समाजवादी पार्टी में जंग छिड़ी है। सत्तादल के शीर्ष परिवार में मुखिया मुलायम सिंह यादव का बेटा अखिलेश और भाई शिवपाल आमने-सामने हैं। कुछ महीनों की दूरी पर खड़े विधानसभा चुनावों के मद्देनजर छवि सुधारने की कवायद का प्रतिकूल असर हुआ है। लेकिन सारे फसाद की जड़ है क्या, कौन है जो परदे के पीछे खड़ा मुलायम सिंह को रोक रहा है, उन मुलायम सिंह को जो परिवार में किसी भी विवाद पर तत्काल सामने आ जाते थे? दरअसल, जंग खाटी समाजवादी मुलायम सिंह की विरासत और राजनीति के हरे-भरे मैदान में खड़ी नेताजी की 'फसल' पर दावेदारी की है। 'राजगद्दी' पर बैठे 'राम' को हिलाने के लिए 'कैकई' अपने 'भरत' के लिए पूरा जोर लगा रही है। बाहरी अमर सिंह तो महज बहाना हैं। अमर सिंह के साथ जो भी हुआ, वो महज प्रतीकात्मक होगा। हरियाली फसल के बीच खड़े इस 'बिजूके' पर लगा निशाना असल में, कैकई के मंसूबों पर होगा।
सबसे पहले उस वजह की शिनाख्त करते हैं जो इस पूरी लड़ाई की नींव की मानिंद है। 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए टिकट वितरण के दौरान मुलायम सिंह परिवार के एक सदस्य का नाम तेजी से सामने आया और कौतूहल का विषय बन गया। चर्चा फैली कि मुलायम सिंह यानी नेताजी की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता का बेटा प्रतीक उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से मैदान में उतरने का इच्छुक है। लेकिन अखिलेश बीच में आ गए, प्रतीक को टिकट नहीं मिली लेकिन मुलायम सिंह खुद मैदान में उतर गए। बाद में दो सीटों पर जीते मुलायम के आजमगढ़ सीट छोड़ने को लेकर भी सियासत हुई। मुलायम मैनपुरी का प्रतिनिधित्व बरकरार रखना और आजमगढ़ से प्रतीक को मैदान में उतारना चाहते थे, लेकिन अखिलेश फिर तैयार नहीं हुए। नतीजतन, पार्टी को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चलाने वाले परिवार में, जिसमें बेटा पैदा होने पर यह मनन का दौर चलने के व्यग्य लगाए जाने शुरू हो जाते हैं कि उसे लड़ाया किस सीट से जाएगा, प्रतीक घर बैठे रह गए। साधना के लिए यह आघात की तरह था, वह अपने बेटे की राजनीतिक लांचिंग की हसरत दिल में ही दबाए रहने के लिए मजबूर हो गईं। लेकिन संघर्ष के मौजूदा दौर की नींव पड़ गई। इसी बीच गायत्री प्रजापति मंत्री बन गए। अदने से आदमी ने खनन के धंधे से जो बेशुमार दौलत कमाई, उसके पीछे प्रतीक का ही नाम है। साधना ने कई खेल खेले, आगरा मंडल के एक व्यक्ति को अखिलेश के विरोध के बावजूद मंत्री बनवा दिया। 'खबर' यहां तक उड़ीं कि इसके एवज में करोड़ों रुपये पहुंचाए गए हैं।
बीपीएल कार्डधारी प्रजापति को राज्यमंत्री बनाया गया। उस वक्त खनन जैसा मालदार महकमा मुख्यमंत्री के अधीन था मगर गायत्री ने साधना और प्रतीक से नजदीकियां बढ़ा लीं। साधना गुप्ता से मुलायम तक सिफारिश कराकर खनन जैसा मालदार महकमा हासिल कर लिया। फिर शुरू करा दिया पूरे यूपी में अवैध रूप से खनन का खेल। हर महीने दो सौ करोड़ की इस काली कमाई का खेल फलने-फूलने लगा। गायत्री ने अपने बेटे और साधना के बेटे प्रतीक यादव को लेकर कई फर्जी कंपनियां बनाकर काली कमाई का निवेश करने लगा। जब गायत्री के दम पर बड़ा बिजनेस एंपायर प्रतीक खड़ा करने में सफल रहे तो मुलायम और पत्नी साधना फूले नहीं समाए। यही वजह रही कि पूरे चार साल तक गायत्री ने लूटपाट मचा कर रख दी। इधर, प्रतीक की स्वीकार्यता के लिए साधना प्रयास करती रहीं, मुलायम मानते भी रहे। अखिलेश भी मन मारकर सब-कुछ बर्दाश्त करते रहे। गायत्री के काले कारनामे अखबारों की सुर्खियां बनते गए। लेकिन अवैध खनन को लेकर सीबीआई का शिकंजा कसने की तैयारियां शुरू होते ही, जैसे अखिलेश को मौका मिल गया। उन्होंने गायत्री प्रजापति को मंत्रिपरिषद से बर्खास्त कर दिया। इससे नेताजी तो जैसे बवंडर में फंस गए। मुख्य सचिव दीपक सिंघल को हटाकर एक वार हो ही चुका था। साधना आपा खो बैठीं। देवर शिवपाल सिंह यादव के भी दोनों चहेते कार्रवाई का शिकार हुए थे तो वो भी साथ आ गए। मोर्चा खोल दिया गया। मुलायम बेबस से सब-कुछ देखते रहे। अमर सिंह 'मंथरा' की भूमिका निभाते रहे। उन्हीं का कंधा इस्तेमाल होता रहा। अखिलेश जानते हैं कि अमर सिंह को ढेर करके वह न केवल शिवपाल को मात देंगे बल्कि साधना भी निशाने का शिकार बन जाएंगी।
मुलायम की एक खासियत यह है कि वे अपनों की हर तरह से मदद करते हैं। उनकी पहली पत्नी मालती देवी से उनका बड़ा बेटा अखिलेश है। अखिलेश का जन्म 1973 में हुआ था, 2003 में मालती देवी का निधन हो गया। पत्नी के न रहने के बाद नेताजी खुद को बेहद अकेला महसूस करने लगे इसलिए उन्होंने साधना से विवाह कर लिया। इससे पूर्व उनसे 1988 में दूसरा पुत्र प्रतीक पैदा हो चुका था। पहली बार अधिकारिक रुप से लोगों को साधना गुप्ता के उनकी पत्नी होने का तब पता चला जब कि आय के ज्ञात स्रोतों से ज्यादा संपत्ति के मामले में मुलायम ने फरवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर उन्हें अपनी पत्नी बताया। सारे घटनाक्रम में प्रतीक की पत्नी अपर्णा का भी खासा रोल होना तय है। वह समझदार है, समझती है कि दबाव की राजनीति किए बिना काम नहीं बन सकता। भातखंडे संगीत महाविद्यालय में शास्त्रीय संगीत सीखी यह बहू हर्ष फाउंडेशन नाम के एनजीओ से जुड़ी हुई हैं। उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान की तारीफ की। जब प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश के दौरे पर आए तो उनके साथ सेल्फी खिंचवायी। मोदी ने भी उसके विचारों को अपनी साइट पर डाला। गोहत्या पर कड़ी पाबंदी की मांग की।मंहत अवैद्यनाथ का निधन हुआ तो गोरखपुर जाकर योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की। जब किसी ने मोदी की तारीफ करने के बारे में पूछा तो छूटते ही कह दिया कि यह तो मेरे दिल से निकले उदगार है। मैंने यह कहते समय अपने दिमाग का नहीं बल्कि दिल का इस्तेमाल किया है। यह सब बातें ससुरजी को यह संकेत देने के लिए काफी थी कि घर में ‘वीर तुम बढ़े चलो, सामने पहाड़ हो, सिंह की ललकार हो,’ शुरु हो गया इसलिए उन्होंने उसे उत्तर प्रदेश से विधानसभा का चुनाव लड़वाने का फैसला कर लिया। वैसे भी दूसरी पत्नी का दबाव था। जब बड़ी बहू सांसद हो तो छोटी विधायक भी न बने यह कैसे हो सकता है। हालांकि यहां भी अखिलेश ने यथासंभव बाधा पैदा की है, उनके दखल से अपर्णा को लखनऊ की उस सीट से टिकट मिली है जहां से सपा की जीत लगभग असंभव ही है। बहरहाल, परिवार की इस लड़ाई ने समाजवादी पार्टी की राजनीतिक उम्मीदों को खासा नुकसान पहुंचाया है। यह जितने दिन चलेगी, नुकसान उतना ही बढ़ेगा।
1 comment:
Well done ail ji
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