Monday, June 25, 2012
मुर्सी के सामने चुनौतियों का ढेर
मिस्र के चुनावों में मतदाताओं ने इतिहास रचा है। दो साल पहले तक जिस मिस्र में यह कतई असंभव लग रहा था कि प्रतिबंधित मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़ा नेता राष्ट्रपति के शीर्ष पद तक भी पहुंच सकता है। राष्ट्रपति पद के लिए हुए दूसरे चरण के चुनाव में मोहम्मद मुर्सी को लेकर लोगों की राय बंटी हुई थी, असमंजस का दौर चरम पर था। वह जीते और अब राष्ट्रपति हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें बधाई दी है। इजरायल को उम्मीद है कि 30 साल पहले हुए शांति समझौते पर मिस्र कायम रहेगा। हालांकि मुर्सी की राह मुश्किल भी है। उन्हें सिद्ध करना है कि सत्ता की असली चाबी उन्हीं के पास है, न कि कट्टरपंथियों के पास।
मुर्सी का राष्ट्रपति बन जाना इतना आसान नहीं था। दूसरे चरण में वह खुद भी भ्रमित थे और उन्हें टेलीविजन पर एकता की बात दोहरानी पड़ी। मुर्सी के पक्ष में जो बातें जाती हैं उनमें से एक ये है कि उनकी जीत की वैधता पर सवाल उठाना आसान नहीं होगा। ये दावा करना मुश्किल होगा कि चुनावी मशीनरी मुस्लिम ब्रदरहुड के पक्ष में थी लेकिन जीत के बाद उन्हें ये देखना और दिखाना होगा कि असल में उनके पास कितनी ताकत है। पिछले 10 दिनों में सत्ताधारी सैन्य परिषद ने नीतिगत स्तर पर अपना दबदबा फिर से बनाया है। विदेश और रक्षा नीति पर सैन्य परिषद का नियंत्रण है। संसद को उसने भंग कर दिया है और ऐसे में परिषद कानून के मसौदे रख सकती है। संविधान लिखे जाने को लेकर भी परिषद के पास वीटो का अधिकार होगा। उधर मिस्र के लोग देश में सामान्य हालात बहाल होते और सम्पन्नता चाहते हैं, ये मुर्सी के लिए अच्छी बात है। नए राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री नियुक्त करने और सरकार बनाने के साथ ही घरेलू नीति तय करने का अधिकार है। जीत के बाद अपने भाषण में मुर्सी ने खासतौर पर पुलिसकर्मियों और सुरक्षाकर्मियों को आश्वासन दिया था क्योंकि वे अपनी स्थिति को लेकर काफी घबराए हुए हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद मुर्सी के पास काफी अधिकार और शक्तियाँ होंगी, हालांकि मिस्र में आमतौर पर किसी एक व्यक्ति का ही शासन रहा है इसीलिये यहां के लोग पूरी स्थिति को शक की निगाह से देख रहे हैं।
दशकों से लोगों को यही आगाह किया जाता रहा है कि मुस्लिम ब्रदरहुड मिस्र पर कब्जा कर उसे इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहता है। इख्वान अल- मुस्लमीन के नाम से भी विख्यात मुस्लिम ब्रदरहुड मिस्र का सबसे पुराना और सबसे बडा़ इस्लामी संगठन है। स्थापना के बाद से ही इस संगठन ने पूरे संसार में इस्लामी आंदोलनों को काफी प्रभावित किया और मध्य पूर्व के कई देशों में अपने सदस्य बना लिये। शुरूआती दौर में इस आंदोलन का मकसद इस्लाम के नैतिक मूल्यों और अच्छे कामों का प्रचार प्रसार करना था, लेकिन जल्द ही मुस्लिम ब्रदरहुड राजनीति में शामिल हो गया। उसने विशेष रूप से मिस्र को ब्रिटेन के औपनिवेशिक निंयत्रण से मुक्ति के अलावा बढ़ते पश्चिमी प्रभाव से निजात दिलाने के लिए काम किया। संगठन ने कई दशक तक सत्ता पर काबिज रहे राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को बेदखल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जनांदोलनों की वजह से फरवरी 2011 में होस्नी मुबारक को सत्ता से हटना पड़ा था. ब्रदरहुड का कहना है कि वो लोकतांत्रिक सिद्धांतो का समर्थन करता है और उसका एक मु्ख्य मकसद है कि देश का शासन इस्लामी कानून यानि शरिया के आधार पर चलाया जाए। मुर्सी के सामने उनके संगठन का यह नजरिया भी एक चुनौती है। संगठन का रवैया भी विवादित रहा है। क्रांति के बाद उसने कहा था कि वो राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार नहीं खड़ा करेगा और न ही संसद की ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ेगा लेकिन बाद में दोनों वादे तोड़ दिए। ऐसे में सबकी नजर इस बात पर रहेगी कि मिस्र का प्रधानमंत्री कौन होगा। वे पहले ही कह चुके हैं कि वे ब्रदरहुड के बाहर से किसी को प्रधानमंत्री नियुक्त करेंगे। वे चाहें तो वो उप राष्ट्रपति और कैबिनट मंत्रियों की नियुक्ति को लेकर भी ऐसा आश्वासन दे सकते हैं। इस समय मिस्र बिल्कुल बटा हुआ है और एक साल से राजनीतिक गतिरोध था, वहीं दूसरी ओर लोग हालात को सामान्य होते देखना चाहते हैं। इन्हीं चुनौतियों के बीच मुर्सी को देश की चुनौतियां का सामना करना होगा।
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