ताजमहल, फतेहपुर सीकरी जैसी विश्वदाय इमारतें और मथुरा-वृन्दावन के मंदिर ही नहीं, ब्रज में बहुत-कुछ है। देश- दुनिया के लोग यूं ही नहीं पहुंचते और करोड़ों-अरबों विदेशी मुद्रा की ऐसे ही कमाई नहीं हो जाती, पर कुछ ऐसा भी है जिसे अभी प्रचार पाना है। ब्रज में दो ऐसे पड़ाव हैं जहां देश-विदेश के कई हजार आम और खास पक्षी आते हैं। सर्दियां दस्तक दे चुकी हैं और साथ ही आगरा की कीठम झील और भरतपुर के घना पक्षी विहार में इन अद्भुत मेहमानों का आना शुरू हो चुका है। नजारे मनभावन हैं, पर दुखद ये है कि भीड़ उतनी नहीं है जितनी पक्षियों की कम भीड़ वाले क्षेत्रों में रहती है।
आगरा अपनी कीठम झील को इंटरनेशनल वैटलैण्ड लिस्ट में शुमार कराने को लायायित है। भरतपुर स्थित केवलादेव घना पक्षी विहार को यूनेस्को ने विश्व धरोहर सूची में रख रखा है। इसका उल्लेख बाबरनामा में भी आता है। विख्यात पक्षी वैज्ञानिक सलीम अली ने कहा था कि पक्षियों का यह अंतर्राष्ट्रीय प्रवास एक अनसुलझी गुत्थी, एक रहस्य है। शीतकाल में यहां लगभग सवा दो सौ प्रजातियों के स्थानीय और विदेशी परिंदे यहां निर्द्वंद्व दाना चुगते, घोंसले बनाते और प्रजनन करते देखे जा सकते हैं। इस पक्षी विहार का निर्माण करीब ढाई सौ साल पहले किया गया था और बाद में नामकरण केवलादेव (शिव) मंदिर पर कर दिया गया। प्राकृतिक ढाल होने के कारण यहां वर्षाकाल में अक्सर बाढ़ का सामना करना पड़ता था। इसलिए भरतपुर के शासक महाराजा सूरजमल ने यहां अजान बांध का निर्माण कराया, जो दो नदियों (गंभीरी और बाणगंगा) के संगम पर बनवाया गया था। संरक्षित वन्य क्षेत्र की घोषणा से पहले यह रियासत काल में भरतपुर के राजाओं का निजी शिकारगाह था। अंग्रेजी शासन के दौरान कई वायसरायों और प्रशासकों ने हजारों की तादाद में बत्तखों और मुर्गाबियों का शिकार किया। लेकिन आजादी के कुछ साल बाद यह अली की वजह से यह सिलसिला बंद हो गया। प्रवासी पक्षियों के लिए बेहद उपयुक्त वातावरण, प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता और पक्षियों को मनवांछित भोजन की उपलब्धता इन दोनों स्थलों की खासियत है। सर्दियों की आमद पर इन वैटलैण्ड पर पक्षियों की चहचहाहट, बसेरों के लिए कशमकश और विचरण करते उनके दल बरबस ही सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। ये प्रवासी पक्षी मुख्यत: तिब्बत, मध्य एशिया, रूस, अफगानिस्तान और साइबेरिया से अपना सफर तय करते हुए डेरा जमाते हैं। पिछले दो साल की गणना का आंकड़ा देखें तो वर्ष 2012-13 में प्रवासी पक्षियों की 110 प्रजातियों के लगभग 85 हजार पक्षी भरतपुर पहुंचे। वर्ष 2013-14 में इन पक्षियों की 112 प्रजातियों के लगभग इतने ही पक्षियों ने यहां पड़ाव बनाया। पक्षियों के आगमन में बढ़ोत्तरी सिद्ध करती है कि भरतपुर पर्यावरण की दृष्टि से सैरगाह पक्षियों की पसंदीदा स्थली बन रहा है। हालांकि कीठम के मामले में यह स्थिति थोड़ी उलट है, वहां कम प्रजातियों के अपेक्षाकृत कम पक्षियों का आगमन होता है लेकिन नजारे वहां भी कम आकर्षक नहीं हुआ करते।
जिन पक्षियों के आने का क्रम प्रतिलक्षित हो रहा है, उसमें मुख्यत: बार हैडिड गीज, नार्दर्न पिंटेल, कॉमन टील, कॉमन पौचार्ड, कूट्स, टफ्ड पौचार्ड, ग्रेट कारमोनेंट, रूडी शेल्डक और पूरासियन वेग्योन जैसी मुख्य प्रजातियां यहां सर्द ऋतु बिताने आती हैं। इसके अलावा कॉमन रोल्डक, साइबेरियन क्रेन (पांच साल से इसका आगमन बंद हुआ है), ओस्प्रे, वफ विलेड पिपट, इंडियन स्केमर और लिटल गल्ल की इक्का-दुक्का प्रजातियां भी दिखाई दीं जो अब तक हिमाचल प्रदेश में ही ज्यादातर आती थीं। रिंग और कलरिंग पर प्रवासी पक्षियों की पहचान चिह्नित करने के प्रयत्न भी किए गए थे, जिससे पता चला है कि चिह्नित पक्षियों के आने के क्रम में थोड़ा-बहुत उतार-चढ़ाव चलता रहता है। निष्कर्ष पक्षियों के अमुक स्थान पर आगमन क्रम में परिवर्तन को दर्शाते हैं। संभावना यह है कि एक जगह आने के बाद चिह्नित पक्षी किसी अन्य स्थल को अपना नया बसेरा बना लेते हों, उनकी जगह दूसरे पक्षियों का आगमन बदस्तूर परिवर्तनशीलता को दर्शाता है। संदेह नहीं है कि पक्षी बहुत अच्छे से दिशाओं का अंदाजा लगा लेते हैं और मीलों दूर यात्रा करने के बाद भी नहीं भटकते और गंतव्य स्थल को हमेशा याद रखते हैं। यह अनोखी दक्षता उन्हें स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। दोनों ही वैटलैण्ड्स के आसपास खेती होती है और इसीलिये पक्षियों की स्वाभाविक प्रक्रिया दानों को चुगने और सुलभ उपलब्ध भोजन को भक्षण करने की होती है, फिर चाहे वह किसानों की खेती ही क्यों न हो। पक्षियों के किसानों की खेती की तरफ पसरते कदमों को रोकने के लिए तरह-तरह के कदम उठाने की प्रक्रिया पक्षियों को डर का एहसास दिलाती है। किसान पटाखे, ड्रम और टीन बजाकर भी पक्षियों को अपनी फसलों से दूर रखने की कोशिश करते हैं। पक्षी मानवीय निकटता, चाहे वह बनावटी ही क्यों न हो, को सहर्ष स्वीकार नहीं करते इसलिये वहां से दूर भाग जाते हैं। हो सकता है कि कुछ प्रतिशत पक्षी इसी वजह से आगामी वर्ष के लिए अपना बसेरा बदल लेते हों। बहरहाल, हमें पर्यटन की दृष्टि से इन दोनों स्थलों का प्रचार करना है। साथ ही पक्षियों के अनुकूल पर्यावरण भी बनाना है क्योंकि पर्यटक आएंगे तो उन्हें पक्षियों का झीलों के आसपास मंडराना और उनकी मधुर चहचहाहट रोचक लगेगी। ऐसे में व्यक्ति प्राकृतिक सौंदर्य में कहीं खो सा जाता है। प्रवासी मेहमान पक्षियों को देखने की चाह भी हमारे पर्यटन को नया आयाम प्रदान करेंगी। पर्यटन के क्षेत्र में एक नए अध्याय का सूत्रपात होगा।
आगरा अपनी कीठम झील को इंटरनेशनल वैटलैण्ड लिस्ट में शुमार कराने को लायायित है। भरतपुर स्थित केवलादेव घना पक्षी विहार को यूनेस्को ने विश्व धरोहर सूची में रख रखा है। इसका उल्लेख बाबरनामा में भी आता है। विख्यात पक्षी वैज्ञानिक सलीम अली ने कहा था कि पक्षियों का यह अंतर्राष्ट्रीय प्रवास एक अनसुलझी गुत्थी, एक रहस्य है। शीतकाल में यहां लगभग सवा दो सौ प्रजातियों के स्थानीय और विदेशी परिंदे यहां निर्द्वंद्व दाना चुगते, घोंसले बनाते और प्रजनन करते देखे जा सकते हैं। इस पक्षी विहार का निर्माण करीब ढाई सौ साल पहले किया गया था और बाद में नामकरण केवलादेव (शिव) मंदिर पर कर दिया गया। प्राकृतिक ढाल होने के कारण यहां वर्षाकाल में अक्सर बाढ़ का सामना करना पड़ता था। इसलिए भरतपुर के शासक महाराजा सूरजमल ने यहां अजान बांध का निर्माण कराया, जो दो नदियों (गंभीरी और बाणगंगा) के संगम पर बनवाया गया था। संरक्षित वन्य क्षेत्र की घोषणा से पहले यह रियासत काल में भरतपुर के राजाओं का निजी शिकारगाह था। अंग्रेजी शासन के दौरान कई वायसरायों और प्रशासकों ने हजारों की तादाद में बत्तखों और मुर्गाबियों का शिकार किया। लेकिन आजादी के कुछ साल बाद यह अली की वजह से यह सिलसिला बंद हो गया। प्रवासी पक्षियों के लिए बेहद उपयुक्त वातावरण, प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता और पक्षियों को मनवांछित भोजन की उपलब्धता इन दोनों स्थलों की खासियत है। सर्दियों की आमद पर इन वैटलैण्ड पर पक्षियों की चहचहाहट, बसेरों के लिए कशमकश और विचरण करते उनके दल बरबस ही सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। ये प्रवासी पक्षी मुख्यत: तिब्बत, मध्य एशिया, रूस, अफगानिस्तान और साइबेरिया से अपना सफर तय करते हुए डेरा जमाते हैं। पिछले दो साल की गणना का आंकड़ा देखें तो वर्ष 2012-13 में प्रवासी पक्षियों की 110 प्रजातियों के लगभग 85 हजार पक्षी भरतपुर पहुंचे। वर्ष 2013-14 में इन पक्षियों की 112 प्रजातियों के लगभग इतने ही पक्षियों ने यहां पड़ाव बनाया। पक्षियों के आगमन में बढ़ोत्तरी सिद्ध करती है कि भरतपुर पर्यावरण की दृष्टि से सैरगाह पक्षियों की पसंदीदा स्थली बन रहा है। हालांकि कीठम के मामले में यह स्थिति थोड़ी उलट है, वहां कम प्रजातियों के अपेक्षाकृत कम पक्षियों का आगमन होता है लेकिन नजारे वहां भी कम आकर्षक नहीं हुआ करते।
जिन पक्षियों के आने का क्रम प्रतिलक्षित हो रहा है, उसमें मुख्यत: बार हैडिड गीज, नार्दर्न पिंटेल, कॉमन टील, कॉमन पौचार्ड, कूट्स, टफ्ड पौचार्ड, ग्रेट कारमोनेंट, रूडी शेल्डक और पूरासियन वेग्योन जैसी मुख्य प्रजातियां यहां सर्द ऋतु बिताने आती हैं। इसके अलावा कॉमन रोल्डक, साइबेरियन क्रेन (पांच साल से इसका आगमन बंद हुआ है), ओस्प्रे, वफ विलेड पिपट, इंडियन स्केमर और लिटल गल्ल की इक्का-दुक्का प्रजातियां भी दिखाई दीं जो अब तक हिमाचल प्रदेश में ही ज्यादातर आती थीं। रिंग और कलरिंग पर प्रवासी पक्षियों की पहचान चिह्नित करने के प्रयत्न भी किए गए थे, जिससे पता चला है कि चिह्नित पक्षियों के आने के क्रम में थोड़ा-बहुत उतार-चढ़ाव चलता रहता है। निष्कर्ष पक्षियों के अमुक स्थान पर आगमन क्रम में परिवर्तन को दर्शाते हैं। संभावना यह है कि एक जगह आने के बाद चिह्नित पक्षी किसी अन्य स्थल को अपना नया बसेरा बना लेते हों, उनकी जगह दूसरे पक्षियों का आगमन बदस्तूर परिवर्तनशीलता को दर्शाता है। संदेह नहीं है कि पक्षी बहुत अच्छे से दिशाओं का अंदाजा लगा लेते हैं और मीलों दूर यात्रा करने के बाद भी नहीं भटकते और गंतव्य स्थल को हमेशा याद रखते हैं। यह अनोखी दक्षता उन्हें स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। दोनों ही वैटलैण्ड्स के आसपास खेती होती है और इसीलिये पक्षियों की स्वाभाविक प्रक्रिया दानों को चुगने और सुलभ उपलब्ध भोजन को भक्षण करने की होती है, फिर चाहे वह किसानों की खेती ही क्यों न हो। पक्षियों के किसानों की खेती की तरफ पसरते कदमों को रोकने के लिए तरह-तरह के कदम उठाने की प्रक्रिया पक्षियों को डर का एहसास दिलाती है। किसान पटाखे, ड्रम और टीन बजाकर भी पक्षियों को अपनी फसलों से दूर रखने की कोशिश करते हैं। पक्षी मानवीय निकटता, चाहे वह बनावटी ही क्यों न हो, को सहर्ष स्वीकार नहीं करते इसलिये वहां से दूर भाग जाते हैं। हो सकता है कि कुछ प्रतिशत पक्षी इसी वजह से आगामी वर्ष के लिए अपना बसेरा बदल लेते हों। बहरहाल, हमें पर्यटन की दृष्टि से इन दोनों स्थलों का प्रचार करना है। साथ ही पक्षियों के अनुकूल पर्यावरण भी बनाना है क्योंकि पर्यटक आएंगे तो उन्हें पक्षियों का झीलों के आसपास मंडराना और उनकी मधुर चहचहाहट रोचक लगेगी। ऐसे में व्यक्ति प्राकृतिक सौंदर्य में कहीं खो सा जाता है। प्रवासी मेहमान पक्षियों को देखने की चाह भी हमारे पर्यटन को नया आयाम प्रदान करेंगी। पर्यटन के क्षेत्र में एक नए अध्याय का सूत्रपात होगा।
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