Thursday, January 17, 2013
मुश्किल में फंसा पाकिस्तान
पाकिस्तान जबर्दस्त संकट में है। भारत के साथ सरहद पर पैदा विवाद अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर तूल पकड़ ही रहा है कि उसके सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ की गिरफ्तारी का आदेश देकर मुश्किलें बढ़ा दी हैं। मौलाना ताहिर उल कादरी के नेतृत्व में हजारों प्रदर्शनकारियों ने देश की संसद को घेर लिया है, उनकी मांगें पूरी करने का दम सरकार में दिख नहीं रहा। कट्टरपंथी इस कदर नाक में दम किए हुए हैं कि कराची से लेकर इस्लामाबाद तक सुरक्षा के बंदोबस्त फेल हैं और कानून का इकबाल दम तोड़ चुका है। सत्तासीन सियासतदां समझ नहीं पा रहे कि इन समस्याओं का हल कैसे करें।
पाकिस्तान की किस्मत उसके जन्म से ही उसके साथ नहीं है। सेना ने जब चाहा, तब सत्ता पलट दी। देश ने तानाशाही का लम्बा दौर झेला है। फिलवक्त, बड़ा संकट न्यायिक सक्रियता की वजह से है। सुप्रीम कोर्ट भी सत्ता का सिरदर्द बना हुआ है। उसने रेंटल पावर केस की सुनवाई के दौरान देश के प्रधानमंत्री समेत तमाम मुलजिमों को गिरफ्तार करने के आदेश दिए हैं। कुछ महीने पहले यूसुफ रजा गिलानी को इसी न्यायिक सक्रियता की वजह से सत्ता से बाहर होना पड़ा था। रेंटल पावर केस दरअसल पाकिस्तान के पावर सेक्टर में भ्रष्टाचार का बड़ा मामला है। पीएम अशरफ पर रेंटल पावर प्रोजेक्ट लगा रही कंपनियों से रिश्वत लेने का आरोप है। ऐसी नौ फर्मों ने पाकिस्तान सरकार से 2200 करोड़ रुपये एडवांस के रूप में प्राप्त किए थे लेकिन समय पर प्रोजेक्ट शुरू नहीं किए। कई फर्मों ने तो पावर प्लांट लगाए ही नहीं। वर्ष 2008 में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार बनने के बाद अशरफ को जल और ऊर्जा मंत्री बनाया गया था। भ्रष्टाचार के यह आरोप इसी कार्यकाल के हैं। इन्हीं आरोपों की जांच पर नेशनल एकाउंटिबिलिटी ब्यूरो की रिपोर्ट के बाद फरवरी 2011 में उन्हें पद छोड़ना पड़ा था। पिछले साल 18 अप्रैल को गिलानी मंत्रिमंडल में उनकी वापसी हुई और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय प्राप्त हुआ। बीते जून में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गिलानी को पीएम पद के लिए अयोग्य ठहराए जाने के बाद उन्हें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनाया गया था। एक के बाद एक प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार के आरोपों में विदा कर पाना पीपीपी के लिए संकट की बात है, वह भी तब जबकि नए चुनाव दस्तक दे रहे हैं। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी चूंकि खुद भी भ्रष्टाचार के आरोपों में गले तक फंसे हैं इसलिये वह दूसरी पंक्ति के नेताओं पर कड़ाई नहीं कर पा रहे। फिर, जैसा कि पाकिस्तान का इतिहास है, भरोसेमंद को ढूंढना नेतृत्व के लिए हमेशा बड़ी समस्या रहा है। दूसरा बड़ा संकट मौलाना ताहिर उल कादरी की ओर से आया है। पाकिस्तानी हुकूमत को हिलाने के मकसद से कादरी के नेतृत्व में निकाले जा रहे इस्लामाबाद मार्च को लोगों का भारी समर्थन मिला है। डरी सरकार ने आवाज दबाने का प्रयास भी किया पर नाकाम रही। समूचे देश में कुछ देर के लिए केबल टीवी पर प्रतिबंध लगाया गया ताकि लोग कादरी की तकरीरें सुन ने सकें। इस्लामाबाद में लाखों कादरी समर्थकों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े गए, फायरिंग भी की गई। पर भीड़ कादरी को सुनती रही। कादरी बहुसंख्यक मुसलमानों के साथ ही अल्पसंख्यक हिंदुओं, ईसाइयों और सिखों के हितों की मांग उठा रहे हैं। अरसे से उपेक्षित अल्पसंख्यक उनके पीछे आंख बंद करके जुटे हैं। अल्पसंख्यकों की आवाज वह यह कहकर उठाते हैं कि सभी धर्मों के लोगों का भी पाकिस्तान में बराबरी का हक है। वो भी इस मुल्क के रहने वाले हैं, हम उनकी आजादी, जान-माल और मजहबी इबादतगाहों की सुरक्षा करने का अपना दायित्व निभाने में नाकाम रहे हैं। कनाडा निवासी पाकिस्तानी मूल के इस्लामी विद्वान डॉक्टर कादिरी के समर्थकों की संख्या लाखों-करोड़ों में है। उनकी जन-कल्याणकारी और शैक्षणिक संस्था मिनहाज उल कुरान कई दर्जन देशों में सक्रिय है। विरोधी उनकी रैली के राजनीतिक निहितार्थ ढूंढ रहे हैं। उनका तर्क है कि इस्लामाबाद मार्च ऐसे समय में हो रहा है, जब देश में मई में चुनाव होने हैं यानि यह एक सियासी रैली है और कादिरी अपने लिए पाकिस्तानी सियासत में जमीन तैयार करने में लगे हैं। सियासी दल उन्हें पाकिस्तानी विरोधी और लोकतंत्र विरोधी ताकतों का एजेंट बताकर खारिज करने की कोशिश कर रहे हैं। कादरी के अल्पसंख्यक स्टंट का ही असर है कि शियाओं के दबाव में सरकार को बलूचिस्तान सरकार को बर्खास्त करना पड़ा है। तीसरा बड़ा संकट भारतीय सैनिकों की हत्या से पैदा हुआ है। आरोप लग रहा है कि पाकिस्तान ने सीमाओं पर जो सैनिक तैनात कर रखे हैं, उनमें आतंकवादियों की भी अच्छी-खासी संख्या है। सीमा पर पाक सेना की बढ़ी सक्रियता को आतंकी सरगना हाफिज सईद और हुर्रियत कांफ्रेंस के मीरवाइज उमक फारुख की सैनिक कमांडरों से मुलाकात से जोड़कर देखा जा रहा है और पाक इसे झुठला नहीं पा रहा। सेना में बढ़ रहे कट्टरपंथी अफसर अपने प्रमुख अशफाक परवेज कियानी की बात नहीं मान रहे। इसके अलावा सैनिक के सिर काटने की घटना पर पाकिस्तान को अपने अमेरिकी आकाओं से फटकार सुननी पड़ी है। ब्रिटेन और फ्रांस जैसे ताकतवर मुल्क भी उसके समक्ष नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। हुक्मरां खुद को इस समय फंसा महसूस कर रहे हैं।
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