Thursday, April 19, 2012

अग्नि-5: पीठ ठोकने का वक्त

खुशियों का दिन है। हमारे देश ने अपनी सबसे शक्तिशाली अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया है जो पूरी तरह से सफल रहा है। पांच सौ किमी तक मार कर सकने वाली ये मिसाइल परमाणु क्षमता से लैस है। इसका अर्थ ये है कि इस मिसाइल के साथ हमारे पास पहली बार बीजिंग और शंघाई तक मार करने की क्षमता हो गई है। अमेरिका को छोड़कर अब हम आधे यूरोप तक मार सकते हैं। इस सफल प्रक्षेपण से हमारा देश इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल क्लब में शामिल हो गया है जिसमें अब तक अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन ही शामिल थे। बेशक, यह बड़ी उपलब्धि है। अपने परंपरागत दुश्मन पाकिस्तान के साथ ही पड़ोसी चीन जिस तरह से अपनी सैन्य तैयारियां पुख्ता कर रहा है, इस तरह की उपलब्धियां जरूरी भी हो गई हैं। भारत के समक्ष चुनौतियां बढ़ रही हैं। सीमा पर जिस तरह से आक्रामक रूप से चीन अपनी गतिविधियों और तैयारियों को अंजाम दे रहा है, उसे देखते हुए भारत भी चुप नहीं बैठ सकता। 1962 से अब तक परिस्थितियां बदल चुकी हैं। वर्तमान में जहां भारत का रक्षा बजट 40 अरब डॉलर के करीब है, वहीं चीन का इससे चार गुना अधिक है। सेना का अंतर भी चीन के पक्ष में बढ़ता जा रहा है। 1962 के युद्ध से अनसुलझा सीमा विवाद पचास साल पुराना हो गया है और अब इसको लेकर तकरार बढ़ने लगी है। भू राजनैतिक समीकरणों में परिवर्तन आ चुका है। चीन के साथ ही पाकिस्तान में हमारा परमाणु संपन्न पड़ोसी है। दोनों देशों से विवादों की लंबी सूची है। जंगों का अतीत है। पाकिस्तान को हम युद्ध में चार बार धूल चटा चुके हैं तो चीन से एक बार हारे भी हैं। सबसे ज्यादा चिंताएं एशिया में चीन के बढ़ते आक्रामक रुख से हैं। दोनों पक्षों के बीच विवादित सीमा, हिंद महासागर और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में लगातार बढ़ती चीनी गतिविधियां हमारे लिए चिंता का सबब हैं। हालांकि हम यह मानकर बैठने से नहीं हिचकते कि दोनों पक्षों के बीच बड़े सशस्त्र संघर्ष की उम्मीद नहीं है लेकिन इस सवाल का जवाब भी नहीं बताते कि चीन इतनी तैयारियां कर क्यों रहा है। अमेरिकी खुफिया अधिकारियों ने दावा किया है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक तेवर को देखते हुए भारत उसके खिलाफ अपनी सेना को मजबूत करने की योजना बना रहा है। यद्यपि भारत-चीन की विवादित सीमा पर फिलहाल शांति है। उसके बावजूद भारत-चीन दिन प्रतिदिन बढ़ती सैन्य ताकत को लेकर चिंतित हैं। यही वजह है कि वह अपनी सैन्य क्षमताओं में इजाफा कर रहा है। कुछ दिन पूर्व अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन की वर्षिक रिपोर्ट से भी चिंताएं बढ़ी थीं जिसमें कहा गया था कि चीन ने भारतीय सीमा पर अत्याधुनिक हथियारों से लैस सीएसएस- 5 मीडियम रेंज बैलिस्टिक मिसाइलें (एमआरबीएम) तैनात कर रखी हैं। इससे दोनो देशों के बीच आपसी संबंधों में तनाव बढ़ सकता है। परमाणु क्षमता से लैस इस मिसाइल को चीन में डीएफ-21 के नाम से जाना जाता है। यह मिसाइल सन 1991 से चीन की सैन्य सेवा में है। इसकी लंबाई 10.7 मीटर तथा व्यास 1.4 मीटर है। इसकी मारक क्षमता 1700 से 3000 किलोमीटर है। इस मिसाइल की गति 10 मैक है। इसमें ठोस ईंधन का इस्तेमाल किया गया है। अधिक उन्नत किस्म की इन मिसाइलों की तैनाती का सीधा मतलब यह है कि भारत के प्रमुख शहर जैसे कोलकाता, नई दिल्ली, चंडीगढ़ आदि इसकी मारक जद में होंगे। यह मिसाइल 600 किलोग्राम वजन का परमाणु विस्फोटक अपने साथ ले जाने में सक्षम है जो किसी शहर के विध्वंस के लिए काफी है। सीएसएस-5 को चाइना चैंगफैंग मैकेनिक्म एंड इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नॉलाजी एकेडमी ने बनाया है। इसका इस्तेमाल स्पेस लांचर के तौर पर भी किया जा रहा है। चीन इन मिसाइलों को अत्यंत कम समय में भारत की सीमा पर ले जाने की पूरी तैयारी भी कर चुका है। इसके लिए उसने भारतीय सीमा के नजदीक विभिन्न प्रकार के रेल व सड़क नेटवर्क बना लिए हैं। चीनी सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने इससे पहले भारतीय सीमा पर सीएसएस-2, आइएमबीएम मिसाइलें तैनात कर रखीं थीं। पाकिस्तान तो भारत का सिरदर्द है ही। वहां सेना का दखल इतना ज्यादा है कि भारत से शांति चाहने वाले राजनेता अपना मुंह तक नहीं खोल पाते। पाकिस्तान में तीन मुख्य खिलाड़ी हैं- निर्वाचित सांसदों की प्रतिनिधि कार्यपालिका, उच्च न्यायपालिका और सर्वशक्तिमान सेना, जो पाकिस्तान में पिछले 55 वर्षो से ड्राइवर की सीट पर बैठी हुई है। राष्ट्रपति पद से परवेज मुशर्रफ की विदाई के बाद पाकिस्तान नागरिक शासन को उलटने का प्रयास करता रहा है। राजनीतिक सत्ता और सेना की इसी खींचतान में वहां भारत विरोधी माहौल बनाया जाता है और हमेशा डर रहता है कि कब भारत के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई की हालत पैदा हो जाए। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश एक प्रस्ताव पर श्रीलंका सरकार के खिलाफ वोट देकर भारत एक और पड़ोसी की नाराजगी मोल ले चुका है। वर्ष 2011 में अफगानिस्तान में भारत की सक्रियता बढ़ी है लेकिन वह काबुल में अपनी सेनाएं या रक्षा उपकरण इसलिए नहीं भेजना चाहता क्योंकि वह पाकिस्तान को उकसाना नहीं चाहता। बांग्लादेश भी खतरे के संकेत दे रहा है। वहां भीतरी समस्याएं हैं। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का वहां दखल बढ़ रहा है। पूर्वोत्तर के आतंकवादियों को शह मिल रही है। नेपाल से भी इसी तरह की समस्याएं सामने हैं। अग्नि के सफल प्रक्षेपण से दुश्मनों को यह संकेत तो निश्चित ही मिलेगा कि भारत को कमजोर समझना उनकी सबसे बड़ी भूल साबित हो सकती है।

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