Saturday, July 21, 2012
राज-उद्धव के इर्द-गिर्द सियासत
महाराष्ट्र की राजनीति करवट ले रही है। जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, उससे लगता है कि अगले चुनाव में कांग्रेस का मुकाबला भाजपा की सहयोगी शिवसेना के और ताकतवर रूप से होने जा रहा है। उद्धव ठाकरे की बीमारी इस करवट का जरिया बनी है। उद्धव और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे में नजदीकियों से इन दिनों राज्य में शिव सेना और साल 2006 में इससे अलग हुई महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के जमीनी कार्यकतार्ओं के हलकों में खुशी की लहर दौड़ गई है। दोनों भाइयों में दोस्ती हुई तो राज्य की राजनीति पर बड़ा असर पड़ना तय है।
बीमारी के दिनों में राज ठाकरे ने उद्धव से कई मुलाकातें कीं, यहां तक कि वह उद्धव को वह अपनी गाड़ी में बाल ठाकरे के आवास मातोश्री भी छोड़ने गए। यह बड़ी बात है, एक-दूसरे को फूटी आंख न सुहाने वाले दोनों भाइयों में दोबारा पनपे प्रेम का राजनीतिक समीकरणों पर असर पड़ना तय है। शिवसेना महाराष्ट्र की बड़ी राजनीतिक पार्टी है, जो सत्ता में रही है। भारतीय जनता पार्टी उसकी गठबंधन सहयोगी है। कट्टरपंथी हिंदुत्व समर्थक नेता बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव को बढ़ावा दिए जाने से 2006 में भतीजे राज नाराज हो गए और उन्होंने नए राजनीतिक दल महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन कर लिया था। इसके बाद राज का वर्चस्व बढ़ता गया। इसका कारण उनका उद्धव की तुलना में ज्यादा उग्र और लोकप्रिय होना था। उत्तर भारतीयों को बाहर निकलने की चेतावनी जैसे विवादित कदमों से महाराष्ट्र के मूल निवासियों में उनका जनाधार तेजी से बढ़ा और परिणाम भुगता शिवसेना ने। कांग्रेस ने उसे कई क्षेत्रों में शिकस्त दी, वजह बनी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ही। इस पार्टी के जनाधार में वृद्धि वहां ज्यादा हुई जहां शिवसेना का प्रभाव था। चुनावों में शिवसेना के कई गढ़ ढह गए। हालात यहां तक पहुंच गए कि छोटी बहन की भूमिका अदा करती रही भाजपा का जलवा बढ़ने लगा। तमाम कार्यकर्ता शिवसेना से नाउम्मीद हुए और राज की नीतियों के विरोधी भाजपी के समर्थक बन गए। एक अनुमान के अनुसार, हर चुनावों में शिवसेना का कट्टर समर्थक रहा उत्तर भारतीयों का बड़ा प्रतिशत भाजपा के पाले में चला गया।
राज्य में इस समय बड़े पैमाने पर संभावना जताई जा रही है कि अब दोनों भाइयों में सुलह सफाई हो गई है और शायद अब वो दिन दूर नहीं जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना शिव सेना में वापस लौट जाए। कम से कम दोनों पार्टियों के जमीनी कार्यकतार्ओं के बीच उम्मीद की किरण तो जाग ही उठी है। हालांकि दोनों दल के कार्यकतार्ओं में दूरियां उतनी थी नहीं, जितनी राजनीति सिद्ध कर रही थी। इसकी वजह दोनों के मूल में हिंदुत्व और शिवसेना थी। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना में जो कार्यकर्ता बने, वह दरअसल पुराने शिवसैनिक ही थे। राज्य के लगभग हर क्षेत्र से दोनों पार्टियों के लोग संकेत देते थे थे कि उनका आपसी मतभेद कभी दुश्मनी में नहीं बदल सकता और ये कि वो चाहते हैं कि दोनों पार्टियाँ फिर से एक हो जाएं। लेकिन अब, जबकि छह साल में पहली बार ठाकरे परिवार में मेल-मिलाप होता दिखाई देता है तो ये मुमकिन लगता है कि दोनों पार्टियाँ भी आपस में मिल जाएं. दूसरे शब्दों में नव निर्माण सेना शिव सेना में फिर से वापस चली जाए। हालांकि स्पष्ट नतीजा शायद अभी न मिले लेकिन दोनों पार्टियों का फिर से मिल जाना इतना आसान नहीं होगा। वैसे भी इन संभावनाओं के बीच शिव सेना के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा भी कि ठाकरे भाइयों की आपसी मुलाकातें निजी स्तर की हैं। अगर एक भाई बीमार हो तो दूसरा भाई उसे देखने जरूर आएगा। इसका मतलब ये नहीं कि दोनों पार्टियों का आपसी मिलाप भी हो जाएगा। इसका राजनीतिक अर्थ निकालना अभी जल्दबाजी होगी। शिवसेना में फूट से पहले राज ठाकरे बाल ठाकरे के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय और शक्तिशाली नेता थे और उन्हें उम्मीद थी कि बाल ठाकरे उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुनेंगे लेकिन जब 2006 में उन्होंने अपने भतीजे को नजरअंदाज करके पार्टी का नेतृत्व अपने बेटे उद्धव के हवाले किया तो वो पार्टी से अलग हो गए। पिछले छह साल में राज ठाकरे ने अपनी पार्टी को राज्य भर में स्थापित कर दिया है। चुनावी सफलताओं के कारण अब राज्य में उनकी पार्टी को संजीदगी से लिया जाता है. दूसरी तरफ शिव सेना के समर्थकों को अपनी तरफ खींच कर उन्होंने अपने भाई और चाचा की पार्टी को कमजोर करने का भी काम किया है।
राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि अगर राज ठाकरे शिवसेना में लौटेंगे तो इसकी कीमत भी चाहेंगे। सवाल यह है कि क्या उद्धव और चाचा बाल ठाकरे उन्हें वो पद देने के लिए तैयार होंगे जिसके न मिलने पर वो पार्टी से अलग हुए थे। या फिर उन्हें उद्धव की बराबरी का कोई दर्जा दिया जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो राज उद्धव को लोकप्रियता में काफी पीछे छोड़ देंगे। क्या उद्धव ये सियासी खुदकुशी करने को तैयार होंगे। दूसरी तरफ शिव सेना के नेतागण इस बात को जानते हैं कि राज ठाकरे की वापसी से 2014 के आम चुनाव और उसी साल होने वाले विधानसभा के चुनाव में पार्टी को जबर्दस्त फायदा होगा। अब देखना है दोनों भाइयों की दोबारा दोस्ती का सफर ठाकरे परिवार तक ही सीमित रहता है या फिर राजनीति में अपना रंग लाता है। हालांकि शिवसेना और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के कार्यकतार्ओं के साथ ही कांग्रेस से आजिज आ चुकी राज्य की जनता को उम्मीद तो एकता की ही है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment