Wednesday, March 28, 2012

जाग जाइये, ये खतरे की घंटी है...

यह देशद्रोह है जनरल, दुश्मन जाग गए तो क्या होगा?
... तो क्या हम सिर्फ सीमाओं पर बड़ी राशि सिर्फ इसलिये खर्च कर रहे हैं क्योंकि परंपरा है? खर्च नहीं करेंगे तो अन्य देश क्या कहेंगे? हजारों-लाखों करोड़ रुपये देने के बाद भी सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह यदि यह कहते हैं कि सेना के टैंकों का गोला-बारूद खत्म हो चुका है। हवाई सुरक्षा के 97 फीसदी उपकरण ताकत खो चुके हैं और पैदल सेना के पास हथियारों तक की कमी है तो क्या खाक कर रही है हमारी सरकार? पैसा कहीं राजनेताओं और अफसरों की जेबों में तो नहीं जा रहा? यह हमारे दुश्मन पाकिस्तान और चीन के लिए अच्छी खबर है और हम सदमे में हैं। सेना का एक अफसर सरकार से लड़ रहा है क्योंकि जन्मतिथि विवाद से खफा है और रक्षामंत्री मामला टालकर खुद को पाक साफ कर रहे हैं क्योंकि बेदाग छवि की बदौलत उन्हें कांग्रेस का आलाकमान राष्ट्रपति पद तक पहुंचाने की योजना बना रहा है। अपनी-अपनी वजहें हैं पर ठगा जा रहा है देश। यह देशद्रोह है... सरासर देशद्रोह। देश के नेतागण जाग जाइये, ये खतरे की घंटी है वरना आपको देश कभी माफ नहीं कर पाएगा।
जनरल विजय कुमार सिंह की निष्ठाओं पर संदेह करना किसी अपराध से कम नहीं। वीरता के लिए वह परम विशिष्ट सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल और युद्ध सेवा मेडल से सम्मानित किए जा चुके हैं। बिरला पब्लिक स्कूल पिलानी में पढ़े सिंह की तीसरी पीढ़ी सेना में है। उनके पिता कर्नल थे और दादा जेसीओ। 31 मार्च 2010 को उन्होंने सेनाध्यक्ष का पद संभाला। कौन नहीं जानता कि किसी भी मुखिया के हाथ में बहुत-कुछ हुआ करता है। और अगर वो मुखिया भारतीय सेना का है तो बात कुछ और ही हो जाती है। वह लगातार काम करते हैं। जन्मतिथि विवाद में पूरा वक्त लगाते हैं ताकि कार्यकाल बढ़ जाए और मात खाने के बाद अचानक बोल उठते हैं कि सेना बहुत कमजोर हो चुकी है। कार्यकाल के 727 दिन बीतने के बाद ही उन्हें यह बोलने की जरूरत क्यों पड़ी? इतने दिन तक वह मात्र सुविधाएं भोगते रहे। जलवे का आनंद लेते रहे और जब जाने के दिन आए तो पूरे सैन्य प्रतिष्ठान की क्षमता पर अंगुली उठा दी। सम्मान का मामला बताते हैं और एक दिन खुद सैनिकों समेत देश का सम्मान एवं सुरक्षा दांव पर लगा देते हैं। वह शायद यह भूल जाते हैं कि सेना यदि है तो सैनिकों के दम-खम की वजह से ही। कठोर अनुशासन और मौका आने पर शहादत, सबसे पहले सैनिकों के ही हिस्से आती है। वह सेनाध्यक्ष की तरह जलवे के भूखे नहीं, अपने घर-परिवार से सैकड़ों किमी दूर रहकर उन्हें सिर्फ देश नजर आता है, उसकी सुरक्षा नजर आती है। जन्मतिथि विवाद में हारने के बाद ही उन्हें घूस का पुराना आफर याद आता है। यह तो कहते हैं कि रक्षामंत्री एके एंटनी को बताया था पर खुद कार्रवाई क्यों नहीं की, यह वो नहीं बताते। सेनाध्यक्ष होने के नाते उन्हें खुद एफआईआर दर्ज करानी चाहिये थी। आसानी से हजम नहीं होता कि कोई सेनाध्यक्ष के कमरे में घुसकर रिश्वत की यह कहते हुए पेशकश कर दे कि ‘सभी लेते हैं, आप भी ले लीजिए। पूरे 14 करोड़ रुपये मिलेंगे।’ यहां एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्यों सेनाध्यक्ष बार-बार मीडिया में जा रहे हैं। वह पत्र लिखकर उसे लीक क्यों कर देते हैं?वो सेना की कमजोरी की इतनी बड़ी बात आसानी से कैसे बोल दे रहे हैं। वीरता और देश के सम्मान के प्रति जो भाव परिवार में आपको घुट्टी के रूप में मिला, उसने अपना रंग क्यों नहीं दिखाया। समय रहते यदि जनरल चेत जाते तो शायद सेना की बदहाली की कहानी से चिंता की लकीरें नहीं उभरतीं। जनरल यह सब क्यों कर रहे हैं, यह तो भविष्य के गर्त में है लेकिन यदि दुश्मनों ने उनकी बात से प्रेरणा लेकर कोई कदम उठाया और हमें मात मिली तो तय है देश उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।
दूसरी तरफ, सरकार है और उसके रक्षामंत्री एके एंटनी हैं। जनरल के आरोपों में यदि दम है तो इतना पैसा कहां चला गया? वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने देश के रक्षा बजट में कम बढ़ोत्तरी कहीं इसीलिये तो नहीं कि उन्हें भ्रष्टाचार का आभास था? राष्ट्रपति पद पर इस बार किसी ईसाई नेता की ताजपोशी की तैयारी में सरकार को एंटनी का प्रशासन संकट में डाल रहा है। एंटनी बेदाग छवि के नेता रहे हैं। संसद के साथ उसे बनाने वाली आम जनता भी जनरल के साथ एंटनी से सवाल कर रही है कि क्यों उन्होंने घूस की पेशकश करने वाले सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल पर कार्रवाई नहीं की? उन्होंने अपना माथा क्यों पकड़ा, उसके तमाचे पर कानून का तमाचा क्यों नहीं जड़ दिया? तात्कालिक उपाय यही है कि सेना में यदि कमियां हैं तो उन्हें दूर किया जाए, सेनाध्यक्ष को सार्वजनिक रूप से बोलने के लिए दंड मिले और आंखें मूंदे रक्षामंत्री की विदाई हो। इस बार मामला बड़ा है, घोटालों की मास्टर कही जा रही केंद्र सरकार को इसे किसी अन्य घोटाले की तरह नहीं लेना चाहिये वरना बहुत देर हो जाएगी जिसके लिए देश उन्हें माफ नहीं करेगा। सौभाग्य की बात यह है कि सीमाओं पर फिलहाल कोई संकट नहीं। पाकिस्तान की सत्ता खुद समस्याओं से घिरी है और चीन आक्रामकता के बजाए भारत के विरुद्ध कूटनीति के रास्ते पर चल रहा है।

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