
आरोप इतना गंभीर है, यह साबित कर पाना ज्यादा मुश्किल नहीं लगता कि अन्ना की हत्या की साजिश रची गई थी। बस, इतना सोच भर लीजिए कि कैसे रामलीला मैदान पर बिना अऩ्न-पानी कई दिन तक सत्याग्रह करने वाला व्यक्ति इतना बीमार पड़ जाता है? जिस व्यक्ति ने आचरण शुद्ध रखा हो, प्रतिदिन योग और धार्मिक क्रियाकलापों में समय व्यतीत करता हो, और सबसे बड़ी बात यह है कि कहीं से भी शरीर अशक्त न दिखता हो, उसे अचानक इतनी बड़ी बीमारी यूं ही नहीं हो सकती। फिर उनका इलाज करने वाले अस्पताल के चिकित्सक केएच संचेती को आनन-फानन में पद्म विभूषण से सम्मानित करना भी शक को और पुख्ता करता है। संचेती के अस्पताल में जाने के बाद सामान्य रोगों से पीड़ित अन्ना का यह हाल हो जाता है कि उनके शरीर में कई जगह सूजन आ जाती है, कई जगह पानी भर जाता है और रक्तचाप खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। पूरे शरीर में और खासकर पेट, पैर और चेहरे में काफी सूजन है। उनका दम फूल रहा है, पैर और पेट में भारी जलन है और शरीर के विभिन्न भाग में पानी जमा है। आरोप महज आरोप होते तो चलते लेकिन यदि डॉक्टरी जांच में यह बातें सामने आती हैं तो बात गंभीर है। डॉक्टरों के नए पैनल के मुताबिक, खतरनाक और गैर जरूरी दवाओं के कुप्रभाव की वजह से अन्ना का यह हाल हुआ है। अधिकांश प्रभाव विभिन्न दवाओं की वजह से है। अन्ना को पुणे में तीन-तीन इंट्रावीनस (नसों के जरिये दी जाने वाली) एंटीबायटिक दी गईं, जिसे बहुत आपात स्थिति में ही इस्तेमाल किया जाता है। इसकी वजह से उन्हें लंबे समय के लिए एसीडीटी हो गई है। उन्हें बिना जरूरत के स्टीराएड और बहुत ज्यादा पेनकिलर दिए गए, जिसकी वजह से शरीर में सूजन हो गई और कई जगह पानी भर गया। पता नहीं अन्ना हजारे की प्रबुद्ध टीम के भारी-भरकम बायोडाटा वाले सदस्यों को तब शक क्यों नहीं हुआ जब संचेती के अस्पताल में डॉक्टरों ने पहले ही दिन से यह कहना शुरू कर दिया था कि अन्ना को एक माह के आराम की जरूरत है। बिना परीक्षण और प्राथमिक चिकित्सा की दवाओं का असर देखे बिना कैसे कोई डॉक्टर यह कह सकता है कि मरीज को इतने दिन आराम करना पड़ेगा?
दरअसल, साजिश की शुरुआत तभी हुई थी और पटकथा का पहला अध्याय कहता था कि पहले अन्ना के आसन्न अनशन को किसी भी तरह रोका जाए। सत्ता की साजिश का वैसे भी यह पहला मामला नहीं था कि टीम अन्ना और देश के हम लोग इतनी आसानी से मान जाते कि जोरदार तमाचा खाई सरकार यूं ही चुप बैठ जाएगी। सरकार और सत्तासीन पार्टी में बैठे लोग तो मौके की तलाश में थे। अन्ना से उन्हें लोकसभा चुनावों में बुरी तरह मात खाने का डर सता रहा था। इतनी बड़ी लड़ाई की अगुआ रही टीम कैसे महाराष्ट्र में इलाज के लिए तैयार हो गई जहां कांग्रेस और उन शरद पवार की राष्ट्रीय क्रांति पार्टी की सरकार है। जरा सी भी समझदारी दिखाई जाती तो उन्हें पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश या फिर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के इसी मेदांता अस्पताल में लाकर इलाज कराना चाहिये था। इसी कांग्रेस की सरकार पर लोकनायक जय प्रकाश नारायण की हत्या का षड्यंत्र रचने का आरोप लगा था। कहा गया था कि सरकार उनके गुर्दे फेल कराकर मारना चाहती थी। बिहार में अब्दुल गफूर सरकार के खिलाफ छात्र खड़े हो गए थे। जेपी को आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए कहा गया था। जेपी तब बीमार हो चुके थे। सरकार की मंशा रंग लाने लगी थी। जयप्रकाश नारायण की मृत्यु एक बीमार और निराश व्यक्ति के तौर पर हुई। अन्ना उस समय सामने आए जब देश के तंत्र से लोगों का भरोसा उठने लगा था। भ्रष्टाचार जैसे इस तंत्र का अनिवार्य हिस्सा बन चुका था। कोई भी काम बिना पैसे दिए संभव नहीं था। और.... इसी कहानी का एक पक्ष यह भी है कि लंबे समय तक सरकार में रही कांग्रेस के नेता भ्रष्टाचार के धन से इतने संपन्न हो चुके हैं कि वो कुछ भी न करें तो भी उनकी कई पीढ़ियां घर बैठे-बैठे संपन्न जीवन व्यतीत कर सकती हैं। सुरेश कलमाडी और सुखराम जैसे नेताओं के उदाहरण तो हमने हाल ही में देखे हैं। कांग्रेस के भीतर बैठे ऐसे ही लोग साजिशें रच रहे हैं। अन्ना हजारे आम जनता की उम्मीद के प्रतीक हैं, हम सभी को इस तरह की साजिशों के विरुद्ध उठ खड़ा होना होगा। विधानसभा चुनावों वाले राज्यों से यह पहल होनी चाहिये। इलाज में साजिश से इंकार करने वाले अन्ना मजबूर दिखते हैं, उन्होंने भ्रष्टाचार के बड़े मुद्दे पर जगाने का काम करके हम पर अहसान किया है। हमें उनकी और उनके नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरुद्ध पैदा हुई एकता की चिंता है।