Friday, June 1, 2012
ब्रह्मेश्वर मुखिया की मौत के बाद बिहार
बिहार से आई रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या की खबर बड़ी है, अचानक आई है लेकिन अप्रत्याशित नहीं है और जबर्दस्त प्रभाव की क्षमता रखने वाली है। करीब 70 साल के ब्रह्मेश्वर का संगठन बेशक अब पहले जैसा प्रभाव नहीं रखता लेकिन सियासत के समीकरण प्रभावित हुए बिना नहीं रहने वाले, यह तय है। हत्या से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने जिस तरह से पैंतरा बदलते हुए उन्हें समाजसेवी बताया है, उससे राज्य की राजनीति में उतार-चढ़ाव बढ़ेंगे और नए मोड़ आएंगे। आशंका यह तक जताई जा रही है कि राज्य में जातीय हिंसा के साथ ही छिटपुट संघर्षों का दौर शुरू हो सकता है जिसके शिकार दलित भी बनेंगे जिनकी माओवादी हिमायत करते हैं और बदले में दूसरी जातियों को निशाना बनाया जाएगा।
ब्रह्मेश्वर सिंह उर्फ बरमेसर मुखिया बिहार की जातिगत लड़ाइयों के इतिहास में एक जाना-माना नाम है। भोजपुर ज़िले के खोपिरा गांव के रहने वाले मुखिया ऊंची जाति के ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें बड़े पैमाने पर निजी सेना का गठन करने वाले के रूप में जाना जाता है। बिहार में नक्सली संगठनों और बडे़ किसानों के बीच खूनी लड़ाई के दौर में एक वक्त वो आया जब बड़े किसानों ने मुखिया के नेतृत्व में अपनी एक सेना बनाई थी। सितंबर 1994 में ब्रह्मेश्वर मुखिया के नेतृत्व में जो सगंठन बना उसे रणवीर सेना का नाम दिया गया। उस समय इस संगठन को भूमिहार किसानों की निजी सेना कहा जाता था। इस सेना की अक्सर नक्सली संगठनों से खूनी भिड़ंत हुआ करती थी। खूनखराबा बाद में इतना बढ़ा कि राज्य सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। नब्बे के दशक में रणवीर सेना और नक्सली संगठनों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ कई बड़ी कार्रवाइयां कीं। दरअसल, यह हिंसक संघर्ष हुआ करते थे जिन्हें दोनों संगठन कार्रवाई का नाम दिया करते थे। इनमें सबसे बड़ा लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार एक दिसंबर 1997 को हुआ जिसमें 58 दलित मारे गए। इस घटना में भी मुखिया को मुख्य अभियुक्त माना गया। बाड़ा में नक्सली संगठनों ने ऊंची जाति के 37 लोगों को मारा था जिसके जवाब में बाथे नरसंहार को अंजाम दिया गया। इस घटना ने राष्ट्रीय स्तर पर बिहार की जातिगत समस्या को उजागर किया। पहली बार दुनिया के सामने आया कि जाति के आधार पर कम से कम दो भागों में बंटा बिहार विस्फोट के मुहाने पर है। आएदिन के हत्याकांडों के पीछे का सच उजागर हो गया। हत्याएं इतने बड़े पैमाने पर हुईं कि नरसंहार का शब्द आम हो गया। नीतीश से पूर्व लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्रित्व काल तक रणवीर सेना का खूब आतंक रहा। कोई दिन मुश्किल से छूटता था कि हत्याओं की खबरें न आएं। हालात कभी-कभी इतने खराब हो जाते कि अद्धैसैन्य बलों की तैनाती करनी पड़ती। मुखिया बथानी टोला नरसंहार में भी अभियुक्त थे जिसमें उन्हें 29 अगस्त 2002 को पटना के एक्जीविसन रोड से गिरफ्तार किया गया। उन पर पांच लाख का इनाम घोषित किया गया था। वह नौ साल जेल में रहे। बथानी टोला मामले में सुनवाई के दौरान पुलिस ने कहा कि मुखिया फरार हैं जबकि मुखिया उस समय जेल में थे। मामले में मुखिया को फरार घोषित किए जाने के कारण सज़ा नहीं हुई और वो आठ जुलाई 2011 को रिहा हुए। उनकी रिहाई कई लोगों को पच नहीं रही थी और भाकपा माले ने इस फैसले का खुला विरोध किया था।
बथानी टोला मामले में वो अभी भी फरार घोषित हैं और मामला अदालत में है। 277 लोगों की हत्या से संबंधित 22 अलग अलग आपराधिक मामलों (नरसंहार) में इन्हें अभियुक्त माना जाता था। जेल से छूटने के बाद उन्होंने पांच मई 2012 को अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन के नाम से संस्था बनाई और कहते थे कि वो किसानों के हित की लड़ाई लड़ते रहेंगे। जब मुखिया आरा में जेल में बंद थे तो इन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि किसानों पर अत्याचारों की लगातार अनदेखी हो रही है। मैंने किसानों को बचाने के लिए संगठन बनाया था लेकिन सरकार ने उन्हें निजी सेना चलाने वाला और उग्रवादी घोषित करके प्रताड़ित किया है। उनके अनुसार किसानों को नक्सली संगठनों के हथियारों का सामना करना पड़ रहा था। इतनी हत्याओं और चर्चित मामलों में जुड़े ब्रह्मेश्वर का जाना इतनी आसानी से उनके समर्थकों को हजम हो जाएगा, यह लगता नहीं है। वह भी तब, जबकि यह समर्थक राजनीतिक दलों में भी बेहद महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं। राज्य में नीतीश कुमार की सरकार के विरुद्ध विपक्षी दलों को एक बड़ा हथियार मिल गया है क्योंकि इस हत्याकांड से वह यह पाने में पहली बार कामयाब हुए हैं कि राज्य में कानून व्यवस्था बदहाल हो गई है। दूसरा और सबसे बड़ा कारण, ब्रह्मेश्वर का सवर्णों में लोकप्रिय होना भी है। इतने बुजुर्ग होने के बाद भी वह लगातार सक्रिय थे। हवा का रुख पहचानते हुए वह दलितों के पक्ष में भी यह कहकर कामं करने लगे थे कि हर पीड़ित की लड़ाई को उनका पूरा समर्थन है। हत्या से राज्य की जातीय राजनीति गरमाने की आशंका है जिसका असर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल युनाइटेड गठबंधन पर भी पड़ सकता है। पूरे मध्य बिहार में ब्रह्मेश्वर सिंह अगड़ी जातियों के भूमिगत नेता माने जाते थे। भाजपा को बिहार में अगड़ी जातियों का समर्थन मिलता रहा है और इस हत्याकांड से भाजपा को अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करना पड़ सकता है। भाजपा की मदद से मध्य बिहार में व्यापक समर्थन पाने वाले नीतीश की सरकार अगर जल्दी कोई ठोस कार्रवाई नहीं करती है तो उससे बड़ा जनाधार खिसक सकता है।
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