Sunday, May 25, 2014
उम्मीद की एक सुबह
आज रविवार है, 26 मई 2014 यानी सोमवार को जब हम उठेंगे तो एक नई सुबह होगी, उम्मीद की। रात होने तक देश में एक नई सरकार होगी, नए पीएम नरेंद्र मोदी शपथ ले चुके होंगे। यह सत्ता में आम बदलाव का उदाहरण नहीं, यह इसलिये भी महत्वपूर्ण नहीं कि गैर कांग्रेसी पार्टी सत्तासीन हो रही है, यह अहम इसलिये है क्योंकि पूरे देश ने एक नेता के नाम पर बहुमत दिया है क्योंकि उसे लगता है कि यह आदमी बदलाव लाएगा। समस्याएं इतनी हो गई थीं, भ्रष्टाचार इतना बड़ा रूप धर चुका था कि उम्मीद की एक छोटी-सी किरण के पीछे पूरा देश दौड़ पड़ा। भाजपा को उन इलाकों से भी जीत मिली, जहां से उसने खुद कल्पना नहीं की थी। उसकी सीटों का ग्राफ मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आंकलन से भी ऊपर पहुंच गया। गुजरात दंगों में खलनायक सिद्ध किए जा रहे नरेंद्र दामोदर दास मोदी नायक बन गए।
मोदी के संग अपार जनसमूह का समर्थन है। उनसे जुड़ी हर बात चर्चा का विषय है, जीतने के बाद से अब तक ट्विटर पर उनके फॉलोअर्स की संख्या 40 लाख का आंकड़ा पार कर चुकी है। उन्हें जैसे सुपरमैन मान लिया गया है, कि वह हर समस्या का समाधान कर सकते हैं और करेंगे। महंगाई कम होगी, अच्छे दिन आएंगे। इस एक नेता के नाम पर भाजपा को वोट देने वाला हर भारतीय नागरिक उम्मीद लगाए बैठा है, मोदी को उस जैसे करोड़ों लोगों ने उम्मीद के पहाड़ पर बैठा दिया है। पर चुनौतियां जितनी हैं, उससे यह अंदाज लगा पाना बेहद मुश्किल है कि आम जनता की उम्मीदें पूरी होना कब शुरू होंगी। सबसे पहली समस्या है महंगाई की। पूरा देश इस वक्त महंगाई से त्रस्त है। मनमोहन की लोकप्रियता घटने की भी यही सबसे बड़ी वजह रही है। हर चीज के दाम आसमान छू रहे हैं। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने भी नई सरकार के सामने मंहगाई को अहम चुनौती माना है। थोक मूल्य सूचकांक 5.2 के इर्द-गिर्द है जो पिछले मार्च में 5.7 था। वित्त सचिव अरविंद मायाराम का कहना है कि ये कमी जारी रहेगी लेकिन इस अच्छी खबर पर अल नीनो इफेक्ट का खतरा मंडरा रहा है। मानसून के औसत से कम रहने का अनुमान मौसम विभाग पहले ही दे चुका है। अगर मानसून का मिजाज बिगड़ता है तो नई सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती फिर से महंगाई ही रहने वाली है। महंगाई और विकास को साधना कुछ-कुछ ऐसा ही है जैसे कोई कलाबाज रस्सी पर चल रहा होता है। महंगाई अगर बढ़ती है तो ब्याज दरों पर काबू रखना पड़ता है जिससे विकास की दर घट जाती है और रोजगार कम होने लगते हैं। पिछले पांच साल में भारत इस भंवर से निकल नहीं पाया है। सरकारी अनुमान अगले साल विकास दर के छह फीसदी रहने के हैं, लेकिन मौजूदा हालत ये हैं कि विकास दर पांच फीसदी से नीचे है। आम जनता के लिए विकास के मायने दर नहीं है बल्कि नौकरी और सैलरी बढ़ना है। नई सरकार को रोजगार बढ़ाने के लिए कदम उठाने होंगे। चुनाव के दौरान भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा था, लोगों में कांग्रेस राज में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आक्रोश था। ऐसे में सरकार को भ्रष्टाचार के विरुद्ध तत्काल कोई कदम उठाना होगा।
घर का बजट तभी चलता है जब कमाई खर्चे से ज्यादा हो पर भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कमाई के मुकाबले खर्चे बढ़ाए हैं। इस बार वित्तीय घाटा जीडीपी के 4.5 फीसदी तक रखने में सरकार ने कामयाबी पाई है। वित्तीय घाटा सरकार की कमाई और खर्चे के बीच का फर्क है। जो रोडमैप तैयार किया गया है उसके मुताबिक साल 2014-15 में ये घाटा 4.2 फीसदी और 2015-16 में 3.6 फीसदी तक लाया जाना है यानी मोदी सरकार का हाथ पहले से ही तंग है और उस पर खर्चे घटाने का दबाव रहेगा। काले धन की स्वदेश वापसी भी चुनावी मुद्दा रही है, भाजपा की ओर से योग गुरु बाबा रामदेव ने गांव-गांव जाकर बताया है कि काला धन आ गया तो हर शख्स करोड़ों का मालिक बन जाएगा। संभव है कि बात समझाने के लिए ऐसा कहा गया हो पर काला धन अब बड़ा मुद्दा बन चुका है। विदेशी बैंकों में कितना काला धन जमा है, ये कहना मुश्किल है पर अगली सरकार के लिए एक्शन में दिखना जरूरी हो गया है। इसके साथ ही अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए आयात-निर्यात घाटे को कम करना होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ दिक्कत ये है कि आयात हम ज्यादा करते हैं और निर्यात कम यानी ज्यादा डॉलर बाहर जाते हैं और आते कम हैं। नतीजतन, रुपये और हमारी अर्थव्यवस्था पर दबाव। इसे सुधार कर ही देश को तरक्की की तरफ बढ़ाया जा सकता है। भारत कच्चा तेल, सोना, खाद्य तेल और दालें बाहर से मंगाता है और ऐसे में किसी भी सरकार के लिए इस समस्या को सुलझाना आसान नहीं है। आम आदमी की बात करें तो उसे बिजली पानी और सड़कों से संबंधित समस्याओं का भी हल चाहिये, भाजपा ने इस हल का वादा किया है। सवाल ये है कि घर-घर बिजली कैसे जाएगी जब इतना उत्पादन होता ही नहीं है। बिजली के लिए निजी क्षेत्र पर निर्भरता बढ़ रही है, और उसके नखरे उठाना मजबूरी है। प्रश्न ये भी है कि भ्रष्ट तंत्र और कच्छप गति का शिकार सड़कें हर गांव तक कैसे पहुंचेंगी और पीने के साफ पानी के लिए क्या चमत्कार किया जाएगा कि हर इंसान तक उसकी पहुंच हो जाएगी। ये वादे करने आसान थे लेकिन इन्हें पूरा करने मुश्किल आना तय है। मोदी सरकार के लिए एक चुनौती केंद्र-राज्य के बीच मधुर संबंध रखना भी है, चूंकि राज्यों में अलग-अलग पार्टियां सत्तासीन हैं और इनका आपस में संबंध भी अच्छा नहीं है तो दिक्कत साथ चलने में आएगी। बीजेपी को सबसे बड़ी दिक्कत राज्यसभा में आने वाली है जहां वो अल्पमत में है और अकेले बिल पास करा पाने की हालत में नहीं। विपक्ष की पूरी राजनीति ही जब भाजपा के विरोध पर केंद्रित है तो वह भला क्यों किसी बिल पर समर्थन देगा। विपक्ष की एकजुटता से भी सरकार का सामना हो सकता है।
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