Wednesday, May 30, 2012

रोमनी के मैदान में होने का मतलब...

भारत के लिए यह अच्छी खबर है, अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से मिट रोमनी की उम्मीदवारी पक्‍की हो गई है। रोमनी भारत समर्थक नेता हैं, उनके आने से भारत का लाभ यह है कि भारत को नौकरियों का आउटसोर्स फिर प्रारंभ हो जाएगा। रोमनी का इतिहास भारत हितैषी है और मौजूदा राष्ट्रपति एवं डेमोक्रेट राष्ट्रपति बराक ओबामा का आरोप सिद्ध कर रहा है कि आगामी चुनाव में भारत वंशियों की अच्छी-खासी भूमिका होने जा रही है। रोमनी ने जीतने पर भारत हित में फैसले करने के इरादे जाहिर भी कर दिए हैं। हालांकि अमेरिकी भारतीयों की बड़ी संख्या के ओबामा समर्थक होने संबंधी सर्वे ने सिद्ध भी किया है कि लड़ाई इतनी आसान नहीं है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों के लिए प्रचार अभियान जोरों पर है। मिट रोमनी के रिपब्लिकन प्रत्याशी होने की आधिकारिक घोषणा हालांकि अगस्त में होगी लेकिन यह बिल्कुल तय है कि वह छह नवंबर को होने वाले चुनाव में ओबामा का सामना करेंगे। दोनों प्रत्याशी अपनी प्राथमिकताओं की घोषणा कर चुके हैं। हालांकि रोमनी पर ओबामा का सीधा आरोप उनके भारत समर्थक होने का है। हाल ही में जारी एक विज्ञापन में राष्ट्रपति ने रोमनी पर निशाना साधते हुए उनकी भारत हितैषी नीतियों की आलोचना की है। आरोप है कि मैसाचुसेट्स राज्य के गवर्नर रहते हुए रोमनी ने नौकरियों को भारत आउटसोर्स कर दिया। विज्ञापन में कहा गया है, रोमनी के बारे में क्या ख्याल है? एक कार्पोरेट सीईओ रहते हुए उन्होंने अमेरिकी नौकरियों को मेक्सिको और चीन जैसे देशों में भेज दिया। गवर्नर रहते हुए उन्हें राज्य सेवाओं की नौकरियों को भारत के कॉल सेंटरों को भेज दिया। और वो अब भी उन कंपनियों को टैक्स में राहत देने की बात कर रहे हैं जो नौकरियां आउटसोर्स करेंगी। रोमनी के खिलाफ बनाए गए इस विज्ञापन को वर्जीनिया, ओहियो और आयोवा प्रांत में प्रसारित प्रचारित किया गया। विज्ञापन में यह भी कहा गया है कि स्विस बैंकों में खाता रखने वाले व्यक्ति से ऐसा करने की ही उम्मीद की जा सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक ओबामा इस विज्ञापन पर करीब सात लाख 80 हजार डॉलर (लगभग चार करोड़ रुपए) खर्च करेंगे। रोमनी पर आरोप उन भारतीय कंपनियों के लिए अच्छा संदेश है जिन आईटी और सॉफ्टवेयर कंपनियों की कुल आय का 60 प्रतिशत अमेरिकी कंपनियों से आता है। अमेरिका की कंपनियां अपने बैक ऑफिस और अन्य काम भारत जैसे देशों को आउटसोर्स कर देती हैं। इससे भारतीय कंपनियों को नौकरियां मिलती हैं और अमेरिकी कंपनियों का काम कम दरों पर हो जाता है। रोमनी की उम्मीदवारी ओबामा के लिए कितनी मुश्किलें लेकर आ रही है, इसका अंदाजा उनके उस असाधारण बयान से लगता है जिनमें उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी की आर्थिक नीतियों की कड़ी ओलोचना की है। केनसास में उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति थियोडॉर रूज़वेल्ट के 1910 के बयान को दोहराते हुए कहा कि अमेरिका की ‘मध्यम-वर्गीय जनता के लिए ये कठिन चुनौती की घड़ी है। रिपब्लिकन पार्टी की वो नीति हमेशा असफल रही है, जिसके तहत अमीरों से कम टैक्स लिया जाता है।’ ओबामा की बेचैनी इसलिये भी आश्चर्यचकित कर रही है क्योंकि एक सर्वे में कहा गया था कि भारतीय-अमेरिकी समुदाय राष्ट्रपति चुनाव में ओबामा के समर्थन में मजबूती से खड़ा लग रहा है। इसके अनुसार, 85 प्रतिशत एनआरआई ओबामा के दूसरे कार्यकाल के समर्थन में खड़े हैं। राजनीतिक कंसल्टेंसी फर्म ‘लेक रिसर्च पार्टनर्स’ द्वारा ‘एपीआईएवोट’ के साथ मिलकर किए गए ताजा सर्वेक्षण में भारतीय-अमेरिकी समुदाय के करीब 85 प्रतिशत लोगों ने ओबामा के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने का समर्थन किया। सर्वे कहता है कि भारतीय-अमेरिकियों के बीच ओबामा की मजबूत पकड़ है जबकि फिलिपीनो अमेरिकियों के बीच वह सबसे कमजोर हैं। इससे पहले फरवरी में भारतीय-अमेरिकियों के प्रकाशन ‘इंडिया इन न्यू इंग्लैंड’ ने आनलाइन सर्वेक्षण के बाद कहा था कि 80 प्रतिशत भारतीय अमेरिकी रोमनी के बजाय ओबामा का समर्थन करते हैं। राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि रोमनी के भारत समर्थक कदमों की घोषणा करने के बाद यह बेचैनी बढ़ी है। ओबामा को लगता है कि यदि अमेरिकी भारतीयों का कुछ प्रतिशत यदि रोमनी के पक्ष में मतदान कर भी दे तो भारत को नौकरियों की आउटसोर्सिंग रोकने के वादे और अपनी पूर्व नीतियों से तमाम रिपब्लिकन समर्थक अमेरिकी उनके पक्ष में आ सकते हैं। ओबामा की व्यग्रता उनके उस बयान से भी जाहिर हो चुकी है जिसमें उन्होंने कहा था कि समान लिंग वाले जोड़ों के बीच विवाह को कानूनी मान्यता मिलनी चाहिए। वह इससे पूर्व तक अमेरिका में समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर स्पष्ट राय जाहिर करने से बचते रहे थे।

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