Monday, March 4, 2013
राजा भैया का इस्तीफा और सपा...
प्रतापगढ़ में बवाल मचा है और इसकी सियासी गर्माहट में कैबिनेट मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया झुलस गए हैं। मामला सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की छवि को तार-तार न कर दे, इसके लिए सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के सीधे हस्तक्षेप मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जिस तरह की सक्रियता दिखाई है, वह काबिले तारीफ है। मामला ज्यादा दिन तक खिंचता तो मुख्यमंत्री के लिए मुश्किलें बढ़तीं और आंच लोकसभा के अगले साल प्रस्तावित चुनावों तक पहुंच सकती थी। राजा भैया का इस्तीफा लेकर मुख्यमंत्री ने कड़ा प्रशासक होने का सबूत देने की कोशिश की है। हालांकि अभी कई सवाल सामने हैं और तमाम अन्य दागदार नाम पार्टी की छवि पर प्रतिकूल असर डाल रहे हैं।
अमरमणि त्रिपाठी, राजा भैया, मुख्तार अंसारी जैसे तमाम दागदार चेहरे प्रदेश की सियासत और अपराध के घालमेल के सटीक उदाहरण हैं। गौर कीजिए, नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि इस समय राजा भैया समेत 25 मंत्री ऐसे हैं, जिन्होंने चुनाव आयोग को दिए शपथ पत्र में अपने खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज होने का ब्योरा दिया है। फिर सपा की ही बात क्यों करें, प्रमुख विपक्षी दल भाजपा, बसपा और कांग्रेस ने भी समय-समय पर इन्हें अपने लाभ के लिए प्रयोग किया है और सिरदर्द बनने पर हाथ झाड़ने को मजबूर भी हुए हैं। बहरहाल, राजा भैया का बड़ा आपराधिक रिकॉर्ड है। वर्ष 2010 के पंचायत चुनाव के दौरान विपक्षी प्रत्याशी के अपहरण के आरोप में वो लम्बे समय तक जेल में रहे। तत्कालीन सरकार ने उन पर आतंकवाद रोधी कानूून पोटा लगाया। पिता और भाई को भी जेल हुई। खाद्यमंत्री बनने के बाद उनके पूर्व जनसंपर्क अधिकारी ने अनाज घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया। इस विधानसभा चुनाव के दौरान जमा किए हलफनामे के मुताबिक उनके खिलाफ लंबित आठ मुकदमों में हत्या की कोशिश, अपहरण और डकैती के मामले भी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एक्ट के तहत भी मामला चल रहा है। लोकतंत्र में जहां राजा-महाराजा नहीं हुआ करते, वहां प्रतापगढ़ के कुंडा क्षेत्र में उनका पूरा जलवा किसी राजा की तरह है। मायावती सरकार में छापे के दौरान उनके और पिता उदय प्रताप सिंह की क्रूरता सामने आई थी। तब पता चला था कि उनके तालाब में लोग डाल दिए जाते थे ताकि मगरमच्छ उनका अंत कर दें। फिलहाल, जिस मामले में राजा भैया का इस्तीफा लिया गया है, वह राजा भैया के इसी राज का वीभत्स नमूना है। जिस गांव में प्रादेशिक पुलिस सेवा के अधिकारी जियाउल हक भीड़ को नियंत्रित करने पहुंचे थे, वह ग्राम प्रधान की हत्या पर जुटी थी। हक को वहां लाठी-डण्डों और लोहे की छड़ों से पीट-पीटकर मार डाला गया। पहले लगा था कि यह जनता के क्रोध की प्रतिक्रिया थी लेकिन बाद में भीड़ में राजा भैया के नजदीकी लोगों की मौजूदगी ने मामले को पूरी तरह से बदल दिया। मृत अफसर की पत्नी परवीन आजाद ने अपनी रिपोर्ट में राजा भैया को भी नामजद किया।
उन्हें कुंडा में तैनाती से ही अंजाम भुगतने की धमकी दी जा रही थी। निश्चित तौर पर एक सीओ रैंक के अधिकारी की हत्या ने पुलिस के इकबाल को चुनौती दी। अपर पुलिस महानिदेशक स्तर के अफसर के सामने परवीन का बयान तूफान लाने वाला साबित हुआ। ऊपर से, एडीजी ने परवीन को रिपोर्ट में पूरा वाकया लिखने के लिए कहकर सरकार के समक्ष एक नई समस्या की नींव डाल दी। एडीजी के यह तेवर उस व्यक्ति के खिलाफ थे, जो प्रदेश की सरकार में मंत्री था और तमाम विरोधों के बावजूद उसे सरकार में शुमार किया गया था। साफ था कि प्रदेश पुलिस जांच स्तर पर ही नहीं बल्कि प्रशासनिक स्तर पर भी राजा भैया के खिलाफ खड़ी दिखाई देगी और ऐसा होने पर उन्हें ज्यादा देर तक मंत्री बनाकर रखना सपा के लिए मुश्किल साबित हो जाता इसीलिये आनन-फानन में कैबिनेट से उनकी विदाई कर दी गई। समस्या यह भी थी कि अखिलेश सरकार राज्य का माहौल सुधारने का दावा करने लगी है और एक हत्या में मंत्री की भूमिका पर उसके लिए जवाब देना भी मुश्किल हो जाता। लोकसभा चुनाव जब सिर पर खड़े हों और बहुमत की सरकार के दम पर सपा केंद्रीय सत्ता में प्रभावशाली रोल के लिए तैयार हो रही हो, यह मामला गले में अटकना तय हो रहा था। इन्हीं परिस्थितियों में सरकार के लिए राजा भैया पर कानूनी शिकंजा कसना जरूरी होता नजर आ रहा है। खुद को प्रदेश की क्षत्रिय राजनीति का प्रमुख नेता मानते रहे राजा भैया पर कानूनी गिरफ्त से मुलायम राजनीतिक जवाब देने की कोशिश करेंगे। सपा को यह भय भी साल रहा था कि अगर कानूनी फंदा न कसे जाने पर प्रशासन अखिलेश सरकार से असहयोग पर उतारू हो सकता है। पीपीएस एसोसिएशन ने घटना की न्यायिक जांच की मांग करके ऐसे संकेत दे दिए थे। मृत सीओ की पत्नी ने खुदकुशी की धमकी से एक और समस्या की आहट दिला दी थी। मामला राजनीतिक रंग पकड़ने भी लगा था। हमलावरों में बहुजन समाज पार्टी सबसे आगे थी जिसके शासन में प्रतापगढ़ और आसपास के क्षेत्रों में जबर्दस्त प्रभाव होने के बावजूद राजा भैया को सींखचों के पीछे धकेल दिया था। राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले मुलायम सिंह विपक्षियों की सियासी चालों को पहले ही भांप गए और तत्काल हस्तक्षेप का फैसला किया। मौजूदा सरकार की बात करें, तो मुलायम ने तमाम मौकों पर सरकार को फजीहत से बचाया है। राजा भैया के मामले में भी वह इसमें कामयाब रहे हैं।
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