आम चुनाव 2019 दस्तक दे रहा है। केंद्र की सत्ता पर आसीन भारतीय जनता पार्टी की तैयारियां जारी हैं, उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी कमर कस रहा है। पूरा जोर लगाने की रणनीति है। मुख्य ध्यान समाज के सभी वर्गों को जोड़कर चलने में है, यानी दलितों के वोटों पर नजर है। संघ मानकर चल रहा है कि दलितों के एकजुट वोट से न केवल केंद्र की सत्ता के रास्ते उत्तर प्रदेश में संभावित महागठबंधन से टक्कर ली जा सकेगी, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी जीत के समीकरण काफी सरल हो जाएंगे।
गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा के उपचुनावों में गठबंधन की वजह से दलित-मुस्लिम एकता देखने को मिली थी, यह बीजेपी के लिए बड़ी चिंता का विषय है। इसी के बाद दलित सम्बन्धी रणनीति को महत्व देने का निर्णय हुआ है। संघ का समरसता अभियान आने वाले दिनों में तेजी पकड़ेगा। क्योंकि रणनीतिककार मानकर चल रहे हैं कि समरसता अभियान के रास्ते ही हिंदू वोटों में विभाजन को रोका जा सकता है। यह संघ का अपना काम करने का तरीका है, जिससे वह गहरे तक अपनी पैठ बनाता है। आरएसएस की वेबसाइट पर समरसता कार्यक्रम की एक फोटो है, जिसमें बीआर आंबेडकर, ज्योतिबा फुले और गौतम बुद्ध की फोटो लगी है, लिखा है ’समरसता मंत्र के नाद से हम भर देंगे सारा त्रिभुवन।’ संघ प्रमुख मोहन भागवत का नागपुर के एक कार्यक्रम में दिया गया बयान इसी लाइन को मजबूत करता हुआ दिखता है, जिसमें उन्होंने कहा “अयोग्य बातें त्यागनी होंगी। हिंदू धर्म कोई जाति-भेद नहीं मानता, हम सब भाई-भाई हैं। इसे व्यवहार में भी उतारना होगा, संघ यही काम कर रहा है। भेदों के आधार पर व्यवहार, यह विकृति है। समाज को एक सूत्र में बांधने के लिए डॉ. आंबेडकर के बंधुभाव का दृष्टिकोण अपनाना होगा। संघ समतायुक्त, शोषण-मुक्त समाज निर्माण करने का काम कर रहा है. लेकिन यह काम केवल अकेले संघ का नहीं है, सारे समाज को इसमें हाथ बंटाना है।“ सरकार्यवाह सुरेश भैय्याजी जोशी ने कहा- “जाति के आधार पर मनुष्यों का आपस में भेदभाव करना धर्म के मूल तत्वों के खिलाफ है। जातिवाद ने समाज का बड़ा नुकसान किया है, इसलिए हमें इन संकीर्णताओं से ऊपर उठकर देशहित में सोचना चाहिए।“ इसी क्रम में संघ का इरादा छुआछूत के खिलाफ अभियान में तेजी लाने का है। वर्ष की शुरुआत में स्वयंसेवकों ने तेलंगाना प्रांत में दलितों के मान-सम्मान के लिए एक मुहिम चलाई थी, जिसके फलस्वरूप यहां के 200 गांवों में एक श्मशान, मंदिर में सबको प्रवेश एवं होटल में सभी के लिए समान गिलास रखना संभव हुआ है। इसी का असर है कि हाल ही में सम्पन्न राज्य विधानसभा चुनावों में इस क्षेत्र से लगी दो सीटों में भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ गया। राजस्थान में भी संघ ने एक कुंआ, एक श्मशान तथा मंदिर प्रवेश को लेकर काम किया है। दलितों में रुझान बढ़ने का यह भी एक वजह रहा है। इसी क्रम में संघ के निर्देश पर बीजेपी ने अपने सांसदों, विधायकों को डॉ. बीआर आंबेडकर जयंती मनाने के लिए कहा था, इसी क्रम में पुण्यतिथि पर भी स्मरण के सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। दलितों के यहां जाकर यह बताने के लिए कहा गया कि सरकार उनके कल्याण के लिए क्या-क्या कर रही है। सियासी जानकारों का कहना है कि जिस तरह से बीजेपी ने यह मिथक तोड़ा कि महात्मा गांधी केवल कांग्रेस के नहीं हैं, उसी तरह वह आंबेडकर को लेकर भी काम कर रही है, ताकि दलितों की खैरख्वाह बनने वाली कोई पार्टी आंबेडकर पर अपना एकाधिकार न समझे। राम मंदिर का मुद्दा भी जिंदा रखा जाएगा। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के जरिए भी मंदिर के लिए माहौल बनाने की कोशिश की जाएगी। इसके साथ ही, संघ हर सांसद के कार्यों का भी मूल्यांकन कर रहा है। यह दायित्व संघ के संगठन मंत्रियों को दिया गया था। उनकी रिपोर्ट मिलने के बाद प्रत्याशी चयन में भी संघ की सक्रियता इस दफा पहले से ज्यादा है। अगले चुनाव में किस-किस मौजूदा भाजपा सांसद का टिकट कटेगा, इसका निर्णय इसी रिपोर्ट के आधार पर किया जाना है। इसका पार्टी को लाभ भी है कि वह संभावित असंतोष को यह कहकर टाल पाएगी कि टिकट उसके स्तर से नहीं बल्कि संघ ने काटी है। बहरहाल, तैयारियां तेज हैं। आने वाले दिनों में पार्टी के हर कार्यक्रम में संघ की भागीदारी बढ़ती दिखेगी।
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