Friday, July 13, 2012
ह्विप मुक्त चुनाव से संगमा को उम्मीदें
वोट प्रभावित करने की संभावनाओं को कम करने संबंधी निर्वाचन आयोग के इस स्पष्टीकरण के बाद कि राष्ट्रपति पद के चुनाव में पार्टियां मतदान के लिए अपने सांसदों और विधायकों के लिए ह्विप जारी नहीं कर सकतीं, भारतीय जनता पार्टी समर्थित प्रत्याशी पीए संगमा के वोटों में वृद्धि की संभावना पैदा की है। संगमा आदिवासी समाज से जुड़े हैं और देश के कई राज्यों में आदिवासी विधायकों की अच्छी-खासी संख्या है, तमाम सांसद भी ऐसे हैं जो या तो खुद आदिवासी हैं या उन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं जहां आदिवासियों की बहुलता है। घटनाक्रम से कांग्रेस में बेचैनी है, प्रश्न यह पैदा हो रहा है कि क्या विधायक या सांसद पाटीर्लाइन से उठकर संगमा के पक्ष में मतदान कर सकते हैं, जवाब उम्मीदों से भरा है। हालांकि संगमा का रास्ता इससे पूरी तरह साफ नहीं हो रहा।
राष्ट्रपति पद का चुनाव 19 जुलाई को है। सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के प्रत्याशी प्रणब मुखर्जी और संगमा दोनों प्रचार में जुटे हैं। प्रणब के चुनाव प्रबंधकों ने जिस तरह तृणमूल कांग्रेस के समर्थन के लिए प्रयास शुरू किए हैं, उसके पीछे निर्वाचन आयोग के इस स्पष्टीकरण को भी वजह माना जा रहा है। रूठी हुईं तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी को मनाने के लिए मुखर्जी खुद भी जोर लगाए हुए हैं। कांग्रेस बेशक सही कह रही है कि उसके प्रत्याशी की जीत तय है लेकिन जीत का अंतर कम न हो, इस कवायद से उसका इंकार लोगों के गले नहीं उतर रहा। संगमा का कद उसके लिए परेशानी का सबब है। संगमा अकेली भारतीय जनता पार्टी से समर्थन प्राप्त प्रत्याशी नहीं हैं बल्कि उनके पीछे आदिवासियों की राजनीति करने वाले छोटे दलों का साथ भी है। अपने प्रभाव वाले मध्य प्रदेश, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासियों की अच्छी-खासी उपस्थिति वाले राज्यों में भाजपा भी प्रयासरत है कि संगमा को अन्य दलों के प्रतिनिधियों के वोट मिल जाएं। मध्य प्रदेश से तो खबरें आने भी लगी हैं कि एनडीए के प्रत्याशी पीए संगमा पर भाजपा के आदिवासी सांसद और विधायक तो एकजुट दिखाई दे रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के आदिवासी सांसद और विधायकों की स्थिति डांवाडोल नजर आ रही है। उधर, छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य हैं, जहां आदिवासी समुदाय से 27 विधायक और चार सांसद हैं। राज्यसभा सांसदों को मिलाकर दो सांसद और हैं। इस तरह सांसद और विधायकों को जनसंख्या के आधार पर राष्ट्रपति के लिए वोटिंग करनी है। सांसदों के वोट की कीमत 708 और विधायकों के वोट की कीमत 108 है। हालांकि छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर ज्यादा प्रभाव नहीं डालने की बात कही जा रही है। छत्तीसगढ़ की चिंगारी को बढ़ती हुई आग के रूप में जरूर देखा जा रहा है। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सांसद और विधायक जनता के प्रतिनिधि के रूप में वोटिंग करेंगे। राज्यों में भारत निर्वाचन आयोग सांसद और विधायकों के लिए अलग-अलग मतपत्र भेजेंगे। इसमें गोपनीय तरीके से अपनी पहली और दूसरी पसंद को लेकर वोटिंग होगी। चूंकि कोई भी पार्टी राष्ट्रपति चुनाव के लिए कोई ह्विप जारी नहीं करती है, इस लिहाज से माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी विधायकों का दस प्रतिशत वोट भी समाज की मांग पर पीए संगमा के पक्ष में जा सकता है। यदि यह स्थिति पूरे देशभर में हुई, तो राष्ट्रपति चुनाव में नया समीकरण देखने को मिलेगा। छत्तीसगढ़ से भाजपा के राज्यसभा सांसद नंदकुमार साय और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम ने आदिवासी फोरम के बैनर तले इस मांग के जरिए देशभर में समर्थन मांगा है। साय ही आदिवासी जनप्रतिनिधियों को एकजुट करने के अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। एनडीए उम्मीदवार संगमा के लिए उनकी पुत्री अगाथा संगमा ने बस्तर आकर प्रचार किया और आदिवासियों से समर्थन मांगा है। आदिवासी राष्ट्रपति पर कांग्रेस नेताओं का मिलाजुला बयान आया है और कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम ने पार्टी की परवाह किए बगैर समाज के प्रतिनिधि को समर्थन देने की बात कही है। आदिवासियों के बीच जो माउथ पब्लिसिटी हुई, उसका असर आदिवासी विधायकों पर ज्यादा नजर आ रहा है। प्रदेश के आदिवासी समाज से जुड़े नेता और अफसर इन दिनों आदिवासी राष्ट्रपति की मुहिम में जुटे हुए है और अन्य राज्यों का भी दौरा कर रहे हैं। नेताम के संगमा के पक्ष में बयान देने के बाद कांग्रेस ने सतर्कता बरतनी शुरू कर दी है। प्रभारी महासचिव बीके हरिप्रसाद ने कांग्रेस के सभी सांसदों और विधायकों से कहा है कि वे पार्टी लाइन का अनुपालन करें। ऐसा न करने वालों पर उन्होंने कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी है। मध्य प्रदेश में यह जैसे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में शक्ति परीक्षण का बड़ा मौका है। भाजपा अपनी सत्ता का इस्तेमाल करके अन्य दलों के विधायकों को रिझा रही है, ताकि वह संगमा का पक्ष लें। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया खुद भी आदिवासी हैं इसलिये उन्हें भाजपा के प्रयासों का असर कम करने की मुहिम पर तैनात किया गया है। राज्य की दर्जनों नगर पालिकाएं और सैकड़ों नगर पंचायतें आदिवासी बहुल हैं। कांग्रेस आला कमान ने भूरिया के आदिवासी होने के कारण ही उन्हें प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी है ताकि पार्टी को आदिवासियों का खोया समर्थन फिर मिल सके। मप्र में आदिवासियों की काफी बड़ी आबादी है जिसके थोक समर्थन के बूते कांग्रेस करीब 4 दशकों तक सूबे की सत्ता पर कब्जा जमाती रही है। कांग्रेस को ज्यादातर चुनाव जिताते रहे आदिवासी वर्ग का बड़ा हिस्सा करीब एक दशक पहले उससे छिटक चुका है। भाजपा इस पर सतर्क निगाह रखे हुए है।
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