भारतीय राजनीति के शीर्ष पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी ने भी प्यार किया था, और उसे ताउम्र निभाया भी। वाजपेयी से एक बार सवाल पूछा गया था कि आप अब तक कुंवारे क्यों हैं, जवाब में अपनी वाकपटु शैली में वाजपेयी ने लाजवाब करते हुए कहा था कि मैं अविवाहित हूं लेकिन कुंवारा नहीं हूं। वाजपेयी के इस बयान का मर्म चाहे जो भी निकाला जाए लेकिन इस कुंवारे राजनेता की ज़िंदगी का एक हिस्सा ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से जुड़ा है। वो अतीत जिसका जिक्र दबी जुबान कभी-कभी हो जाता है।
अटल शादी करना चाहते थे, आगरा के वीमेंस ट्रेेनिंग कॉलेज (डब्ल्यूटीसी) की हिंदी शिक्षिका डॉक्टर शारदा मिश्रा से मिलने-जुलने भी आते थे। बाद में शारदा के भाई का निधन हो गया, और उन्होंने शादी न करने का फैसला किया जिसे उनके साथ अटल ने भी निभाया। बहरहाल, अटल के जीवन में जिस महिला की सबसे बड़ी भूमिका रही, वो थीं राजकुमारी कौल। ग्वालियर अटल की जन्मभूमि है और राजकुमारी कौल का वाजपेयी से नाता उस वक्त से जुड़ा जब दोनों ग्वालियर के इसी विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) में पढ़ते थे। कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रचारक के साथ ही जनसंघ की राजनीति से भी जुड़े, वहीं कौल का परिवार शादी के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज में सेटल हो गया। राजकुमारी के पति बीएन कौल रामजस कॉलेज के दर्शन विभाग के अध्यक्ष हो गए। कौल का परिवार कैंपस में रहता था। कहते हैं कि इसी दौरान ग्वालियर की दोस्ती एक बार फिर परवान चढ़ी और वाजपेयी दोबारा कौल परिवार के संपर्क में आए। सन 1964 में राजकुमारी कौल ने अपने पति मिस्टर कौल से तलाक लेने का मन भी बना लिया था और वाजपेयी से शादी करने की बात भी हो गई थी। तब संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक ने वाजपेयी से कहा कि इससे उनके राजनीतिक जीवन में बाधा आएगी और तब यह फैसला टाल दिया गया। मिसेज कौल और उनका परिवार वाजपेयी के साथ रहने तो लगा लेकिन यह तय हुआ कि मिसेज कौल कभी सार्वजनिक जीवन में सामने नहीं आएंगी और यह वादा उन्होंने आखिर तक निभाया भी। अटल जी की बहन कमला दीक्षित आगरा में रहती थीं। बात 2005 में किसी समय की होगी, अटलजी के जन्मदिन पर दैनिक जागरण ने विशेष सामग्री देने की तैयारी की थी। मैं कमलाजी से मिलने गया। चर्चा शारदा मिश्रा की भी चली और मैडम कौल की भी। बकौल कमला जी, शारदा का चैप्टर वाजपेयी जी की जिंदगी में ज्यादा दिन नहीं चला लेकिन मैडम कौल उनके जीवन की जैसे महारानी थीं। घर-परिवार का कोई भी काम उनसे पूछे बिना नहीं होता। यहां तक कि राखी-टीका करने का नेग भी मैडम कौल ही देतीं। घर में क्या बनेगा, अटलजी क्या खाएंगे, उनसे कौन मिलेगा या कौन नहीं, मैडम कौल से ही पूछा जाता। निजी सचिव शिवकुमार पारिख अकेले एेसे व्यक्ति रहे जो इस हैसियत में थे कि मुलाकातियों के बारे में अपने स्तर से निर्णय कर लें, बाकी तो सब-कुछ मैडम कौल को ही बताकर किया जाता। मैडम कौल अगर किसी बहन से नाराज हो जातीं तो परिजनों को उन्हें ही मनाना पड़ता। अटल बीच में न बोलते। कमला जी ने बताया था कि इमरजेंसी के दौरान अटलजी की जिंदगी में मैडम कौल की भूमिका बढ़ी। बाकी परिवार गिरफ्तारी से डरकर किनारे हो गया तो वही सामने आईं। जेल में खाना लेकर जातीं, घंटों बाहर इंतजार करतीं और कभी-कभी तो... पुलिस-प्रशासनिक अफसरों की झिड़कियां भी सहनी पड़तीं। हर अच्छे-बुरे वक्त में साथ देकर ही वो घर की सुपरपॉवर बन गईं। उनकी बेटी नमिता अटलजी की उत्तराधिकारी बनीं। एक जमाने में दिल्ली के ओबेराय होटल में काम करने वाले और कौल के दामाद रंजन भट्टाचार्य के बारे में लोग कहते हैं कि एनडीए सरकार में असल में सत्ता उन्हीं के हाथ में थी। आरोप है कि मई 2009 में उन्होंने नीरा राडिया को तसल्ली दिलाई थी कि वह कांग्रेस में अपने संपर्कों के जरिए दयानिधि मारन को टेलीकॉम मंत्री नहीं बनने देंगे। यानी जब भाजपा अपनी लगातार दूसरी हार के गम में डूबी थी, वाजपेयी के दत्तक दामाद कांग्रेस का मंत्रिमंडल सजाने में व्यस्त थे। कल्पना कर सकते हैं तब वाजपेयी को कैसा लगा होगा? ऐसा भी नहीं कि रंजन भट्टाचार्य को लेकर विवाद नहीं हुए। संघ प्रमुख केसी सुदर्शन ने एक बार कहा था कि भट्टाचार्य और वाजपेयी के प्रधान सचिव ब्रजेश मिश्रा की वजह से भाजपा की बुरी गत हुई। यूटीआई घोटाले में भी भट्टाचार्य का नाम उछला था। लेकिन प्रबंधन का कमाल कहिए कि कहीं कोई नुकसान नहीं हुआ। दोनों की यह प्रेम कहानी कभी ज्यादा चर्चा में नहीं रही। हां, एक बार जब वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने थे तब खबर उड़ी थी कि मैडम कौल ने पूरा श्रृंगार किया और सामने आईं, जबकि सामाजिक रूप से वह विधवा थीं। इसी साल दो मई को मैडम कौल का देहांत हुआ और अस्वस्थ वाजपेयी पूरी तरह से अकेले हो गए।
(चित्रः अटल की धेवती निहारिका, दत्तक पुत्री नमिता और रंजन भट्टाचार्य)
अटल शादी करना चाहते थे, आगरा के वीमेंस ट्रेेनिंग कॉलेज (डब्ल्यूटीसी) की हिंदी शिक्षिका डॉक्टर शारदा मिश्रा से मिलने-जुलने भी आते थे। बाद में शारदा के भाई का निधन हो गया, और उन्होंने शादी न करने का फैसला किया जिसे उनके साथ अटल ने भी निभाया। बहरहाल, अटल के जीवन में जिस महिला की सबसे बड़ी भूमिका रही, वो थीं राजकुमारी कौल। ग्वालियर अटल की जन्मभूमि है और राजकुमारी कौल का वाजपेयी से नाता उस वक्त से जुड़ा जब दोनों ग्वालियर के इसी विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) में पढ़ते थे। कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रचारक के साथ ही जनसंघ की राजनीति से भी जुड़े, वहीं कौल का परिवार शादी के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज में सेटल हो गया। राजकुमारी के पति बीएन कौल रामजस कॉलेज के दर्शन विभाग के अध्यक्ष हो गए। कौल का परिवार कैंपस में रहता था। कहते हैं कि इसी दौरान ग्वालियर की दोस्ती एक बार फिर परवान चढ़ी और वाजपेयी दोबारा कौल परिवार के संपर्क में आए। सन 1964 में राजकुमारी कौल ने अपने पति मिस्टर कौल से तलाक लेने का मन भी बना लिया था और वाजपेयी से शादी करने की बात भी हो गई थी। तब संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक ने वाजपेयी से कहा कि इससे उनके राजनीतिक जीवन में बाधा आएगी और तब यह फैसला टाल दिया गया। मिसेज कौल और उनका परिवार वाजपेयी के साथ रहने तो लगा लेकिन यह तय हुआ कि मिसेज कौल कभी सार्वजनिक जीवन में सामने नहीं आएंगी और यह वादा उन्होंने आखिर तक निभाया भी। अटल जी की बहन कमला दीक्षित आगरा में रहती थीं। बात 2005 में किसी समय की होगी, अटलजी के जन्मदिन पर दैनिक जागरण ने विशेष सामग्री देने की तैयारी की थी। मैं कमलाजी से मिलने गया। चर्चा शारदा मिश्रा की भी चली और मैडम कौल की भी। बकौल कमला जी, शारदा का चैप्टर वाजपेयी जी की जिंदगी में ज्यादा दिन नहीं चला लेकिन मैडम कौल उनके जीवन की जैसे महारानी थीं। घर-परिवार का कोई भी काम उनसे पूछे बिना नहीं होता। यहां तक कि राखी-टीका करने का नेग भी मैडम कौल ही देतीं। घर में क्या बनेगा, अटलजी क्या खाएंगे, उनसे कौन मिलेगा या कौन नहीं, मैडम कौल से ही पूछा जाता। निजी सचिव शिवकुमार पारिख अकेले एेसे व्यक्ति रहे जो इस हैसियत में थे कि मुलाकातियों के बारे में अपने स्तर से निर्णय कर लें, बाकी तो सब-कुछ मैडम कौल को ही बताकर किया जाता। मैडम कौल अगर किसी बहन से नाराज हो जातीं तो परिजनों को उन्हें ही मनाना पड़ता। अटल बीच में न बोलते। कमला जी ने बताया था कि इमरजेंसी के दौरान अटलजी की जिंदगी में मैडम कौल की भूमिका बढ़ी। बाकी परिवार गिरफ्तारी से डरकर किनारे हो गया तो वही सामने आईं। जेल में खाना लेकर जातीं, घंटों बाहर इंतजार करतीं और कभी-कभी तो... पुलिस-प्रशासनिक अफसरों की झिड़कियां भी सहनी पड़तीं। हर अच्छे-बुरे वक्त में साथ देकर ही वो घर की सुपरपॉवर बन गईं। उनकी बेटी नमिता अटलजी की उत्तराधिकारी बनीं। एक जमाने में दिल्ली के ओबेराय होटल में काम करने वाले और कौल के दामाद रंजन भट्टाचार्य के बारे में लोग कहते हैं कि एनडीए सरकार में असल में सत्ता उन्हीं के हाथ में थी। आरोप है कि मई 2009 में उन्होंने नीरा राडिया को तसल्ली दिलाई थी कि वह कांग्रेस में अपने संपर्कों के जरिए दयानिधि मारन को टेलीकॉम मंत्री नहीं बनने देंगे। यानी जब भाजपा अपनी लगातार दूसरी हार के गम में डूबी थी, वाजपेयी के दत्तक दामाद कांग्रेस का मंत्रिमंडल सजाने में व्यस्त थे। कल्पना कर सकते हैं तब वाजपेयी को कैसा लगा होगा? ऐसा भी नहीं कि रंजन भट्टाचार्य को लेकर विवाद नहीं हुए। संघ प्रमुख केसी सुदर्शन ने एक बार कहा था कि भट्टाचार्य और वाजपेयी के प्रधान सचिव ब्रजेश मिश्रा की वजह से भाजपा की बुरी गत हुई। यूटीआई घोटाले में भी भट्टाचार्य का नाम उछला था। लेकिन प्रबंधन का कमाल कहिए कि कहीं कोई नुकसान नहीं हुआ। दोनों की यह प्रेम कहानी कभी ज्यादा चर्चा में नहीं रही। हां, एक बार जब वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने थे तब खबर उड़ी थी कि मैडम कौल ने पूरा श्रृंगार किया और सामने आईं, जबकि सामाजिक रूप से वह विधवा थीं। इसी साल दो मई को मैडम कौल का देहांत हुआ और अस्वस्थ वाजपेयी पूरी तरह से अकेले हो गए।
(चित्रः अटल की धेवती निहारिका, दत्तक पुत्री नमिता और रंजन भट्टाचार्य)
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