूषण ही है। इन बीमारियों की जद में हर साल हजारों लोग आ रहे हैं और इस वजह से जान गंवाने वालों की संख्या में भी बढ़ोतरी ही हो रही है। प्रदूषण को बढ़ाने के लिए जाम की समस्या भी कम जिम्मेदार नहीं है। जाम लगने की वजह से सड़क पर चलने वाली गाड़ियों की गति धीमी हो गई है। जितनी देर गाड़ियां जाम में खड़ी रहती हैं उतनी देर ईंधन की खपत बिना वजह के होती है। एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में जाम में फंसी रहने वाली गाड़ियों की वजह से हर रोज तकरीबन 1.84 करोड़ रुपए का ईंधन नष्ट हो रहा है। अगर गाड़ियां धीमी गति से चलती हैं तो वे अपेक्षाकृत ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करती हैं। अगर कोई गाड़ी 75 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलती है तो वह प्रति किलोमीटर 6.4 ग्राम कार्बन मोनोक्साइड का उत्सर्जन करती है। वहीं अगर कोई गाड़ी दस किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलती है तो वह प्रति किलोमीटर 33 ग्राम कार्बन मोनोक्साइड का उत्सर्जन करती है। आश्चर्यजनक है कि देश के कई शहरों में गाड़ियों की रफ्तार दस किलोमीटर प्रति घंटा से भी कम है। कोलकाता में जब सड़कों पर सबसे ज्यादा भीड़ होती है उस वक्त एक कार की औसत गति सात किलोमीटर प्रति घंटा है। एक अध्ययन में यह बताया गया है कि अगर सड़कों पर वाहनों के दबाव को पांच फीसद कम किया जाए तो इससे गाड़ियां की गति में दस फीसदी की बढ़ोतरी होगी।

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